
“कल्प भेंटवार्ता” – श्री सत्यम सिन्हा के साथ
- कल्प भेंटवार्ता
- 04/07/2025
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री सत्यम सिन्हा के साथ 🌺
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- श्री सत्यम सिन्हा जी
माता/पिता का नाम :-श्री प्रभात कुमार सिन्हा
श्रीमती रेखा सिन्हा
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- सिद्धनाथ घाट, बक्सर,23-9-1984
पति/पत्नी का नाम :- श्रीमती मिलन सिन्हा
बच्चों के नाम :- रीत सिन्हा/शान्वी सिन्हा
शिक्षा :- बीएससी इन इंजीनियरिंग (यांत्रिक अभियांत्रिकी)
व्यावसाय :- नौकरी
वर्तमान निवास :-S1-28 ,JBF RAK LLC, Al Jazeera AL Hamara,Ras Al Khaimah, UAE
आपकी मेल आई डी :-satyamsinha2309@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- अलबेली जोगन राजपुत्र प्रेम या उत्तरदायित्व, मैकेनिक
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- मैकेनिक, राजपुत्रः,
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-कोई नहीं
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-
छात्र जीवन में दयालबाग यूनिवर्सिटी और आगरा यूनिवर्सिटी की विविध साहित्य कार्यक्रमों में पुरस्कृत हुआ
नौकरी के दौरान ईस्टर ,एस आर एफ इंदौर यूफ्लेक्स नोएडा कंपनियों के सभी सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का संचालन
इंडियन एसोसिएशन, रस अल खैमाह की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के संचालन का उत्तरदायित्व लिया है
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- छठ
भोजन :- उत्तर भारतीय भोजन
रंग :- केसरिया
परिधान :- कुर्ता पायजामा
स्थान एवं तीर्थ स्थान :-
दयालबाग आगरा
लेखक/लेखिका :- आचार्य चतुरसेन, भिखारी ठाकुर (भोजपुरी), कालीदास (संस्कृत)
कवि/कवयित्री :- अटल बिहारी वाजपेयी/सुभद्रा कुमारी चौहान
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- सोमनाथ/बड़े घर की बेटी/भारत गांधी के बाद
कविता/गीत/काव्य खंड :- रश्मिरथी
खेल :-क्रिकेट
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- बाहुबली/रामायण (रामानंद सागर)
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- राज्ञ: पुत्र: यस्य सः-राजपुत्र:
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
1. व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिचय:-
🔹 सत्यम जी, हम और आपसे जुड़े सभी जन आपको अपनी जानकारी के अनुसार जानते – पहचानते हैं, कार्यक्रम की शुरुआत में हम आपसे आपका व्यक्तिगत और साहित्यिक परिचय आपके ही शब्दों में जानना चाहेंगे?
मेरी वृत्ति यांत्रिक अभियांत्रिकी है और प्रवृत्ति साहित्यिक।
बिहार के बक्सर जिले का निवासी हूं। हमारे परिवार का मुख्य कार्य कृषि है।
घर घाट और विद्यालय सभी मंदिरों से घिरे थे।इस कारण मैंने बचपन से ही साधु संतों का सान्निध्य मिलता रहा। तभी से साहित्यिक और पौराणिक चर्चा में हिस्सा लेने का अवसर मिला। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान आगरा रेडियो पर एक बार कविता सुनाने का अवसर मिला।
प्रतिलिपि ऐप पर लिखने लगा तो और लोगों से पहचान बनीं।
2. नगर/स्थान विशेष:-
🔹सिन्हा जी, आप वामन अवतार के प्राकट्य पर्व के लिए प्रसिद्ध, लघु काशी, बक्सर नगर से संबंध रखते हैं हम आपके इस नगर को आपके शब्दों में अनुभव करना चाहते हैं?
