
🏞️ कल्प संवादकुंज:- “स्वतंत्रता के पहले पथिक – तिलका माँझी” 🏞️
- Kalp Samwad Kunj
- 05/02/2025
- लेख
- देशप्रेम
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🇮🇳 “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – अमर बलिदानी तिलका माँझी विशेष” 🇮🇳
🏞️ कल्प संवादकुंज:- “स्वतंत्रता के पहले पथिक – तिलका माँझी” 🏞️
⏳ “समयावधि: दिनाँक ०५- फरवरी-२०२५ बुधवार सायं ६.०० बजे से दिनाँक २१-फरवरी-२०२५ मंगलवार मध्य रात्रि १२.०० बजे (भारतीय समयानुसार) तक।” ⏲️
🔆 “विधा – लेख (वैचारिक)” 🔆
📝 “भाषा:- हिन्दी (देवनागरी लिपि)” 📝
❇️ “विशेष: > अमर बलिदानी तिलका माँझी जी के शौर्य और बलिदान को सम्मानित करते विचार सादर आमंत्रित हैं।” ❇️
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Kalp Samwad Kunj
*🇮🇳 “साप्ताहिक कल्प संवादकुंज – अमर बलिदानी तिलका माँझी विशेष” 🇮🇳*
“विधा – लेख (वैचारिक)”
*📝 “भाषा:- हिन्दी (देवनागरी लिपि)” 📝*
भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन छेड़ने वाला व्यक्ति तिलका मांझी जी थे। जिनका इतिहास के पन्नों में नाम तक उभर ही ना पाया हमारे देश में प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे को कहा जाता है किंतु हमें यह ज्ञात होना चाहिए जब तिलका मांझी की मृत्यु हुई तब मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था।
पहाड़ी समुदाय का यह गोरिल्ला एक ऐसा तेज रखता था जिसकी आंखों को देखकर अंग्रेज कांपने लगते थे इसके बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ नाम भर का उल्लेख करते हैं पहाड़ियां समुदाय के लोग इन्हें अपना आदर्श मानते हैं और कहानी में छापा मारा की जीवनी और सदियों बाद भी उसकी जीवित होने का सबूत पेश करती है।
आज भी स्कूल के पाठ्यक्रम ,नाटक और फिल्मों में,इतिहास के पन्नों में मंगल पांडे का उल्लेख होता है किंतु माझी जी का नहीं जबकि मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था।
1857 की पहली आजादी लड़ाई का पहला वीर पांडे जी को बताया जाता है। जबकि अंग्रेजों के खिलाफ जंग की शुरुआत बाबा तिलका मांझी ने किया था।
तिलका मांझी जी का जन्म 11 फरवरी 1970 बिहार के तिलकपुर गांव में हुआ था। इन्हें जबरा पहाड़ियों के नाम से जाना जाता था यह झारखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे।
इनका यह नाम अंग्रेजों द्वारा दिया गया था क्योंकि तिलका मांझी स्वभाव से गुस्सैल प्रवृत्ति के व्यक्ति थे मांझी आदिवासी थे जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम विगुल ठोका था। बचपन से इन्हें कुश्ती करने, शिकार खेलने ,तीर बाजी करने का बहुत शौक था इनके पिताजी का नाम सुंदरा मुर्मू था।
का नाम पानो मुर्मू था। उनके पिता गांव के प्रधान ( आतु मांझी )थे और माता कुशल गृहणी थी।
1770 में झारखंड में अकाल आ गया था तब उनकी उम्र महज 20 साल की थी इसी उम्र में सूखा हुआ अनाज की कमी के कारण सारे लोग भूखे रहने लगे तब इन्होंने अंग्रेजों का खजाना लूट लिया तभी गांव वालों ने इन्हें अपना मसीहा मान लिया।
