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पीहर से लौटती बेटियाँ

विशिष्ट आमंत्रण क्रमांक :– कल्प/नवम्बर/२०२४/अ विषय: स्वैच्छिक विधा: काव्य    शीर्षक: ” पीहर से लौटती बेटियाँ “ नेह की डोरी से  दो घरों को जोड़कर,  पीहर से लौटती हैं बेटियाँ  कुछ समेट कर, कुछ छोड़ कर……   आँगन की ठंडी छाँव मे बैठ यूँ ही निहारती हैं…. कुछ पुराने बक्से, कॉपियां, किताब  मन में चलती रहती है, दूजे घर की …

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