मेरा शहर, उत्तर में गंगा माई, पूर्व में भी गंगा माई, पश्चिम में कर्मनाशा और चारों दिशाओं में फसलों से भरपूर खेत।
यह धान का कटोरा है।
बिहार का सबसे अधिक साक्षरता वाला जिला है।
यह अहिल्या उद्धार और इंद्र को दंडित करने वाली भूमि है।
राम ने गुरु विश्वामित्र से यहीं शिक्षा ग्रहण कर राक्षसी आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई थी और ताड़का का वध किया।
माता अदिति के गर्भ से गंगा तट पर भगवान वामन ने यहीं जन्म लिया।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह जगह काफी विद्रोही और स्वच्छंद है। यहां किसी की सत्ता टिकती नहीं है।
हुमायूं को यहीं गंगा जी के दरियाव में डुबोकर पीटा गया ।
1764 में मूर्ति भंजक सिराजुद्दौला,शाह आलम और बंगाल के नवाब,अवध के नवाबों का सत्ता के विनाश और अंग्रेजी लुटेरों की लड़ाई यहीं हुई । सभी बुरी तरह हारे। जीती हुई अंग्रेजी फौज में जो सिपाही जिंदा बचे, उन्हें स्थानीय योद्धाओं ने काटकर कोइरीपुरवा के कब्रिस्तान में दफना दिया।और उनकी सभी तोपें अपने घर ले गये।तीस बरस तक अंग्रेज इधर ना आ सके।
1857 में अंग्रेजी फौज ने 217 लड़ाईयों में बाबू कुंवर सिंह से शिकस्त खाई।
3. बालपन की मधुर स्मृति:-
🔹सत्यम जी, हमारे दर्शक आपके बचपन का वह नादानी भरा प्रसंग जानना चाहते हैं जो आपको आज भी आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है?
मैं दीदियों का लाड़ला हूं।बड़ी दी चौदह साल बड़ी थी।अपनी सहेलियों के बीच मेरी पांचों बड़ी बहनें मुझपर गर्व महसूस करती थी कि यह ‘मेरा भाई’ है। उनकी सहेलियों का झुंड जा रहा था। मैं तब सात आठ साल का था। वहीं कटहल के पेड़ के नीचे खेल रहा था। तभी एक भैंस को गुजरते देखकर मैं लपक कर उस पर चढ़ गया और टहनी समेत कटहल को गदा की तरह कंधे पर रखा हु..र्रे… हुर्र.. करता हुआ निकल गया।
तब मुझे लगता था कि भैंस पर मुख्यमंत्री श्री लालू जी चढ़ते हैं तो भैंस की सवारी कलात्मक और बेहतरीन चीज है और लालू जी की तरह हुर्रे हुर्र करना गर्व की बात है।
आखिर कादर खान भी तो यमराज बनकर भैंस पर ही चढ़ा था।
नतीजा कटहल के दूध और भैंस की कीचड़ से मेरे कपड़े खराब हो गये।
मैंने देखा बड़ी दी सिर झुकाकर निकल गईं और तभी दीदी की सहेली बोली,ये तो गुंजा(मेरा नाम )था न..
4. जीवन यात्रा का मूल:-
🔹 गंगा माई की गोद में पले उस बालक से लेकर रेगिस्तानी भूमि के आधुनिक उद्योगों के प्रबंधनकर्ता तक की आपकी यात्रा क्या केवल भौगोलिक है या इसमें कोई आध्यात्मिक संकेत भी छुपा है?
