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सम्मानित नारी जीवन

 

  “पूरी जिंदगी पिता, पति, और पुत्र, की जरूरतों, खुशियों के इर्द – गिर्द सामंजस्य बिठाते हुए गुजर जाती है।” हवाई यात्रा के दौरान सहयात्री आधुनिका ने बड़े ही जोश के साथ एक – एक शब्द मानों तेज धार चाकू की नोक की तरह चुभोया। “तुम बताओ किसी की बेटी, बहिन, पत्नी, और माँ, की पहचान पाकर तुमने क्या पाया अभी तक?” उसने अपनी सहयात्री महिला की ओर देखते हुए प्रश्न किया।

 

   “खुशी” गोद में लगभग डेढ़ वर्ष की नन्हीं बिटिया को लाड से देखते हुए सहयात्री हल्के गुलाबी रंग की साड़ी और उसी से मैचिंग करते हुए अन्य वस्त्र धारण किए महिला ने संक्षिप्त उत्तर दिया। “यह नारी की पहचान नहीं उसका वास्तविक सम्मान है।” 

 

  “यह दलील देकर सदियों से आज तक महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद कर बच्चे पैदा करने की मशीन बनाकर रख दिया गया है।” हल्के आसमानी रंग का कोट, सफ़ेद टी शर्ट, और गहरे नीले रंग की जींस धारी आधुनिका को मानों निरुत्तर करने के लिए आसान शिकार मिल गया। “बोलचाल से तो पढ़ी लिखी, और सभ्य परिवार से लगती हो, गोद में छोटी बच्ची को लेकर फ्लाइट में अकेले आना क्या तुम्हारे लिए आसान था?”

 

  “बात आसान या मुश्किल की नहीं है।” महिला ने उत्तर देने की कोशिश की मगर आधुनिका तो अपनी रो में बोले जा रही थी। 

 

   “कहां जा रही हो, मायके या ससुराल?” वेशभूषा का अनुमान लगाते हुए उसने सीधे व्यक्तिगत सवाल दाग दिया। “एयरपोर्ट पर लेने और छोड़ने कौन आएगा, पति या भाई?” 

 

  “नहीं मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं है।” महिला ने आधुनिका के प्रश्न का उत्तर देते हुए ही कहा। “मैं स्वयं ट्रैवल कर रही हूं और अपने गंतव्य पर बिना किसी का आसरा लिए पहुंच सकती हूं।” 

 

   “यानि कोई पिक करने के लिए लिए भी नहीं आ रहा है।” इस बार आधुनिका ने कुछ इस तरह कहा मानों महिला को बेचारगी से मुंह छुपा लेना चाहिए। “ओ माई गॉड , इस सहूलियत से भी हाथ छुड़ा लिया गया। तुम सचमुच बहुत नादान हो, वैसे भी तुम जैसी साड़ी छाप घरेलू औरतों के लिए यही आदर्श नारी जीवन है।” 

 

  “साइलेंट प्लीज” परिचारिका ने पास आकर दोनों का ध्यान आकर्षित करते हुए नरम शब्दों में कहा।

 

    महिला ने आधुनिका की बात का उत्तर ने देते हुए कुछ इस तरह चुप्पी साध ली जैसे मौन में कह रही हो “ठीक है अगर तुम्हें लगता नारी जीवन का मतलब सिर्फ किसी व्यवसायिक प्रतिभा संपन्न होना है तो तुम उसको ही सही मान लो।” और वह बेटी को सम्हालते हुए मुस्कुराने लगी़। 

 

    गर्मागर्म बहस के बाद माहौल में कुछ शांति पाकर मैंने भी अपनी आँखें बंद करते हुए गर्दन पीछे करके सिर को सीट के ऊपरी मुलायम हिस्से पर टिकाया तो अनायास ही मेरा मन इस हवाई यात्रा के शुरुआती समय यानि लगभग एक घंटे पहले से पुनः यात्रा शुरू करने चल पड़ा।

 

    “क्या फालतू का ड्रामा लगा रखा है आप लोगों ने।” इकॉनमी क्लास की सीट पर बैठकर मोबाइल पर बात करते हुए आधुनिका यानि हमारी कथा की एक पात्र ने किसी पर भड़कते हुए कहा। “आप लोगों को शर्म आनी चाहिए कि आपने डांस क्वीन अन्विता यानि मेरे लिए इकोनॉमी क्लास ट्रैवल अरेंज किया है।” 

 

