
!! “कल्प भेंटवार्ता : अणुव्रत सेवी प्रो. डॉ. ललिता बी.जोगड़, गोरेगांव ईस्ट, मुम्बई (महाराष्ट्र)के साथ” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 19/07/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय :– अणुव्रत सेवी प्रो. डॉ. ललिता बी जोगड” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- अणुव्रत सेवी प्रो. डॉ. ललिता बी.जोगड़, गोरेगांव ईस्ट, मुम्बई (महाराष्ट्र)
माता/पिता का नाम :- स्व. श्रीमती रामाबाई मुथा स्व. श्री कन्हैयालाल जी मुथा
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- 26 जून 1957 सातोना जि. परभणी (महाराष्ट्र)
पति/पत्नी का नाम :- एडवोकेट बीजराज एस. जोगड़
बच्चों के नाम :- सीमा- समता- श्रेयांश
शिक्षा :- एम.ए. हिंदी-मराठी-जीवन विज्ञान प्रेक्षाध्यान) एम. ए.- प्रथम वर्ष जैनोलांजी पी.एच.डी. (निराला के गद्य साहित्य अभिव्यक्त समाज जीवन डी. लिट (मानद उपाधि)
व्यावसाय :- श्रीमती टी. एस. बाफना कनिष्ठ महाविद्यालय,मालाड (मुंबई) से सेवा निवृत्त (2015) एस.एन.डी.टी विद्यापीठ में एक वर्ष के लिए असिस्टेंट डीन एवं एन.एस.एस. कोऑर्डिनेटर के रूप में कार्य किया
वर्तमान निवास :- ए 803 राशी टॉवर आरे भास्कर गार्डन के सामने कृष्ण वाटिका मार्ग गोरेगांव (पूर्व) मुम्बई 400063
आपकी मेल आई डी :- Lalitajogad@Gmail.com
आपकी कृतियाँ :- कन्या भ्रूणहत्या क्यो? आचार्य महाप्रज्ञ जी “पर 100 कविताएँ (वर्ल्ड रिकॉर्ड) में।
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- ‘भावांजलि 100 कविताएँ (संकलन) शताब्दी वर्ष पर
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- 11 किताबों का अनुवाद किया, अनेक किताबो का सम्पादन किया, अनेक विद्वानों के अभिनन्दन ग्रंथों में लेख प्रकाशित, कई किताबों में शुभकामना संदेश 40 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में (प्रतिदिन,पाक्षिक मासिक- त्रैमासिक ) लेख, कविताएँ-गीत, कहानी – दोहे- मुक्तक प्रकाशित | अनेक संकलनों में लेख-कविताएँ प्रकाशित । नारीशक्ति – प्रेरणा- अस्मिता – अनामिका लेडिज स्पेशल बुलेटिन प्रकाशित महिला दिवस पर “अक्षय तृतीया स्पेशल बुलेटिन, अक्षय तृतीया पर प्रकाशित। 61 गच्छाधिपति, आचार्य, मुनिश्री, साध्वीजी, विशिष्ट महानुभवों पर लम्बी कविताएँ लिखी (1111 से 1409 पंक्तियां) सभी को वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- अंतरराष्ट्रीय-राष्ट्रीय-राज्यस्तरीय 1350 से अधिक पुरस्कारों से पुरुस्कृत । 13 राज्यों से कोविड -19 के 128 सम्मानपत्र प्राप्त । सोनी चैनल से विशेष सम्मान मुलाखात | महाराष्ट्र की युवा महिला संसद ब्रांड एंबेसडर, अंतरराष्ट्रीय एंबेसडर, भारत नेपाल पशुपतिनाथ अंतरराष्ट्रीय महोत्सव 2024,ब्रांड एंबेसडर,भावना कला एवं साहित्य फाउंडेशन जयपुर की ओर से पर्यावरण सप्ताह 1-7 जुन 2025 इनवायरन मेंटल ब्रांड एंबेसडर। नेशनल यूथ पार्लियामेंट ऑफ द भारत उदयपुर-श्रेष्ठ साहित्य एंबेसडर सम्मान 2025, राष्ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता 2025, जुन चित्रकला ब्रांड एंबेसडर सम्मान प्राप्त ।
8 मार्च 2021 में महिला दिवस पर 26 संस्थाओं से सम्मानित ।
!! “मेरी पसंद” !!
