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“कल्प भेंटवार्ता” – श्री राम सनेही ओझा जी के साथ

🌺 !!  “कल्प भेंटवार्ता” – श्री राम सनेही ओझा जी के साथ  !! 🌺

 

!! “मेरा परिचय” !!

 

 

नाम :- राम सनेही ओझा , 

वाराणसी/मुंबई (महाराष्ट्र)

 

माता/पिता का नाम :- 

पिताश्री :– स्व•पंडित राजाश्रय ओझा 

माताश्री :– स्व• कुंवर पार्वती देवि 

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- 

~~~गाँव :–कोईल भूपति, जिला:– गया ,

प्रांत :– बिहार प्रांत।

जन्म तिथि :– 15 ~ 10 ~ 1948

 

पति/पत्नी का नाम :- श्रीमति वीणा ओझा 

 

बच्चों के नाम :-

श्री पुष्कर ओझा ~~ पुत्र

श्रीमति मनीषा श्रीवास्तव ~~ पुत्री

 

शिक्षा  :- आईटीआई ~ वेल्डिंग ईंजिनियरिंग 

 

व्यवसाय :- अवकाश प्राप्त फौजी 

 

वर्तमान निवास :- मुम्बई 

 

आपकी मेल आई डी :- ojharamsanehi@gmail.com 

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- १ : —-

 *पुष्करांजली* ~ काव्य संग्रह ~ भाग ~ १

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-भारतीय वायु सेना से प्रदत्त सारे युद्ध, शांति, संग्राम, लंबी अवधि 

सेवा मेडल, आसाम~बंगाल क्लैप्स मेडल, 

पूर्वी स्टार व अनेको सेना अलंकरण से अलंकृत होकर  मैं आज भी गौरवान्वित हूँ।

 

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

 

☆ प्रश्न 1. :- आपका व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिचय प्रदान करें?

 

★ ओझा जी : मैं राम सनेही ओझा, वरिष्ठ अनायुक्त अधिकारी(रिटायर्ड) ॥ भारतीय वायु सेना ॥

बिहार प्रांत में “बावन गाँव के ओझा” खानदान से, 1948, कोईल भूपति गाँव में जन्म लिया। तब हमारा प्यारा हिन्दुस्तान आजाद हो चुका था। आगे चलकर मैं *जैन कालेज*आरा में शिक्षा के बाद, तकनीकी शिक्षा के लिए टाटानगर गया। 1967 में मैं भारतीय वायु सेना ज्वाईन किया। साहित्य में रूचि तो स्कूल अवधि से हीं शुरू होकर तमाम उतार-चढ़ाव से रुबरू होते हावाते, आज आप के समक्ष प्रस्तुत हूँ। मुझे हर विधा में लिखने का प्रयास करते रहना आता है। और तो और अब मेरे पास समय ही समय है।

!! धन्यवाद व साधुवाद !!

 

 

 

☆ प्रश्न 2. :- आदरणीय आप देश की आध्यात्मिक, धार्मिक, एतिहासिक, सांस्कृतिक, नगरी भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से हैं और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में निवासरत हैं आपसे आपके इन नगरों को आपके ही शब्दों में जानना चाहते हैं।

 

★ ओझा जी :- अवश्य , 

 

         वाराणसी ~ काशी :

       गंगा ~ यमुनी संस्कृति का ~

       शहर बनारस है काशी ।

       अलग-अलग पहिरावा भाषा ~

       बोल-बनारस है खासी ।।

………………मुम्बई :

       आमची मुम्बई,प्यारा मुम्बई ।

        सारे शहरोंसे , न्यारा मुम्बई ।।

        …………………

 

 

 

 ☆ प्रश्न 3. :- आदरणीय ओझा जी, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?

 

 ★ ओझा जी : जी हां! कई ऐसे पल आए जब मुझे नादान कहकर मेरी नादानियों को नज़र अंदाज किये जाते रहे।

 

 

 

 

