सांसो की लय हो तुम
- Jaya sharma
- 2024-06-11
- काव्य
- स्त्री विमर्श
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तुम स्त्री हो
केवल स्त्री नहीं
तुम निर्मात्री
तुम संचालिका
तुम निर्देशिका भी हो मेरी ।
कभी दूर होकर भी
तुम्हारी छाप मेरे साथ होती है ।
मेरे हर फेसले पर ,
छिपी राय तुम्हारी ही होती है ।
थके हुए कदम घर वापसी में
तुम्हारी मौजूदगी में
सहज हो चंचल हो उठते हैं ।
तुम हो तो,
घर मेरा घर है।
तुम्हारी मौजूदगी घर की गरिमा है ।
सुबह शाम की ज्योत बाती हो तुम ।
तुम ही हो घर की लक्ष्मी ,
मेरे मन में बसी छिपी दुर्गा तुम ही हो ।
तुम्हारी अनहोनी को .
सपने में भी सोच बेचैन हो जाता हूँ ।
मेरी सांसो की लय हो तुम ।
मेरी प्रियतमा बन
मेरी जिंदगी की डोर हो तुम ॥