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“कल्प भेंटवार्ता:- श्रीमती शालिनी बसेडिया दीक्षित प्रयागराज (उप्र)”

🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – डॉ. श्रीमती शालिनी बसेड़िया दीक्षित जी के साथ 🌺

नाम :-  डॉ. श्रीमती शालिनी बसेड़िया दीक्षित प्रयागराज (उप्र)

माता/पिता का नाम :-श्रीमती मंजू बसेड़िया/श्री रविंद्र मोहन बसेड़िया

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- झांसी/19/07/1980

पति/पत्नी का नाम :-श्री संजय दीक्षित/श्रीमती शालिनी दीक्षित

बच्चों के नाम :-पुत्र-वेद दीक्षित

         पुत्री -अन्वी दीक्षित

शिक्षा :- एम.एड

व्यावसाय :- असिस्टेंट प्रोफेसर

वर्तमान निवास :-नैनी प्रयागराज

आपकी कृतियाँ :- मां का दर्द, स्त्री का सौंदर्य, मेरा स्वाभिमान आदि

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-मेरे पापा

 

*!! “मेरी पसंद :-  संगीत सुनाना” !!*

उत्सव :- राष्ट्रीय पर्व जो मुझे प्रेरणा देते हैं अपने देश के गौरव को बढ़ाने के लिए।

भोजन :- समोसा, छोला भटूरा, बाटी चोखा, रबड़ी, डोसा प्यार से बना हुआ हर भोजन मुझे पसंद है। जिसमें अपनेपन की महक हो जिसमें प्रेम का स्वाद हो और एक गिलास छाछ जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति को प्रदर्शित करते रहे।

रंग :- कला, पीला

परिधान :- साड़ी

स्थान एवं तीर्थ स्थान :-कोंच (जो मेरा पैतृक गांव है मथुरा वृंदावन अयोध्या काशी संगम नगरी प्रयागराज आदि)

लेखक/लेखिका :-प्रेमचंद, कबीर दास, सूरदास, मीराबाई, रामधारी सिंह दिनकर,भारतेंदु हरिश्चंद्र तुलसीदास,कालिदास

कवि/कवयित्री :-सूरदास तुलसीदास मीराबाई

खेल :-कबड्डी, कैरम

फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- स्वर्ग, चांदनी, साजन, नागिन ,दिल दे चुके सनम/यह रिश्ता क्या कहलाता है, अनुपमा

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-मेरे पापा

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

                                 

प्रश्न 1. आदरणीया डॉ. शालिनी जी, कोंच जिला जालौन उप्र की धरती से हैं बाल्यकाल से लेकर शिक्षा जगत की ऊँचाइयों तक का आपका यह जीवन-पथ किन प्रेरक घटनाओं और स्मरणीय क्षणों से अभिसिंचित रहा?

उत्तर-बाल काल्यसे मैं अपने परिवार से बहुत प्रभावित रही शिक्षा की धराशिला से पूर्ण मेरे बाबा एक आदर्श अध्यापक थे जो हमें हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। मेरे पिता जिन्होंने हमेशा ऊपर उठाना आगे बढ़ना सीखने में सहयोग दिया है बालकल से ही मैं अपने माता-पिता और अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रेरणा लेते हुए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करती रही हूं।

 

प्रश्न2. आदरणीया आप वर्तमान में संगम नगरी और विश्व विख्यात महाकुंभ की धरती तीर्थराज प्रयागराज में निवासरत हैं, हम आपसे आपके इस नगर को आपके ही शब्दों में जानना चाहते हैं।

उत्तर-प्रयागराज जी का अपना ही महत्व रहा है प्रज्ञा तीन नदियों का मिलन से ही प्रभावित करता है और सबसे ज्यादा मुझे प्रेरणा प्रयागराज से बचपन से ही शिक्षा के क्षेत्र से मैं प्रभावित रही हूं प्रयागराज के जब मैं पढ़ती थी तो मैं सुनती थी बहुत से साहित्यकार बहुत से उच्च नागरिक प्रयागराज के निवासी रहे हैं शिक्षा का क्षेत्र कहा गया है शिक्षा का उच्च क्षेत्र माना गया है प्रयागराज को तो प्रयागराज से मैं हमेशा प्रेरित रही हूं। आज तो हर क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता आ गई है लेकिन प्राचीन समय में जब हम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उसे समय जो है और उसकी पूर्वी का जो समय था तब प्रयागराज एक श्रेष्ठ शिक्षा का स्थान माना जाता था।

 

प्रश्न 3. संस्कृत जैसे दिव्य और प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के विषय में स्नातकोत्तर की साधना आपने क्यों चुनी? इस यात्रा ने आपके व्यक्तित्व को किस प्रकार संस्कारित किया?

