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शिक्षक : समाज की नींव

📜 *विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– !! “कल्प/सितंबर/२०२५/अ” !!* 📜

📚 *विषय :- !! “शिक्षक” !!* 📚

🪔 *विधा :- !! “स्वैच्छिक” !!* 🪔

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा ।
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।

श्रृष्टि के निर्माण से ही यह अकाट्य सत्य स्थापित है कि बिना गुरु या शिक्षक के आदर्श समाज की स्थापना, संचालन या उत्थान संभव नहीं है ।
पुराणों में गुरु को देवों से भी पहले पूज्य माना है ।
एक गुरु ही अपने अनुयायियों को ज्ञान और बुद्धि का समाज के निर्माण में सदुपयोग करना बताता है सिखाता है । धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्थाओं को समाज के कल्याण हेतु निर्धारण सुनिश्चित करना बतलाता है।
शिक्षक या गुरु के बिना मानव जीवन और समाज उद्देश्य विहीन वृक्ष की भांति प्रतीत होता है जिसके पास न ही छाया है और न ही फल । ऐसा समाज का अस्तित्व नगण्य है जहां गुरु की अनुपस्थिति है ।
शिक्षक की समाज में भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षक न केवल छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि वे समाज के निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक शिक्षक छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, जिससे वे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें। शिक्षक समाज में जागरूकता फैलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे छात्रों को समाज के मुद्दों के बारे में जागरूक करते हैं और उन्हें समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करते है। शिक्षक छात्रों को नैतिक मूल्यों को सिखाते हैं, जैसे कि सच्चाई, ईमानदारी और अनुशासन। ये मूल्य छात्रों को अपने जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं। शिक्षक समाज में एकता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे छात्रों को समाज में विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच एकता और सामाजिक न्याय के महत्व के बारे में सिखाते हैं। शिक्षक छात्रों को उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं । शिक्षक समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे छात्रों को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें इसके लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करते हैं।

इस प्रकार, शिक्षक की समाज में भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। वे न केवल छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि वे समाज के निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गुरु शिष्य की पावन परम्परा, स्नेह, जुड़ाव हमारे भारतीय समाज में अनादि काल से एक सुदृढ़ आधार रही है । शिक्षकों का आदर सम्मान छात्रों की जीवन शैली का अभिन्न अंग रहा है ।
परिणामस्वरूप हम अपने समाज की देश दुनिया में आदर्शवादी छबि को पाते हैं ।
दुनिया भारतीय शिक्षा प्रणाली से सदैव ही आकर्षित रही है और अनुसरण भी करती रही है । एक आदर्श उदाहरण बनकर हम हमेशा दुनिया का मार्गदर्शन करते रहे हैं ।
परंतु इस गौरवशाली परंपरा का स्याह पक्ष भी है समय के साथ आधुनिक काल में व्यवस्थाओं को छिन्न भिन्न कर दिया गया और इस आदर्शवादी व्यवस्था का बदला हुआ रूप हमें आज देखने को मिलता है । जहां न तो संस्कार बचे है न सम्मान और न ही भय ।
वर्तमान परिस्थितियों को नजर में रख कर हमें शिक्षण शैली की चुनौतियों से लड़कर आधारभूत बदलावों की जरूरत महसूस होती है और यह भविष्य के निर्माण के लिए बहुत ही आवश्यक हो गया है ।

जीवन में गुरु या शिक्षक के महत्व और आवश्यकता को प्रकाशित करती कुछ पंक्तियां …

ये जिंदगी महज चार कदम है ।
हर पल जीने को बने अहम है।
दौलत में जब तू खुशियों को ढूंढे ।
कल आयेगा बस तेरा ये बहम है ।

जीने को सिर्फ तन ये मिला है।
चार भाग में जिस्म तेरा ढला है।
कर कदम मस्तक उदर की काया ।
श्रृष्टि सृजन सा पुष्प धरा पर खिला है ।

कदम मिले जो मां ने चलना सिखाया ।
हाथों को पकड़ बाप ने बढ़ना बताया ।
मस्तक में गुरुओं ने ज्ञान उपजाया ।
ताउम्र फिर पेट की खातिर तू कमाया ।

दंभ लिए जग में फिरता है तू क्यों ।
मिट्टी की काया फिर डरता है तू क्यों ।
मात पितु और गुरु की छाया ।
पाए सदा जो पल पल मरता है तू क्यों ।

— सूर्यपाल नामदेव “चंचल”
स्वामित्वधिकार सुरक्षित

Suryapal Namdev

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