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!! “व्यक्तिगत परिचय : विद्यावाचस्पति श्रीमंत उदय राज मिश्रा” !! 

!! “व्यक्तिगत परिचय : विद्यावाचस्पति श्रीमंत उदय राज मिश्रा” !! 

 

 

 

!! “मेरा परिचय” !!

 

 

नाम:- डॉ. उदयराज मिश्र

 

माता/पिता का नाम:-

         श्रीमती द्रोपदी मिश्रा

        स्व.आचार्य हरिहरनाथ मिश्र

 

जन्मस्थान एवं जन्मतिथि:-

       ग्राम-कल्यानपुर(अयोध्या)

        ०७-०६-१९७१

 

पत्नी का नाम:-श्रीमती विजयलक्ष्मी मिश्रा

 

बच्चों के नाम:-

 १-सुकन्या मिश्रा,शिक्षक

 २-डॉ. शिवांगी मिश्रा

 ३-इंजीनियर अभिनंदन मिश्र

 ४-हर्ष मिश्र,फार्मासिस्ट

 

शिक्षा:-

M.Sc(रसायन विज्ञान),M.Ed(इविवि),M.Phil,M.A.(अंग्रेजी/संस्कृत-लब्ध स्वर्ण पदक),विद्यावाचस्पति(पीएचडी)

 

व्यवसाय:-

माध्यमिक शिक्षा विभाग,उत्तर प्रदेश के अधीन एक राजकीय इंटर कॉलेज में प्रवक्ता(अंग्रेजी)

 

वर्तमान निवास:-

 

अम्बेडकर नगर(अयोध्यामण्डल)

 

ईमेल आईडी-

 

udayr2768@gmail.com

 

आपकी कृतियां:-अबतक 25 साझा काव्यसंग्रह व 3500 से अधिक निबंधों/स्तम्भों का देश-विदेश की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन।

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ:-

 

सहित्य संगम,संगम,मातृभाषा,सागर संगम,बारिश की बूंदें,प्रेम की बात आदि पुस्तकें।जिनका ISBN प्रकाशन हुआ है।

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ:-

  25 साझा काव्यसंग्रह

 

पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान-

 

१-पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय शंकर दयाल शर्मा जी द्वारा प्रशस्ति पत्र।

२-राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान।

३-माध्यमिक शिक्षा विभाग,उत्तर प्रदेश व उत्तर प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020,2021,2022 व 2023 में प्रशस्तिपत्र।

४-मातृभाषा सम्मान।

५-साहित्यसेवी सम्मान।

६-युवा एवं प्रादेशिक खेल विभाग,उत्तर प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान।

७-ग्राम्य विकास विभाग,उत्तर प्रदेश द्वारा ग्रामर्षि शिखर सम्मान

  इसके अतिरिक्त दर्जनों राष्ट्रीय व प्रान्त स्तरीय सम्मान अबतक मिल चुके हैं।

 

 

 

 

!!मेरी पसंद!!

 

 

उत्सव:-भारतीय सांस्कृतिक व सामाजिक उत्सव।

 

भोजन-विशुद्ध शाकाहारी।

 

रंग-नारंगी

 

परिधान:-धोती-कुर्ता

 

स्थान एवं तीर्थ:- अयोध्या,प्रयाग व काशी।

 

लेखक/लेखिका:-

 मुंशी प्रेमचंद,कवि कालिदास

 

कवि/कवियत्री:-

 महर्षि वाल्मीकि,तुलसीदास व महादेवी वर्मा

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक:-

 काव्यप्रकाश

 

कविता/गीत/काव्यखण्ड:-

 रश्मिरथी/जय सुभाष

 

खेल:-

  कबड्डी

 

फिल्में/धारावाहिक:-

  चाणक्य,रामायण,महाभारत

 

आपकी लिखी हुई प्रिय कृति-

अबला

 

 

 

 

 

!!कल्पकथा के प्रश्न!!

 

*प्रश्न 1. उदय जी, सबसे पहले हम आपके पारिवारिक और साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं।*

 

उदय जी :- आदरणीय बन्धु/भगिनी!

