
“कल्प भेंटवार्ता” – श्री भगवान दास शर्मा प्रशांत जी के साथ”
- कल्प भेंटवार्ता
- 09/08/2025
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🌺“कल्प भेंटवार्ता” – श्री भगवान दास शर्मा प्रशांत जी के साथ 🌺
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- श्री भगवान दास शर्मा ‘प्रशांत’
इटावा (उप्र)
माता/पिता का नाम :- माताजी: श्रीमती लौंगश्री देवी
पिताजी: स्व. श्री राम शंकर शर्मा
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- इटावा (उत्तर प्रदेश)
15 जनवरी 1980
पत्नी का नाम :- श्रीमती बिंदु शर्मा ( शिक्षिका)
बच्चों के नाम :-
1. कुणाल 20 वर्ष
2. अनन्या 11 वर्ष
शिक्षा :- एम.ए. (इतिहास, हिंदी, संस्कृत), बी.एड.
व्यवसाय :- शिक्षक
वर्तमान निवास :- वैभव नगर, पी.ए.सी. सिविल लाइन
इटावा उत्तर प्रदेश
पिन- 206002
आपकी मेल आई डी :- prashantunorg@gmail.com
आपकी कृतियाँ :-
1. मेरी एक सौ एक कुंडलियां
2. लोग भूलने लगे है। (दोनों प्रकाशाधीन)
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- नहीं
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-
1. कवि रामदास वर्मा “निर्मोही” सम्मान 2023।
2. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर सम्मान 2024।
3. भव्य फाउंडेशन जयपुर द्वारा डायमंड डिग्निटी अवार्ड 2024।
4. काव्य गरिमा साहित्यिक मंच द्वारा हिंदी साहित्य सृजन अवार्ड 2024 नई दिल्ली।
5. श्री राम साहित्य सेवा संस्थान अयोध्या द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान 2025।
6. प्रिंस जी वेलफेयर प्रकाशन द्वारा सजग प्रहरी सम्मान 2025।
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- दीपावली
भोजन :- खीर पूड़ी और मट्ठा के आलू।
रंग :- आसमानी नीला
परिधान :- पेंट शर्ट एवं कभी कभी कुर्ता पायजामी
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- वृंदावन
लेखक/लेखिका :- प्रेमचंद/शिवानी
कवि/कवयित्री :- रामधारी सिंह दिनकर/ महादेवी वर्मा
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- निर्मला/बलिदान
कविता/गीत/काव्य खंड :- लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती/ कारवां गुजर गया/ रश्मिरथी
खेल :- कुश्ती एवं बॉक्सिंग
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- हिंदी फिल्मों में तीसरी कसम, सूर्यवंशम, बागवान आदि। अंग्रेजी फिल्मों में ग्रैविटी, इंटेस्टलर, पैसेंजर्स, अवतार जैसी फिल्में।
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- हार न मानो लड़ने वालो।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
1. प्रश्न:- आपका व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिचय प्रदान करें?
