!! “व्यक्तित्व परिचय : आदरणीय प्रदीप सहाय बेदार” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 2024-07-25
- लेख
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!! “व्यक्तित्व परिचय” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- प्रदीप सहाय बेदार
माता/पिता का नाम :- श्रीमती सावित्री/ श्री राजेश्वर सहाय बेदार
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- 21 जून, 1961; शाहजहाँपुर (उ० प्र०)
बच्चों के नाम :-
इ० दीपेन सहाय बेदार, गुरुग्राम
इ० शिवम सहाय बेदार, बंगलौर
शिक्षा :-
बी एस सी ( गणित वर्ग )
एम ए ( अर्थशास्त्र)
व्यावसाय :-
अवकाश प्राप्त सहायक प्रबंधक, ओरिएंटल इंश्योरेंस।
वर्तमान निवास :-
शाहजहाँपुर
मेल आईडी :-
Psbedar@outlook.com
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-
गीत ग़ज़ल दोहे, हाइकु, सेदोका, कह-मुकरी, लघुकथा आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-
विभिन्न संस्थाओं एवं पटलों द्वारा समय समय पर सम्मानित।
!! “मेरी पसंद” !!
पर्यटन, फोटोग्राफी, उत्तम भोजन
भोजन:-
सभी प्रकार के पौष्टिक भोजन।
रंग :-
कोई विशेष रंग नहीं, हल्के रंग के परिधान
परिधान :-
साधारण, भारतीय परिवेश के अनुरूप
स्थान एवं तीर्थ स्थान :-
जम्मू, कुल्लू, मनाली, होशियारपुर, अमृतसर, देहरादून, नैनीताल, गुरुग्राम, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, जयपुर दार्जिलिंग, हैदराबाद, बंगलौर, उड़ुपी, पाण्डीचेरी, तिरुवनंतपुरम, कन्याकुमारी, मदुरै आदि, इन स्थानों के तीर्थ स्थल पर जाने का भी अवसर रहा।
लेखक/लेखिका :-
प्रेमचंद्र
कवि/कवयित्री :-
ग़ालिब
खेल :-
क्रिकेट, बैडमिंटन
मूवीज/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :–
यदाकदा अवसर मिलने पर – लापतागंज, साराभाई, वागले की दुनिया आदि
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-
इसका मूल्यांकन हमारी सामर्थ्य में नहीं है
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न1:- आदरणीय प्रदीप जी आप अपने व्यक्तिगत परिचय के साथ अपने साहित्य के प्रति लगाव और सृजन के विषय को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए?
प्रदीप सहाय बेदार – मेरा जन्म एक छोटे से शहर शाहजहाँपुर में एक अध्यापक के परिवार में हुआ, पाँच भाई- बहनों में सबसे बड़ा था, सो लाड़ – प्यार खूब मिला, मगर कड़े अनुशासन के बीच बचपन ने अपना आकर लेना शुरू किया। प्रारंभिक शिक्षा के बाद स्नातक तक विज्ञान और गणित करने के बाद अर्थशास्त्र में परास्नातक किया, इसी बीच चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने के उद्देश्य से इंटर वाणिज्यि से भी कर लिया। कायस्थ परिवार से हूँ सो घर मे क्षैक्षिक वातावरण होने के कारण अध्ययन में रुचि सदैव रही मगर एक साधारण अध्यापक के