उत्तर- वैसे तो मैं अंग्रेजी विषय से अपना करियर  चाहती थी मेरी इच्छा अंग्रेजी विषय की ही थी परंतु कुछ स्थिति वनी संस्कृत विषय पर भी मेरा रुझान हमेशा से ही रहा अंग्रेजी और संस्कृत गणित विषय मेरी प्रिय विषय में से एक थे। संस्कृत और अंग्रेजी और गणित मेरा बचपन से ही तीनों  में रुझान रहा और मैं अपने बाबा से हमेशा सीखी हूं और पढ़ने के कारण उनसे मुझे बहुत अधिक प्रेरक संस्कृत विषय लगता था। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की जो जीवन शैली देखने को संस्कृत विषय में मिलती थी वह भी मेरे लिए प्रभावित करती थी  और मेरी ग्रामर बहुत मजबूत थी आज इतनी है नहीं मैं नहीं कह सकती हूं लेकिन उसे समय बहुत मजबूत थी। संस्कृत विषय के मेरे बाबा प्रख्यात अध्यापक थे और संस्कृत की जो महत्वता जो काव्य शैली थी वह शुरू से पढ़ने के कारण रुचिकर मुझे लगती थी इसलिए और संस्कृति क्षेत्र में करियर नहीं है ऐसा सुनने आता था तो मुझे लगता था कि मैं इस क्षेत्र में आगे जाऊं और कुछ करके दिखाना है मुझे बस इसी प्रयास से मैंने संस्कृत का  चयन किया अपने जीवन में। संस्कृत विषय में भारतीयसंस्कृति , नैतिकता, संस्कार सभ्यता नीति पर रख श्लोक दिल की गहराइयों में और आत्मा में स्थान बनते चले गए और जीवन को संस्कार पूर्ण निर्वाह करने की प्रेरणा देते गए। इसमें पारिवारिक माहौल का भी सहयोग प्राप्त हुआ।

 

प्रश्न 4. शिक्षा-जगत में अध्यापन का दायित्व निभाते हुए, आपको अपने विद्यार्थियों से किस प्रकार का आत्मिक संतोष एवं प्रेरणा प्राप्त होती है?

उत्तर-शिक्षा के क्षेत्र में जो मेरे बाबा ने गौरव प्राप्त किया और जो सम्मान प्राप्त किया और शिक्षक के गौरव को बनाने के लिए और उसको स्थापित रखने के लिए जो प्रयास किया वह हमेशा से प्रेरणादायक थे हमारे लिए जो हमें एक शिक्षक बनने के लिए हमेशा प्रेरणा देते थे और हमारा भी प्रयास हमेशा अध्ययन और अध्यापन करते समय यही रहता है कि बच्चों को लिए आदर्श शिक्षक बनने का प्रयास किया जाए।।  शिक्षक तभी एक पूर्ण शिक्षक है जब वह सरल से सरल भाषा में अपनी अपने शब्दों को बच्चों के सामने प्रस्तुत करें और बच्चों की समस्याओं को या बच्चों के प्रश्नों को गहराई के समझते हुए उनके व्यवहार के अनुरूप उनको सीखने का प्रयास करें करने मेंकर सके।

 

प्रश्न 5. लेखन और कविता-पाठन की रुचि आपने कब और कैसे आत्मसात की? क्या यह आपके पारिवारिक वातावरण से उपजी या आपके अंतर्मन की सहज पुकार थी?

 उत्तर-लेखन कार्य  आत्मीय दृष्टि से ही शुरुआत हुई परंतु यह पारिवारिक वातावरण का भी देन कह सकते हैं। जैसे कि मैं मां गंभीर स्वभाव से ही गंभीर हमेशा से रही हूं तो विचारों में गंभीरता रहने के कारण आपके सा और एकांत में विचार करने आसान से आपके साथ करने और शिक्षा और समाज के अस्तित्व को के समागम पर बैठकर लेखन में व्यवस्थित करने की कार्यशाली का मैंने प्रयास किया छोटा सा जिससे ही मुझे लेखन में रूची उत्पन्न हुई। मेरे बाबा भी लेखन कार्य करते थे और बहुत ही उच्च कोटि का लेखन कार्य करते थे संस्कृत में भी लिखते थे

 

प्रश्न 6. संगीत-गायन और साहित्य—दोनों ही आत्मा के स्वर हैं। आपके जीवन में इनका परस्पर समन्वय किस प्रकार व्यक्त होता है?

उत्तर- संगीत गायन आत्मा को शांति प्रदान करते हैं जब कोई व्यक्ति गाता है या गाना सुनता है तो उसके अंतर आत्मा प्रसन्नता का अनुभव महसूस करतीहैं जबकि साहित्य अंतरात्मा की  गहराइयों में जाने का प्रयास करता है फिर अंतर्मन शिक्षा और समाज की गतिविधियों से द्वंद करते हुए में भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है दोनों ही आनंद और ज्ञान की अनुभूति प्रदान करते है।

 

प्रश्न 7. सामाजिक जीवन में महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता के लिए आपने अनेक पहल की हैं। इस दिशा में आपकी दृष्टि और संकल्प क्या हैं?

