!! “कल्प भेंटवार्ता : डॉ. कर्नल आदि शंकर मिश्र आदित्य” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 14/08/2025
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नाम :- डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र “आदित्य” लखनऊ (उप्र)
माता/पिता का नाम :- माता-स्व. श्रीमती सुखदा मिश्रा
पिता-स्व. श्री गंगा सेवक मिश्र
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- ग्राम- सथनी बाला खेड़ा, जनपद- उन्नाव (02 जनवरी 1949
पत्नी का नाम :- श्री मती पद्मा मिश्रा
बच्चों के नाम :- श्रीमती अनिता दुबे
श्रीमती रंजना द्विवेदी
नीरज मिश्र
अनुपम मिश्र
शिक्षा :- एम ए (इतिहास)
व्यावसाय :- रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल
वर्तमान निवास :-सैनिक नगर, राय बरेली रोड, लखनऊ
आपकी मेल आई डी :- adi.s.mishra@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- आदित्यायन शृंखला में प्रकाशित सात काव्य संग्रह और दो लेख संग्रह और लगभग चालीस साझा काव्य संग्रह
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-
काव्य संग्रह :- आदित्यायन,
आदित्यायन- अनुभूति,
आदित्यायन- संकल्प,
आदित्यायन- अभिलाषा,
आदित्यायन- सृजन
आदित्यायन-भुवन राममय
आदित्यायन-अमृत काल
लेख संग्रह
आदित्यायन-सुभाषितम और
आदित्यायन-जीवन अमृत
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- भारतीय पर्व
भोजन :- शुद्ध शाकाहारी
रंग :- श्वेत, नील, गुलाबी
परिधान :- भारतीय संस्कृति के अनुसार यथास्थान
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- निज निवास, भारत के सभी तीर्थ स्थान
लेखक/लेखिका :- हिंदी साहित्य एवं सनातन साहित्य के लेखक/ लेखिका
कवि/कवयित्री :- सभी पौराणिक एवं आधुनिक कवि/ कवियित्री
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- मुंशी प्रेम चंद्र, जय शंकर प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी इत्यादि
कविता/गीत/काव्य खंड :-सभी प्राचीन/आधुनिक कालीन
खेल :- बैडमिंटन, कबड्डी क्रिकेट
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- अब सब बंद
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- मेरी सभी प्रकाशित और अप्रकाशित तेरह काव्य संग्रह और तीन लेख संग्रह
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
- प्रश्न:- आपका व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिचय प्रदान करें?
मैं डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’ हूँ। मुझे डॉक्टरेट की तीन मानद उपाधियाँ और विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि मिल चुकी हैं। मेरा जीवन परिचय मैंने पहले ही ऊपर दे दिया है।
- प्रश्न:- आदरणीय आप प्राचीन कौशल राज्य की प्रमुख नगरी लक्ष्मणावती, जो आज बहुसांस्कृतिक शिष्टाचार, सुंदर उद्यानों, पूर्व का स्वर्ण नगर लखनऊ, जो समृद्ध साहित्यिक विरासत के लिए विख्यात है, हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में सुनना चाहते हैं।
लखनऊ से मेरा जुड़ाव सन् 1969 से है, जब मैं पहली बार कानपुर से यहाँ आया था। सेना सेवा में आने के बाद मैं और मेरा परिवार लखनऊ में ही स्थायी रूप से रह रहे हैं। सन् 2002 में मैंने अपना स्वयं का घर बनाया और तब से रह रहे हैं।
लखनऊ मुझे बहुत पसन्द है, मेरे परिवार को भी।
“लखनऊ हमको जान से प्यारा है” कह सकते हैं।
यद्यपि मैं देश विदेश में रहा हूँ लेकिन लखनऊ लखनऊ है।
- प्रश्न:- आदरणीय मिश्र जी, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
मैं मेरी दादी को बहुत प्रिय था और पिता जी की डाट से दादी हमेशा बचाया करती थीं। वैसे मुझे सभी बहुत प्यार करते थे क्योंकि पढ़ने में हमेशा प्रथम आता था।
- प्रश्न:- आदित्य जी, आपकी साहित्यिक यात्रा का शुभारम्भ किस प्रेरणा से हुआ और क्या उस प्रथम लेखन का स्मरण आज भी हृदय में किस रूप में अंकित है?