परिवार में दो ही निधियां होतीं हैं, प्रेरणा और संकल्प शक्ति, इसके अतिरिक्त लक्ष्य प्राप्ति का हर संसाधन दूर की कौड़ी होता है और हमें इसी बीच में से अपना रास्ता बनाना होता है। परास्नातक करने के तुरंत बाद ओरिएंटल इंश्योरेंस में विकास अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गया, और विभिन्न पदों पर सेवा देते हुए उप मण्डल प्रबंधक तक पदोन्नति हासिल की इस क्रम में व्यवसाय से संबंधित शिक्षा में भी संलग्न रहा और भारतीय बीमा संस्थान की प्रतिष्ठित फेलोशिप हासिल की, लगभग तीन वर्ष पूर्व सेवा से निवृत्त हो गया।
साहित्य के क्षेत्र में रुचि बचपन से ही रही विद्यालय में अनेक अवसरों पर गतिविधियों में भाग लेकर पुरूस्कृत हुआ, सेवाकाल में अधिक प्रयास नहीं कर सका, परन्तु एक इच्छा सदा रही कि अपने विचारों को कुछ शक्ल दे सकूँ, लगभग पंद्रह वर्ष पूर्व कुछ- कुछ लिखना शुरू किया परन्तु कुछ जमा नहीं, फिर पढ़ना शुरू किया गीत और खास तौर पर ग़ज़ल का शिल्प बहुत मनमोहक लगने लगा मगर ग़ज़ल में पाबंदियों बहुत होती हैं, यह एक ऐसी महबूबा है जो कई पहरों जैसे बहर, क़ाफ़िया, रदीफ़ वगैरह के परदों के पीछे बहुत ही खूबसूरत कक्ष में रहती है और हर कोई आसानी से इस तक नहीं पहुँच सकता।
हाँ, अगर उन कायदों को जीत सके तो ग़ज़ल हमारी होती है, या फिर यूँ कहिए कि ग़ज़ल किसी ख़्वाब की ताबीर है, जिसके पूरा होने के मुकाबले टूट जाने के अंदेशे हमेशा ज़्यादा होते हैं। ग़ज़ल गुलाब की पंखुड़ी पर शबनम की बूंद है जिसे हासिल करना आसान तो बिलकुल नहीं है।
ग़ज़ल को अरबी शब्द ग़ज़ाला (हिरण) से जोड़ें तो ग़ज़ल उसकी आँखें, उसकी खूबसूरती, उसकी चाल, उसकी चौकड़ी हो या घायल होने पर उसकी तड़प हो सब की नुमाइंदगी करती है। कुल मिलाकर मोहब्बत के हर गोशे की फिक्र का नाम ग़ज़ल है।
आज ग़ज़ल हमारी रोजमर्रा की जरुरियात और मामलात के विमर्श रोटी, मजदूर, नारी, बालश्रम वगैरह को भी अहमियत देती दिख रही है। अब ये समाज का आईना होती जा रही है। ये एक सकारात्मक बदलाव है।
अब मेरे तख़ल्लुस ‘बेदार’ के बारे बस इतना कहना चाहूँगा कि ये हमारे तख़ल्लुस के अलावा अब हमारा सरनेम भी है, हमारे बाबाजी स्वतंत्रता पूर्व एम० एल० सी और एक स्वतंत्रता सेनानी थे शायरी का भी शौक़ रखते थे, बेदार तख़ल्लुस उनका ही था, आजादी के आन्दोलन के दौरान उन्होंने हमारे परिवार का जातिसूचक सरनेम हटाकर पिताजी के नाम में बेदार जोड़ दिया और अब ये हमारे परिवार में हमारा और हमारी अगली पीढ़ी का भी सरनेम है। मैं अपने लेखन में इसी तख़ल्लुस को इस्तेमाल करता हूँ। इसके अलावा मैंने ‘सजग’ तख़ल्लुस का भी इस्तेमाल किया है।
प्रश्न2:- हिंदी साहित्य के प्रथम नाटककार भुवनेश्वर जी जिनकी पहचान लीक से हटकर कुछ कहने की रही है, उस परिवार के आप सदस्य हैं, आप उनके संदर्भ में कुछ बताइए?