उत्तर- महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता महिला के मनोबल को मजबूती प्रदान करता है और पारिवारिक जिम्मेदारियां में भी सहयोग करने की भावना को दर्शाता है। मेरी दृष्टि से किसी भी महिला को आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े इसलिए मैं चाहती हूं कि जीवन में हमेशा प्रयास करूं महिलाओं के लिए घर बैठे भी कार्य करने की जो भी योजनाएं हैं उनमें उनको जागरूक करूं।

 

प्रश्न 8. आपके हृदय में बागवानी और पुस्तक-पाठन की रुचियाँ भी विशेष स्थान रखती हैं। यह सौंदर्य-चेतना और ज्ञान-चेतना का संगम आपके दैनिक जीवन को कैसे परिभाषित करता है?

उत्तर-ज्ञान चेतना और सौंदर्य चेतन एक दूसरे के पूरक हैं ज्ञान से ही सौंदर्य है और सौंदर्य से ही ज्ञान है

 

प्रश्न 9. “जहाँ सम्मान गृहलक्ष्मी का होता है, वहीं देवताओं का वास होता है।” – आपके इस अमूल्य विचार के आलोक में आप गृहस्थ और समाज दोनों के लिए नारी-भूमिका को किस रूप में देखती हैं?

उत्तर- पुरुष का दायित्व जहां समाज और परिवार के पालन पोषण के लिए महत्वपूर्ण होता है जिसके लिए आज हमारी भारतीय नारियां भी महत्वपूर्ण योगदान निभा रही हैं वह अपने परिवार का पालन पोषण करने वह समाज के दायित्व को व्यापार  नौकरी व समाज सेवा भी कर रही हैं परंतु जिसघर में नारी का सम्मान यदि होता है वहां का वातावरण सकारात्मक विचारों से पूर्ण होता है एक मर्यादित नारी को प्रेम और सम्मान केअतिरिक्त मुझे नहीं लगता है ज्यादा कुछ  प्रिय होता है तो जिस परिवार में नारी को सम्मान और प्रेम मिलेगा परिवार के सभी सदस्यों के द्वारा तो वहां का वातावरण देवी तुल्य होना अनिवार्य है इसीलिए हमारे पूर्वजों ने कहा है कि जहां पर नारियों का सम्मान होता है वहां देवताओं का निवास होता है इसलिए हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए और नारियों को भी सामाजिक मर्यादाओं और पारिवारिक नियमों की दृढ़ता का हमेशा स्मरण रखना चाहिए और अपने लड़कों को  हमेशा महिलाओं वह लड़कियों का सम्मान करना उनकी मर्यादा का सम्मान की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहने की शिक्षा अवश्य देनी चाहिए जिससे की हर परिवार मे हमेशा देवताओ का स्थान बना रहे और घर का वातावरण खुशियों की गूंज से हमेशा चाहता रहे। जहां स्त्री पुरुष का सम्मान और पुरुष स्त्री का सम्मान करेंगे और मर्यादाओं के साथ जीवन का निर्वाह करेंगे जिस घर वहां हमेशा एक अच्छा वातावरण रहेगा एक अच्छी परवरिश में बच्चों का जीवन दिशा पूर्ण बनेगा  क्योंकि नारियां ही सृष्टि निर्माता है।

 

प्रश्न 10. आप आधुनिक हिन्दी साहित्य को किस दृष्टि से देखती हैं? क्या आपको लगता है कि यह समय साहित्य में नए विमर्शों और प्रयोगों का है?

उत्तर- आधुनिक हिंदी साहित्य बहुत से साहित्यकार ही है जैसा हिंदी की गरिमा को सुरक्षितरखने का प्रयास कर रहे हैं समाज को नई दिशा नए विचारों से परिवर्तित करने का प्रयास भी करते रहते हैं समाज परिवर्तनशील है समाज को नए विचारों विमर्श,नए प्रयोग की समय-समय पर आवश्यकता होती है जिसके लिए हमारा हिंदी आधुनिक साहित्य हमेशा प्रयास करता रहता है।

 

प्रश्न 11. संस्कृत और हिन्दी—दोनों ही हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। आप इनके परस्पर संबंध और वर्तमान पीढ़ी के लिए इनके महत्व को कैसे प्रतिपादित करती हैं?