☆ प्रश्न 4. :- आपके बचपन का वह पहला पल कौन-सा था, जब आपको लगा कि आपकी रुचि साहित्य की ओर है? क्या कोई विशेष घटना या प्रेरणास्रोत रहा?

 

★ ओझा जी : ऐसा कोई खास नहीं। यह जन्मजात है, क्यूंकि परम आदरणीया , मेरी स्व•माताश्री भी कमोबेश भजन ~ गीत लिखती थीं। स्वयं गाती थीं। हम सभी भाई बहन को अपने पास बैठाकर खुद विषय का चयन करतीं और फिर हमसे कहतीं चलो बच्चों इस पर तुम कुछ बोलो मगर पद्य में……….. 

सच में वह एक पहला अवसर मिला 1960–62 में स्कूल में हमारे वरिष्ठ वर्ग के छात्रों के बिदाई समारोह में मुझे पहला अवसर मिला लिखने और गाने का ।

वह मेरे लिए मिल का पत्थर साबित हुआ। 

 

 

 

     

☆ प्रश्न 5. :- आपका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ, जहाँ पारंपरिक मूल्यों का प्रभाव रहा होगा। क्या आपके परिवार का साहित्यिक माहौल आपकी रचनाधर्मिता को प्रभावित करता था?

 

★ ओझा जी : कुछ-कुछ प्रभावित हुआ हूँ मैं भी ।

 

 

 

☆ प्रश्न 6. :- आपने भारतीय वायुसेना में एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में लंबा समय बिताया। क्या सैन्य जीवन के अनुशासन और अनुभवों ने आपकी साहित्यिक दृष्टि को किसी तरह प्रभावित किया? 

 

★ ओझा जी : हां जी हां आदरणीय जी ! मुझे एक अनुशासित और सशक्त रचनाकार बनाया ।

 

 

 

☆ प्रश्न 7. :- आपकी पहली प्रकाशित रचना कौन-सी थी? उस समय आपकी भावनाएँ क्या रही होंगी?

 

★ ओझा जी : बहुत अच्छा प्रश्न आदरणीय जी!

*पुष्करांजली* काव्य संग्रह -(भाग ~ १) का प्रकाशन अगस्त २०२३ में ,जब मेरे जीवन का *हिरक जयंती काल* चल रहा था,यानि कि 15–10–2025।

तब मेरे बच्चों नें मेरा 75 वां जन्म दिन “डायमंड जुबली” के रूप में बड़े हीं धूमधाम से मनाया और उसी ऐतिहासिक पल में मेरे द्वारा रचित काव्य संग्रह *पुष्करांजली* का *विमोचन* अति विशिष्ट जनों के सम्मुख किया गया । वह क्षण मेरे लिए अप्रतिम व यादगार पल बन गया ।

!! धन्यवाद व साधुवाद !!

 

 

 

☆ प्रश्न 8. :- आपकी काव्य संग्रह “पुष्करांजली” प्रकाशित हो चुका है निवेदन है आप हमारे दर्शकों को इसके बारे में बताइए ।

 

★ ओझा जी : मेरे द्वारा रचित , *पुष्करांजली* एक काव्यसंग्रह है। इस काव्य संग्रह में मैंने हर रस से ओतप्रोत काव्य रचना करके सभी सुधि पाठकगण के लिए कविता, गीत, ग़ज़ल व नज्म हिन्दी/भोजपुरी में उपलब्ध किया है। 

 

 

 

☆ प्रश्न 9. :- आप हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी और अंग्रेजी में भी लिखते हैं। क्या भाषा का चुनाव आपकी रचना के विषय पर निर्भर करता है?

 

★ ओझा जी : अवश्य, पर कभी-कभार एक शब्द भी मुझे भाषा चुनने को प्रेरित करता है ।

 

 

 

☆ प्रश्न 10. :- आपकी रचनाओं में प्रकृति, देशभक्ति और मानवीय संवेदनाएँ प्रमुखता से झलकती हैं। क्या आप स्वयं को किसी विशेष विधा या विषय का कवि मानते हैं?

 

★ ओझा जी : कोई खास नहीं। पर हाँ, मैं स्वयं ही एक आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत व्यक्त्ति हूँ। जिसके बदौलत वनस्पति तंत्र साधना में शिद्धि प्राप्त किया है। जिसके दमपर मैने आयुर्वेदिक औषधियों का इनोवेशन किया है।

 

 

 

 

