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⚜️ “!! अमर बलिदानी बुधु भगत !!” ⚜️


जंगल की धरती पर जन्मा, क्रांति का उसने दीप जलाया।
न्याय हेतु उठ खड़ा हुआ, अन्याय का घोर तिमिर मिटाया।।

अंग्रेज़ों के अत्याचार से, जब हाहाकार मचा था चारों ओर,
उठी एक हुंकार, रोष जगे, काँपे शासन के काले छोर।

धरती के बेटे ने देखा, भूखा किसान, जमींदारों का त्रास,
कोयल नदी किनारे बैठा, सोचा करना है अन्याय का नाश।

कुल्हाड़ी संग ले बढ़ा वह, संग्राम की ज्वाला दहकाई,
उरांवों, मुण्डाओं संग मिल, क्रांति की धधक उठी तरुणाई।

लरका विद्रोह की हुंकार से, जाग उठे वनवासी रणबाँकुरे,
तलवार, धनुष-बाण थामे, बढ़ चले थे मिटाने कायर गोरे।

गुरिल्ला रणकौशल में उसने, युद्धनीति की नई राह पाई,
घने जंगलों में शत्रु दल पर, गिरती बिजली अंगारों जैसी छाई।

कप्तान इंपे घबराया, इनाम रखे उसके शीश पर,
पर वीर पुरुष न डिगा, बढ़ चला विजय के दीप पर।

हजारों रणबाँकुरों ने जब, दुश्मन को मात दिया रण में,
थर-थर काँपा ब्रिटिश दल, बिखर गया क्रूर समर में।

किन्तु रणभूमि में घेर लिया, शत्रु ने उसको छल से,
नृशंस गोलियों की वर्षा कर दी, निर्दोषों के उस दल पे।

हुआ रक्तरंजित सिलागाई, क्रंदन गूंज उठा नभ में,
तीन सौ नर-नारी गिरे, रणभूमि के उस यज्ञ जप में।

हलधर, गिरधर संग शहीद हुए, पर ध्वजा नहीं झुकी,
वीर बुधु भगत की गाथा, इतिहास में अमर हुई।

जन-जन के हृदय में बसते, बलिदान का दीप जलाते,
जो देश-धर्म पर मिट जाएँ, वे ही सच्चे वीर कहाते।

पवनेश

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