    उसके साथ वाली सीट पर एक अन्य महिला सहयात्री जिनकी गोद में छोटा बच्चा था की ओर देखते हुए कुछ ऐसी भावभंगिमा प्रदर्शित की मानों २४ कैरेट स्वर्ण आभूषण को लकड़ी के खिलौने के साथ रख दिया गया हो जबकि महिला सहयात्री ने उसकी और देखकर हल्के से मुस्कुराकर कर अभिवादन किया।  

    

       हवाई जहाज का उड़ान भरकर हवा में पहुंचने तक तो शांति रही फिर एक – दूसरे से संक्षिप्त परिचय हुआ उसके बाद नारी जीवन पर चर्चा चल पड़ी। कुछ मिनट तक तो संयम से एक – दूसरे की बात का सम्मान करते हुए चर्चा हुई लेकिन जैसे ही तर्कों के सामने तथ्य और तथ्यों के संदर्भ आना शुरू हुए तो यात्रा में ही शीत युद्ध ग्रीष्म ऋतु की तरह तापमान बढ़ाने लगा। 

    “पता नहीं लोग क्यों अपनी लड़कियों को चूल्हा – चौका, झाड़ू – पोंछा, कपड़े – बर्तन, फालतू के चक्कर में उलझाते हैं।” आधुनिका ने अपनी बात को वजनदार बनाते हुए कहा। “मुझे देखिए मैं डांस करती हूं सैकड़ों हजारों लोग मेरे इशारों पर नाचने के लिए बेकरार रहते हैं।” 

 

    “आपको लगता है घर के काम करना फालतू का झंझट है?” महिला के शब्दों ने प्रश्नवाचक चिन्ह को अदृश्य रहते हुए सदृश्य कर दिया।

 

   “बिल्कुल, आप खुद को ही देखिए, सुबह से लेकर रात तक पति की गुलामी और बच्चे की देखभाल करते हुए कितनी रातों को आपकी नींद पूरी हुई है।” महिला को निशाने पर लेते हुए आधुनिका ने कुछ तीखे स्वर में कहा। “उस पर महीने में कितनी बार पति से नोंक – झौंक और घर में रहती हो का अहसान भी झेलती होगी।”

 

   “भाई, परिवार है, पति है, बच्ची है तो जीवन के यह उतार चढ़ाव तो आएंगे ही।” महिला ने संयम से उत्तर दिया। “वैसे भी किसी प्रोफेशन में होने का मतलब यह तो नहीं है कि सामान्य जीवन को ठोकर मार दी जाए।” 

 

    “अगर आप इसको सामान्य जीवन कहती हो तो मैं यही कहूंगी कि यह सब नारियों को कैद में रखने के हथकंडे हैं।” आधुनिका ने मानों तर्कों से युद्ध जीतने की ठान रखी थी। “मुझे अपने जीवन में हर हाल में, हर निर्णय में बराबरी का अधिकार ही चाहिए।”

 

     इससे पहले कि मेरे अवचेतन की शब्द यात्रा आगे बढ़ती तभी माइक पर अंग्रेजी भाषा में दी जा रही सूचना ने मुझे वर्तमान में वापस ला दिया। 

 

     “कृपया इस सूचना को ध्यान से सुनें।” मेरी तरह अन्य यात्री भी आवाज को ध्यान से सुनने लगे। “मैं आप सभी को यह बताते हुए सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि आज हमारे साथ भारतीय वायुसेना की बहादुर सैन्य अधिकारी अनेकों मुश्किल किंतु सफल अभियानों में स्पेशल यूनिट बल का नेत्तृत्व कर चुकी ग्रुप कैप्टन सिद्धा श्रीनिवास यात्रा कर रही हैं।” सभी की आंखों में यात्री का परिचय जानकर प्रशंसा के भाव तैरने लगे। “सभी यात्रियों से अनुरोध है कि अपनी सहयात्री सेवानिवृत्त ग्रुप कैप्टन का तालियों के साथ जोरदार अभिवादन करें।” 

 

   तालियों की गूंज के दौरान मेरे और आधुनिका के साथ सभी की आँखें प्रसन्नता और आश्चर्य से भर उठीं क्योंकि ग्रुप कैप्टन सिद्धा श्रीनिवास अपनी डेढ़ वर्ष की बेटी को गोद में उठाए खड़ी होती हुई सभी का अभिवादन स्वीकार करने लगीं।

 

    “यही है सम्मानित नारी जीवन।” मुझे लगा मेरे साथ – साथ वह आधुनिका भी यही बुदबुदा रही है। 

पवनेश

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