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“प्रगटे कुँवर हरदौल”

टेसू और सांझी, महाबूलिया, सुअटा नौरता, ओ छुपन छुपाई,

माई की बेटी, बाबा की लड़ेती, सहोदरी जिनसे भरी अमराई।

लोक के देव जो देव हैं लोक के नेह की डोर गई न छुड़ाई

बहना के बोल, रहे अनमोल, के लो परलोक से हो गई अवाई।।

 

01) खाली ओसारे सें, महलन दुआरें सें, आशा की किरण पड़ी न दिखाई,

शीश समाधि पे, पाषाण गादी पे, हाय विधाता कहां गए भाई?

हूक करेजे की, टीस बरेछे सी, अश्रु की बूंद, सही नहीं जाई,

कैसी विधि है ये, कैसो विधान है, देख धरा थर थर थर्राई।।

कुँजा की टेर, अबेर न कीजो, आंचर हाथ पसारन आई – 

लोक के देव जो देव हैं लोक के नेह की डोर गई न छुड़ाई

बहना के बोल, रहे अनमोल, के लो परलोक से हो गई अवाई।।

 

02) भाई को नेग, भनेजन के ब्याह में, मण्डप में चीकट रीत बनाई,

काज बनेगो, के काज सरेगो, काज के साज आकाज उठाई।

बिलखो न बहना, अकेली न कहना, कानन बैन पड़े हैं सुनाई,

काज बनाने को, साज उठाने को, ले लो भरोसो गंगा जली छाई।।

आस की ज्योत उजार चलीं, ले परलोक से आवेगा भाई – 

लोक के देव जो देव हैं लोक के नेह की डोर गई न छुड़ाई

बहना के बोल, रहे अनमोल, के लो परलोक से हो गई अवाई।।

 

03) दिन दिन निकरे, पानी से उतरे, ब्याह में मण्डप में की घड़ी आई,

घोड़न की टापें, गाडिन की चापें, अचरज को अचरज हो गओ भाई।

हाथिन के हौदिन से, ऊंटन के काठिन पे, रत्न खजाने पड़े हैं दिखाई,

चीकट ऐसी चढ़ी मण्डप में के मण्डप से महलन तक न समय।।

ब्याह के काज बने ऐसे के अंजुल से बूंद न गई छलकाई –

लोक के देव जो देव हैं लोक के नेह की डोर गई न छुड़ाई

बहना के बोल, रहे अनमोल, के लो परलोक से हो गई अवाई।।

 

04) पानी के लौटा से, घी के कटोरा लो, हाथन हाथ कही नहीं जाई,

कुंवर कलेवा में बोले कुँवर कि मामा के दर्शन की है रिझाई।

देह न देह, अदेह सदेह से, देह विदेह, कि ज्योति सजाई,

प्रगटे कुँवर हरदौल शरीर से करती कृपा जगदम्बा माई।।

जैसे संवारे काज कुँजा के सबके काज संवारन जाई – 

लोक के देव जो देव हैं लोक के नेह की डोर गई न छुड़ाई

बहना के बोल, रहे अनमोल, के लो परलोक से हो गई अवाई।।

पवनेश

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