सामाजिक कार्य, गायन, बातें करना, पुस्तक पढ़ना व यात्रा करना।
उत्सव :- होली – राखी का पर्व – दीपावली- धार्मिक पर्व
भोजन :- दाल-बाटी-चुरमा
रंग :- लाल- सफेद-गुलाबी
परिधान :- साड़ी
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- सम्मेत शिखरजी, चारधाम, अष्टविनायक, पंढरपुर-शिर्डी, भारत के सीमा की आखरी चाय की दुकान से- कन्याकुमारी तक
लेखक/लेखिका :- हिंदी के पांच रत्न : प्रसाद, पंत, निराला व महादेवी वर्मा
कवि/कवयित्री :- धर्मसंघ के गायक-गायिका
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- गोदान – गबन – निराला जी के उपन्यास
कविता/गीत/काव्य खंड :- कबीर, सूर, तुलसी दोहे, कविता निराला जी की
खेल :- खोखो, फुगडी, म्यूजिक चेयर, गोटिया खेलना
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- मुंगेरी लाल के हसीन सपने, तारक मेहता का उल्टा चश्मा
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- गुरु पर लिखित भावांजलि, कन्या भ्रूणहत्या क्यो?
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
☆ प्रश्न 1. गृहनगर:
आदरणीया, आप वीर राज्य माने जाने वाले महाराष्ट्र प्रान्त की माया नगरी के नाम से प्रसिद्ध, माँ महालक्ष्मी व मुंबा माता के निवास स्थान मुंबई से हैं, हम आपके इस नगर को आपके शब्दों में अनुभव करना चाहते हैं?
ललिता जी :- मुम्बई मोहमाया की नगरी – फ्लैट सटे हुऐ है, लेकिन व्यक्ति कटा हुआ है। पडोस में क्या हो रहा? पत्ता नहीं चलता। अति व्यस्त जिंदगी। दीपावली, होली, क्रिसमस-ईद- नववर्ष के अतिरिक्त छोटे त्योहार पता ही नहीं चलते । जो बहुत पाप करते वही यहाँ आके बसते हैं। (ऐसा मेरा मानना है।) शुद्ध हवा-पानी-खान-पान, स्नेह नही मिलता।
आधा जीवन यात्रा में बीतता है। इस महानगर को देश की आर्थिक राजधानी का स्थान प्राप्त है। दर्शनीय स्थलों में धार्मिक स्थल – बहते झरने – संग्रहालय- चौपाटी – गार्डन अनेक है।
☆ प्रश्न 2. नटखट बचपन:
ललिता जी, हमारे दर्शक आपके बचपन का वह नादानी भरा प्रसंग जानना चाहते हैं जो आपको आज भी आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है?
ललिता जी :- बचपन में मुम्बई देखने की जिंद थी। पिताजी- भाई साहब ने दशहरे में जहाँ रावण का दहन किया जाता है वहाँ लेके गये और कहा ये मुम्बई है। मेरी बहन मुंबई जा रही थी पूरी गली में जाकर कहा और ड्रेस दिखाई। स्कूल में सहेली को गोली के दो भाग कर के आधा देना और कहना कल तू मुझे देना।
पेन में स्याही देना दूसरे दिन फिर से मांग लेना, गूंजे खेलना उसमें गूंजे कम डालना।
5 रुपए का मखमल का फ्रॉक पूज्य माताजी ने मेरे कहने और रोने पर फेरी वाले से लेकर दिया आदि अनेक है।
☆ प्रश्न 3. प्रथम प्रेरणा का स्पर्श:
आदरणीया, काव्य-साधना के पथ पर आपके प्रथम चरण कैसे अग्रसर हुए? उस प्रथम काव्यांकुर की पावन स्मृति हमारे साथ बाँटिएगा।
ललिता जी :- किताब – पत्रिका देखकर लगता था मैं भी लिखूं। मेरा भी नाम आयेगा, फोटो आायेगा। नाम के आगे-पीछे उपाधिया-शिक्षा का उल्लेख देखकर मुझे भी लगता मेरे साथ भी ऐसा ही हो। लिखना शुरू किया और प्रथम कविता लिखी।
☆ प्रश्न 4. विविध विद्या वाचस्पति मानद उपाधि व विभिन्न शिक्षा उपाधि :
आदरणीया, आपने शिक्षा के क्षेत्र में विविध डिग्रियाँ (उपाधियाँ) लीं हैं। हम उसका कारण जानना चाहेंगे? साथ ही इतनी सारी उपाधियों से सम्मानित होते समय आपके क्या अनुभव रहे?
