
!! “व्यक्तित्व परिचय : डॉ पंकज कुमार बर्मन” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 07/03/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय : डॉ पंकज कुमार बर्मन” !!
!! “मेरा परिचय” !!
**नाम:** डॉ. पंकज कुमार बर्मन
**माता/पिता का नाम:**
– पिता: श्री भगवान दीन बर्मन
– माता: श्रीमती पुष्पलता बर्मन
**जन्म स्थान एवं जन्म तिथि:** कटनी, 21 मई 1978
**जीवनसाथी का नाम:** अभी तक अविवाहित
**बच्चों के नाम:** जब शादी ही नहीं हुई तो बच्चों का सवाल नहीं उठता
**शिक्षा:** PhD (विषय: शिक्षा, सामाजिक विज्ञान, या संबंधित क्षेत्र)
**व्यवसाय:** शिक्षक (19 वर्षों का अनुभव, शिक्षण और सामाजिक कार्य में विशेष रुचि)
**वर्तमान निवास:** गांधी गंज, कटनी
**मेल आईडी:** barmanpankaj8@gmail.com
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### **”आपकी कृतियाँ”**
(शिक्षा, समाज और राष्ट्रीयता से जुड़ी कई विषयों पर लेखन कार्य किया है)
**आपकी विशिष्ट कृतियाँ:**
– शिक्षकों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ने पर लेख
– समाज में शिक्षा के महत्व पर विभिन्न आलेख
– भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर शोध लेख
**आपकी प्रकाशित कृतियाँ:**
– “शिक्षा का समाज पर प्रभाव” (लेख संकलन)
– विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित
**पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान:**
– शिक्षण क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान
– समाज सेवा और शिक्षा जागरूकता अभियान में सक्रिय भागीदारी के लिए सराहना
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!! “मेरी पसंद” !!
**उत्सव:** संघ के 6 उत्सव (मकर संक्रांति, गुरु पूर्णिमा, रक्षाबंधन, विजयादशमी, जन्माष्टमी, हिंदू नववर्ष)
**भोजन:** दाल चावल (सरल और पौष्टिक आहार)
**रंग:** नीला (शांति, गहराई और स्थिरता का प्रतीक)
**परिधान:**
– पारंपरिक भारतीय परिधान (धोती-कुर्ता)
– सामान्यतः शालीन वस्त्र (शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मर्यादित पहनावा)
**स्थान एवं तीर्थ स्थान:**
– **अयोध्या:** भगवान श्रीराम की जन्मभूमि
– **काशी:** ज्ञान और अध्यात्म की नगरी
– **उज्जैन:** महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
– **हरिद्वार:** गंगा तट पर स्थित धार्मिक स्थल
– **प्रयागराज:** संगम तट और कुंभ मेले का केंद्र
**लेखक/लेखिका:**
– **वीर सावरकर:** भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और हिंदुत्व विचारधारा के प्रणेता
– **माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी):** राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक
– **डॉ. भीमराव अंबेडकर:** संविधान निर्माता और सामाजिक सुधारक
**कवि/कवयित्री:**
– **रामधारी सिंह दिनकर:** राष्ट्रवादी कवि, “रश्मिरथी” के रचनाकार
– **मैथिलीशरण गुप्त:** भारतेंदु युग के प्रमुख कवि, “साकेत” के रचनाकार
**उपन्यास/कहानी/पुस्तक:**
– “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएँ”
– “श्रीमद्भगवद्गीता” (धर्म, नीति और जीवन दर्शन की सर्वोत्तम पुस्तक)
– “हिंदू पदपादशाही” (वीर सावरकर द्वारा लिखित भारतीय इतिहास पर आधारित)
**कविता/गीत/काव्य खंड:**
– **”रश्मिरथी”** (रामधारी सिंह दिनकर द्वारा महाभारत के कर्ण पर आधारित महाकाव्य)
– **”साकेत”** (मैथिलीशरण गुप्त द्वारा श्रीराम के जीवन पर आधारित काव्य)
**खेल:**
– **कबड्डी:** भारतीय पारंपरिक खेल, जिसमें शारीरिक और मानसिक शक्ति दोनों की आवश्यकता होती है
– **खो-खो:** गति और रणनीति पर आधारित खेल
**मूवीज/धारावाहिक (यदि रुचि हैं तो):**
– **”स्वदेश”** (शिक्षा और सामाजिक बदलाव पर केंद्रित प्रेरणादायक फिल्म)
– **”द ताशकंद फाइल्स”** (राजनीतिक रहस्यों को उजागर करने वाली फिल्म)
– ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायक फिल्में पसंद करता हूँ
