
प्रकाशनार्थ : अमृत तुल्य आयुर्वेदिक औषधी सितोपलादि चूर्ण
चरक संहिता में उल्लेखित सितोपलादि चूर्ण पर विस्तार से विवरण देने के पहले महर्षि चरक, जो “चरक संहिता” के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक थे,के बारे में संक्षिप्त जानकारी यहाँ साँझा करना उचित रहेगा। वैसे तो महर्षि चरक द्वारा अनेक औषधियों को प्रतिपादित किया गया है और सभी की सभी काफी गुणकारी हैं लेकिन सितोपलादि चूर्ण एक ऐसी औषधि है जिसे अमृत तुल्य माना गया है।
अब सबसे पहले महर्षि चरक की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है-
पुनर्वसु आत्रेय के शिष्य महर्षि अग्निवेश जो आगे चलकर चरक ऋषि के नाम से प्रसिद्धि पायी, अति बुद्धिमान एवं आयुर्वेद के क्षेत्र के सुविख्यात चिकित्सक रहे हैं। इन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे “चरक संहिता” के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक थे।
महर्षि चरक संहिता निर्माण के साथ-साथ लोगों से वार्ता करने हेतु अनेक जगहों पर भ्रमण करते थे। दूसरे शब्दों में कहिये तो वे वन-वन, स्थान-स्थान घूम-घूमकर रोगी व्यक्ति की, चिकित्सा सेवा किया करते थे तथा इसी कल्याणकारी कार्य तथा विचरण क्रिया के कारण उनका नाम ‘चरक’ पड़ गया।
महर्षि चरक ने अणु और परमाणु की खोज की थी। इन्होंने त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) की अवधारणा को विकसित किया, जो शरीर में तीन मूल दोष हैं और उनके बीच सन्तुलन बनाये रखने के महत्व पर जोर दिया।
अब प्रस्तुत कर रहा हूँ सितोपलादि चूर्ण के बारे में –
इस चूर्ण को हम स्वयं अपने घर पर भी बना सकते हैं। जिसके लिये निम्न सामग्री चाहिये –
१) मिश्री – जो शरीर में वात को कम करती है।
२) वंशलोचन – बाॅंस की गाॅंठो में पाया जाने वाला पदार्थ है।इसकी तासीर ठण्डी होती है।यह एंटी बैक्टीरियल होता है।यह पौष्टिक पदार्थ है।
३) पिप्पली – उत्तेजत गुण के कारण वात हरता है।
४) छोटीइलायची – त्रिदोषशामक गुण लिये यह कफ को ढ़ीला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही मूत्रवर्द्धक है।
५) दालचीनी – वात व कफ कम करने में सहायक है।दमा बीमारी में काफी प्रभावी है।
इतना सब समझा देने के बाद,अब घर पर बनाने की निम्न विधि बढ़िया ढंग से विस्तार में सांझा कर देना उचित रहेगा –
यदि आप पाॅंच ग्राम दालचीनी लेते हैं तो फिर आपको छोटीइलायची के दाने १० ग्राम, पीपल (पिप्पली) २० ग्राम, वंशलोचन असली ४० ग्राम और मिश्री ८० ग्राम लेना पड़ेगा। इसके बाद इस सितोपलादि चूर्ण को बनाने की विधि समझायी जो इस प्रकार है –
- -सबसे पहले मिश्री को अच्छी तरह से कुचल कर अर्थात कूट कर या पीस कर बुकनी जैसे बना लें ।
- -फिर उसी तरह वंश लोचन और पिप्पली को भी कूट कर या पीस कर बुकनी जैसे बना लें ।
- -इसके बाद छोटी इलायची को छिल कर इलायची के दानों को अलग कर लें।
- -अब दालचीनी और इलायची दोनों को मिला कर वापस कूट कर या पीस कर बुकनी जैसे बना लें ।
- -अब सभी पीसी हुई चीजों को एक साफ सूती कपड़े से छान मिश्रित कर लें । फिर उस मिश्रण को एक हवाबन्द डिब्बे या काॅंंच की शीशी में भर कर रखें ताकि बाहर की नमी से बचा रहे।
इतना सब जान लेने के बाद एक बार फिर मैं इस आयुर्वेदिक औषधि के फायदे सरल भाषा में समझा देता हूॅं ताकि किसी के मन में किसी भी प्रकार की शंका न रहे –
१ ] बरसात के दिन हो या जब भी हल्की सर्दी पड़ती है तब हल्का बुखार, नाक बन्द, सिर में दर्द वगैरह में इस चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है ।
२ ] गीली खाॅंसी या बलगम वाली खाॅंसी में फेफड़ों में जमा बलगम को पिघला देता है और इसे बाहर निकालने में मदद करता है।
३ ] सूखी खाॅंसी होने पर सितोपलादि इसे शान्त करने में मदद करता है। लगातार कुछ दिनों तक इस्तेमाल करें तो, ये सूखी खाॅंसी को जड़ से खत्म कर देगा।