परिचय
इनका नाम भगवान दास शर्मा ‘प्रशांत’ है। इनका जन्म 15 जनवरी 1980 ई. को हुआ था। इनके पिता स्व. श्री राम शंकर शंकर शर्मा एवं माता श्रीमती लौंगश्री देवी है। उनकी पत्नी श्रीमती बिंदु शर्मा बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापिका है तथा उनके दो बच्चे कुणाल और अनन्या है। ये ग्राम व पोस्ट निलोई जसवंत नगर जनपद इटावा के निवासी हैं। इन्होंने स्नातक एवं स्नात्तकोत्तर एम.ए. इतिहास डॉ. बी.आर.आंबेडकर विश्व विद्यालय,आगरा से, एम.ए. हिंदी स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्व विद्यालय मेरठ तथा एम. ए. संस्कृत छत्रपति शाहूजी महराज विश्व विद्यालय कानपुर से की हैं। ये पिछले 10 वर्षों से लिख रहे हैं। ये पूर्व सैनिक एवं बैंक अधिकारी भी रहे है और वर्तमान में पेशे से माध्यमिक शिक्षा विभाग में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। इन्हें लघुकथा, कहानी व सामाजिक लेख पढ़ना एवं लिखना पसंद हैं। ये उ.प्र. साहित्य सभा एवं पहल साहित्यिक मंच से जुड़े हुए हैं। इनकी रचनाएँ एवं लेख कई पत्र पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते है। इनकी अब तक 54 से ज्यादा साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है।
2 प्रश्न:- आप ईष्ट की साधना के केंद्र इष्टिकापुरी यानि इटावा से हैं वह नगर जो यमुना और चंबल के संगम पर स्थित जो महाकवि गंग, देव, और गीतों के राजकुमार गोपाल दास नीरज जी की स्मृतियों को सहेजे हुए है, हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में सुनना चाहते हैं।
प्राचीन काल में इष्टिकापुरी वर्तमान में इटावा पांचाल जनपद के अंतर्गत क्षेत्र था जो महाभारत काल में शिक्षा और संस्कृत का केंद्र था। इटावा को धौम्य ऋषि की तपोभूमि माना जाता है। 1857 के विद्रोह में भी इटावा एक सक्रिय केंद्र रहा और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने यहां पर देश के लिए शहादतें दी। इटावा का साहित्यिक इतिहास भी बहुत ही समृद्ध रहा है। इटावा की उर्वरा भूमि ने ऐसे बहुत से साहित्यकारों को पैदा किया, जिन्होंने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक अपनी छाप छोड़ी है। प्राचीन हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘चौरासी वैष्णवन की वार्ता’ से लेकर आज तक इस पावन यमुना तट पर साहित्य की अलख जगाए रखी है। रीतिकालीन कवियों में अकबर के समकालीन कवि गंग की धरती है यह इटावा। रीतिकाल में ही श्रृंगार और प्रकृति के कवि देव भी हुए। प्राचीन साहित्यकारों में कई कवि गंग और देव के अलावा बाबू गुलाब राय, गीतों के राजकुमार गोपाल दास नीरज की स्मृतियों को सहेजे है। इनके अलावा राधा बल्लभ दीक्षित, शिशुपाल सिंह ‘शिशु’, रामदास वर्मा ‘निर्मोही’, भीमसेन शर्मा, प्रभु दयाल शर्मा, नेम सिंह ‘रमन’ कथाकार दिनेश पालीवाल, भगवत दयाल पांडे, गिरजा शंकर मिश्र, गिरीश कुमार पांडे, पहलाद यदुवंशी, प्रेमबाबू ‘प्रेम’, अनुराग मिश्र ‘असफल’, कुश चतुर्वेदी, नरोत्तम बाबू ,सुदामा पाल, मीरा पुरवार,पुष्कर द्विवेदी, प्रदीप पालीवाल, ओमप्रकाश दीक्षित, राम प्रकाश शर्मा, ललित नारायण मिश्राआदि ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया तो वहीं नई पीढ़ी में कुश चतुर्वेदी, गोविंद माधव शुक्ल, कमलेश शर्मा, राजीव राज, कुमार मनोज, गौरव चौहान, रवि पाल खामोश, शिव गोपाल अवस्थी, रौनक इटावी हरिओम सिंह ‘विमल’ सोहेल अहमद, आरिफ सिद्दकी, यासीन अंसारी, अवनीश त्रिपाठी, राम भदावर, रोहित चौधरी जैसे बहुत से कवि साहित्यिक धरोहर को आगे बढ़ा रहे हैं।