1771 से 1784 ई से इन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था 1784 में अंग्रेजों के कलेक्टर “आगस्टस क्लीवलैंड “को अपने तीर से मार गिराया तब अंग्रेजों ने इन्हें जोर-शोर से पकड़ने की कोशिश किया तब अंग्रेज इन्हें पकड़ नहीं पाए और तब उन्होंने यह राजनीति अपनाई की भारतीय लोगों में हमें “राज करो, फूट डालो नीति “का प्रयोग हथकंडा अपनाना होगा और उनकी यह नीति बहुत सफल भी हुई। क्योंकि तिलका मांझी का साथी अंग्रेजों से मिल गया और उनके स्थान का पता उन्होंने अंग्रेजों को जाकर बता दिया जिससे तिलका मांझी को पकड़ने के लिए आए और तिलका मांझी अपने छापा मारा नीति से अंग्रेजों को अंग्रेजों की आंखों में धूल डालकर बाहर निकले और फिर अंग्रेजों को किसी ने खबर दे दिया कि मांझी एक गुफा में छिपे गए हैं तब उनको पता चला तो गुफा में चारों ओर से घेराबंदी कर लिया और उसे गुफा में खाने- पीने का जो भी सामान जाता था उस पर बंदिश लगा दिया बहुत दिनों तक मांझी इस गुफा में छिपे रहे जिसके कारण एक समय ऐसा आया कि भूख से तड़पने लगे जिससे वह गुफा के बाहर आए और अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और ऐसा कहा जाता है कि चार घोड़े में बांधकर खींचकर बहुत मिलों तक भागलपुर तक ले जाया गया था।
भागलपुर ले जाकर अंग्रेजों ने 1785 में बरगद के पेड़ पर लटकाकर इन्होंने फांसी लगा दी ।फांसी लगाते समय इनसे पूछा गया कि क्या तुम्हें डर या भय नहीं लग रहा है तब इन्होंने कहा आज तुम हमें फांसी दे रहे हो कल हमारे जैसे हजारों मांझी तुम्हारे सामने आएंगे फिर तुम क्या करोगे और मुझे डर इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि हमारे आदिवासी भाई मेरे बलिदान से इस देश को आजादी दिलाने में सफल होंगे उन्होंने हंसमुख चेहरा से बोला
“हंसी -हंसी ,चढ़बो फांसी “ऐसे नारों से उन्होंने देशवासियों के बीच में क्रांति का अलख जलाया। ऐसे थे हमारे देश के वीर महान बिरसा मुंडा, मांझी जी, मंगल पांडे जी जैसे लोग हमारे देश को आजादी दिलाने में अपने प्राण तक त्याग दिए जिनका मात्र उपदेश यही था कि सदा भारतीय लोग एकजुट रहकर आपस में प्रेम परस्पर से देश की तरक्की में योगदान देना ना की जात-पात या अन्य चीजों में फूट डालो नीति का शिकार बनना ।वर्तमान में तिलका मांझी के नाम से *1960 में भागलपुर यूनिवर्सिटी स्थापित की गई।
*1991 में तिलकामांझी यूनिवर्सिटी भागलपुर में स्थापित किया गया।
लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन पर आधारित एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था शालगिरर डाके।
तिलका मांझी का नाम इतिहास में भले ना हो किंतु जब इतिहास हमारे पीढ़ियों के कानों तक जाएगा तो एक नई क्रांति का आगाज होगा अतः तिलका मांझी के स्वप्न को पूरा करने में हम सब आज भी असफल हैं क्योंकि आज भी हम जात-पात के रूढ़ियों में बंधे हुए हैं ।
जिससे कहीं ना कहीं आज भी गुलामी की जंजीर में हम खुद को महसूस कर रहे हैं तो तिलका मांझी के बलिदान, मंगल पांडे के बलिदान को हमें उनके आदर्शों को स्थापित करके आगे बढ़ना होगा ऐसे वीर योद्धाओं को इतिहास सदैव दबाती रहेगी और हम मुगल अंग्रेजों के इतिहास को ही जान पाएंगे इसलिए हमें अपने देश के प्रति ईमानदार होना अति आवश्यक है।
इतिहास में इनको ना पढ़ाया गया,
तिलका मांझी की वीरता को क्यों छुपाया गया?
मुगलों साथ अंग्रेजों के इतिहास को बताया गया,
भारत के प्रथम स्वतंत्रता सैनिकों का इतिहास क्यों दबाया गया?
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)