          मेरा जन्म वत्सगोत्रीय मिश्र ब्राह्मण परिवार में हुआ है।मेरे वंश में अनेक सिद्ध ऋषि व संत तथा उद्भट विद्वान हुए हैं औरकि इस समय भी पांडित्य के क्षेत्र में मेरे परिवार का विशिष्ट स्थान है।

  मेरे पूज्य पिताश्री स्व.आचार्य पण्डित हरिहर नाथ मिश्र संस्कृत वांग्मय के प्रतिष्ठित विद्वान थे।वर्ष १९५६ में उन्होंने काशी में विश्व संस्कृत सम्मेलन में दुनियाभर के विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।जिसके कारण भारत जे राष्ट्रपति द्वारा उनका अभिनंदन किया गया था।उन्होंने मॉरीशस,नेपाल व श्रीलंका में विभिन्न अवसरों पर अपने व्याख्यान दिए थे।उन्होंने कानपुर स्थित DAV डिग्री कॉलेज में भी संस्कृत का अध्यापन किया तथा कालांतर में एक इंटर कॉलेज की स्थापना की,जो बाद में शासकीय सहायताप्राप्त कॉलेज हुआ।मेरे पिता जी यहीं से अवकाशप्राप्त थे।

 मेरे परिवार का वातावरण सदैव से साहित्यिक रहा।जिसके कारण मुझे भी साहित्यजगत में कुछ नवीन करने की प्रेरणा मिली।

 

 

 

 

प्रश्न 2. साहित्य जगत से आपका परिचय कब और कैसे हुआ?

 

उदय जी :- साहित्यजगत से मेरा वास्तविक परिचय वर्ष १९८४ में हुआ।जब मेरे गुरुश्रेष्ठ यदुवँशलाल श्रीवास्तव जी ने मेरे भाषण को सुनकर गद्य व पद्य लेखन हेतु प्रेरित किया।जिसके फलस्वरूप मेरी रचित प्रथम कविता”अबला” वर्ष १९८६ में तत्कालीन फैज़ाबाद से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र”पँचमित्र” में प्रकाशित हुई।यहीं से मेरी साहित्य साधना आगे बढ़ी।

 

 

 

 

प्रश्न 3. उदय जी, आप कल्पकथा के साथ इस भेंटवार्ता को कैसे देखते हैं? क्या आप उत्साहित हैं? 

 

उदय जी :- कल्पकथा से भेंटवार्ता मेरे लिए एक टर्निंग पॉइंट जैसी है।जिसके द्वारा मुझे न केवल विद्वतश्रेष्ठ स्वजनों का सानिध्य मिलेगा अपितु सीखने का अवसर भी प्राप्त होगा।मैं इस वार्ता को लेकर अत्यंत उत्साहित हूँ।

 

 

 

 

प्रश्न 4. उदय जी, आप मूल रूप से अयोध्या की हैं, जिसका डंका न केवल विश्व अपितु सारे ब्रह्मांड में बजता है। आप हमें उस पावन नगरी अयोध्या धाम के बारे में अपने शब्दों में बताइये।

 

उदय जी :- प्रभु श्रीराम जी ने स्वयम कहा है कि-

अवधपुरी मम पूरी सुहावनि।

उत्तर दिशि बह सरजू पावन।।

  सनातन धर्म मे वर्णित सप्तपुरियों में प्रथम अयोध्या पूरी परमब्रह्म के सातवें अवतार व भगवान महावीर स्वामी के अंशावतार की साक्षी तथा कलिकलुष विध्वंसिनी है।यहाँ के महाराज दशरथ देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद किये थे।अतएव अयोध्यापूरी न केवल मनुष्यों अपितु देवताओं तक कि सहायता करने वाली और सबको मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाली परम पुनीत नगरी है।

कहा जाता है-

गंगा बड़ी गोदावरी, तीरथराज प्रयाग।

सबसे बड़ी अयोध्या नगरी, जहाँ राम लिए अवतार।।

 

 

 

 

प्रश्न 5. उदय जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।

 

उदय जी :- मेरा बचपन अत्यंत कष्ट और गरीबी में बीता था।ऐसा इसलिये क्योंकि भारत विभाजन के समय मेरे दो चाचा पाकिस्तान की जेल में कैद हो गए थे और उनका कोई अतापता नहीं था।मेरे बाबा जी संत थे।अतः परिवार की जिम्मेदारी बचपन से ही मेरे पिता जी के ऊपर थी।जिसके कारण हम लोगों की बचपन की इच्छाएं कभी पूरी नहीं हुईं।