3. प्रश्न:- आदरणीय प्रशांत जी, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
आदरणीय बता दूं कि मेरा बचपन ग्रामीण परिवेश में ही बीता है और मैंने बचपन को बहुत ही अच्छे ढंग से जिया है। बचपन में बहुत सारी शरारते और शैतानियां भी की है। नादानियां की बात करें तो अक्सर छत पर बहुत सारी गौरैया चिड़िया आती थी तो उनको टोकरी में पकड़कर रंग के छोड़ देता था।
एक बार में अपनी बड़ी बहन राधा दीदी के साथ स्कूल में गया तो वहां से आकर मैंने पापा मम्मी को कहा कि मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगा। मम्मी ने पूछा क्यों मैंने कहा वहां के टीचर गलत पढ़ते हैं आपने मुझे क से कबूतर बताया था जबकि वहां क से कलम बता रहे थे। इसलिए मैं स्कूल नहीं जाऊंगा इस पर पापा मम्मी बहुत हंसे थे।
बहुत सारी और भी याद है जैसे एक बार मेरी उम्र तकरीबन 10-12 साल रही होगी गांव के पास जसवंतनगर की सब्जी मंडी में तीन हेलीकॉप्टरों से फिल्मी जगत के काफी लोग आए थे। सैफई जो कि मुलायम सिंह यादव जी की जन्मस्थलि है, जसवंतनगर से 10 किलोमीटर दूरी पर है। मै बच्चों के साथ उन्हें देखने पैदल ही 10 किलोमीटर चला गया और वहां पर मैंने फिल्मी हस्तियों को देखा, सुना। रैली से आकर शाम को घर आया तो खूब डांट पड़ी थी।
सावन के माह में मेंढकों के बच्चो को पकड़ना, पानी में कागज की नाव चीटा बैठा कर चलना, आम की अंकुरित गुठली की पपिहा यानी सीटी बजाना जैसे खेल खेलते थे ।
4. प्रश्न:- शर्मा जी, आपकी साहित्यिक यात्रा का शुभारम्भ किस प्रेरणा से हुआ और क्या उस प्रथम लेखन का स्मरण आज भी हृदय में किसी रूप में अंकित है?
आदरणीय मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के अंदर एक साहित्यकार छुपा होता है। बस बीज अंकुरित के लिए अनुकूल माहौल की आवश्यकता होती है। मेरे साहित्य के बीज उस समय अंकुरित हुए जब मैं माध्यमिक शिक्षा विभाग में अध्यापक के पद पर तैनात हुआ। इसी के साथ जनपद के विभिन्न कवि और लेखकों से संपर्क हुआ। उसके बाद लिखने की प्रेरणा मिली। मेरा डायरी लेखन का शौक रहा है।मुझे याद है कि मैं सेवा में रहते पहले रचना एक पारदी लिखी थी
5. प्रश्न:- एक पूर्व सैनिक, बैंक अधिकारी एवं अब शिक्षक होने के विविध अनुभवों ने आपकी साहित्यिक दृष्टि को किस प्रकार समृद्ध किया है?
आदरणीय वैसे तो मेरी साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं रही है और मैं विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी रहा हूं बहुत छोटी उम्र में सेवा में चला गया था तो लिखने पढ़ने का शौक रहा और सेवा में व्यक्तित्व निकर के अंतर्गत बहुत सारी कार्यक्रमों कंपनी स्तर को होते थे जिम में प्रतिभा करता था और मुझे डायरी लिखने का भी शौक था सेवा की नौकरी से मेरे अंदर बहुत सारी प्रतिभाओं का जन्म हुआ देश प्रेम की भावना सच्चाई के प्रति लड़ना ईमानदारी यह सब गुण विकसित हुए जिन पर मैंने लिखना शुरू किया बैंक की नौकरी बहुत ही कम समय की थी लेकिन 45 सालों में मैं सामाजिक ढांचे को गांव स्थल पर बहुत सारी समस्याओं को देखा गरीब मजदूर किसान उनकी पीड़ा और मजबूरी को जमीन स्तर पर समझा तो मैं इस पर भी लिखना शुरू किया भ्रष्टाचार समाज में एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है इस पर भी में लिखने का प्रयास करता मैं पत्रकारिता से भी जुड़ा हुआ हूं जो कहीं ना कहीं समाज से जुड़े होने का एहसास कराती है।
6. प्रश्न:- इतिहास, हिन्दी एवं संस्कृत जैसे तीन भिन्न विषयों में स्नातकोत्तर अध्ययन का समन्वय आपकी लेखनी में किस प्रकार परिलक्षित होता है?