सब राम जी की कृपा है।
मैंने इस बंद कारखाने की मशीनों की मरम्मत करने के बाद दुबारा स्टार्ट करने का उत्तरदायित्व सम्भाल लिया था।वह भी कोविड -१९ के प्रतिबंधों और प्रेतबाधाओं और डरावने सपनों के बीच में।
एक दिन यहां कारखाने में एक ब्लोअर की डक्ट से मुझे धुंआ उठता दिखाई दिया।मैं लपक कर वहां गया तो देखा कि मां तुलसी लहलहा रही हैं। हनुमान जी का झंडा आश्वस्त कर रहा है।तब तक नाइजीरियन सिक्योरिटी गार्ड ने मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया। था।
यहां कारखाने के अंदर एक मंदिर है, जहां बहुत कम लोग जाते थे। मुझे वहां एक विशाल हवनकुंड था और दस वर्ष तक समाप्त न हो पाने वाली हवन सामग्री थी। मंदिर एक प्रार्थना गृह (Hindu Prayer room) ही माना गया था जहां केवल तस्वीरें ही रखी गई थी।
बस एक दक्षिण भारतीय सफाईकर्मी ही वहां रोज दिया- बाती करता था।
शनिवार की शाम को मुझे फिर हवन सामग्री की गंध आई। पता चला कि अपनी ड्यूटी की सीमाओं को मद्देनजर रखते हुए मेरे बॉस एकांत में हवन करते हैं और फिर उन्होंने मुझे भी जोड़ दिया।
वह मौन रहकर देश काल और परिस्थितियों के अनुरूप अनुशासन के दायरे में कार्य को सिद्ध करने में विश्वास रखते हैं और धार्मिक गतिविधियों को संचालित करते हैं।
मैं….उनको …मिल गया.. और वह मौन स्वीकृति देते गये।
फिर एक से दो ,दो से चार होते हुए अब यहां हर शनिवार सुंदर काण्ड का पाठ होने लगा और मंदिर की साज-सज्जा भी डंके की चोट पर होने लगी। गणेश उत्सव, नवरात्र शिवरात्रि सभी मनाई जाने लगी। पहले गणेश जी, फिर राम लला, बजरंग बली फिर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा हुई।मंदिर के बाहर उद्यान बना।
अब बाहर के लोग भी यहां पूजा करने आते हैं और हम हंस कर स्वागत करते हैं।
5. धार्मिक परिवेश और विचारों का निर्माण:-
🔹 बचपन के वे आध्यात्मिक संवाद, जिनमें तर्क और श्रद्धा का संगम होता था—क्या उन्होंने ही आपके लेखन की संवेदनशीलता को आकार दिया?
निस्संदेह ऐसा ही था।
बाबा और नाना के अलावा बुआ के ससुर भी आध्यात्मिक पुरुष थे।परदादा दानी व्यक्ति थे।
बाबा सरकारी वकील थे और नाना जी एक प्रशासनिक अधिकारी और प्रकांड ज्योतिषी थे।इन सभी की सेवा हमें करनी होती थीं और बदले में कुछ कहानियां सुनने को मिलती थीं।
6. माँ – एक सशक्त धुरी:-
🔹 आपकी माताजी जिस तरह से संयुक्त परिवार की बागडोर थामे हुए हैं, क्या वह शक्ति और स्नेह ही आपके लेखन में स्त्री पात्रों की जड़ों को गहराई देता है?
मैं अपनी मां की सातवीं संतान हूं। पांच बहनों के बाद बड़ी ही प्रार्थनाओं के आशीर्वाद से मेरा जन्म हुआ था तो मुझसे उम्मीद भी बहुत थीं। पांचवीं बहन मात्र तीन साल बड़ी थी और मेरे बाद छोटे भाई का आगमन जल्द ही हो गया।
तो मां ने कैसे हमें पाला था? दादी के पास छोटी दीदी, बाबा के पास मैं रहता था
तीन बड़ी बहनें अपने चार छोटे भाई बहनों को खिलौने की तरह संभाल कर खुश होती थीं। मेरे जन्म से पहले
छह बुआ,चाची सास के निरबंसी के तानों के बीच मां डर के मारे सुबह नौ बजे तक बाथरूम नहीं जाती थी।
फिर भी मां ने इन सबका सामना किया और अपनी देवरानियों को मदद करती रहीं। खेती गृहस्थी में भी उनका पूरा ध्यान रहता था।
मेरी दादी ने मेरी मां को बेटी की तरह प्यार किया था और उन्होंने अपनी अंतिम सांसें मेरी मां की गोद में ही लीं।