प्रदीप सहाय बेदार : सही कहा, मेरा परम सौभाग्य कि मैं पारिवारिक रूप से हिन्दी के प्रथम एकांकी नाटककार और विश्व की सभी भाषाओं में असंगत नाटक के जनक कीर्तिशेष श्रद्धेय भुवनेश्वर जी से परिवार रुप से जुड़ा हूँ। भुवनेश्वर जी और उनका साहित्य उनके जीवन काल में साहित्यिक विमर्श के केन्द्र में नहीं रहा, उनके विषय में जानकारी का संग्रहण कई वर्षों की सतत प्रयासों से सम्भव हो सका। इस उद्देश्य के लिए इस नगर में उनकी स्मृति में भुवनेश्वर शोध संस्थान की स्थापना हुई, जिसमें तमाम साहित्य प्रेमी और प्रतिष्ठित जन के साथ संस्थापक अध्यक्ष हमारे पिता कीर्तिशेष राजेश्वर सहाय बेदार जी थे, संस्थान के तत्वावधान में हर वर्ष भुवनेश्वर समारोह का आयोजन किया गया जिसमें साहित्य चर्चा के अलावा भुवनेश्वर पुरुस्कार से देश के साहित्यकारों को अलंकृत किया जाता रहा है। भुवनेश्वर शोध संस्थान और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में दो पुस्तकों “भुवनेश्वर व्यक्तित्व और कृतित्व” तथा “भुवनेश्वर साहित्य” का प्रकाशन हो चुका है। संस्थान के प्रयासों से भुवनेश्वर जी आज चर्चा की मुख्य धारा में हैं।
प्रश्न:- 3 प्रदीप जी आप विज्ञान के छात्र रहे हैं, साथ ही साहित्य में भी आप सृजन कर रहे हैं, यह विज्ञान से साहित्य का सुंदर संयोग कैसे संभव हुआ?
प्रदीप सहाय बेदार : बचपन से परिवार में साहित्य और संस्कृति का माहौल मिला, हमारे पितामह श्री भगवती सहाय बेदार स्वयं एक शायर और स्वतंत्रता सेनानी थे, हालांकि उनका सृजन दुर्भाग्यवश अब हमारे पास सुरक्षित नहीं है। हमारे पुराने भवन में मौसम और दीमक की भेंट चढ़ गया। हमारे पिता ज़ी एफ़ कालेज, शाहजहाँपुर में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे, और अंग्रेज़ी के अलावा उनको उर्दू और फ़ारसी का भी अच्छा ज्ञान था। उनकी साहित्य में रुचि का प्रभाव हमारे ऊपर बचपन से पड़ा। हमारे यहाँ बाबा जी और पिता जी के पास साहित्यिक रुचि के मित्रों का खूब आना जाना रहता था। जिनमे प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार ह्दयेष जी, डा० मुद्गल जी, डा० आफताब अख़्तर और ख़ालिद अल्वी साहब प्रमुख हैं, इसके अलावा साहित्यिक संस्था अनामिका की गोष्ठियों भी होतीं रहीं थीं। दर्शक दीर्घा से इन सबको देखते हुए कुछ न कुछ सृजन की प्रेरणा प्राप्त हुई। जाने अनजाने मन के भावों को लिखना शुरू किया, फिर ग़ज़ल के मोह में फंस गया, इस विधा में सीखना जारी रखते हुए कुछ कहने का प्रयास करता रहता हूँ। लगभग 300 ग़ज़लें कह चुका हूँ। फेसबुक, पत्र- पत्रिकाओं और दूसरे पटलों के माध्यम से लोगों के बीच अपनी बात रखता रहता हूँ, उम्मीद है कि पुस्तक के रुप में हमारी ग़ज़लें जल्द ही आपके हाथों में होंगी।
प्रश्न4 :- प्रदीप जी आप अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति के लिए समसामयिक विषयों को, मन के भावों को, अथवा कल्पनिकता को, किसे प्राथमिकता देते हैं?
प्रदीप सहाय बेदार : मेरा सृजन अधिकतर हमारे इर्द – गिर्द के यथार्थ के धरातल पर ही है। वैसे सृजन में कुछ न कुछ कल्पना का अंश अवश्य ही होता है मगर प्रमुखतः ज़मीन यथार्थ की ही होती है।
प्रश्न5:- प्रदीप जी, आज सोशल मीडिया ने साहित्यकारों के लिए विविध मंच दिए हुए हैं आपकी दृष्टि में क्या इससे दबी – छुपी प्रतिभा उभरकर सामने आ रही हैं अथवा यह साहित्य में अनावश्यक हस्तक्षेप है?
