लोक आस्था का महापर्व – छठ पूजा
- G Binani
- 25/10/2025
- लेख
- साप्ताहिक कल्प संवादकुंज - "छठ पूजा विशेष"
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सबसे पहले आप सभी प्रबुद्ध पाठकों को बता दूँ कि इस लोकपर्व छठ पूजा में भगवान सूर्य नारायण और उनकी बहन षष्ठी को ‘छठी मैया’ के रूप में पूरी श्रद्धा व भावना रख पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में कर्ण सूर्य भगवान की कृपा से महान योद्धा बना था क्योंकि वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था और उसने ही इस पर्व की शुरुआत की थी, इसी कारण से वही पद्धति इस पर्व में तभी से अपनायी जा रही है।
हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में मनाये जाने वाले सारे पर्व-त्योहार सम्पूर्ण रूप से न केवल तार्किक हैं बल्कि विज्ञान सम्मत भी। इस तरह के सभी पर्व-त्योहार न केवल हमें हमारी संस्कृति को संरक्षित रख पाने में योगदान देने के लिये प्रोत्साहित करते हैं बल्कि प्रकृति को भी हम कैसे संरक्षित रख सकते हैं, की अनूठी शिक्षा देते हैं। इस लोक पर्व की यह खासियत है कि इस पर्व को मनाने के लिये मंदिरों या देव मूर्तियों की आवश्यकता नहीं है इसलिये न तो किसी पंडित-पुरोहित की जरूरत होती है और न ही किसी भी प्रकार के कर्मकांडों व शास्त्रीय विधि-विधानों की। हालाँकि जैसे सभी पर्व त्योहारों में रोगमुक्ति, संतान प्राप्ति और सुख सौभाग्य की कामना की जाती है उसी तर्ज पर यह पर्व भी पूर्ण श्रद्धा व भावना से व्रत उपवास करते हुये भगवान सूर्य नारायण व षष्ठी मैया से की जाती है ।
इस पर्व के प्रति इतनी श्रद्धा, पूज्यभाव व आस्था है कि बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र के निवासी जहाँ जहाँ भी रहने लग गये हों, वे इस पर्व को मनाने के लिये अपने घर, भले ही चार-पाँच दिन के लिये ही सही पूरे परिवार के साथ पहुँचने की पूरी-पूरी चेष्टा करते हैं। हालाँकि अब यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाने लगा है इसलिये ही कल ही मोदीजी ने कहा कि यह पर्व अब राष्ट्रीय पर्व बन चुका है ।
उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रख हम यह कह सकते हैं कि यह पर्व एक तरह से अपने गांव वाले घर आने का एक बहाना बन जाता है।और इसके चलते मायें अपने सन्तान के साथ कुछ समय बिता पाती हैं अन्यथा नौकरी या व्यवसाय के चलते गांव आना हो नहीं पाता है। और यह क्रम छोटे बालक-बालिकाओं में अपने गांव के ग्रामीण जीवन के माहौल को समझने के साथ-साथ रूचि जागृत करने में सहायक हो पाती है। इसके साथ वे सभी इससे यह भी जान पाते हैं कि बिना पण्डितों व पुरोहितों के भी पूजा-अराधना सम्भव है। इसके अलावा यह पर्व बालक-बालिकाओं को अपने लोकगीतों को सुनने व समझने का अवसर भी प्रदान करता है।
अन्त में हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह लोकपर्व छठ पूजा मूलतः प्रकृति की पूजा ही है जो हम सभी को पर्यावरण बचाने और उसका सम्मान करने की प्रेरणा देता है।साथ ही साथ पूरे वर्ष में एक बार इस पर्व के बहाने ही सही अपने घर हो आने के लिये प्रेरित भी करता है और उस परम्परा को जिन्दा रखने के लिए भी जो समानता की वकालत करता है।
गोवर्द्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
जय नारायण व्यास काॅलोनी,बीकानेर