 बात १९८१ के दौर की है।जबकि गाँवों में दुकान आदि नहीं थीं।मिठाई केवल मेलों या किसी के विवाह आदि में ही मिलती थीं।एकबार मैं चुपके से अपने ही गाँव मे मिठाई खाने के लिए घराती की जगह बराती बनकर मिठाई लेने पहुँच गया किंतु पकड़ा गया।लेकिन जब लोगों ने पूँछा तो मैंने बताया कि मुझे मिठाई चाहिए तो लोगों ने दे दिया।यह घटना आजतक मुझे मेरी गरीबी की याद दिलाती है और मैं इसे कभी नहीं भूलता।

 

 

 

 

प्रश्न 6. आपकी साहित्यिक यात्रा कहाँ से शुरू हुई और इस यात्रा ने कैसी गति पकड़ी? यात्रा के दौरान लिखी गई कोई एक कविता हमें सुनाईये।

 

उदय जी :- मेरी साहित्यिक यात्रा वर्ष 1994 के आसपास गति पकड़ी जब मैं दैनिक जागरण समाचारपत्र का उपसंपादक बना और रविवासरीय पृष्ठ का प्रकाशन मेरी देखरेख में होने लगा।अतः मैं भी प्रकाशित होने के लिए अपनी कविताओं व लेखों को लिखने लगा।इसके पश्चात बहुत वर्षों तक प्रवक्ता के रूप में बतौर शिक्षक सेवा करने पर २०१७ में साहित्य सृजन का विचार बना और तबसे निरंतर चल रहा है।

 इस दौरान लिखी गयी मेरी एक कविता मुझे बहुत पसंद है-

“लिखने को लिख सकता हूँ,मैं कंगन चूड़ी चोली पर।

लिख सकता हूँ मादकता पर,और कलाई गोरी पर।।

लिख सकता हूँ अल्हड़ता पर,औ मदमस्त जवानी पर।

लिख सकता हूँ शीला मुन्नी,की बदनाम कहानी पर।।

लेकिन मैं भी डूब गया तो,तुमको कौन बताएगा।

भारत माँ के बहते घाव,तुमको कौन दिखायेगा।

इसीलिए तो अंगारों से,राख हटाया करता हूँ।

सो न जाओ मेरे लाडलों,तुम्हें जगाया करता हूँ।।

 

 

 

 

 

प्रश्न 7. आप के गृह नगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?

 

उदय जी :- मेरे गृहनगर में यद्यपि कई धार्मिक व पौराणिक स्थल हैं किंतु उनमें श्री श्री १००८ महर्षि श्री लल्लन जी ब्रह्मचारी महाराज का आश्रम सर्वाधिक रुचिकर लगता है,क्योंकि यहां परमशान्ति की अनुभूति होती है।

 

 

 

 

 

प्रश्न 8. उदय जी, आपकी लेखन की विभिन्न विधाओं में पारंगत हैं। फिर भी लेखन की किस विधा में लिखना आपको सहज लगता है और क्यों?

 

उदय जी :- दोहा,सोरठा, रोला, विधाता छंद,सवैया,चौपाई

 

 प्रायः मैं जब कुछ गुनगुनाता हूँ तो सहज ही दोहा बन जाता है।इसलिये दोहा तो बड़ी आसानी से लिखता हूँ।

 

 

 

 

 

प्रश्न 9. आप अपने व्यक्तिगत व्यवसाय और लेखन में कैसे सामंज्य बिठाते हैं?

 

उदय जी :- अपने पद और दायित्वों को निभाने के साथ ही साथ मुझे लगता है कि एक शिक्षक के रूप में समाज को सुसंस्कृत भी करना चाहिए।अतएव समय को व्यर्थ न गंवाकर सार्थक चिंतन व अध्ययन में व्यतीत करता हूँ।जिससे काव्य सृजन में सहजता होती है।

 

 

 

 

 

प्रश्न 10. आप की दृष्टि में साहित्य क्या है और ये किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?

