
अमलतास – शशि धर कुमार
- Shashi Dhar Kumar
- 19/05/2025
- कवित्त
- अमलतास, कविता, हास्य
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अमलतास जी खड़े हुए थे सोसाइटी के गेट पे,
झूल रहे थे फूलों संग, जैसे नेता डेट पे।
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अमलतास जी खड़े हुए थे सोसाइटी के गेट पे,
झूल रहे थे फूलों संग, जैसे नेता डेट पे।
वसन्तपञ्चम्याः सन्देशं,
गृह्णन्तु सर्वे जनाः नवौ॥
वसन्तपञ्चम्याः सन्देशं,
गृह्णन्तु सर्वे जनाः नवौ॥
धरती का श्रृंगार है विटप और वन फूल।
शीतल जल सुरभित पवन होते फिर भरपूर।।
जीवन का आधार हैं नीर समीर व भोग।
वृक्ष धरा को सींचते, हरते ताप दुरोग।।
कवित्त बन बहती रही, छंद नदी रसधार में ।
भाव रस से पगी हुई हिय स्पन्दन संसार में।।
श्री अन्न।
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