ललिता जी :- डी. लिट (मानद उपाधि) विद्यावाचस्पति अन्य सम्मान – सात्विक गौरव की अनुभूति होती है ।
हम कार्य ऐसे करे “सम्मान” हमसे सम्मानित हो।
कार्य करते हैं तो सम्मानित करते है, पुरुस्कार देते हैं, अच्छी बात है आगे कार्य करने के लिए प्रेरणा, प्रोत्साहन मिलता है। जिम्मेदारी बढ़ती है।
☆ प्रश्न 4. “रचनात्मकता का स्वर्णिम काल”
आपकी रचनात्मकता का स्वर्णिम काल कौन सा रहा? उस युग की साहित्यिक वायुमंडल और आपके अंतस में उमड़े भाव-सागर का क्या अद्भुत सामंजस्य था?
ललिता जी :- एन.एस.एस में 14 वर्ष कार्य किया। बोलने का सुअवसर मिला। साहित्यिक – सामाजिक- धार्मिक कार्यक्रमों में बोलने का अवसर मिलता, हर समय कुछ अलग बोलना,महाविद्यालय के प्रोग्राम में होता है।
☆ प्रश्न 6. “माँ” और नारी विषयक काव्य संग्रहों का आविर्भाव:
ललिता जी, वर्षों के संचय के पश्चात, आपकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति “माँ” के रूप में क्यों और कैसे प्रकट हुई? जब इसे विश्व रेकॉर्ड में स्थान मिला, तब आपके अनुभव व अनुभूति क्या रही?
ललिता जी :- 1111 कविताओं का संकलन “माँ” पर है। 73 वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला-
अनेक राज्यों से रचनाएं आई। माँ! जिस घर में माँ है, वहाँ स्वर्ग बसता है। आदमी की क्या बिसात देहलीज का पत्थर भी हंसता है। माँ से बहुत प्रेरणा व स्नेह मिला। मेरी लल्लू लड़का होती तो मै निहाल हो जाती। अच्छे काम करते रहना । माँ के अनंत उपकार है, जिससे उऋण हो नहीं सकते। बस एक छोटा सा प्रयास “माँ के श्री चरणों में भेंट” (अप्रकाशित है) को 17 राज्यों के महानुभावों का सहयोग मिला।
☆ प्रश्न 7. वैश्विक परिदृश्य का प्रभाव:
आदरणीया, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा में कई देशों का भ्रमण किया है? वहां के आपके अनुभव कैसे रहे? क्या कोई विशेष प्रसंग मन को छू गया?
ललिता जी :- श्रीलंका, एशिया, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, आबुधाबी, दुबई, युरोप, बैंकॉक, पटाया, भूटान, नेपाल, चाईना, हांगकांग, मकाऊ, अण्डमान – निकोबार , बलिया,वियतनाम आदि का सफल प्रवास रहा । अनेक महानुभवों से संपर्क हुआ, नये कार्य की प्रेरणा मिली।
रोड़ क्रॉस करना- सफाई का विशेष ध्यान – वेस्टेज कहीं भी नहीं डालना ।
हमारे परिवार से मैं प्रथम हूँ जो विदेश में सम्मानित हुई।
☆ प्रश्न 8. सृजन-साधना का समय:
महोदया, शिक्षा जगत का अति व्यस्त कार्यकाल और काव्य के भावुक लोक के बीच आप किस प्रकार सामंजस्य स्थापित करती हैं? कौन-सा समय विशेष रूप से सृजन के लिए समर्पित है?
ललिता जी :- रात्रि में 11 बजे के पश्चात लिखने का कार्य करती हूं।
☆ प्रश्न 9. अप्रकाशित रचनाओं का भंडार :
आदरणीया, आपकी अधिकांश पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। ऐसे में अप्रकाशित रचनायें कितनी हैं? क्या उन रचनाओं को पुनर्जीवित करने, उन्हें पाठकों तक पहुँचाने की कोई मनोकामना है?