**आपकी लिखी हुई सबसे प्रिय कृति:**
– “शिक्षा का समाज पर प्रभाव” (शिक्षा के माध्यम से सामाजिक जागरूकता बढ़ाने पर लेख)
– “भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद” (संस्कृति और राष्ट्रवाद पर विस्तृत शोध लेख)
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. डॉ बर्मन जी, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये।
पंकज जी :- मेरा नाम **पंकज कुमार बर्मन** है। मैं एक शिक्षक, प्रशिक्षक
सामाजिक कार्यकर्ता हूँ। मुझे शिक्षा के क्षेत्र में 19 वर्षों का अनुभव है। मैंने अपने कार्यकाल में शिक्षकों को डिजिटल शिक्षा सिखाने, साक्षरता अभियान चलाने और समाज के वंचित वर्गों को शिक्षित करने का कार्य किया है।
साहित्य के प्रति मेरा झुकाव बचपन से ही था। पर यह रुचि दबी रही। हिंदी कविता, ग़ज़ल, और सामाजिक मुद्दों पर लेखन करना मेरी रुचि रही है। मैंने अपने लेखन में समाज की वास्तविकता, शिक्षा, राष्ट्रवाद, और प्रेरक विषयों को केंद्र में रखा है।
प्रश्न 2. डॉ पंकज जी, आप बुंदेलखंड, बघेलखंड, महाकौशल, की त्रिवेणी, एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण, नगर कटनी से हैं, आप हमें अपने शब्दों में कटनी नगर के बारे में बताइए?
पंकज जी :- कटनी नगर **बुंदेलखंड, बघेलखंड और महाकौशल** की त्रिवेणी है। यह ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
– यह **रेलवे जंक्शन** के रूप में पूरे देश से जुड़ा हुआ है और इसे “मिनी रेलवे हब” भी कहा जाता है।
– कटनी में **विजयराघवगढ़ किला, जैन तीर्थ स्थल, और कटनी नदी** प्रमुख आकर्षण हैं।
– यहाँ की **माटी वीरों की भूमि रही है**, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम में कई सेनानियों ने योगदान दिया।
– व्यापार और उद्योग की दृष्टि से भी यह नगर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ कई **सीमेंट फैक्ट्रियाँ और अन्य औद्योगिक इकाइयाँ** स्थापित हैं।
–
प्रश्न 3. पंकज जी, आपको लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली और आपने किन परिस्थितियों में लिखना आरम्भ किया?
पंकज जी :- मुझे लेखन की प्रेरणा सुश्री उर्मिला जी से मिली। इन्होने ने ही मुझे विभिन्न ऑनलाइन ऑफलाइन साहित्यक मंच से जोड़ा व मेरे अंदर दबी रुचि को बहार निकाला।
प्रश्न 4. डॉ बर्मन जी, यदि आपको कहा जाए कि भारत देश की स्वतंत्रता के पूर्व, स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती वर्ष, एवं स्वर्ण जयंती वर्ष के पश्चात, में हिन्दी साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन करें तो आप किस समय को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं?
पंकज जी :- स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता पश्चात हिंदी साहित्य**
हिंदी साहित्य को चार प्रमुख चरणों में देखा जा सकता है:
1. **स्वतंत्रता पूर्व (1857-1947):**
– इस दौर में **राष्ट्रीयता और सामाजिक चेतना** प्रधान थी।
– प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, और मैथिलीशरण गुप्त जैसे लेखकों ने समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया।
2. **स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (1947-1975):**
– विभाजन, गरीबी, और संघर्ष की कहानियाँ उभरीं।
– इस काल में यथार्थवादी और प्रयोगवादी साहित्य लिखा गया।
3. **स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती (1997 के बाद):**
– वैश्वीकरण और डिजिटल युग की प्रवृत्तियाँ दिखने लगीं।
– साहित्य में नारीवाद, दलित साहित्य, और समकालीन सामाजिक मुद्दों को स्थान मिला।
अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखें, तो **स्वतंत्रता संग्राम का साहित्य सबसे प्रेरणादायक और देशभक्ति से परिपूर्ण था**
प्रश्न 5. डॉ पंकज जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानते हैं?
