
अबला नहीं तू अग्नि बने – समय की यही पुकार है।
सुनो जानकी!
वन में मत जाना, न्याय की अग्नि शुद्ध नहीं।
रावण लंका नहीं रहे अब, माह प्रतीक्षा शक्ति नहीं।।
लक्ष्मण नहीं बनाते रेखा पर्ण कुटी के द्वारे पर।
नहीं विभीषण, न मंदोदरी, त्रिजटा भी अब वहां नहीं।।
तुमको स्वयं चलाना होगा, संघर्षों पर बाणों को।
समय न दो अब मुख सहस्त्र को, प्रश्नों और विकारों को।।
सुनो अहल्या!
मौन त्याग दो, कलयुग में तुम शिला न बनना।
धूर्त इंद्र को वहीं जला दो षड्यंत्रों की जब हो रचना।।
ऋषि, पुरोहित, नीति की गठरी, सबके अर्थ व्यर्थ यहां।
मूक मुखों से शब्द क्या फूटें, जीवन शेष नहीं जब बचना।।
राम एक रावण असंख्य हैं, समय नहीं न राह तको।
गौतम जी को भी समझा दो, सत्य कथ्य की बाट न तकना।।
सुनो राधिके!!
यह कलयुग है मुरली भी खल असुर बजाते हैं।
श्याम रूपधर कपटी पापी ललनाएं फुसलाते हैं।।
प्रेम नेह की मधुर ध्वनि में कुटिल कुचाल जो सिखलाएं।
जो जैसा है वैसा फल दो, दया धर्म पात्र को दिखलाएं।।
कंस जरासंध कालयवन शिशुपाल सरीखे ढेरों हैं।
चक्र सुदर्शन स्वयं उठा लो, तम का घुप्प अंधेरों है।।
सुनो कन्या!
अब भी चुप रहीं तो जानो सड़कें सौदे ठहराएंगी।
बदलो लेख बनो विद्रोही, बस देह नहीं कहलाएंगी।।
यूं लगता
अब धर्म शून्य है, नीति भी सोई, खुद को स्वयं जागना होगा।
देवी दुर्गा! भीतर अपने जगाकर फिर से आग बनाना होगा।।
कष्ट बहुत है त्रास बहुत है जीवन के दुख का विन्यास बहुत है।
जिनके श्वेत वेश में मन हैं काले उनको खुद निपटाना होगा।।
सुनो निर्भया!
आँधी बनो, बहाओं न आंसू, यह करके दिखलाना होगा।
दिल्ली की सड़कों पर सुलगी जो अग्नि, घर-घर उसे जलाना होगा।।
वे जो हँसते थे चीर हरण पर, उनकी गद्दी हैं ठाठे हैं।
चीखें सिर्फ तुम्हारी न थीं, वो काल के गाल पर चांटे हैं।।
सुनो प्रियंका! सुनो मणिपुर की बहनों के बोल को।
स्त्री ही क्यों रक्तांचल है, देखो खोल की पोल को।।
कहीं उन्नाव, कहीं हाथरस, पंचायतें मौत सुनाती हैं।
मर्यादा में जकड़ी बेटियाँ अब भी बेची जाती हैं।।
अब शांति नहीं, सिंहनाद करो, रुको नहीं अब न्याय करो।
सुनो! द्रौपदी नहीं बनो अब, काली बन संहार करो।।
क्रांति के आँगन में गर्जन, यही समय है सच को तुम स्वीकार करो।
न होगा अब करुणा क्रंदन, आन मान की तुम्हें चुनौती तुम खुद अंगीकार करो।
अब प्रश्न नहीं कि गोविंद आएँगे या नहीं,
अब उत्तर यही है —
‘हर नारी को स्वयं गोविंद बनकर चलना होगा।’
अब प्रश्न नहीं हैं कि राम की आज्ञा है या नहीं,
अब उत्तर यही है –
सहस्त्रों सहस्त्र मुखों को अपने हाथों दलना होगा।
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