☆ प्रश्न 11. :- सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य सृजन के लिए आपको अधिक समय मिला। क्या इस दौरान आपकी लेखन शैली में कोई परिवर्तन आया?

 

★ ओझा जी : सेवानिवृत्त के बाद मेरा सृजनात्मक आधार का विस्तार हुआ। विशेष रूप से मुझे प्रकृति से जुड़ने का भरपूर अवसर मिला। जैसा कि हमसब जानते हैं कि प्रकृति और मानव में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। पर इनमें समन्वय स्थापित करने में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है ।

अतः मेरा ऐसा मानना है कि :

*प्रकृति और मानव को जोड़ने में साहित्य एक पूल का कार्य करता है ।*

 

 

 

 

☆ प्रश्न 12. :- वाराणसी और मुंबई—दोनों शहरों की सांस्कृतिक विविधता ने आपके साहित्य को किस तरह प्रभावित किया?

 

★ ओझा जी : सच में,काशी-बनारस एक : आध्यात्मिक व साहित्यिक क्षेत्र में रहते,

        मस्त~मलंग हर जीव ।

        भक्तिरस में डूब~उतरते , बम्म भोले ,

        कंकड़-कंकड़ में शिव ।।

        काशी से मुम्बा देवि अरू शिद्धी 

        विणायक आकर भी ।

        सब कुछ वैसा ही , पाया हमने ,

        गंगातीरे ~ सागर भी ।।

 

 

 

 

☆ प्रश्न 13. :- आपकी दृष्टि में, साहित्यकार का समाज में क्या दायित्व होना चाहिए?

 

★ ओझा जी : अपनी लेखनी से समाज में एक समरसता बनाना, आने वाली पीढी को मानव, साहित्य और प्रकृति में समन्वय स्थापित कराने के दायित्व का सच्चा बोध कराने का दायित्व। अतः मेरा यह मानना है कि : “मानव को प्रकृति से जोड़ने में साहित्य एक “पुल” का काम करता है “।

 

 

 

 

☆ प्रश्न 14. :- आपके साहित्यिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?

 

★ ओझा जी : जीवन में आये उतार-चढ़ाव।  

 

 

 

☆ प्रश्न 15. :- क्या आपके लेखन में आपके पारिवारिक जीवन की छाप दिखाई देती है?

 

★ ओझा जी : हाँ जी! वायु सेना ज्वाईन करने के पहले हमारा परिवार संयुक्त एवं आध्यात्मिक रूप से सज्ज होते हुए प्रकृति से जुडकर सुख शांति और समृद्धवान जमींदार घराने के रूप में विख्यात था। अतः मेरी रचना सृजन में पारिवारीक छाप स्पष्ट नजर आती है। परंतु जब मैं घर से बाहर गया, तो मेरे सृजन में बदलाव आना शुरू हुआ। अब समरसता में सृजन ढ़ूढ़ने का अवसर मिलना भी प्रारम्भ हुआ। इसमें मुझे व्यक्तिगत रूप से गरीब-अमीर, उँच-नीच, समर्थ और असमर्थ पर रचनात्मक सृजन करने का सिलसिला शुरू हुआ। 

 

 

 

 

☆ प्रश्न 16. :- क्या आपकी कोई ऐसी अप्रकाशित रचना है, जिसे आप जल्द ही पाठकों तक पहुँचाना चाहेंगे?

 

★ ओझा जी : ” पुष्करांजली ” काव्य संग्रह ~ भाग~२।

 

 

 

☆ प्रश्न 17. :- साहित्य के क्षेत्र में आपके आगे की योजनाएँ क्या हैं?

 

★ ओझा जी : योजना तो आप जैसे बड़े-बड़े विद्वत्तजन बनाएं। मैं तो एक अदना सा रचनाकार हूँ जीवन पर्यन्त पढ़ता रहूँ, लिखता रहूँ और सीखता रहूँ ।

    

    

 

☆ प्रश्न 18. :- आधुनिक हिंदी साहित्य में आप किन रचनाकारों को सर्वाधिक प्रभावशाली मानते हैं?

 

★ ओझा जी : जो रचना, सरलता, सहजता और समरसता सेभरपूर हो। 

 

 

 

☆ प्रश्न 19. :- क्या आपको लगता है कि आज हिंदी साहित्य में मौलिकता की कमी हो रही है?

 

