प्रकाशनार्थ : नारी समानता दर्जा की अधिकारी
- G Binani
- 19/09/2025
- लेख
- प्रतियोगिता - कल्प/अगस्त/2025/स
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इसमें शक की गुन्जाईश ही नहीं है कि भारतीय समाज आज भी पुरुष प्रधान समाज है। यह सही है कि आजकल बच्चियों को पढ़ाया जा रहा है अर्थात शिक्षा से वंचित रखने वाली सोच एक तरह से समाप्तप्राय हो गयी है। लेकिन पढ़ाई के चलते जो छूट बच्चियों को दी जा रही है उसके कुछ दुष्परिणाम भी अनुभव हो रहे हैं। अतः आवश्यकता है नारी स्वयं को भी पहचानें और बदले हुये परिवेश में अपना दायित्व को भी पहचानें। चूंकि आज के बदले हुये माहौल में नारियां किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से कम नहीं हैं इसलिये नारियों को अपने कर्तव्यों से मुख नहीं मोड़ना चाहिये क्योंकि अब नारियों की भूमिका और विस्तृत हो गयी है। अतः यह महिलाओं का ही दायित्व है कि अपने-अपने स्थल अर्थात घर हो या विद्यार्जन स्थल अथवा कार्य स्थल इन बच्चियों को जागरूक करें। उन्हें अपनी सुरक्षा के गुर सिखायें। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में एक सक्रिय भूमिका निभायें।
यही सही है कि आजकल हम सभी क्षेत्र में नारियों की भूमिका देख रहे हैं। और ये सब जगह अच्छी व्यवस्थापक भी साबित हो रही हैं अर्थात अपने दायित्व को हर क्षेत्र में कुशलतापूर्वक निभा रही हैं। लेकिन इतने बड़े देश में नारियों व पुरुषों के अनुपात में असमानता स्पष्ट दिख रही है।अतः नारियों को अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिये अपने अन्याय के खिलाफ संगठित हो कर खड़ा होना होगा। जबतक नारियां स्वयं अपने अन्याय के खिलाफ खड़ी नहीं होंगी व्यवस्था इसी तरह चालू रहेगी।
यह सर्वविदित है कि आजकल महिलायें राजनीति में भी रुचि रखती हैं। इसलिये अनेक महिलायें किसी न किसी रूप में राजनीतिक दलों में अपनी भूमिका निभा रही हैं। यहां तक कि ये संसद , विधानसभा में बड़े ही मुखरता से अपने राजनैतिक दल का बचाव करती नजर आती हैं। लेकिन ऐसा देखा गया है कि एकाध मामले के अलावा नारी अस्तित्व के प्रश्न पर ये संगठित नहीं दिखतीं अर्थात ये अपने राजनैतिक दल की विचारधारा अनुरूप ही व्यवहार करती नजर आती हैं।
ध्यान रखें नारी की अस्मिता इतनी सस्ती भी नहीं होनी चाहिए कि कोई भी उसकी कीमत लगा ले। इसके अलावा नारी को यह समझना चाहिये कि आज के इक्कीसवीं सदी में वे अबला नहीं हैं इसलिये उन्हें आगे बढ़ने के लिए संक्षिप्त रास्ता (शार्टकट) तलाशने से हर हालत में बचना ही उत्तम रहेगा। उन्हें हमेशा यह याद रखना है कि हमारे संविधान ने महिला और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं। अतः महिला एवं पुरुषों का समान अधिकार और समान सम्मान होना चाहिए।
यह सही है कि व्यवस्था में परिवर्तन के लिये नारियों को स्वावलंबी बनाना हम सभी का दायित्व है।एक आदर्श समाज का निर्माण हेतु उनके मन से भय, तनाव, असुरक्षा का भाव समाप्त कर स्वतंत्र रूप से बढ़ने देने में सहायक होना होगा। ध्यान रखें जबतक नारी स्वावलंबी बनकर आगे नहीं बढ़ेगी तब तक एक आदर्श समाज का निर्माण कोरी कल्पना ही रहेगी।
उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुवे आज इस बदले हुए माहौल में पुरुष को नारी का अस्तित्व स्वीकारना होगा अर्थात दोहरे मापदण्डों से हटकर समानता और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना होगा ताकि यह स्थापित हो सके कि कोई किसी का गुलाम नहीं। जब पुरुष नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, तभी नारी को समाज में सही अर्थों में समानता का दर्जा प्राप्त होगा।
गोवर्द्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
जय नारायण व्यास कॉलोनी,बीकानेर
वार्तालाप – 7976870397
वाट्स ऐप – 9829129011
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