मेरे फुफेरे बड़े भाई डा. रवि शंकर दीक्षित प्राय: मेरे गांव के स्कूल में आते थे और वही मुझे लेखन की प्रेरणा देते थे, मेरे अग्रज भी सदैव प्रोत्साहित करते थे।
- प्रश्न:- एक पूर्व सैनिक, शिक्षक, एवं समाजसेवी, होने के विविध अनुभवों ने आपकी साहित्यिक दृष्टि को किस प्रकार समृद्ध किया है?
सेना सेवा का अनुभव, शिक्षा के प्रति लगाव और भारतीय समाज के विकास के लिये मेरे हृदय में विशेष स्थान है और इनका समावेश मेरी कृतियों को निश्चित रूप से प्रभावित करता है।
- प्रश्न:- आपने इतिहास विषय में स्नातकोत्तर अध्ययन किया है इतिहास और हिन्दी साहित्य का समन्वय आपकी लेखनी में किस प्रकार परिलक्षित होता है?
भारतीय सनातन संस्कृति, साहित्य और इतिहास मेरी दृष्टि से एक दूसरे के संपूरक हैं और सदा से मेरे मन मस्तिष्क में स्थान पाते हैं।
- प्रश्न:- आप हिन्दी साहित्य एवं काशी हिन्दी विद्यापीठ की हिन्दी साहित्य में विद्यावाचस्पति जैसे प्रतिष्ठित अलंकरण से सम्मानित है, आप इन सम्मानों को अपने जीवनकाल में किस दृष्टिकोण से देखते हैं?
ये दोनों मानद उपाधि मुझे मेरे साहित्यिक कृतित्व के आधार पर इसी वर्ष जनवरी के महीने में 76 वर्ष की उम्र में प्राप्त हुई हैं, मुझे अपार प्रसन्नता हुई है। अभी शीघ्र ही मुझे डॉक्टरेट की और दो मानद डिग्री प्राप्त हुई हैं। मैं प्रसन्न हूँ।
- प्रश्न:- जब कोई विचार हृदय को झंकृत करता है, तो वह आपके लेखन में किस रूप में आकार लेता है—गद्य, पद्य या मौन चिन्तन?
तीनों ही विधाओं में। समय और परिस्थिति को ध्यान में रखकर मेरी उँगलियाँ मोबाइल पर काम करने लगती हैं।
- प्रश्न:- आपने ४० से अधिक साझा संकलनों में सहभागिता की है। साझा संकलन का साहित्यिक महत्व आप किस दृष्टि से देखते हैं?
नवागंतुक कवि/ लेखक/ साहित्यकार आदि को बहुत प्रोत्साहन मिलता है।
- प्रश्न:- सामाजिक विषयों पर लेखन करते समय आप किन बातों का विशेष ध्यान रखते हैं?
समाज सुधार, समाज विकास के साथ व्याप्त कुरीतियों पर अंकुश लगाने का संकल्प और प्रयास।
- प्रश्न:- “आदित्य” उपनाम के पीछे छिपी कोई विशेष भावभूमि या आत्मिक अनुभूति है?
मेरा यह नाम आदित्य शंकर मुझे अपने माता पिता और बड़ों से मिला था परंतु स्कूल के अध्यापकों ने आदि शंकर लिखना शुरू कर दिया। इसलिये ‘आदित्य’ नाम मैंने अपनी साहित्य साधना के लिए चुन लिया है।
- प्रश्न:- आदरणीय वर्तमान समय में तकनीक एवं सोशल मीडिया का प्रभाव लगभग हर क्षेत्र पर दिखाई पड़ रहा है प्रश्न यह है कि आप हिन्दी साहित्य के भविष्य में तकनीक और सोशल मीडिया के प्रभाव को किस रूप मे देखते हैं?
साहित्य और साहित्यकारों को आधुनिक तकनीकि और सोशल मीडिया से सतर्कता के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।
- प्रश्न:- व्यवहारिक रूप देने के नाम पर जिस प्रकार हिन्दी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को मिश्रित किया गया है आप इस भाषाई मिश्रण को सकारात्मक अथवा नकारात्मक किस रूप में देखते हैं एवं क्यों?
भाषाई समन्वय कोई बुरी बात नहीं है। मेरा मानना है कि इससे भाषा समृद्ध ही होती है।
- प्रश्न :- वर्तमान समय में साहित्यिक मंचों की उपयोगिता एवं सीमाएँ क्या हैं?
जब तक साहित्यिक मर्यादा बनी रहती है तब तक मंच का उपयोग समाज के लिए सार्थक है।
- प्रश्न:- आपने जिन मंचों से सम्मान प्राप्त किए, उनमें से कोई एक विशेष क्षण जिसे आप अविस्मरणीय मानते हों?