आदरणीय इतिहास हमे अतीत से जोड़ता है और हमारे भारत की संस्कृति और वीर योद्धाओं के बारे में जानते है। हिंदी हमे साहित्य में रुचि तो वही संस्कृत हमे आध्यात्म और प्राचीन ग्रंथों और सद् विचारों के ओतप्रोत रचनाएं लिखने को प्रेरित करता है।
7. प्रश्न:- आपकी दृष्टि में लघुकथा और कहानी लेखन की सबसे बड़ी साहित्यिक चुनौती क्या है?
मेरे ख्याल से लघु कथा और कहानी लेखन की सबसे बड़ी चुनौती संक्षिप्त रखते हुए अपने भाव पाठकों तक पहुंचाना है।
8. प्रश्न:- जब कोई विचार हृदय को झंकृत करता है, तो वह आपके लेखन में किस रूप में आकार लेता है—गद्य, पद्य या मौन चिन्तन?
#आदरणीय जब भी दैनिक क्रियाओं में जो काम करते हैं, देखते हैं, सुनते हैं इसके बाद कुछ भाव मन में आते हैं तो मन में उस विषय पर चिंतन करते हैं और यदि घटना हृदय स्पर्शी है तो उसको लिखने की कोशिश करता हूं।
9. प्रश्न:- आपने 54 से अधिक साझा संकलनों में सहभागिता की है। साझा संकलन का साहित्यिक महत्व आप किस दृष्टि से देखते हैं?
#स्वयं की रचित कोई रचना जब किसी भी पुस्तक में छपती है, तो एक खुशी देती है। साथ ही साझा संकलनों के माध्यम से और भी कविताओं के भाव पता चलते हैं और सबसे बड़ी बात यह है की बुक के लिए ज्यादा रचनाएं हो तभी छपवाए, इसका भी इंतजार नहीं करना पड़ता है।
10. प्रश्न:- सामाजिक विषयों पर लेखन करते समय आप किन बातों का विशेष ध्यान रखते हैं?
# सामाजिक विषयों पर लिखते समय कोशिश रहती है कि सही तथ्यों को उठाया जाए और समाज पर सकारात्मक सकारात्मक प्रभाव पड़े सामाजिक मुद्दे इसे पर्यावरण भ्रष्टाचार रूढ़ बादिता आडंबरों का में गौर विरोधी रहा हूं और मेरी रचनाओं में कहीं न कहीं इस विषय कुछ हुआ है।
11. प्रश्न:- ‘प्रशांत’ उपनाम के पीछे छिपी कोई विशेष भावभूमि या आत्मिक अनुभूति है?
# ‘प्रशांत’ उपनाम देने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। पापा बताते थे कि मेरा नामकरण मेरे वृंदावन के हनुमान टेकरी आश्रम के महंत गुरु जी श्री रामशरण दास जी ने भगवान दास रखा था और कहा था कि इसे गुरुकुल में ही पढ़ाऊंगा और मंदिर की सेवा में लगाऊंगा। लेकिन ऐसा हो न सका। मेरा नाम भगवान दास हो गया उससे पहले मेरा नाम भुवनेश था। धनु राशि भ अक्षर से निकला था जब मेरी शादी के लिए बात पक्की हुई तो मेरी पत्नी को यह नाम अच्छा नहीं लगा, इतना पुराना कैसा नाम है? ऐसा कहकर तो मेरी जब पहली बार मुलाकात हुई तो मैने सुझाया कि प्रशांत यानि विशालता। नाम तो मैंने प्रशांत नाम रख लिया लेकिन काव्य और लेखनी में उपनाम लिखने का सुझाव भैया कवि डॉ. राजीव राज ने शुरू करवाया।
12. प्रश्न :- वर्तमान समय में साहित्यिक मंचों की उपयोगिता एवं सीमाएँ क्या हैं?