मां ने हमारे परिवार को एकजुट रखने के लिए सरकारी नौकरी ज्वाइन नहीं की।
मेरी मां मेरे खेतिहर मजदूरों की भी अभिभावक रहीं।जाति धर्म का भेद छोड़कर सबका साथ दिया।
पानी के सरकारी हैंडपंप पर हरिजनों को भगाया गया था तो मां ने अपने आंगन का दरवाजा खोल दिया कि जब भी चाहो पानी भर लो।
किसी भी सिरफिरे की गिरेबान पकड़ने में मेरी मां को देर नहीं लगती थी।
7. लेखन कार्य व समय- प्रबंधन :-
🔹 आपने पाँच उपन्यासों की रचना की है जो काफी लोकप्रिय हैं, सुबह से देर रात्रि तक अत्यधिक व्यस्तता के बीच आप लेखन कार्य हेतु समय कैसे निकालते हैं? आप का समय प्रबंधन कई लोगों के लिये प्रेरणास्पद बन सकता है। कृपया बताइयेगा।
सुबह व्यायाम करने के बाद कारखाने के अपडेट लेकर नाश्ता करने के बाद कुछ नोट्स लिख लेता हूं।
दिन में कभी कुछ रोचक लगा तो नोट कर लेता हूं।
यहीं कभी-कभी अपने पात्रों को ढूंढ लेता हूं।
8. श्रमिक वर्ग से आत्मिक जुड़ाव:-
🔹 एक मैनेजर होकर सफाईकर्मी को ‘दक्ष तकनीशियन’ मानना—क्या यह दृष्टिकोण आपके साहित्य में ‘मानवता का मैकेनिज्म’ रचता है व आपको तकनीकी संवेदनशील लेखक के रूप में स्थापित करता है?
सभी मजदूर हमारी ताकत हैं।उनके बाजुओं के दम से हमारे घरों में बिजली पानी,इंधन और सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।और विडंबना यह है की किस के बाद सबसे ज्यादा प्रताड़ित मजदूर होता है। यह कम पढ़े लिखे लोग हमारी सहानुभूति के योग्य हैं। इन्हें गले लगाईए। यह आपके कंधों पर बैठा लेंगे। इन्हें सिखाईए और इनके बच्चों को बताईए कि आपके पिता कितनी मेहनत करते हैं और उनका कितना महत्व है ताकि उनका परिवार गौरवान्वित हो सके और प्रेरित हो सके आगे पढ़ाई के लिए आगे बढ़ने के लिए। मेरे सहकर्मी मेरे चैंपियन हैं और उनको चैंपियन बनाती हैं,वह मातायें – बहनें- बेटियां जो सिंगल पैरेंट्स बनकर सालों साल परिवार संभाल रहीं हैं।इस दर्द का एहसास मुझे हमेशा होता है।
9. संयुक्त परिवार की वर्तमान में प्रासंगिकता:-
🔹अब जबकि एकल परिवार ही अधिक दिखाई दे रहे हैं और संयुक्त परिवार विघटन के कगार पर हैं,तो आप संयुक्त परिवार से घनिष्ठ संबंध रखने के कारण किन बिन्दुओं पर संयुक्त परिवार को श्रेष्ठतर व प्रासंगिक पाते हैं ?
कोरोना… देखा था … ना..
अभी कोई मेरे पिताजी के आगे बेअदबी कर दी ,( ए बुढउ) वाक्यांश समाप्त होने से पहले ही छोटे बाबा का पोता डंडा लेकर टूट पड़ा। जबकि एक सेल्फी के चक्कर में उसकी अम्मा से हमारी भतीजी का झगड़ा हो गया था।
घर में पुरुष कम हो तो भी कोई डर नहीं लगता।
विपत्तियों में असहाय नहीं होते।
गहना गुड़िया गाय भैंस बेचकर भी पूरा परिवार एकजुट हो जाता है।
उतने की नौबत ही नहीं आती। चाची दादी बुआ दीदी, पड़ोसी,सब अपने स्रोत का इस्तेमाल करते हैं।
मगर हमको आफ़त है,
जब छुट्टी जाता हूं तो फ्रीज, कूलर, पंपिंग सेट, हैंडपंप,ट्रैक्टर आदि से लेकर बिजली के प्रेस तक की फ्री में जांच करनी पड़ती है।
हमारे मुहल्ले में भैय्या, चाचा बाबा,बेटा कहने वाले बहुत हैं और हम एक कप चाय पीकर दुःख सुख सुनते हैं और दो चार रिज्यूमे लेकर वापस आ जाते हैं।
10. साहित्यिक आरंभ की पीठिका:-
🔹 आपका पहला लिखा गया वाक्य या अनुच्छेद, जिसने आपके भीतर लेखक का विश्वास जगाया और आपके भावों को लेखनीबद्ध किया —क्या आप उसे स्मरण कर सकते हैं?