ललिता जी :- जी हाँ, अप्रकाशित रचनाओं को, पुस्तकों को प्रकाशित करने का प्रयास है जरूर करूंगी।
☆ प्रश्न 10. मंचस्थ साहित्यिक संवाद:
ललिता जी, आपने कन्या भ्रुण हत्या पर सेमिनार, व्याख्यान आदि किये। आप इस कार्य से किस प्रकार जुड़ीं? यह कार्य आपके लिए एक दायित्व है, साधना है अथवा आनंद का स्रोत?
ललिता जी :- अन्य महाविद्यालयो में लेक्चर्स देने जाती तब वहाँ निमंत्रण मिलता हमारे महाविद्यालय में आना। महाराष्ट्र में अनेक महाविद्यालयों में गई । सामाजिक संस्थाओं में, धार्मिक स्थानो पर मुनिश्री – साध्वीश्री जी की प्रेरणा उस समय यह समस्या अधिक थी किताब लिखने के पश्चात अधिक जुड़ी, दायित्व है। मन को समाधान, कुछ अच्छा किया जागृती का वातावरण बनाया।
☆ प्रश्न 11. 17 राज्यों से पुरस्कृत :
आदरणीया , आप देशभर के सत्रह राज्यों से सम्मानित हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए आपने क्या परिश्रम किये?
ललिता जी :- लेक्चर्स देने के लिए जाने की वजह से अन्य नगर- महानगर से महानुभाव आते, उनसे परिचय होता, वहाँ के प्रोग्राम से मुझे अवगत कराते। मैं भी उन्हें अवगत कराती ।
और फिर मुझे इस तरह विभिन्न कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिलता रहा। पुरस्कार मिलते गए। मराठी में कहावत है। “देरेहरी पलंगावरी” तो हरी सिर्फ बैठने से नही देगा। उसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है।
2-3 वर्ष प्रयास किया, अब सामने से निमंत्रण आता है कि आप हमारे प्रोग्राम में अतिथि के रूप आमंत्रित हैं, जरूर आना।
☆ प्रश्न 12. डिजिटल युग:
ललिता जी, आज के डिजिटल युग में, जहाँ सोशल मीडिया की अल्पाक्षर भाषा और अतिव्यस्त जीवनशैली ने साहित्यिक रुचियों को प्रभावित किया है, वहाँ आपकी दृष्टि में समकालीन हिन्दी कविता के समक्ष सर्वाधिक जटिल चुनौती क्या है?
ललिता जी :- परिवर्तन संसार का नियम है। होना भी चाहिए । हमें स्वयं को एडजेस्ट करना होगा। जीवन में बीना चुनौतियों के सफलता मिलन असंभव है। जटिल चुनौती तो नहीं है।
☆ प्रश्न 13. देश विदेश की छाप:
आदरणीया, देश विदेश में भ्रमण करते हुए क्या वहाँ की संस्कृति और साहित्यिक परंपरा ने भी आपके मन पर छाप छोड़ी?
ललिता जी :- जी हां, बहुत कुछ सीखने को मिला। विचारों को चालना मिलती है।
☆ प्रश्न 14. सातोना (परभणी) से गोरेगाँव ईस्ट, मुम्बई तक की यात्रा :
महोदया, परभणी के सातोना गाँव में निवास से गोरेगांव ईस्ट, मुम्बई आवास तक की यात्रा… क्या यह भौगोलिक परिवर्तन आपकी रचनात्मक अभिव्यक्ति की भाषा या विषयवस्तु में भी परिवर्तन लाया?
ललिता जी :- रहन-सहन – वेशभुषा में कोई परिवर्तन नहीं आया। कार्यशैली, विचारो में जरूर परिवर्तन आया।
☆ प्रश्न 15. सामाजिक सरोकार और कवि का दायित्व:
ललिता जी, आज के जटिल सामाजिक, राजनीतिक परिवेश में, एक रचनाकार के कंधों पर क्या दायित्व आन पड़ता है? क्या कविता परिवर्तन का साधन बन सकती है?