# साहित्यिक मंच हमारे जैसे नवोदित लेखको और सृजनकारों के लिए बहुत उपयोगी है। साहित्य के मंच के माध्यम से देश के तमाम कवियों लेखकों साहित्य प्रेमियों से संपर्क का एक बहुत अच्छा माध्यम है। और यह है साहित्य की धरोहरों को आगे बढ़ाने, देश में चल रही समस्याओं पर विचार विश्लेषण करने, सामाजिक सरोकार और समाज के मुद्दों को उठाने, एक दूसरे के विचार को जानने, देश की आवाज बन हिंदी की सेवा करने का एक सशक्त माध्यम बन गया है। जहां तक सीमाओं की बात है साहित्य सृजन का उद्देश्य केवल मनोरंजन न होकर सच के साथ खड़े होकर समाज को जागरूक करने और देश प्रेम की भावना, बच्चों में संस्कार युवा पीढ़ी को सही मार्गदर्शन देना भी है।
13. प्रश्न:- आपने जिन मंचों से सम्मान प्राप्त किए, उनमें से कोई एक विशेष क्षण जिसे आप अविस्मरणीय मानते हों?
# आदरणीय मेरा साहित्यिक सफर बहुत पुराना नहीं है। साहित्य सृजन और लेखन की शुरुआत मेरी माध्यमिक शिक्षा में हिंदी अध्यापक बनने के बाद सक्रिय रूप से शुरू हुई वैसे छुटपुट थोड़ा बहुत डायरी लिखने का शौक रहा है। मुझे जब मंच पर पहली बार रामदास वर्मा निर्मोही सम्मान एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया तो मुझे बहुत अच्छा लगा। इसके साथ ही काव्य गरिमा हिंदी साहित्यिक मंच द्वारा दिल्ली में हिंदी साहित्य सृजन सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया तो मुझे बेहद खुशी हुई थी। बहन गरिमा भाटी जी ने बड़ी आत्मीयता के साथ व्यवहार किया अच्छा लगा।
14. प्रश्न:-आपने एक लघुकथा “जीवन का बनवास” लिखी है हमारे दर्शक इस लघुकथा का उद्वेश्य जानना चाहते हैं?
# लघु कथा “जीवन का बनवास” एक ऐसे व्यक्ति के जीवन से प्रेरित है, जिसके पास एक अच्छी नौकरी है। बच्चों को अच्छी शिक्षा तो देते हैं लेकिन संस्कार नहीं दे पाते। धन संपत्ति होने के बावजूद भी उन्हें पत्नी की मृत्यु के बाद अनाथालय, बनारस में रहना पड़ता है। और उनकी मित्रता ही उनके काम आती है। बच्चे विदेश में होते हैं और मृत्यु के बाद भी बच्चे उनका मुखाग्नि देने नहीं आते हैं। इस लघु कथा का उद्देश्य सिर्फ यही है कि हमें बच्चों को संस्कारी शिक्षा देनी है, ताकि वह अपने मां-बाप और मिट्टी से जुड़े रहे।
15. प्रश्न:- क्या विद्यालयीन शिक्षण एवं साहित्य लेखन के मध्य कोई संगति या प्रेरक सम्बंध आप अनुभव करते हैं?
