
!! “व्यक्तित्व परिचय : आचार्य श्री पूरण चन्द्र शर्मा” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 17/10/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री पूरन चन्द्र शर्मा जी के साथ 🌺
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- आचार्य श्री पूरन चन्द्र शर्मा जी, दतिया (मध्य प्रदेश )
माता/पिता का नाम :-स्मृति शेष श्रीमती प्रेम कुंवर, स्मृति शेष श्री बद्री प्रसाद जी शर्मा।
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- ग्राम सनोरा ,जिला दतिया ,मध्य प्रदेश। जन्मतिथि- 11 नवंबर 1953
पति/पत्नी का नाम :-श्रीमती कमला देवी शर्मा.
बच्चों के नाम :-श्री मदन मोहन शर्मा (शिक्षक),
श्री संजय कुमार शर्मा (निजी व्यवसाय),
श्री चंद्रकांत शर्मा (पंजाब नेशनल बैंक)
पुत्री- श्रीमती सुधा पाठक, श्रीमती हेमलता शर्मा
शिक्षा :-स्नातक ,बी एड ,आचार्य
व्यावसाय :- शासकीय माध्यमिक विद्यालय ,सेवानिवृत्त प्रधान अध्यापक
वर्तमान निवास :-सरस्वती शिशु मंदिर के पास, बुंदेला कॉलोनी, दतिया
आपकी मेल आई डी :- pcsharma*****@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- कनक मृग, आध्यात्मिक गीता, प्रज्ञा काव्य संग्रह ,महिमा खाटू श्याम की
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-आध्यात्मिक गीता, कनक मृग,महिमा खाटू श्याम की
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-कनक मृग ,आध्यात्मिक गीता ,प्रज्ञा काव्य संग्रह ,महिमा खाटू श्याम की।
प्रकाशनाधीन -भरत भारत ( महाकाव्य)
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-राष्ट्रपति द्वारा 2011 रजित पुरस्कार (जनगणना), दतिया राष्ट्र गौरव पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा ₹100000 राशि का पुरस्कार। जयशंकर प्रसाद पुरस्कार। विभिन्न मंचों पर 150 से अधिक पुरस्कार। कला मंदिर भोपाल द्वारा पुरस्कार। अनेक साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- सभी तीज- त्यौहार
भोजन :- शुद्ध शाकाहारी
रंग :- सभी रंग विशेष रूप से नीला
परिधान :- कुर्ता पजामा सूट कुर्ता- पजामा ,सूट, मौसम अनुसार।
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- द्वादश ज्योतिर्लिंग
लेखक/लेखिका :- कालिदास
कवि/कवयित्री :-महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- अभिज्ञानशाकुंतलम्
कविता/गीत/काव्य खंड :-अटल जी की कविता,रश्मिरथी कामायनी ।
खेल :-क्रिकेट
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- अवतार, नदिया के पार, रामायण सीरियल
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति : आध्यात्मिक गीता
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न १. आदरणीय, आपके साहित्यिक पथ की यात्रा कब और कैसे प्रारंभ हुई? वह प्रथम रचना कौन-सी थी, जिसने आपके भीतर के कवि को पहचान दी और समाज का ध्यान आपकी लेखनी की ओर आकर्षित किया?
आचार्य जी :- मेरी साहित्यिक यात्रा शासकीय सेवा से आने के बाद प्रारंभ हुई। हर व्यक्ति के अंदर कवि भाव होता है जो बीज अंकुरण की तरह उचित समय, परिस्थितियों में अंकुरित व जागृत हो जाता है। प्रथम कविता एक साधारण कविता थी।
प्रश्न २. आदरणीय, आप आदिशक्ति भगवती माँ पीतांबरा की पावन नगरी, लघु वृंदावन, महाभारत कालीन नगर दिलीप नगर “दतिया” से हैं। हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में जानना चाहते हैं।
आचार्य जी :- दतिया मां पीतांबरा की नगरी है, जिससे दतिया की प्रसिद्धि व पहचान हुई। दतिया किसने बसाई इसमें द्वैत मत हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार दंतवक्र के द्वारा एवं कुछ का मत है-दतिया दलपत राय की और नहीं है काहू की। यह कहावत प्रसिद्ध है।
प्रश्न ३. आदरणीय, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
आचार्य जी :- मुझ में बचपन से ही सकारात्मक सोचने की आदत रही है। मैं बचपन से ही प्रसन्न, हँसता- हँसाता रहा हूंँ।
प्रश्न ४. मान्यवर, आपके जीवन का आरंभ दतिया जनपद की पुण्यभूमि पर हुआ — वह भूमि जहाँ संस्कृति, भक्ति और वीरता के स्वर एकसाथ गूंजते हैं। कृपया बताइए, इस पावन भूमि और पारिवारिक संस्कारों ने आपके व्यक्तित्व एवं साहित्यिक चिंतन को किस प्रकार आकार दिया?