एक-विद्वत समाज सम्मेलन में महामहिम राज्यपाल श्री कलराज मिश्र द्वारा सम्मानि; और
दूसरे शिखा शिखर सम्मान और दिशा एजुकेशन शिखर सम्मान, प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी सेवी सम्मान और काशी विद्यापीठ द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान आदि।
- प्रश्न:-आपने आदित्यायन श्रृंखला में सात कविता संग्रह सृजित किए हैं, आग्रह है हमारे दर्शकों को कविता संग्रहों के बारे में कुछ विशेष जानकारी दीजिए।
आदित्यायन साहित्य शृंखला मेरे उन कविताओं/ लेखों के संग्रह हैं जिन्हें मैं बचपन में, सेना सेवा के दौरान और सेवानिवृत्ति के उपरांत सृजन करता रहा हूँ। मेरी कृतियों में देश, समाज और विश्व की, अपने आस पास के परिवेश का उल्लेख किया जाता रहा है।
- प्रश्न:- क्या विद्यालयीन शिक्षण एवं साहित्य लेखन के मध्य कोई संगति या प्रेरक सम्बंध आप अनुभव करते हैं?
निश्चित रूप से मुझे मेरे परिवेश से, शिक्षकों से और उनके सानिध्य से साहित्यिक प्रेरणा मिलती रही है।
- प्रश्न:- समकालीन हिन्दी साहित्य की दिशा और दशा के विषय में आपका विचार क्या है?
हिंदी साहित्य की दिशा सकारात्मक और विकास की ओर अग्रसर है। दशा भी समृद्ध है बस नकारात्मक लेखन, राजनैतिक व लाल फीताशाही के हस्तक्षेप से हमें साहित्य को स्वतंत्र रखना होगा।
- प्रश्न:- नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए आप किस प्रकार की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना आवश्यक मानते हैं?
विद्यार्थियों में पढ़ने, पढ़ाने की प्रवृत्ति, साहित्य के प्रति रुझान और प्रेम जगाते रहना चाहिए साथ ही उन्हें अवसर मिलते रहें इस दिशा में प्रयास करना होगा।
- प्रश्न:- क्या किसी विशेष रचनाकार या पुस्तक ने आपके लेखकीय जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है?
छायावाद के सभी कवियों,लेखकों को मैंने हमेशा पसंद किया है। वैसे सनातन साहित्य में भी मेरी अभिरुचि है।
- प्रश्न:- एक लेखक, एक सैनिक और एक शिक्षक—इन तीनों भूमिकाओं में कौन-सी भूमिका आपको सबसे अधिक आत्मसंतोष देती है?
शायद तीनों ही मेरे लिए महत्वपूर्ण रही हैं, तीनों समय में मैं पूरी तत्परता के साथ अपने कर्तव्य में विश्वास रखता था, पूरी तन्मयता के साथ।
- प्रश्न :- साहित्य आपके लिए साधना है, संवाद है या सामाजिक परिवर्तन का माध्यम?
साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए साधना भी है, संवाद भी और सुधार का माध्यम भी है।
- प्रश्न:- क्या आपको लगता है कि आज का साहित्य सामाजिक यथार्थ को पूरी तरह प्रतिबिंबित कर पा रहा है?
दोनों ही पहलू हैं, बस सकारात्मता, रचनात्मकता अपनी जगह है तो नकारात्मक साहित्य दिशा हीनता की ओर ले जा रहा है।
- प्रश्न:- कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
कल्पकथा से मैं इसी आधार पर जुड़ा हूँ क्योकि यह एक उपयोगी मंच है। मंच के विकास के लिए मेरी शुभ कामनाएँ हैं।
- प्रश्न:- आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
जीवन में सोच सकारात्मक रखिये, करनी कथनी रचनात्मक रखिए। मेरे जीवन का मूल मंत्र है “प्रयास हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं, मानव जीवन में प्रयास, अभ्यास और अध्ययन बहुत महत्व पूर्ण स्थान रखते हैं तो आइये हम सभी क्यों न निरंतर प्रयास, अभ्यास और अध्ययन करते रहें।
जय हिंद, जय भारत, भारत माता की जय।
(डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’ लखनऊ)
“कल्प भेंटवार्ता देखने के लिए लिंक पर जाएं”
https://www.youtube.com/watch?v=JOYcuH2_R-g
“कल्पकथा परिवार”
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