# आदरणीय, मै जन सहयोगी इंटर कॉलेज इटावा में हिंदी अध्यापक के पद पर कार्यरत हूं। जैसा कि मेरा साहित्य विषय है तो मेरा साहित्य से जुड़े रचनाएं और कवियों के माध्यम से लगाव और भी बढ़ जाता है और मैं उस सीखे हुए ज्ञान को बच्चों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं। काव्य गायन के रूप में बच्चों को प्रोत्साहित करता हूं। और जनपद स्तरीय प्रतियोगिताओं में बच्चों को प्रोत्साहित कर प्रतिभाग करवाता हूं। जिसमें प्रदर्शनी में आयोजित होने वाले बहुत सारे कार्यक्रम रहते हैं। इस तरह हिंदी शिक्षण कहीं ना कहीं विद्यालय स्तरीय कार्यक्रमों और जनपद में बच्चों को निखारने और उभरते में सहायक सिद्ध होता हैं। और कहीं ना कहीं हमारे लेखन को भी प्रोत्साहित करता है।
16. प्रश्न:- समकालीन हिन्दी लघुकथा-साहित्य की दिशा और दशा के विषय में आपका विचार क्या है?
# हिंदी साहित्य में लघु कथा विधा एक नई शुरुआत है, जो बहुत ही रोचक और प्रभावी होती है। छोटा आकार होने के कारण पढ़ने में समय भी नहीं लगता और यह सीधे मन में या यूं कहें हृदय में उतर जाती है। जिसका असर बहुत ही प्रभावी और तुरंत होता है। इसमें पाठक भाबुक होकर उस विषय पर सोचने को मजबूर हो जाता है।
17. प्रश्न:- नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए आप किस प्रकार की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना आवश्यक मानते हैं?
# नई पीढ़ी यानि बच्चों में साहित्य के प्रति अभिरुचि की शुरुआत विद्यालय स्तर पर शुरू हो जाती है। विद्यालय में शिक्षक के द्वारा विभिन्न क्रियाकलापों, लेखन प्रतियोगिताओं काव्य रुचियां, गोष्ठियों, भाषण प्रतियोगिता आदि के माध्यम से बच्चों को संस्कारित शिक्षा देकर देश प्रेम और मूल्यों की कहानी, आदर्श व्यक्तित्व के माध्यम से बच्चों के व्यक्तित्व में साहित्य के प्रति रुचि जागृत की जा सकती है।
18. प्रश्न:- क्या किसी विशेष रचनाकार या पुस्तक ने आपके लेखकीय जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है?
# जी, वैसे तो बहुत सारे लेखन और रचनाकारों को पढ़कर लेखन में सुधार हुआ है जिन में रामधारी सिंह दिनकर, मैथिली शरण जी की रचनाएं मुझे पसंद है लेकिन मुझे मुंशी प्रेमचंद के मार्मिक उपन्यासों से प्रेरणा मिली है और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जैसी साहित्यकार से समाज में फैले कुरीति और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखने का साहस पैदा होता है।
19. प्रश्न:- एक लेखक, एक सैनिक और एक शिक्षक—इन तीनों भूमिकाओं में कौन-सी भूमिका आपको सबसे अधिक आत्मसंतोष देती है?
# आज मैं यदि शिक्षक हूं उसके पीछे सेवा का बहुत बड़ा योगदान है जहां सेवा की सेवा में मुझे हर तरह से मजबूत बनाया तो वही शिक्षक की भूमिका में बहुत ही आत्म संतोष और संतुष्टि की अनुभूति करता हूं मैं कोई बहुत बड़ा लेखक तो नहीं लेकिन लेखन से एक सुखद अनुभूति होती है इस तरह मैं कह सकता हूं कि सेना की सेवा हमारे लिए आधार है और शिक्षक की भूमिका मेरे लिए समाज को कुछ लौटने का मौका।
20. प्रश्न :- साहित्य आपके लिए साधना है, संवाद है। या सामाजिक परिवर्तन का माध्यम?