★ ओझा जी : सही कहा आपने! आज हिन्दी साहित्य में मौलिकता कम और आधुनिकता का बोलबाला,कुछ ज्यादा हो रहा है।

 

 

 

☆ प्रश्न 20 :- भोजपुरी साहित्य की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर आपके क्या विचार हैं?  

 

★ ओझा जी : भोजपुरी भाषा और भोजपुरी बोली , मिठास के साथ-साथ एक आदर-सत्कार वाली साहित्यिक भाषा है । लगभग साठ-सत्तर के दशक में, फिल्म जगत में इसपर काफी कार्य हुए। इसका वर्तमान और भविष्य भी सुरक्षित है। आज के आधुनिक युग में इसपर काफी शोधकार्य हुए हैं। मॉरिशस में भी इसपर बहुत ज्यादा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत में भी भोजपुरी साहित्य एवं भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का कार्य चल रहा है। अतः इसका भविष्य सुरक्षित है।

 

 

 

☆ प्रश्न 21. :- डिजिटल युग में हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की क्या भूमिका हो सकती है?  

 

★ ओझा जी : आज के परिवेश में सोशल मीडिया की भूमिका सराहनीय है।

 

 

 

☆ प्रश्न 22. :- क्या आप मानते हैं कि हिंदी साहित्य को वैश्विक स्तर पर और अधिक पहचान मिलनी चाहिए? यदि हाँ, तो इसके लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

 

★ ओझा जी : इसके लिए हम सब के बीच एकमत होकर, सभी पटल व मंच को साथ लेकर, एक साहित्यिक संघ का निर्माण कर, एक-एक जगह आउटलेट बनाकर वैश्विक पकड़ बनाना चाहिए। यह मेरा मत है।

 

 

 

☆ प्रश्न 23. :- हिंदी साहित्य में महिला लेखिकाओं के योगदान को आप किस रूप में देखते हैं?

 

★ ओझा जी : इस क्षेत्र में,तब से लेकर अबतक, मात्रिशक्ति का प्रबल दावेदारी मुखरित होता रहा है। 

        

 

 

 

☆ प्रश्न 24. :- कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?

 

★ ओझा जी : अवश्य ,साहित्य के अनवरत विकास में लेखक-लेखिकाओं तथा कवि/कवयित्रियों के अथक प्रयास से हमारे व अन्यान्य साहित्यिक मंचश्री के साहित्यिक जागरूकता में अहम योगदान है।

 

 

 

☆ प्रश्न 25. :- आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?

 

★ ओझा जी : संयम, अनुशाशन, श्रम और धैर्य से अपने-आप को सज्ज करें। सब्रका फल मीठा होता है।

 

✍🏻 वार्ता : श्री राम स्नेही ओझा 

 

 

 

 

कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज वरिष्ठ साहित्यकार एवं कल्पकथा परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्री राम स्नेही ओझा जी से परिचय हुआ। ये वाराणसी (उप्र) से हैं और मुंबई (महाराष्ट्र) में निवास करते हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर है। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇

 

https://www.youtube.com/live/VX6QX7ySKEA?si=4R_zxj8teqyuAdhQ

 

 

इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं। 

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये। 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

 

 

✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟 

 

 

 

✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा प्रबंधन

 

कल्प भेंटवार्ता

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