४] गले की खराश दूर करता है – रात में इसे शहद मिला कर चाट लें और आप देखेंगे कि सुबह गले की खराश कम हो जाएगी। इसके उपयोग से दमा के लक्षण को नियंत्रित कर सकते हैं।
५ ] इस चूर्ण के सेवन करने से पाचन तन्त्र सही रहता है जिसके फलस्वरूप कब्ज, अम्लता जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है अर्थात इसका सेवन पेट के लिए काफी लाभप्रद माना जाता है।
६ ] रक्त की कमी होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने में भी यह चूर्ण का सेवन लाभप्रद रहता है ।
७] हाथ व पैरों के तलवे में जलन में भी यह कारगर है। इस समस्या के लिये इसको प्रातः लेना है।
८) सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस चूर्ण के सेवन करते रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती मिलती है।
इसके बाद इसे कैसे लेना चाहिये वह विधि भी जान लें – इस चूर्ण को लेने के बाद जहाँ तक सम्भव हो तीन से चार घण्टे तक पानी का सेवन न करें साथ ही कुछ खाने के बाद ही लें क्योंकि खाली पेट लेने से गैस की तकलीफ हो सकती है । इसलिये ही रात को सोने से पहले लेने का कहा जाता है । रात को सोने से पहले लेने से नींद भी ठीक आयेगी और पानी भी दो / चार घण्टे के बाद ही पीने की आवश्यकता पड़ेगी।
फिर यह भी जान लें कि कितना लेना चाहिये अर्थात कितनी मात्रा में लेना चाहिये। इस सम्बन्ध में यही बताना है कि पाँच ग्राम सितोपलादि चूर्ण को शहद के साथ एक चाॅंदी की कटोरी में बढ़िया से मिश्रित कर चाट लें। यहाँ ध्यान देने वाली बात यही है कि शहद इस मात्रा में लें ताकि मिश्रण गले से आसानी से उतर जाय और चाॅंदी वाली कटोरी को भी जीभ से इस तरह चाट लें जिससे लगे कि कटोरी को बिल्कुल सफा कर दिया है अर्थात उसमें एक कण भी दीखे नहीं।
यदि इस चूर्ण को सबेरे लेते हैं तो गौ घृत अर्थात देसी घी में मिला कर भी ले सकते हैं। लेकिन हर हालत में मात्रा बढ़ायें नहीं क्योंकि मधुमेह की बीमारी में कुछ नुकसान हो सकता है । इसलिये साधारण अवस्था में तो ठीक है अन्यथा आयुर्वेदाचार्य से सलाहनुसार ही लें।
तत्पश्चात यह भी सलाह है कि यदि हम इसे सामूहिक सहभागिता निभाते हुये ज्यादा मात्रा में बनाते हैं तो लागत कम आयेगी और मेहनत भी सभी में बॅंट जायेगी । बनने के बाद या तो बराबर मात्रा में बांट लेंगे अन्यथा कम ज्यादा मात्रा में भी आदान -प्रदान कर सकते हैं।
अन्त में कुछ निम्न महत्वपूर्ण सुझाव को भी ध्यान में अवश्य रख लें –
१) सितोपलादि चूर्ण को ठण्डी और सूखी जगह पर रखें जिससे धूप उस पर नहीं पड़े ।
२) इस चूर्ण के डब्बे को बच्चों की पहुँच से दूर रखें ताकि इसके स्वाद के चलते वे अपने आप न ले पायें ।
३) जब भी आप बाहर से आते हैं अर्थात यदि आप पसीने में हैं और पानी की प्यास है तो एक हाथ से दोनों नाक बन्द कर पानी पी लें जिससे जुकाम नहीं होगा।
अब आशा करता हूँ कि प्रबुद्ध पाठक इतने विस्तार से बताये उपरोक्त सितोपलादि चूर्ण के बारे में जानने के बाद संक्षेप में इतना तो अवश्य ही समझ गये होंगे कि यह चूर्ण बढ़े हुए पित्त को शान्त करते हुये कफ को छाँटता है अर्थात गलाने में सहायक होता है ।अन्न पर रुचि उत्पन्न करता है और जठराग्नि को तेज भी करता है। साथ ही पाचक रस को उत्तेजित कर भोजन पचाने में कारगर भूमिका निभाता है।
आखिर में मैं पाठकों से यह निवेदन करता हूँ कि सितोपलादि चूर्ण को उपरोक्त विधि से स्वयं तैयार कर पूरा पूरा लाभ उठायें और इस चूर्ण के बारे में अपने सभी सम्पर्क वालों के साथ साॅंझा भी करें ।
गोवर्द्धन दास बिन्नानी ‘राजा बाबू ‘
जय नारायण व्यास काॅलोनी,
बीकानेर
7976870397 / 9829129011 [W ]
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