# आदरणीय वैसे तो साहित्य साधना के साथ समाज परिवर्तन का माध्यम है। जैसा साहित्य लिखा जाता है समाज पर कहीं न कहीं उसका प्रभाव जरूर देखने को मिलता है।
21. प्रश्न:- क्या आपको लगता है कि आज का साहित्य सामाजिक यथार्थ को पूरी तरह प्रतिबिंबित कर पा रहा है?
#आदरणीय मुझे लगता है कि आज कल साहित्य का काफी विस्तार हो रहा है विभिन्न तकनीकी माध्यमों के आ जाने से साहित्य का प्रचार और प्रसार बड़ा है। लेकिन इसका असर उतना नहीं दिखाई दे रहा जितना की होना चाहिए। इसका एक कारण यह लगता है कि सही कंटेंट की पहुंच युवा पीढ़ी तक नहीं है। बच्चों में पढ़ने का रुझान भी कम देखा जाता है। कीमती होने की वजह साहित्यिक पुस्तकों को कम लोग ही खरीदते हैं। लगभग सार या कहानियां इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाता है। इस तरह समाज में पढ़ने की प्रवृत्ति कम हुई है। साहित्य समाज का आईना होता है और जैसा समाज में घटित हो रहा है साहित्य वैसा ही प्रतिबिंबित होकर लिखा जा रहा है।
22. प्रश्न :- अंततः, ‘प्रशांत’ जी की लेखनी के भविष्य की दिशा क्या है—कोई व्यक्तिगत रचना-संकल्प, स्वप्न या परियोजना जिसे आप साकार करना चाहते हैं?
# आदरणीय मेरा कोई बहुत बड़ा स्वप्न या कोई परियोजना नहीं है बस दैनिक क्रियाकलापों में साहित्य से जुड़ा रहना चाहता हूं। संभव हुआ तो कुछ विषयों पर पुस्तक प्रकाशित करवाने की इच्छा है। बाकी सब प्रभु की इच्छा।
23. प्रश्न:- कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
# जी बिल्कुल, कल्प कथा साहित्यिक संस्था कुछ संस्थाओं से थोड़ी हटके है। इस संस्था का उद्देश्य भक्ति और राष्ट्र प्रेम तो है ही, साथ ही “सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय” के साथ सनातनी संस्कृति रीज रिवाज और “वसुधैव कुटुंबकम्” का मूल मंत्र भी इसके उद्देश्य में परलक्षित होता है।
24. प्रश्न:- आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
# मैं अपने लेखक साथियों से निवेदन करना चाहूंगा कि वह देशहित, सत्ताधार, युवाओं को प्रेरित करते हुए बाल साहित्य को भी बढ़ावा दें। जिनका सरोकार बच्चों के भविष्य और उनके नैतिक मूल्यों पर पड़े साथ ही में श्रोताओं पाठकों और दर्शकों को कहना चाहूंगा कि आज के आधुनिक युग में जहां साहित्यिक कृतियां की कोई कमी नहीं है तो उनके लिए किस साहित्य को पढ़ा जाए यह एक अहम विषय है क्योंकि समय का अभाव रहता है इसलिए ऐसे साहित्य को बढ़ावा मिलना चाहिए जो समाज में कुछ परिवर्तन लाएं। आज भी अनेक समस्याएं विकराल मुंह करके खडी है। जिनमें नारी शोषण,आडंबर, भ्रष्टाचार, शिक्षा, किसानों की दशा जैसे कई विषय हैं। जिनको समझाना और ध्यान देना चाहिए। साथ ही हमें अपने देश और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व होना चाहिए। हमेशा देश हित में ही काम करने का संकल्प लेना चाहिए।
जय हिंद
जय भारत।🙏😊🕉️🇮🇳
🌺“कार्यक्रम को देखने के लिए लिंक पर जाएँ”🌺
https://www.youtube.com/live/3YO9sbEs_XI
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