 

उदय जी :- साहित्य देश,काल और परिस्थिति का दर्पण होता है।यह विचारक्रांति और सामाजिक परिवर्तनों के साथ साथ शाश्वत मूल्यों के संरक्षण,परिवर्धन का सशक्त माध्यम है।

 

 

 

 

प्रश्न 11. उदय जी, आज अधिकांश लेखक वर्ग अपनी उपलब्धियों पर प्रफुल्लित है। अपने अनुभव के आधार पर आप अपने लिए उन उपलब्धियों को किस दृष्टिकोण से देखते हैं?

 

उदय जी :- लेखक वर्ग द्वारा स्वयम की उपलब्धियों पर प्रफुल्लित होना मेरी दॄष्टि में बहुत स्वागतयोग्य नहीं है।यदि हमारी लेखनी से संस्कारों,मूल्यों,सामाजिक संचेतना और बंधुत्व की भावना में क्रमिक विकास होता है तो प्रफुल्लित होना चाहिए अन्यथा आत्मश्लाघा का मैं समर्थक नहीं हूँ।

 

 

 

 

 

प्रश्न 12. आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विष्लेषण के नाम पर तुलना किया जाना कुछ अधिक ही प्रचलित हो गया है, जिससे तुलना के स्थान पर छद्म आलोचना का माहौल बन जाता है। इस छद्म आलोचना का सामना कैसे किया जाना चाहिए?

 

उदय जी :- छद्म आलोचना कदाचित उन साहित्यकारों द्वारा की जाती है जिन्हें छन्दशास्त्र का अल्पज्ञान होता है याकि जो दल विशेष,जाति विशेष को इंगित करके अच्छे साहित्यकारों की द्वेषवश आलोचना करते रहते हैं।ऐसे छद्म आलोचकों से भयभीत हुए बिना यथार्थ का वर्णन करते रहना ही असली प्रत्युत्तर होगा।

 

 

 

 

 

प्रश्न 13. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करते हैं?

 

उदय जी :- लेखन अवश्यमेव राष्ट्रनिर्माण और चरित्रनिर्माण को समर्पित होना चाहिए।

 इस निमित्त हमें बुराइयों,अनीतियों आदि कुरीतियों के उन्मूलन हेतु सर्वदा प्रयत्नशील होना चाहिये।

 

 

 

 

 

प्रश्न 14. आप अपने समकालीन लेखकों एवं कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?

 

 उदय जी :- राष्ट्रकवि अभय सिंह निर्भीक

 

 

 

 

 

प्रश्न 15. उदय जी, आप इतने प्रसिद्ध लेखक हैं। अपनी इन उपलब्धियों को आप कैसे देखते हैं? 

 

उदय जी :- मैं अपनी उपलब्धियों को अपने माता-पिता,पूर्वजों,इष्टमित्रों व गुरुजनों के आशीर्वाद के रूप में देखता हूँ।

 

 

 

 

 

प्रश्न 16. उदय जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखते हैं? आज साहित्यसृजन व्याकरण विहीन होता जा रहा है,जो ठीक नहीं है।

  आज के लेखक व कवि केवल अर्थोपार्जन को वरीयता देते हैं,जोकि सर्वकालिक नहीं है।

 

 

 

 

 

प्रश्न 17. उदय जी, आप विभिन्न विद्याओं की विविध विधाओं के ज्ञाता हैं। ऐसे में आप का साहित्य की ओर झुकाव कैसे हुआ?

 

उदय जी :- मेरे परिवार का वातावरण ही साहित्यिक है।जिसके चलते मुझे साहित्यसृजन की प्रेरणा मिली।

 

 

 

 

प्रश्न 18. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है? 

 

उदय जी :- लेखन के अतिरिक्त मैं खेती का कार्य पूरी तन्मयता से करता हूँ।

 

 

 

 

 

प्रश्न 19. आप अंग्रेज़ी साहित्य के व्याख्याता हैं, किन्तु आपका लेखन विशुद्ध हिन्दी और संस्कृत में होता है। बहुभाषा का ये सामंजस्य कैसे हुआ?