प्रदीप सहाय बेदार : सोशल मीडिया के आगमन ने नवाँकुरों को सुनने और कहने के अवसर दिए, सृजन की किसी भी प्रक्रिया को मै हस्तक्षेप नहीं मानता, स्तर से नीचे का साहित्य हमेशा ही रहा है, वक़्त ने उसे खारिज भी कर दिया है। इस परिपेक्ष में सामाजिक चेतना का महत्व अधिक है, आखिर हम मानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण है, यदि अच्छे साहित्य की अभिलाषा है तो समाज में मूल्यों और नैतिकता पर विशेष ध्यान देना होगा।
प्रश्न 6:- प्रदीप जी, आपका हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू, भाषाओं पर समान अधिकार है, यहां प्रश्न यह है कि आपको किस भाषा में लिखना अधिक सहज लगता है?
प्रदीप सहाय बेदार : भाषा के तौर पर इनमें से किसी भी भाषा का अध्ययन करने का अवसर उतना ही मिला जितना एक विज्ञान के विद्यार्थी को मिलता है, परन्तु अपनी रुचि के चलते कुछ प्रयास होते रहे, धीरे – धीरे कथन और विचार के सामंजस्य से अपनी बात कहने की शुरुआत हो सकी, मैने कुछ कविताएँ अंग्रेजी में भी लिखने का प्रयास किया है। मेरा सृजन अधिकतर सामान्य बोलचाल की भाषा में ही रहा है। आजकल उर्दू भाषा को समझने का प्रयास कर रहा हूँ। यहाँ भी उर्दू लिपि की जानकारी का अभाव एक बड़ी बाधा जरूर है मगर रेख़्ता के सहयोग से ये कमी भी कुछ हद तक पूरी हो पायी रेख़्ता की डिक्शनरी ने शब्दों मानी और उसके इस्तेमाल के तरीके समझने में बहुत मदद की, इस तरह के प्लेटफार्म आज नए लिखने वालों को बहुत मदद करते हैं भाषा की बाधा को पार करने के लिए एक बेहतरीन पुल का काम करते हैं हमारी लिपि पर निर्भरता वो कम करते है और सीखने के लिए एक नया रास्ता भी दिखा देते हैं। सीखने के लिए आजकल गूगल पर तमाम वीडियो और ब्लाग मौजूद हैं जिनकी मदद से हम ग़ज़लगोई के फ़न को काफ़ी हद तक हासिल कर सकते हैं, फिर भी एक अच्छे उस्ताद की अहमियत को कम नहीं किया जा सकता, सीखने की प्रक्रिया में इसलाह की ज़रूरत हमेशा ही होती है, यह भी कुछ हद तक आनलाइन प्लेटफार्म की मदद से मुमकिन हो पा रहा है।
प्रश्न7:- आप विभिन्न मंचों पर अपनी कविताओं और गजलों के लिए पुरूस्कृत हो चुके हैं, आप अपनी इन सफलताओं का श्रेय किसको देना चाहेंगे?