घोटाले पर घोटाला
हर विभाग का मुंह काला।
11. धारावाहिक उपन्यासों की दिशा:-
🔹 आपके उपन्यास ‘मैकेनिक’ हो या ‘राजपुत्र’, क्या ये आपकी आत्मानुभूतियों का कलात्मक प्रतिबिंब हैं या सामाजिक जीवन का सजग चित्रण?
राजपुत्र एक काल्पनिक ऐतिहासिक कहानी है जो दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति और भाषा का परिचय देती है।
इसमें विदेशज शब्दों से बहुत दूरी बनाकर शुद्ध हिंदी में अपनी बात कही है।
घुड़सवार -अश्वक
मेजबान -आतिथेय
चमड़ा -पवस
मैकेनिक एक इंजीनियर और लेडी आफिसर की प्रेमकथा है जो कारखाने के परिवेश में पनपी है।
12. ‘अलबेली जोगन’ का भावलोक:-
🔹 इस रचना में क्या एक ‘तपस्विनी स्त्री’ की अंतर्यात्रा है या आधुनिक नारी की सामाजिक साधना?
यहां मेरे भारत के मंदिरों के इतिहास और भूगोल का वर्णन है।
अपने पहले जन्म में योगिनी के रूप में अलबेली बंगाल के नवाब और मुगल बादशाह से अपने धर्म स्थलों को बचाते हुए अपने प्रेमी को भी धर्म यज्ञ में प्राणों की आहुति देने को आमंत्रित करती है।
दूसरे जन्म में वह बनारस में हेस्टिंग्स को पराजित कर प्रेमी संग पुनः वीरगति प्राप्त करती है तो
तीसरे जन्म में वह देवी की भक्त बनकर अपने पति के लिए गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी देवी का सान्निध्य प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
13. प्रवासी अनुभव और साहित्य:-
🔹 यूएई में रहते हुए आपने प्रवासी जीवन की कौन-सी पीड़ाएं महसूस कीं, जो आपकी कहानियों में पंक्तियों के रूप में उतर आईं हैं ?
घर से दूर मजदूरों की व्यथा,जो घर में पैसे भेजने के आगे भूखे पेट सो जाते हैं।
पासपोर्ट के लिए ठीकेदारों के आगे गिड़गिड़ाते हुए लोग।
अपने मुल्क और प्रदेश के नाम पर चिढ़ाए जाने वाले मजबूर पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली..
शत्रु देश के निवासी है तो क्या हुआ… वे पहले मजदूर हैं।
अपने देश के गद्दार.. हम केरला का है.. बीफ खाएगा.?
खालिस्तानी… बातें… साहित्य…
ओवरटाइम के लिए पागल लोगों को पैंचो पैये कहने वाले घमंडियों को भी औकात बताते हुए आज के माडर्न छोकरे इंजीनियर।
जो मौज मस्ती के साथ नौकरी करते हैं।
लड़कियों पर पैसे न्यौछावर करने पर मैंने मारा, तो टकला कहते हैं। फिर डांटो तो रूठ जाते हैं, फिर बच्चों की तरह फुसलाकर लाओ।बात बात पर रिजाइन को तैयार हैं। गर्लफ्रेंड के लिए सुसाइड का प्रयास करने लगते हैं।
14. तकनीक बनाम साहित्य:-
🔹 कृत्रिम बुद्धिमत्ता और संवेदनशील रचनाशीलता—क्या दोनों में संगति संभव है या दोनों विपरीत ध्रुव हैं?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से हमारी बुद्धि कुंद हो रही है।
जैसे कि अस्सी के दशक के बाद उत्पन्न बच्चे खाद वाले खेतों वाला भोजन कर अपनी आयु और प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते गये।
आपके सोचने की क्षमता कम हो जाएगी।
15. दैनिक जीवन और साहित्य का संगम:-
🔹 रात्रि की अंतिम रिपोर्ट पढ़कर सोने वाले अभियंता की लेखनी में भावनाओं का उद्गम कैसे और कब फूट पड़ता है?