आचार्य जी :- मैं एक बहुत ही सकारात्मक सोच वाला जिज्ञासु प्रवृति का व्यक्ति हूँ। हर विषय का अध्ययन- अध्यापन मैंने किया विशेषकर विज्ञान ,इतिहास, भूगोल, हिंदी ,संस्कृत । शासकीय सेवा में मैंने लोगों को प्रशिक्षण दिया तथा पश्चात भी मैं हिंदी विषय का जिले का डी आर जी रहा हूँ।
प्रश्न ५. आदरणीय, आपकी प्रकाशित कृतियाँ — कनक-मृग, अध्यात्म गीता, प्रज्ञा ज्योति, तथा महिमा खाटू श्याम की — भक्ति, दर्शन और जीवन दर्शन के अद्भुत संगम हैं। कृपया बताइए, इन काव्यों की सर्जना के पीछे कौन-से भाव या प्रेरक तत्व सक्रिय रहे?
आचार्य जी :- यह जीवन ही संघर्ष है परन्तु अपने धैर्य व समझ से बाधाओं को अपने अंदर स्थान न देते हुये मन को अध्यात्म की ओर मोड़ दो।मन तुम्हारा राजा न होकर तुम मन के राजा बनो ।यह सब सत्संग एवं अध्यात्म ग्रंथों के पठन-पाठन से ही मुझे प्राप्त हुआ है।आसक्ति एवं स्वार्थ हर प्राणी के अंदर विद्यमान है,आवश्यकता स्व नियंत्रण की है।
प्रश्न ६. आपने अष्टावक्र गीता का पद्यानुवाद ‘अध्यात्म गीता’ के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अत्यंत गूढ़ दार्शनिक ग्रंथ है। इस अनुवाद-यात्रा में आपको कौन-सी आध्यात्मिक अनुभूतियाँ या अंतर्दृष्टियाँ प्राप्त हुईं?
आचार्य जी :- मुझे हिन्दी व संस्कृत भाषा में अधिक रूचि है।अधिकांश संस्कृत के ग्रंथों का मैं अध्ययन करता हूँ।आसक्ति मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है जो मनुष्य पर हावी हो जाती है।देह एक भौतिक तत्व है ,पर इसके अंदर जीव(आत्मा) विद्यमान है।विषयों( आसक्तियों) को विष की तरह त्याग दो। सरलता- सहजता ही मानव की शोभा है।
प्रश्न ७. आपकी आगामी रचना भरत-भारत (महाकाव्य) विशेष आकर्षण का विषय है। कृपया बताइए, इस महाकाव्य की रूपरेखा, संदेश और इसके माध्यम से आप पाठकों तक कौन-सी सांस्कृतिक ध्वनि पहुँचाना चाहते हैं?
आचार्य जी :- भरत भारत महाकाव्य के द्वारा हम अपने भारत वर्ष के गौरव का गुणगान करना चाहते हैं। हमारे आर्यावर्त की बहुत वैभवशाली परंपरा रही है और उसका अतीत भी बहुत स्वर्णिम रहा है। इस महाकाव्य की माध्यम से हम न केवल अपनी सांस्कृतिक पौराणिक विरासत से जनमानस को परिचित कराना चाहते हैं। साथ ही अपने नैतिक मूल्यों और धरोहर को सहेजना भी चाहते हैं। इस के साथ ही यह भी बताना चाहते हैं कि भारत वर्ष का नाम भारत कैसे पड़ा। इसके मूल में कौन सी कथा रही है।
प्रश्न ८. आप राष्ट्रपति सम्मान, ‘दतिया रत्न’, ‘राष्ट्रगौरव’, ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान’ जैसे अनेक अलंकरण आपके साहित्य की प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं। इन सम्मानों में से कोई एक ऐसा अवसर साझा करें, जिसने आपको भीतर तक भावविभोर कर दिया हो।
आचार्य जी :- सभी सम्मानों का अपना महत्व है, चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा।इस तरह मुझे 150 से ऊपर सम्मान प्राप्त हैं। मुझे मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग से साहित्य अकादमी द्वारा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार प्राप्त हुआ एवं प्रथम कृति भी साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित हुई, इससे आगे लिखने को प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न ९. आप शिक्षा जगत से भी जुड़े रहे हैं। क्या अध्यापन और साहित्य सृजन के बीच कोई सेतु है? किस प्रकार शिक्षक का अनुभव आपकी रचनाओं के दर्शन और भाषा पर प्रभाव डालता है?
आचार्य जी :- शिक्षा और साहित्य दोनों मनुष्य के चिन्तन का विस्तार करते हैं।दोनों ही मनुष्य के सर्वांगीण विकास का माध्यम हैं।एक कवि/ लेखक जब साहित्य सृजन करता है,तब वह देश ,समाज व परिवेश के परिप्रेक्ष्य में गहन चिंतन , मनन करता है।समाज को एक सार्थक दिशा देने का प्रयास करता है।शिक्षा देने के क्रम में वह न केवल अपने छात्रों में नैतिक मूल्यों,राष्ट्र प्रेम आदि उत्कृष्ट भावों का बीजारोपण व संचार करता है।इसके साथ ही शैक्षिक गतिविधियों के दौरान उसे जो भी अनुभव होते हैं ,उसकी रचनाधर्मिता पर अवश्य प्रभाव डालते हैं। विभिन्न कक्षाओं के छात्र विभिन्न पृष्ठभूमि व विभिन्न परिवेश से आते हैं।उनको समझाते- पढाते शिक्षक को गहन अनुभव होता है शैली में सहजता-सरलता आती हैं जनमानस की मानसिकता से परिचय होता है जो लेखनी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आकार लेता है।
प्रश्न १०. मान्यवर, बुन्देलखण्ड की बोली, लोकधुन और सांस्कृतिक चेतना आपकी लेखनी में झलकती है। क्या आपको लगता है कि क्षेत्रीय संस्कृति के यह स्वर आधुनिक साहित्य में पर्याप्त स्थान पा रहे हैं?