ललिता जी :- कविता – क-कल्पना वि-विचार
ता – तालमेल से बनती है। बहुत कम शब्दों में अपनी अभिव्यकि हम देते है, जिससे परिवर्तन हो सकता है। लोगों को प्रेरणा मिलती है। कविता परिवर्तन का साधन बन सकती है।
थी,है और रहेगी निरालाजी की वह “तोडती पत्थर” कविता से मुझे प्रेरणा मिली मैंने निर्णय लिया कि मैं पीएच.डी. निराला जी पर ही करुगी।
☆ प्रश्न 16. प्रकाशन का अभाव:
ललिता जी, आज के समय में लेखकों के लिए पुस्तक प्रकाशन एक जटिल कार्य बन गया है। प्रकाशकों की मारामारी के बीच आप आज के लेखकों को अपने अनुभव से क्या सुझाव देना चाहेंगी?
ललिता जी :- प्रकाशन का कार्य जटिल नहीं है जितना प्रकाशक सहीं मिलना अतिआवश्यक है।
☆ प्रश्न 17. भाषा की सजीवता:
मातृ तुल्या देवी जी, आपकी काव्य-भाषा में एक सहज प्रवाह और अलंकृत प्रयोग दिखाई देता है। भाषा के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है? क्या यह स्वतः स्फूर्त है अथवा परिश्रम से तराशी गई?
ललिता जी :- जी हां स्वतः स्फूर्त है। सभी कवि-लेखक नहीं बन सकते अधिक अच्छा लिखने के लिए मुहावरे – लोकोक्तिया- कहावतो का प्रयोग आवश्यक है। परिश्रम हर कार्य के लिए अति आवश्यक है।
☆ प्रश्न 18. भविष्य की योजनाएँ:
महोदया, “माँ” और नारी विषयक अनेकों पुस्तकों के पश्चात, क्या कोई और नया काव्य संग्रह, गद्य रचना अथवा कोई अन्य साहित्यिक प्रकल्प आपके मन में विद्यमान है?
ललिता जी :- जी हां, तेरापंथ धर्मसंघ के आद्यप्रवर्तक महामना आचार्य श्री भिक्षुस्वामी का 300 वा जन्म जयन्ति उत्सव पूरे वर्षभर मनाया जायेगा। इसमें मैं 1125 कविताओं का संकलन अहिंसा के सुमेरु-महातपस्वी पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी के करकमलों में भेंट करना चाहती हूं वर्ल्ड रिकॉर्ड में रिकॉर्ड करके।
☆ प्रश्न 19. व्यक्तिगत पहचान और साहित्यिक अस्तित्व:
आदरणीया ललिता जी, आप सेवानिवृत्त शिक्षिका, समाज सेविका और साहित्यकार भी हैं। ये सभी पहचानें आपके भीतर कैसे सहअस्तित्व रखती हैं? क्या एक दूसरे को पोषित करती हैं?
ललिता जी :- जी हाँ प्रोफेसर, समाजसेविका एवं साहित्यकार एक दूसरे को पोषित करते है । समाज के हम ऋणी है। समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है। जहां भी उऋण होने का मौका मिलता है काम करना चाहिए। पैसा से सुख सुविधा के साधन खरीद सकते है किन्तु आत्मिक शांति नहीं इसलिए अच्छे कर्म करते रहना चाहिए मनुष्य एकमात्र चिंतनशील प्राणी है ।
लेखनी के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देता है। साहित्य हमारे शोकेस की शोभा बढ़ाता है साथ ही विचारों में परीवर्तन ला सकता है। स्वयं के नाम को जिंदा रखना हैं तो साहित्य जरूर लिखे या कार्य ऐसे करें की लोग हम पर किताब लिखे । व्यक्ति का कोई मुल्य नहीं उसके कार्यों का मूल्यांकन होता है।
☆ प्रश्न 20. ब्रांड एम्बेसडर की कहानी
आदरणीय, आदरणीया आपको महिला युवा संसद व भारत नेपाल पशुपतिनाथ अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव हेतु ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया गया। यहाँ तक पहुँचने की कहानी क्या है?
