
साप्ताहिक प्रतियोगिता : प्रेम के उपासक
- shalini Mishra
- 06/09/2024
- लेख
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- 2 Comments
!! “साप्ताहिक आमंत्रण – कल्प/सितम्बर/२०२४/अ” !!
विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/सितम्बर/२०२४/अ
विषय :- !! “प्रेम के उपासक” !!
विधा – लेख
डॉ०शालिनी मिश्रा ‘वैदेही’,
जोधपुर, राजस्थान
संपर्क me.shalinimishra06@gmail.com
प्रेम वास्तव में एक उपासना ही है | अब जबकि हम इक्कीसवीं शताब्दीं में जी रहें हैं जहाँ हमारे लिए व्रत, उपवास, साधना,आराधना, उपासना मात्र शब्द रह गये हैं| इन शब्दों को जीना अब मनुष्य न अपने लिए आवश्यक ही समझता हैं न उपयोगी ही | ऐसे में ‘प्रेम’ को सही मायने में समझ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन प्रतीत होता है |
प्रेम जीवन से अधिक गूढ़ है और मृत्यु से अधिक रहस्यमयी | आवश्यक नहीं की प्रेम किसी व्यक्ति से ही हो, यह मात्र एक भाव है| यह भाव जिसके भी प्रति होगा उसके जीवन को संवार देगा| प्रेम माँ से हो सकता है ,मात्रभूमि से हो सकता है,प्रेम पेड़ पौधों, नदी, पहाड़ और पंछियों से भी हो सकता है, प्रेम प्रतिदिन बदलते चाँद से भी हो सकता है उसके दिखने या उसके न दिखने से पर भी हो सकता है और प्रेम का सुन्दरतम रूप है अपने कर्तव्यों से प्रेम होना|
प्रेम एक जूनून है | जिसके लिए आप अत्यंत प्रिय वस्तु या व्यक्ति को छोड़ भी सकते हैं या अपने व्यस्ततम समय में उसके लिए समय निकाल भी सकते हैं |
किसी व्यक्ति से ‘प्रेम’ का होना जीवन में क्रांति का होना होता है| जिस प्रकार क्रोध जुड़ा है विध्वंश से, उसी प्रकार प्रेम जुड़ा है सृजन से, और जानते हैं.. प्रेम मे पड़ा व्यक्ति कभी क्रोध नहीं कर सकता उससे आप सबकुछ ले लीजिये उसके प्रिय के सिवाय, उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा उसे दुनिया की हजार नियामते दे दीजिये किंतु उसे अहंकार न आयेगा l क्योंकि उसे अपने प्रिय से अधिक कुछ भी प्यारा नहीं, उसका प्रेम ही वो ताकत है जो उसे फिर से सबकुछ ले आने पर मजबूर कर देगा |
प्रेम इतनी अधिक पवित्र वस्तु है कि इसे प्रत्येक व्यक्ति धारण न कर सकता है | कई व्यक्ति इसकी तीव्रता से डर जाते हैं और पीछे हट जाते हैं कुछ विरले उदार हृदय वाले ही होते हैं जो इसे मंजिल तक पहुँचाते हैं | कहने को मैंने कह दिया ‘मंजिल’ किन्तु प्रेम की मंजिल ‘प्रेम’ ही होती है या कहें यह एक अनवरत यात्रा है | जिसमें अन्य कोई भाव न समा सकेंगे उसमें केवल प्रेम ही होगा |
यदि उसमें क्रोध, घृणा या ऊब है तो वह कभी प्रेम था ही नहीं| प्रेम कब हुआ और क्यूँ हुआ? यह सदैव रहस्य ही बना रहेगा| और तो और.. कई बार न चाहते हुए भी हो जाता है ‘प्रेम’|
प्रेम किससे हुआ कई बार तो यह भी बड़ी देर में पता चलता है| हम कई बार समझ न पाते हैं कि उस व्यक्ति विशेष के लिए हमारे मन के भाव विशेष क्यों हो जाते हैं | किन्तु धीरे धीरे समय इस रहस्य से पर्दा उठाता ही है| किन्तु कई लोग यह फिर भी न मानते हैं कि उन्हें प्रेम ही हुआ होगा | किन्तु इसे मान लेना ही इसका सम्मान हैं, और इस ईश्वरीय भाव का अपमान न करना चाहिए| यह दुनिया अमर्यादित व्यवहार को ‘प्रेम’ कहने लगी है किन्तु प्रेम में सदैव मर्यादा होती है, सम्मान होता है और प्रेम में सदैव बस ‘प्रेम’ होता है |
‘प्रेम’ अंतहीन पथ पर अनवरत प्रेम की यात्रा हैं|
डॉ०शालिनी मिश्रा ‘वैदेही’
एम०बी०ए०,एम०ए० हिंदी (गोल्डमेडलिस्ट), पी०एच०डी०
2 Comments to “साप्ताहिक प्रतियोगिता : प्रेम के उपासक”
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पवनेश
‘प्रेम’ अंतहीन पथ पर अनवरत प्रेम की यात्रा है।
प्रेम को परिभाषित करते हुए आपने उत्तम विचार सृजन किया है डॉक्टर शालिनी जी, बहुत सुंदर, राधे राधे 🙏🌹🙏
shalini Mishra
थैंक यू पवनेश जी