भाई का बोझ
- Radhe Shyam Sahu 'Shaam'
- 08/06/2025
- लघुकथा
- प्रेरक
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सूरज ढल रहा था। जापान के शहर, नागासाकी की जली हुई धरती पर अब सिर्फ राख बची थी और चारों तरफ एक गहरा सन्नाटा पसरा था।
वहीं एक नन्हा लड़का जिसकी उम्र मुश्किल से दस साल रही होगी, अपने छोटे भाई को पीठ पर बाँधे नंगे पाँव खड़ा था। उसकी कमीज़ फटी थी, घुटनों तक के छोटे-से निक्कर में उसकी मासूमियत छिपी नहीं थी। वह चुप था लेकिन उसकी आँखों से दर्द स्पष्ट झलक रहा था।
पीठ पर बंधा उसका छोटा भाई अब इस दुनिया में नहीं था। चेहरा शांत, आँखें बंद और शरीर निर्जीव। शायद उस बम के विस्फोट के बाद दोनों अनाथ हो गए थे। या शायद घर ही नहीं बचा था जहाँ कोई उन्हें देख पाता।
वह बच्चा कतार में खड़ा था, उन लोगों की कतार में जो अपने मरे हुए परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए लाकर सामूहिक चिता में सौंप रहे थे।
एक सैनिक ने उसके पास जाकर धीरे से पूछा, “तुम अकेले आए हो?”
लड़के ने सिर हिलाया। आँखें सामने कहीं शून्य में गड़ी रहीं।
“तुम्हारे साथ कोई बड़ा नहीं है?”
उसने धीरे से जवाब दिया, “मैं ही बड़ा हूँ।”
सैनिक ने उससे कहा, “अपने मृत भाई को नीचे रख दो। तुम्हें बोझ लगेगा ।”
बच्चे ने कहा, “यह बोझ नहीं है, मेरा भाई है..!”
सैनिक का गला भर आया। वह चुप हो गया और उसने अपनी टोपी उतारकर सम्मान से सिर झुका लिया। यह एक सलामी थी एक ऐसे बच्चे को जो अपने भाई का अंतिम संस्कार करने आया था, बिना आँसू बहाए, बिना सवाल किए।
चिता जली, धुआँ उठा। वह बच्चा तब तक वहीं खड़ा रहा, जब तक राख हवा में उड़ नहीं गई। फिर वह बिना पीछे देखे चल पड़ा। वह नंगे पाँव था, अकेला था पर उसका सिर ऊँचा और आत्मा अपराजेय थी।
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