प्रदीप सहाय बेदार :- आज के परिवेश और सोशल मीडिया के आगमन से अपनी बात लोगों तक पहुँचाना अपेक्षाकृत सुगम हुआ है, शुरुआत में कुछ प्रयास हुए, कुछ अनगढ़ सा लिखा, तमाम सुधी पाठकों की टिप्पणियों ने सचेत किया। गूगल की सहायता भी ली, बाद में रेख़्ता पटल पर ग़ज़लगोई की राह में उर्दू शब्दों और ग़ज़लों की देवनागरी में उपलब्धता ने राह को आसान किया। इसी दौरान भोपाल स्थित मिर्ज़ा ग़ालिब इंस्टीट्यूट फार ग़ज़ल लर्निंग, और फिर अल्फ़ाज़ से परवाज़ पटल, के सम्पर्क में आना हुआ, वहाँ पर ग़ज़ल के तमाम उस्तादों से सम्पर्क रहा है। इस तरह के पटलों पर ग़ज़ल के छात्र और विशेषज्ञ दोनों भूमिकाओं का निर्वहन करने का अवसर मिला।
वास्तव में साहित्य साधना की औपचारिक शिक्षा कभी नहीं मिली, जब जो जहाँ से मिलता गया लेकर बढ़ता गया।
आप सबके स्नेह का प्रतिफल आपके समक्ष है। पूरी विनम्रता के साथ सभी स्नेही जन का आभार व्यक्त करता हूँ।
प्रश्न8:- आपकी कविता पर क्या आपको कोई ऐसी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है जिसको याद कर आप हमेशा आनंदित महसूस करते हैं, यदि हां तो आपकी अनुमति से हम आपके उस अनुभव को सुनना चाहेंगे?
प्रदीप सहाय बेदार : हर प्रतिक्रिया उत्साहित और आनंदित करती ही है, अंततः यही तो उसका प्रसाद है, कभी – कभी मंच पर बडे क़लम कारों की मौजूदगी में मिलने वाली सराहना विशेष आनन्द देने वाली होती है।
प्रश्न9:- प्रदीप जी, शिक्षित परिवेश, व्यक्ति और समाज के साहित्यिक विकास में कितना सहायक होता है?
प्रदीप सहाय बेदार : निश्चित ही हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का विशेष महत्व है, शिक्षा हमारी समझने की क्षमता का विकास करने के साथ विषयवस्तु पर जानकारी और दृष्टिकोण भी प्रदान करती है। साथ ही भाषा और उसके संस्कारों की समझ भी देती है।
प्रश्न10:- प्रदीप जी आप प्राचीन साहित्य और आधुनिक साहित्य में से किसको पढने में प्राथमिकता देते हैं और क्यों?
प्रदीप सहाय बेदार :- दोनों का ही अपना स्थान है, साहित्य का छात्र नहीं रहा सो रुचि अनुसार ही पढ़ पाया, पुराना साहित्य कालजयी है मगर आधुनिक समय में भी बेहतरीन साहित्य सृजन हो रहा है।
प्रश्न 11:- प्रदीप जी आज आप साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं, ऐसे में आप अपने परिवेश और संस्कारों को इस साहित्यिक यात्रा में कितना श्रेय देना चाहेंगे?
प्रदीप सहाय बेदार :- हमारी पहचान का कोई महत्व नहीं, वास्तव में पाठक और श्रोताओं की वाह और शुभकामनाएं ही एक लेखक कवि या शायर की पूँजी होती है। जैसा कि मैं कह चुका हूँ कि मुझे बचपन में परिवार में साहित्य प्रेमियों का आशीर्वाद और सानिध्य प्राप्त हुआ, एक दर्शक के रूप में साहित्य का बीज मन के किसी कोने में पड़ गया। जो अवसर पाकर बड़ा हो रहा है। आप जैसे स्नेही स्वजन भी इस यात्रा में अपना योगदान दे रहे हैं। वास्तव में इन सबके योगदान के बिना कुछ भी सम्भव न होता।
प्रश्न 12:- प्रदीप जी आपको गद्य और पद्य इन दोनों में से किसमें सृजन करना सहज लगता है, और क्यों?
प्रदीप सहाय बेदार : दोनों ही विधाओं का अलग आकर्षण है, मैंने दोनों में लिखा भी है मगर मुझे पद्य में लिखकर ज्यादा संतोष मिलता है।
प्रश्न13:- प्रदीप जी समय परिवर्तनशील है। स्वाभाविक है कि साहित्य जगत में भी परिवर्तन होते रहते हैं। आप इन परिवर्तनों को किस रूप में देखते हैं?
