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कन्या अपनी अपनी

शीर्षक : कन्या अपनी अपनी 

आज नवरात्रा का समापन दिवस नवमी है और सावित्री देवी के घर में कन्या पूजन और भोज का आयोजन किया जा रहा है।
पड़ोस की ही नौ दस कन्याओं को बुलाकर उनका चरण प्रक्षालन, तिलक वंदन , आरती इत्यादि क्रियाओं को संपादित किया जा रहा है । सावित्री जी की बहु बहुत ही श्रद्धा आस्था और प्रेमपूर्वक कन्याओं का आदर सत्कार करने में व्यस्त है । उसकी सहयोगी कमला जो कि कई वर्षों से उनके घर में गृह कार्य के लिए नौकरी करती है उसकी भरपूर मदद कर रही है।
चूंकि कमला की छोटी बेटी अभी मात्र दो वर्ष की है तो साथ ही रखती है और बीच बीच में उसकी देखभाल भी करती रहती है। आज कन्या भोज का आयोजन है तो कमला अपनी दस वर्षीय बड़ी बेटी लक्ष्मी को भी साथ ले आई थी । लक्ष्मी भी उसके काम में बराबर से हाथ बंटा रही थी। लक्ष्मी हर क्रिया को बड़े उत्साह और अचरज से देख रही थी । उसके मन में कुछ सवाल भी उठ रहे है परन्तु काम ने व्यस्त होने के कारण अपने प्रश्नों के उत्तर को न तो वह ढूंढ पा रही थी और न ही किसी से पूछ पा रही थी । पूजन पश्चात कन्याओं के भोजन की तैयारी। लक्ष्मी थाली कटोरी पानी इत्यादि का वितरण करने के बाद एक कोने में खड़ी सबको निहारती रही । तभी उसके कानो में दादी सावित्री जी की आवाज पड़ी। अरे लक्ष्मी खड़ी खड़ी क्या देख रही है । जा, पानी का जग भर ला सबको दे और कन्याएं अभी उठेंगी तो उनकी आरती के लिए थाली सजा दे । लक्ष्मी सुन कर अंदर चली जा जाती है ।
बहुत ही बढ़िया तरीके से कन्या पूजन और भोज का कार्यक्रम खत्म हुआ । सभी कन्याएं अंत में उपहार लिए अपने अपने घर जा चुकी हैं। घर के सदस्य भी भोजन से निवृत हो गए तब सावित्री जी ने बहु को कहा। बहु , कमला के लिए सारे पकवान और भोजन पैक कर देना और हां, लक्ष्मी को दस रुपए भी दे देना। नवरात्र में कन्या को दान करने से पुण्य प्राप्त होगा।
कमला, भोजन का थैला और दोनों बेटियों को लिए अपने घर की ओर रवाना हो गई। रास्ते में लक्ष्मी अपनी मां से पूछ ही लेती है। मां आज बेटियों का त्यौहार है क्या जो सबकी पूजा हो रही थी ? कमला ने समझाया , बेटा आज कन्याओं की सेवा पूजा की जाती है, मासूम कन्याएं देवी का रूप होती है, आज कन्याओं को पूजने से पुण्य की प्राप्ति होती है। समझी । कुछ देर चुप रहने के बाद एक सवाल वो कमला से कर बैठती है । मां, काम करने वालों की बेटियां कन्या नहीं होती क्या ? उनकी पूजा करने से पुण्य नहीं मिलता ? मुझे तो किसी ने टीका नहीं लगाया और न ही मेरे पैर धोए ।
कमला के हाथ की पकड़ लक्ष्मी की कलाई पर जकड़ सी गई। शून्य में देखती आँखें और जवाब ढूंढते हृदय के रास्ते जुबान से सिसकते से शब्द बाहर आए । घर चल, दादी ने बहुत सा खाना दिया है । तेज कदम गली में घर की ओर बढ़े जा रहे थे।

सूर्यपाल नामदेव “चंचल”

Suryapal Namdev

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