दर्द को देखकर, प्यार को देखकर,ताजी रोटी देखकर, किसी मजदूर की मुस्कान देखकर या मस्जिद की अज़ान और मंदिर की घंटी एक साथ सुनकर
16. बक्सर की मिट्टी और लेखन की भाषा:-
🔹 क्या आपकी लेखनी में बक्सर की ‘कचरी कछारी माटी’ की सुगंध आज भी बरकरार है?
हां,
जब भी व्यंग्य लिखता हूं तो मैं ठेठ देहाती बनकर लिखता हूं।
शब्द संयमित रहें इसका ख्याल रखता हूं।
17. धर्म और लेखनी का अंतर्संबंध:-
🔹 क्या आपके लिए धर्म केवल परंपरा है या एक रचनात्मक चिन्तन प्रक्रिया, जो लेखनी को दिशा देती है?
धर्म एक जलविद्युत संयंत्र (टर्बाइन)है जिससे रचना और चिंतन की ऊर्जा उत्पन्न होती है और वही चिंतन रुपी अदृश्य इलेक्ट्रिकल एनर्जी लेखनी रुपी मोटर के माध्यम से हमारे समाज की मशीनरी को यांत्रिक गति और दिशा प्रदान करती है।
धर्म का अर्थ है धारण करना। जिसने धरा और पंचभूत को धारण किया,वह है धर्म।
18. समाज और साहित्य की भूमिका:-
🔹 आपके अनुसार साहित्य का आधारभूत उद्देश्य क्या है? समाज व परिवेश को यथोचित दिशा देना अथवा समाज को उसका वास्तविक प्रतिबिंब दिखलाना ?
निस्संदेह दोनों ही। लेकिन यह लिखने और पढ़ने वाले की सोच पर निर्भर करता है।
19. ‘प्रेम या उत्तरदायित्व’ का मर्म:-
🔹 क्या यह रचना आज की युवा पीढ़ी को भावनाओं और कर्तव्यों के बीच संतुलन सिखाने का प्रयास है?
यह एक पशोपेश में पड़ रही युवा पीढ़ी की मनोदशा का चित्रण और उससे उभर कर सामने आने की कहानी है।
20. रचना प्रक्रिया की अनुगूंज:-
🔹 क्या आपकी कोई रचना सपने में आई पंक्तियों से शुरू हुई है या किसी मशीन की धड़कन ने शब्दों को जन्म दिया है?
नोएडा में मैंने एक मजदूर को मशीन पर कुछ लिखते देखा।
उत्सुकतावश
एक मजदूर ने मशीन के ऊपर लिखा था
“सूरज तुम क्या करते हो?
मैं मशीन चलाता हूं।”
इस बात पर मैंने अपनी पहली कहानी लिखी।
‘मजदूर की प्रेमकथा ‘
मेरे पूछने पर एक सफाईकर्मी ने कहा था कि
मुझमें गुस्सा करने की ताकत नहीं है। इसलिए मुझे किसी पर गुस्सा नहीं आता।अगर मैं आपके ओहदे पर होता तो…
21. लेखक और व्यवस्थापक के द्वंद्व:-
🔹 कभी ऐसा हुआ है कि प्रबंधन की कठोरता और लेखक की कोमलता टकरा गई हो? तब आपने किसे चुना?