उत्तर- हिंदी साहित्य और संस्कृत साहित्य सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करने के लिए हमें इसके महत्वता से आने वाली पीढ़ी को परिचित कराते रहना आवश्यक है जिसके लिए साहित्यिक गतिविधियों के आयोजनों के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। प्राचीन सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की काव्यपाठ , नाटक ,उपन्यास आदि का नाट्य मंचन का आयोजन करके उन्हें सृजनात्मक विकास और हिंदी और संस्कृत साहित्यिक की उपयोगिता से परिचित कराकर साहित्य धरोहर  को सुरक्षित रखने का प्रयास कर सकते हैं

 

प्रश्न 13. आज का साहित्य सोशल मीडिया के तीव्र प्रवाह से प्रभावित हो रहा है। आपके विचार में यह प्रवृत्ति साहित्य के लिए वरदान है या चुनौती?

उत्तर- कोई भी परिवर्तन सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव लेकर सामने उपस्थित होते हैं परंतु कौन किस रूप में उसे स्वीकारना चाहता है यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।

 

प्रश्न 14.  प्राचीन साहित्य में नारी-प्रतिमा का स्वरूप ‘सीता-सावित्री’ के आदर्श रूप में अंकित है, जबकि आधुनिक साहित्य में नारी अपने अधिकार और स्वतंत्रता की खोज में है। आप इस दोनों ध्रुवों के बीच सामंजस्य किस प्रकार देखती हैं?

उत्तर- प्राचीन काल में जहां सीता और सावित्री के चरित्र पर हम दृष्टि डालते हैं तो हम देखते हैं की सीता और सावित्री को स्वतंत्रता और अधिकार  प्राप्त थे राजा के सिंहासन पर रानी का भी स्थान होता था किसी भी विचार पर उन दोनों के विचारों की सहमति को भी स्वीकार किया जाता था। परंतु सीता और सावित्री को चारित्रिक और मर्यादित रूप में ज्यादा स्मरण करते हैं क्योंकि स्त्री जो अपना चरित्र और अपनी मर्यादा को बनाए रखती है तो उसकी स्वतंत्रता और अधिकार में संघर्ष की स्थिति बहुत कम आती है। चरित्र में अग्नि सा वल होता है और मर्यादा में जल सा समर्पण होता है। इसलिए प्राचीन काल में सीता और सावित्री को अधिकार और स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने की आवश्यकता नहीं थी आज नारियां कहीं ना कहीं मर्यादा और चरित्र निर्माण में संयम स्थापित करें तो अधिकार और स्वतंत्रता की आवश्यकता के लिए युद्ध की आवश्यकता नहीं होगी और पुरुष महिलाओं को सम्मान और आदर देंगे तो महिलाओं को स्वतंत्रता और अधिकार की आवश्यकता ही नहीं होती है स्त्री प्रेम से पूर्ण  समर्पण की पर्याय है। तभी दुर्गा मां महालक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती हैजब प्रेम और समर्पण पर प्रहार किया जाता है तब अधिकार और स्वतंत्रता के लिए स्त्री को काली का स्वरूप धारण करके आधुनिकता स्त्री को स्वतंत्रता और अधिकार की मांग करनी पड़ती है।

 

प्रश्न 15. सामाजिक चेतना और साहित्य का गहरा संबंध है। आपके मत में वर्तमान समय के लेखक की समाज के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्या होनी चाहिए?

उत्तर- साहित्य के द्वारा  सामाजिक चेतना को जागृत करने का प्रयास किया जा सकता है। आधुनिक साहित्यकारों को वर्तमान में भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक साहित्य सृजन करने और प्राचीन साहित्य की गरिमा को सुरक्षित रखना का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 16. कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?

उत्तर- कल्पकथा साहित्यिक मंच के माध्यम से साहित्य चेतना तो हमेशा से जागृत ही थी समय-समय पर नवीन साहित्यकार व साहित्य मंच बनते ही रहे हैं परंतु कल्प कथा मंच आज के आधुनिक परिवेशकी पूर्णता को नए-नए दिशा निर्देशन के माध्यम समाज के भिन्न-भिन्न सोशल मीडियम माध्यम पर प्रसारित करने का महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है जिसके माध्यम से बहुत से साहित्यकारो का समागम और नवीन नए साहित्यकारों को सीखने का अवसर प्रदान करने का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। और सभी साहित्यकारों के विचारों को जन जन तक पहुंचने का कार्य कर रहा है। जिससे कि साहित्य सृजन में नवीन चेतना जागृत हो रही है

 

प्रश्न17. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर-मैं सभी समकालीन लेखक श्रोताओं से आग्रह करती हूं। क्या कि हम अपनी लेखनके माध्यम से समाज को प्रेरक  पूर्ण साहित्यिक सजृन करने का प्रयास करें।

 

🌺 “कृपया कार्यक्रम देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।”🌺

https://www.youtube.com/watch?v=lXTR3m5SWPo

 

“कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”

कल्प भेंटवार्ता

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