!! “अनिरुद्ध : दिव्य योद्धा” !!
ये कहानी एक ऐसे बालक की है, जो जन्म से ही कई दिव्य शक्तियों के साथ पैदा हुआ है। ये कहानी हम बालको को ध्यान में रखते हुए लिख रहे हैं। इसमें हमने अपनी कल्पनाओं का आकाश सजाया है। जिसका किसी भी प्रकार से इस जीवित संसार से कोई सम्बंध नहीं है। हमसे हुई त्रुटियों के लिए हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी हैं।
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🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
अपने रूम में पहुंच कर लेटे लेटे उमा सोचती है कि कौन था वो…? उसकी वो आँखें…? वो चेहरा……? कहीं तो देखा है, पर कहां……? कुछ याद क्यों नहीं आता……? कहीं सपने में तो नहीं……? पर कितना खड़ूस है वो….? मैंने क्षमा मांगी, तो मुझे बेवकूफ बोल दिया। अकड़ तो इतनी है कि पूछो मत।। हूँह! खड़ूस कहीं का..
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🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
उमा, कुमुद को खींचते हुए मन्दिर के अंदर लेकर जाती है। वो तेज-तेज चलते हुए अंदर जा रही थी कि अंदर से आते हुए किसी से जोर से टकराती है…… और दोनों गिर जाते हैं…..
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🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
ये द्वापर युग की बात है, इस स्थान का नाम पल्लव नगर था, यहाँ प्रलम्ब नाम के असुर ने यहां के राजा को मारकर अपना आधिपत्य कर लिया। यहाँ से थोड़ी आगे बृज भूमि का कुछ हिस्सा है।
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🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
धीरे-धीरे उमा कॉलेज में रमणे लगती है। लेकिन साथ ही साथ सरकारी नौकरी के लिए भी आवेदन भरती रहती है। उसके साथ साथ कुमुद भी आवेदन भरती रहती थी। उसे यहां काम करते हुए लगभग नौ महीने बीत गए।
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🌷 !! “प्रेम योग” !! 🌷
रामचरितमानस का पढने बैठ गए। आज का पाठ उमा की माँ भारती पढ रही थी। सीता स्वयंवर का किस्सा चल रहा था। राम जी महर्षि विश्वामित्र के साथ सीता जी का स्वयंवर देखने के लिए जनकपुर आते हैं। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा लेकर दोनों भाई नगर देखने जाते हैं।
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प्रेम योग
प्रेम एक ऐसा एहसास है जो हमारे तन और मन दोनों को पवित्र कर देता है। प्रेम भावनाओं का वो आवेग है, जिसमें माता पिता संतान, भाई बहन, पति पत्नी आदि सम्बंध एक अटूट डोर से बंधे रहते हैं। ये प्रेम ही इस संसार का आधार है। प्रकृति का स्थायित्व है। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जिसे शब्दों में गूंथना कम से कम हमारे लिए तो असंभव है। इसीलिए हमने इस कहानी को नाम दिया है प्रेम योग।
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