हमें मां ने एक चीज सिखाई है।
एक मिनट का ऐंगर मैनेजमेंट। पहले मिनट में ऊपरी दहशत पैदा करो।
दूसरे मिनट में कूल हो जाओ।
गलती करने वाले के पृष्ठ भाग को ठोकर मारो,
पर ध्यान रहे,कभी उसके परिवार के पेट पर आंच न आए।
गोल्फ के बाल के अनुसार स्टिक का चयन करना होता है।
लेखक हमेशा प्रबंधक पर भारी पड़ जाता है।
22. आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत:-
🔹 विदेशी भूमि पर, जहां मंदिरों की घंटियाँ नहीं गूंजतीं, वहां आप अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति को कैसे जाग्रत रखते हैं?
इसके लिए मैं ध्यान साधना करता हूं।
हमने अपनी कंपनी परिसर में ही पवित्र वृक्षों का रोपण किया है।अब मंदिर में नियमित रूप से सेवा कार्य होता है।भाई बंधुओं ने अब कथा-
कीर्तन भजन में भी बुलाना शुरू कर दिया।
फिर पंडित की छवि ऐसी बनी कि
एक दिन तो हद हो गई।
एक नये सी एफ ओ ने श्राद्धकर्म और पिंडदान के लिए मुझे मंदिर में बुला लिया।
बड़ी मुश्किल से एक ब्राह्मण वेल्डर ने वह कर्मकाण्ड किया।
मना करने के बावजूद अभी भी पूर्णिमा के दिन या व्रत के पारण में लोग मुझे बुला लेते हैं तो मैं किसी ब्राह्मण को लेकर जाता हूं।
23. साहित्य का अगला पड़ाव:-
🔹 पाँच उपन्यासों के पश्चात्, अब आपकी साहित्यिक यात्रा किस दिशा में अग्रसर है—क्या आत्मकथा, काव्य या कोई सामाजिक प्रकल्प?
अब पुनः बंगाल के पाल राजवंश पर कथा लिखूंगा कि कैसे अंग्रेजी फौज और नवाबों ने बिहार बंगाल उड़ीसा के हिंदू मंदिरों को दूषित किया।
24. संदेश:-
🔹 सिन्हा जी, आप अपने दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
सबसे पहले तो उनको और आपकी टीम को धन्यवाद देना चाहूंगा कि आपने हमारी बात सुनी।
मैं आपके कार्यक्रम के माध्यम से कहना चाहता हूं कि
हम जहां भी रहें या काम करें तो ऐसा पवित्र और परोपकारी आचरण रखें कि लोग
आपके समाज देश और संस्कृति का परिचय जानने का प्रयत्न करें।
तब आप गर्व से कहें कि हम सभी हिन्दु ऐसे ही होते हैं।
अपने देश में बनी चीजें ही खरीदें चाहे उसकी क्वालिटी थोड़ी कमजोर क्यों न हो? आपके इस प्रयत्न से मेरे देश के एक मजदूर को एक रोटी ज्यादा खाने को मिलेगी?
प्लीज़..ऐसा जरूर कीजिए।
प्रोडक्ट पर पढ़िए कि यह कहां बना है? करिएगा न…?
तीर्थ पर जाने से पहले अपने घर के निकटतम किसी छोटे से मंदिर में जाकर झाड़ू पोंछा लगाइए। वहां बिजली बत्ती पानी का इंतजाम करिए।
वहां के पुजारी से पता कीजिए कि मंदिर की आजीविका से वह दोनों टाईम भोजन कर पाते हैं कि नहीं।
कुलदेवता, ग्राम देवता स्थान देवता और माता पिता संतुष्ट हो जाएं तभी तीर्थ का फल मिलेगा।
यह सब करके तीर्थ करिए और जब लौट कर आइए तो समाज के दीन-हीन को नारायण समझकर खुब खिलाईए।
नहीं तो पिकनिक स्पॉट की तरह तीर्थों में जा कर भीड़ बढ़ाने से क्या फायदा?
अपने घर से दूर किसी सरकारी जमीन पर दस बारह छायादार और फलदार पेड़ लगाइए और उन सभी का पालन-पोषण करिए।
🛰️ कार्यक्रम को देखने के लिए लिंक पर जाएंI🛰️
https://www.youtube.com/live/HLSvVDClLWg?si=3v4QcKCklYUnzZ-0
“कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
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