🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
रामचरितमानस का पढने बैठ गए। आज का पाठ उमा की माँ भारती पढ रही थी। सीता स्वयंवर का किस्सा चल रहा था। राम जी महर्षि विश्वामित्र के साथ सीता जी का स्वयंवर देखने के लिए जनकपुर आते हैं। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा लेकर दोनों भाई नगर देखने जाते हैं।
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प्रेम योग
प्रेम एक ऐसा एहसास है जो हमारे तन और मन दोनों को पवित्र कर देता है। प्रेम भावनाओं का वो आवेग है, जिसमें माता पिता संतान, भाई बहन, पति पत्नी आदि सम्बंध एक अटूट डोर से बंधे रहते हैं। ये प्रेम ही इस संसार का आधार है। प्रकृति का स्थायित्व है। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जिसे शब्दों में गूंथना कम से कम हमारे लिए तो असंभव है। इसीलिए हमने इस कहानी को नाम दिया है प्रेम योग।
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🌷 !! “भक्त चंद्रहास” !! 🌷
कुंतलपुर के राजा परम भगवदभक्त एवं संसार के विषयों से पूरी तरह से विरक्त थे। और संतान के नाम पर केवल एक कन्या थी जिसका नाम चम्पकमालिनी था। राजगुरु महर्षि गालव के उपदेशानुसार राजा भगवान के भजन में ही लगे रहते थे।
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🌷 *!! “मंगलमूर्ति गणेश वंदना” !!*🌷
गौरी सुवन विराजिये, साधो बिगड़े काज।
शरण तिहारी आ पड़े, दया करो गणराज।। ४ ।।
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स्वदेश – कोरोना वारियर्स
ओ मैडम,… अरे ओ मैडम… वहाँ मत जाइए, उसे सरकार ने रेड जोन घोषित किया है, – किसी ने मुझे जोर से चिल्ला कर आवाज दी, तो मैं चौंक कर पलटी । पीछे से एक अजनबी लड़का मुझे आगे जाने से रोकने का भरसक प्रयास कर रहा था। और मैं आगे बढती जा रही थी, ये जानते हुए भी …
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!! एक दीप ऐसा !!
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Radha Shri Sharma
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11/01/2024
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गीत
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गीत
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3 Comments
एक दीप जलाऊँ ऐसा, जग तिमिर नाश जो कर दे, तमस मिटा अज्ञान की मन ज्ञान प्रकाश जो भर दे।। एक दीप जलाऊँ ऐसा…. आशाओं का खोज सवेरा, खुशियों का दिवस दिखाऊँ। निर्धनता की मिटा लकीरें, साधन समृद्धि फैलाऊँ। दुख की निशा की मिटा कर मन में सुख दिवाकर जो भर दे। एक दीप जलाऊँ ऐसा …… नव …
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यात्रा वृतांत – हिमाचल
चलिये, आज आपको हिमाचल की यात्रा पर लेकर चलते हैं। हिमाचल अर्थात हिम का आँचल। हिम का शाब्दिक अर्थ होता है बर्फ। तो यदि हम हिमाचल को बर्फ का आँचल कहें तो कदापि गलत नहीं होगा। हिमाचल की भव्यता इसकी ऊँची-ऊँची बर्फीली पहाडियों से ही है। सर्दियों में जब चारों ओर पहाड़ बर्फ की चादर ओढ़ कर अपने …
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भक्ति रस धारा
गुरु वंदना प्रथम नमन गुरुदेव को जो सकल विघ्न छुडाय, बुद्धि को बौद्धिक कर सन्मार्ग की राह दिखाय। मन के चक्षु खोल कर ज्ञान का दीप जलाय, जीव ब्रह्म को एक कर बद्ध मुक्त कर जाय।। गणेश वंदना हे गजानन! हे विघ्न हरण! हे पार्वती नन्दन! सकल सुमन्गल शुभदायक, करते तेरा वंदन। आन विराजो नाथ तुम सह रिद्धि-सिद्धि शुभ …
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