आचार्य जी :- हमें अपनी भाषा/ बोली पर गर्व करना चाहिए। हम बुन्देलखण्ड के निवासी हैं।हमारी जन्मस्थली है।निश्चित ही अपने परिवेश,वातावरण एवं घर- बाहर,पड़ोस का प्रभाव पड़ता है।परन्तु मेरे द्वारा लिखित ग्रंथ की भाषा शुद्ध खड़ी हिन्दी भाषा है,उसमें लोक भाषा के शब्द नही हैं जो आधुनिक साहित्य में पर्याप्त स्थान पा रहे हैं।मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मैं हिन्दी का डी आर जी रहा हूँ।
प्रश्न ११. आदरणीय, भक्तिकाल में जहां भक्ति और लोकधर्म का उद्गार हुआ, वहीं आधुनिक काल में यथार्थवाद और समाजचेतना का स्वर प्रमुख रहा। इन दोनों धाराओं के बीच संतुलन आप किस प्रकार देखते हैं?
आचार्य जी :- एक साहित्यकार एवं कवि होने के नाते हमें समाज के लिये एक ऐसा रास्ता दिखाना है जिसमें लोकहित, समाजहित और सनातन धर्म का उचित निर्वाह हो।समाज व देश उन्नति पर अग्रसर हों जिसमें समरसता का भाव झलकता हो।
प्रश्न १२. वर्तमान में डिजिटल युग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव से लेखन की विधा बदल रही है। क्या आपको लगता है कि इस परिवर्तन से साहित्य की आत्मीयता और भाव-गाम्भीर्य पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
आचार्य जी :- आज के परिवेश में यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है।इस डिजिटल युग में युवा एवं पाठक या विद्यार्थी मूल प्रकाशित पुस्तक को न पढ़ते हुये मोबाइल फोन में अधिक व्यस्त दिखाई देते हैं।इससे साहित्य की मौलिकता का ह्रास हो रहा है।अतुकांत लेखन व चुटकुले बाजी पर ध्यानाकर्षण है।
इस प्रकार साहित्य के साथ परिवेश ,परिधान पर निगेटिव प्रभाव पड़ रहा है।तथा अध्यात्म व सनातन संस्कार पर भी आघात है विशेष कर युवा दुष्प्रभावित हो रहे हैं।
प्रश्न १३. आपके विचार में हिन्दी कविता की भाषा कैसी होनी चाहिए — सहज, जनप्रिय और लोकसुलभ, या संस्कारित, गंभीर और दार्शनिक?
आचार्य जी :- मेरे विचार से कविता कैसी होनी चाहिए जो अपने देश- हित में हो एवं जो परिवार टूटते जा रहे हैं उसमें उनको जोड़ने का प्रयास, समाज समभाव की कविता हो।भाषा सरल होनी चाहिए।
प्रश्न १४. कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
आचार्य जी :- कल्पकथा साहित्य संस्था एक ऐसा मंच है जो लुप्त होते जा रहे जीवन मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु प्रयासरत है ।विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को सकारात्मक दिशा दे रहा है, सांस्कृतिक चेतना का केंद्रस्थल बनता जा रहा है।कल्पकथा मंच के संस्थापक आदरणीय श्री पवनेश जी व आदरणीया राधा दीदी नि: संदेह इसके लिये बधाई के पात्र हैं।
प्रश्न १५. आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
आचार्य जी :- हमारा भारतवर्ष सभ्यता- संस्कृति की दृष्टि से अनुपम है। हमें न केवल इसकी अद्वितीयता को अक्षुण्ण बनाये रखना है,इसके साथ ही जीवन मूल्यों को बिखरने से रोकना है।यह हम सभी साहित्यकारों का दायित्व है कि अपनी लेखनी से समाज व देश को एक सकारात्मक दिशा दें।अपनी लेखनी से सार्थक लेखन करें और सभी परस्पर मिल कर स्वर्णिम भारत के स्वप्न को साकार करें।
✍🏻 वार्ता : आचार्य श्री पूरण चन्द्र शर्मा
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज देश के प्रसिद्ध एवं वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य श्री पूरण चन्द्र शर्मा जी से परिचय हुआ। ये दतिया (मप्र) से हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर व आध्यात्मिक है। साथ ही ये इतिहास के जानकार भी हैं। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/y5FzlpStfOI?si=DNMlZfjJqTu8cDYO
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता ; कल्पकथा प्रबंधन
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