 

उदय :- जी हाँ। मुझे हिंदी,संस्कृत,और अंग्रेज़ी का विशद व उर्दू,फ्रेंच तथा रशियन भाषा का भी अल्पज्ञान है।

 मैं संस्कृत व अंग्रेज़ी में भी साहित्यसृजन करता हूँ,किंतु प्रायः हिंदी भाषा में ही लिखता हूँ क्योंकि मातृभाषा दासता के विरुद्ध कारा की चाभी है।

 

 

 

 

 

प्रश्न 20. काव्य विधा का आठ रसों में सृजन होता है। आप काव्य के कौन से रस में लिखना अधिक पसंद करती हैं?

 

उदय जी :- मैं वीररस,शांत रस,करुण रस प्रधान रचनाएं ही लिखता हूँ।

 

 

 

 

 

प्रश्न 21. मिश्रा जी, आप रचनाएँ किसी माँग (विषय/परिस्थिति) पर सृजित करना पसंद करते हैं या फिर स्वत: स्फूर्त सृजन को प्राथमिकता देते हैं?

 

उदय जी :- मेरी रचनाएं परिस्थिति विशेष को देखकर जब हृदय में स्वत्: भाव उमड़ते हैं,तो लिखी जाती हैं।

 

 

 

 

 

प्रश्न 22. उदय जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

 

उदय जी :- रचनाओं में भावपक्ष व कलापक्ष का समन्वय अवश्य होना चाहिए।ऐसा होने पर रचनाएं सर्वकालिक होती हैं। 

 

 

 

 

प्रश्न 23. जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता भी आती रहती है। आप इन सफलताओं और असफलताओं को कैसे देखते हैं?

 

 उदय जी :- असफलताएं सदैव आत्म मंथन करते हुए सुधारों की प्रेरणा देती हैं,जो सफलताओं का आधार है।

 

 

 

 

 

 

प्रश्न 24. उदय जी, श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार से आप बहुत काल से जुडे हुए हैं एवं हमारे कल्प प्रमुख के कार्यों को भी देख ही रहे हैं। आप इन कार्यों को कैसे देखते हैं? कल्पकथा के साथ हम आपके अनुभव जानना चाहेंगे। 

 

उदय जी :- कल्पकथा परिवार साहित्य सृजन की दिशा में जो सेवा कर रहा है,वह अवर्णनीय है।नए कवियों को मंच प्रदान कर आप द्वारा उपकार ही किया जा रहा है।

 

 

 

 

प्रश्न 25. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

 

उदय जी :- विनम्रतापूर्वक मेरा यही अनुरोध है कि समृद्ध राष्ट्र निर्माण के लिए सकारात्मक चिंतन और प्रकृष्ट कोटि के बुद्धिमानों का होना आवश्यक है।अतएव संस्कार,सम्मान और चरित्रनिर्माण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।।

 

सादर

भवंनिष्ठ

डॉ. उदयराज मिश्र

 

ये भेंटवार्ता रही अवध पूरी उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ लेखक एवं विभिन्न भाषाओ का ज्ञान रखने वाले विद्या वाचस्पति श्रीमंत उदय राज मिश्रा जी के साथ। आपको इनके बारे जानकर कैसा लगा? हमें आप कमेन्ट बॉक्स में अवगत कराएं। 

 

हमारे यू ट्यूब चैनल पर आप इस भेंटवार्ता को देख सुन सकते हैं। कल्पकथा यू ट्यूब चैनल लिंक:

 

https://www.youtube.com/live/7sV1jP7bfIk?si=WbINI0PGEY0aEBNT

 

पहले से सूचना प्राप्त करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। मिलते हैं अगले सप्ताह भेंटवार्ता में एक और लेखक/लेखिका या कवि/कवयित्री के साथ। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।

राधे राधे 

 

✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा परिवार

 

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “!! “व्यक्तिगत परिचय : विद्यावाचस्पति श्रीमंत उदय राज मिश्रा” !! ”

  • पवनेश

    आदरणीय डॉक्टर उदय राज मिश्र जी की वार्ता पढ़ और देख कर आनंद आ गया। प्रसन्नता की बात है कि हमारी भारत भूमि पर ऐसे जमीन से जुड़े विद्वान समाज और संस्कृति का नेतृत्व कर रहे हैं। राधे राधे 🙏🌹🙏,

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