ललिता जी :- 1350से अधिक पुरस्कार मिलें, 1380 वर्ल्ड रेकॉर्ड है | 44 संस्थाओं से जुडकर कार्य करती हूँ | संस्था के पदाधिकारी नियुक्त करते है इस में मेरी 47 वर्षों की निस्वार्थ सेवा भी है मेरा कार्य है | ‘ जिनागम ‘ पत्रिका की 14 वर्ष सह सम्पादक के पद पर निस्वार्थ सेवा दी है | गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड की ज्युरी मेम्बर हू | भगवान की कृपादृष्टि, गुरु का वरदहस्त, पुज्य माता श्री, पुज्य पिता श्री, पुज्य सासु माँ,पुज्य ससुरजी का आशीर्वाद है साथ ही जीवनसाथी पतिमहोदय जी मेरे बच्चे प्रो.डॉ. सीमा, समता, श्रेयांस का सहयोग अद्विय, अनुपम अलौकिक है| इनके सहयोग के बिना मैं कुछ कर नही सकती थी| सभी का सहयोग मिला तब यहाँ तक का सफर तय कर पाई| श्री जैन श्वे. तेरा पंथ महिला मंडल की सुप्रसिद्ध कार्यकर्ता श्रीमती जयश्री बेन बाठिया एवं श्रीमती कमला जी जैन जिनका समय समय पर मार्गदर्शन -प्रेरणा -प्रोत्साहन मिलता है|
☆ प्रश्न 21. कल्पकथा परिवार:
ललिता जी, “कल्पकथा परिवार के मंच से जुड़ते हुए आपके अंतर्मन में क्या भाव गूंजते हैं? क्या यह मंच आपकी अभिव्यक्ति का सहचर बन सकता है?”
ललिता जी :- ‘कल्पकथा परिवार ‘ मेरीअभिव्यक्ती में सहचर बन सकता है तभी संजोग से जुडे है इसे मैं प्रभू की कृपादृष्टि ही समझती हूँ |जो होता है वह अच्छे के लिए होता है| आपश्री के लिये कहना चाहती हूँ किन रंगो मे रंग हर रंग आप में मिलता है किन शब्दों में परिचय दू हर शब्द आपकी पहचान बने साथ ही दीदी के लिये -आप गुण रत्नों की अनुपम खान है, सेवा सादगी आपकी सही पहचान है कर्तव्यों से भरा हुवा निदान है आप चाहे तो बदल सकती जहान है | आप सभी के हाथों से ऐसे अच्छे कार्य हो जो संस्था के साथ वर्ल्ड के इतिहास में स्वर्णाअक्षरों से लिखे जाए|
☆ प्रश्न 22. संदेश:
ललिता जोगड जी, आप अपने दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
ललिता जी :- दर्शकों-श्रोताओं पाठकों का हृदय की अनन्त गहराईयो से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ |व्यस्त जिंदगी के अनमोल समय में से समय निकाल कर मेरा उत्साह वर्धन किया |आप सभी के घर आंगन मे खुशी के दीप झिलमिलाते रहे, आप सभी युही मुस्कुराते रहे गम की परछाई भी आप से दूर रहे आप हरदम चहकते महकते हसते खिलते मुस्कुराते रहे | स्वस्थ रहे – मस्त रहे, चिरायू हो, दिर्घायू हो, शतायू हो यही मंगल कामना आपश्री के प्रति करती हूँ | आशीर्वाद- स्नेह के पुष्प मुझे भी प्राप्त हो यह आशा विश्वास रखती हूँ |भविष्य में इसी प्रकार से सहयोग मिलता रहे| पानी- बिजली का अपव्यय टाले| पर्यावरण को अधिक दूषित ना करे |इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व के धनी नव इतिहास निर्माता “सबका साथ सबका विकास” की चाह रखने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी के सपनों को साकार करने में आप अपना अमुल्य, अप्रतिम सहयोग तन-मन-धन से देंगे इसी आशा ही नही विश्वास के साथ मेरे शब्दों को विराम बडों को प्रणाम|
✍🏻 वार्ता : अणुव्रत सेवी प्रो. डॉ. ललिता बी जोगड
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज मुम्बई (महाराष्ट्र) की विशिष्ट साहित्यकार अणुव्रत सेवी प्रो. डॉ. ललिता बी जोगड जी से परिचय हुआ। ये गृहणी व व्याख्याता के पद पर कार्यरत रहीं हैं और अभी सेवानिवृत हैं। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/CRNcafbJC_Q?si=59ZCHzfP6wHVEcy7
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 “कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
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