गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः
- G Binani
- 05/09/2025
- लेख
- विशिष्ठ आमंत्रण क्रमांक :– !! "कल्प/सितंबर/२०२५/अ" !!
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जैसा सभी पाठकगण जानते हैं माता-पिता के बाद शिक्षक का स्थान माना गया है। माता बालक की प्रथम शिक्षिका होती है लेकिन जिस समाज में हम विचरण करते हैं उसके योग्य तो हमें शिक्षक ही तैयार करते हैं और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे ज्ञान, कौशल के स्तर, विश्वास आदि को बढ़ाते है ।
प्राचीन काल से ही भारत की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण व पवित्र रिश्ता गुरु-शिष्य का है, जो आज भी कायम है और आने वाले समय में भी यथावत चालू रहेगा। इसी गौरवशाली परम्परा को निभाते हुए वर्ष 1962 में भारत रत्न से सम्मानित, प्रख्यात दार्शनिक व शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब भारत गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति बने तब उनके प्रशंसकों व शिष्यों ने उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा, तब उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए इससे बड़े सम्मान की बात और कुछ हो ही नहीं सकती कि मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाये’ और तभी से पाँच सितम्बर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा हाँलाकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को 1994 को घोषित हो रखा है। इसी सन्दर्भ में यह भी जान लें कि शिक्षक दिवस की परिकल्पना 1931 में नेशनल सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी,चीन से शुरू हुई थी ।
याद रखें हमारी सफलता के पीछे हमारे शिक्षक का हाथ होता है। हमारे माता-पिता की तरह ही हमारे शिक्षक के पास भी ढ़ेर सारी व्यक्तिगत समस्याएँ होती हैं लेकिन फिर भी वह इन सब को दरकिनार कर रोज स्कूल और कॉलेज आते हैं तथा अपनी जिम्मेदारी का अच्छे से निर्वाह करते हैं।इसका ज्वलंत उदाहरण यही है कि बीते सालों में वैश्विक महामारी कोरोना काल में भी सभी शिक्षक अपने-अपने निजी आवास से ही आज की उन्नत प्रोद्दोगिकी के सहारे अपने शिष्यों का मार्गदर्शन कर रहे थे।
इसलिये ही हम सभी शिष्यों के लिये अपने अपने गुरु को धन्यवाद देने, उनके प्रति सम्मान ज्ञापन करने का और अपना एक दिन उनके साथ बिताने के लिये ये एक महान अवसर होता है। इसलिये स्कूलों / कालेजों में होने वाले कार्यक्रमों में हमें अपनी सक्रिय भूमिका को निभाने में चूकना नहीं चाहिये।
अन्त में यह बताना चाहूँगा कि आजकल शिक्षक लोग पैसे को ज्यादा महत्व देने लगे हैं यानि अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं जिसके चलते गुरु-शिष्य की परम्परा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है।और विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाने का समाचार भी मिलता रहता है। ठीक इसी प्रकार आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के साथ भी दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं।
मेरा निवेदन विद्यार्थियों से यही रहेगा कि आप अपना दायित्व व इस महान गौरवशाली परम्परा को बेहतर ढंग से समझें और अपना सक्रिय सकारात्मक सहयोग एक अच्छे समाज के निर्माण में प्रदान करें क्योंकि गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है। सन्त कबीर कहते हैं:-
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
इसी प्रकार मेरा निवेदन शिक्षकों से भी यही रहेगा कि आप भी “गुरु गीता” में बताये गये “रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:। गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।” श्लोक को ध्यान में रख अच्छे समाज के निर्माण में अपना उचित मार्गदर्शन अपने विद्यार्थियों को प्रदान करने में किसी प्रकार की कमी न छोडें क्योंकि “गुरु गीता” में ही शिक्षकों की ब्याख्या करते हुये बताया गया है –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थात गुरु ही साक्षात परम ब्रह्म हैं, और ऐसे गुरु को नमन किया जाता है। यह श्लोक गुरु की सर्वोच्च महिमा को व्यक्त करता है, जहाँ गुरु को सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना जाता है।
गोवर्द्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
जय नारायण व्यास काॅलोनी, बीकानेर
वार्तालाप – 7976870397
वाट्स ऐप नम्बर – 9829129011
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