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श्राद्ध : श्रद्धा या प्रायश्चित

शीर्षक – श्राद्ध : श्रद्धा या प्रायश्चित

श्रद्धा है तो श्राद्ध है । वर्तमान आधुनिक और भौतिकवाद युग में रीतिरिवाज़ों और परंपराओं को तर्क और तथ्यों के बहुआयामी स्तरों से होकर सत्य को स्थापित करना होता है । आध्यात्मिक और वैज्ञानिक आधार के साथ ही मानवीय मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखना ही हमे उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

मनुष्य का देहरूप में भौतिक अवतरण सांसारिक मोह माया , रीति रिवाज और भिन्न भिन्न परंपराओं से आकर्षित है । जबकि ईश्वर और आत्मा का अदृश्य अस्तित्व एक अलौकिक शक्ति और अंतहीन आशावादी परिकल्पना को परिलक्षित करता है ।
पौराणिक स्थापित परंपराओं के अनुसार श्राद्ध क्रिया को आत्मा की तृप्ति और मोक्ष प्राप्ति हेतु व्यवहार में लाया जाता है । यहां विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है कि आत्मा के अजर अमर होने का सिद्धांत सर्वमान्य है और आत्मा एक देह से दूसरी देह की ओर गतिशील रहती है । देह की संपूर्णता और परिवर्तन आत्मा की अनवरत यात्रा के पड़ाव मात्र हैं ।
फिर ये कहना कि श्राद्ध के क्रिया कलाप आत्मा की मुक्ति या शांति के साधन आयोजन है कहीं न कहीं हास्यास्पद प्रतीत होते है । आत्मा द्वारा देह का त्याग अथवा देह से मुक्ति उसका ईश्वर रूपी शक्ति से मिलन की प्रक्रिया हो सकती है ।और जबकि आत्मा का ईश्वरीय शक्ति की शरण में जाना ही अपने आप में तृप्ति और मुक्ति को प्राप्त कर लेना है ।
इंसानी मोह और लगाव मानव के भौतिक रूप तक ही सीमित है तत्पश्चात आत्मा तो सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है परन्तु संबंधियों द्वारा उनके देह रूप का स्मरण और और उसके प्रति की गई त्रुटियों का प्रायश्चित ही श्राद्ध का मूल उद्देश्य हो सकता है ।

कहा जाता है की ‘जो श्रद्धा से किया जाए, वह श्राद्ध’ है । जिनका श्राद्ध में विश्वास नहीं है, ऐसे विचार रखने वाले लोगो को यदि श्राद्ध के विषय में हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक तर्क को समझा दिया जाए, तब वे भी श्राद्ध के प्रति आकर्षित होने लगेंगे । परंतु,उस विश्वास का रुपांतर श्रद्धा में होने के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर, उसकी अनुभूति को जगाना पड़ेगा ।

हिंदु धर्म में वर्णित ईश्वरप्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतों में से एक सिद्धांत पितृऋण चुकाने के लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक दर्शाया गया है । माता-पिता तथा अन्य निकटतम संबंधियों की मृत्योपरांत यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति प्राप्त हो, इस उद्देश्य से किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’ ।

Suryapal Namdev

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