प्रदीप सहाय बेदार : निश्चित ही समाज में परिवर्तन का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है, नई तकनीक और नए विचार साहित्य पर अपना प्रभाव डालते हैं। परिवर्तन का परिणाम हर बार सकारात्मक ही हो ये आवश्यक नहीं, परन्तु सप्रयास उसको सकारात्मकता की और ले जाना हर कलमकार का दायित्व है।
प्रश्न 14. आज चारों ओर सोशल मीडिया का दबदबा आप देखते होंगे? ये साहित्य जगत के लिए किस प्रकार सहायक सिद्ध हों सकता है?
प्रदीप सहाय बेदार :- सोशल मीडिया ने नवाँकुरों के लिए अनेकों आयाम उपलब्ध कराए हैं, इस कारण वे अपनी बात बड़े स्तर तक आसानी से पहुँचाने में समर्थ हुए हैं, साथ ही स्थापित साहित्यकारों को नई संभावनाओं का भी साक्षात्कार हुआ है। तमाम नवाँकुर शानदार सृजन कर रहे हैं।
प्रश्न 15. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे, आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करतें हैं?
प्रदीप सहाय बेदार :- मेरे विचार से प्रेम सद्भाव और सहकार की भावना से कहा हुआ हर कथन समाज को उचित दिशा प्रदान करता है। बेहतर समाज और मूल्यों का निर्माण निश्चित ही देशहित है।
प्रश्न 16. श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार के साहित्य सेवा के प्रयासों पर आपकी क्या राय है?
प्रदीप सहाय बेदार ; कल्पकथा परिवार के पटल से मेरा परिचय जया शर्मा जी के माध्यम से हुआ। पटल की गतिविधियाँ हर वर्ग की रुचि के अनुरूप हैं, कविता लेख संस्मरण, कहानी उपन्यास आदि के अलावा साप्ताहिक कल्प भी आकर्षण का केन्द्र है।
प्रश्न 17. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
प्रदीप सहाय बेदार : आज तकनीकी और सोशल मीडिया के दौर में सीखने की इच्छा हो तो हर विषय पर गूगल और यूट्यूब पर किसी भी विषय पर तमाम वीडियो और जानकारी उपलब्ध हैं, आज अधिकांश लोग इन माध्यमों की सहायता ले भी रहे हैं और सीखकर अपने विचारों को सब के समक्ष रख रहे हैं, मगर इन जानकारियों की पुष्टि की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में जानकर व्यक्ति का मार्गदर्शन आवश्यक है अन्यथा भटकने की संभावना बनी रहेगी। जानकारी जहाँ भी मिले प्राप्त करते चलें मगर जानकारी का स्रोत स्तरीय हो, साथ ही पुष्टि पर भी ध्यान देना होगा। आज के रचनाकार काफ़ी परिपक्व और प्रयोगधर्मी हैं, सभी को उन्नति की शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।
✍🏻 वार्ता : श्री प्रदीप सहाय बेदार
कल्प भेंटवार्ता में आप की भेंट हुई शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कवि श्री प्रदीप सहाय बेदार जी से। कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल पर आप कल्प भेंटवार्ता में इन्हें देख सुन सकते हैं। साथ ही जानिये जाने माने कवि श्री भुवनेश्वर जी के जीवन के कुछ अनछुए पल, प्रदीप जी के शब्दों में।
देखने के लिए लिंक को छुएं, साथ ही चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें : 👇
https://www.youtube.com/live/J91PB9UfA_A?si=yYZbhX59c1TJwYAt
अगले सप्ताह हम आपकी भेंट एक और विशिष्ट साहित्यकार से करायेंगे। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 प्रश्नकर्ता:- कल्पकथा परिवार
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पवनेश
आदरणीय प्रदीप सहाय बेदार जी के कृतित्व और व्यक्तित्व ने प्रेरक और सुलझे हुए विचारों से परिचित कराया है। सादर 🙏🌹🙏