पंकज जी :- साहित्यिक यात्रा का आरंभ किसी एक विशेष क्षण से नहीं होता, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया होती है, जो बचपन से ही हमारे भीतर पनपती रहती है। लेकिन यदि मैं अपनी साहित्यिक यात्रा की **प्रथम सीढ़ी** की बात करूँ, तो वह क्षण मेरे लिए **विद्यालय में हुई एक काव्य प्रतियोगिता** थी।
मैंने अपनी पहली कविता **”अंधेरे से उजाले की ओर”** लिखी थी, जिसमें शिक्षा और जागरूकता के महत्व को दर्शाया था। जब मैंने विद्यालय में इसे मंच से प्रस्तुत किया, तो मेरे शिक्षकों और सहपाठियों ने इसे खूब सराहा। पहली बार मुझे अनुभव हुआ कि मेरे शब्द लोगों के मन में भावनाएँ उत्पन्न कर सकते हैं, उनके विचारों को प्रभावित कर सकते हैं।
इसलिए, अगर किसी एक मंच की बात करूँ, तो मेरा **विद्यालय का वह छोटा सा मंच** ही वह **पहली सीढ़ी** थी, जिसने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और मेरी साहित्यिक यात्रा को दिशा दी ।
### **अंधेरे से उजाले की ओर** (स्वरचित)
अंधेरे से उजाले की ओर, बढ़ते कदम हमारे हों,
हर तमस मिटाकर जीवन में, दीप सदा जलते रहें।
निराशा की काली रातों में, आशा का सूरज उगे,
हर हृदय में नव चेतना का, इक प्रकाश जागे।
भ्रम के बादल छँट जाएँ, सत्य की किरणें चमकें,
हर मन में विश्वास जगे, कोई राहों में न भटके।
संघर्षों से न डरें कभी, हौसले बुलंद रहें,
हर मुश्किल से सीख मिले, हर कदम पे हम बढ़ें।
ज्ञान की जोत जलाएँ हम, दूर करें अज्ञानता,
हर मन में प्रेम बसे, मिटे सभी कटुता।
चलो अंधेरे से लड़ चलें, उम्मीद का दीप जलाएँ,
हर घर, हर गली, हर जीवन में, नया सवेरा लाएँ।
प्रश्न 6. डॉ पंकज बर्मन जी, आपके काव्य संग्रह “धडकनों की ख्वाहिश” के विषय में हम जानना चाहेंगे? साथ ही हम आपकी कोई एक कविता सुनना चाहेंगे।
पंकज जी :-
“दिल के हर एहसास को शब्दों में पिरो दिया,
जो अनकहा था, उसे हृदय से जोड़ दिया।
धड़कनों के सुर में, भावों को सजाया मैंने,
बिछड़े लम्हों की याद में, नया गीत गुनगुनाया मैंने।
छुपे दर्द की परतों में, उम्मीद का रंग भर दिया,
टूटे ख्वाबों के शोर में, फिर जीवन का आलम ढाल दिया।
सन्नाटों की विरह रागिनी को मीठे लफ्ज़ों में उकेर दिया,
जहां अंधेरे की परछाई थी, वहाँ उजाले का पथ दिखा दिया।
हर अश्रु को, हर मुस्कान को शब्दों में समेट लिया,
रिश्तों के बेनाम दर्दों को, प्यार की दास्तां बना लिया।
उम्मीदों के सफ़र में, हर मोड़ पर नया उजाला पाया,
खामोश ख्वाबों की गूँज में, हौसलों का दीप जलाया।
जीवन की इस राह में, कलम ने दिल का हाल सुनाया,
अनकहे जज़्बातों को, फिर शब्दों में रच-बसाया।
अब हर सांस में बसते हैं, ये गीत प्रेम के अफसाने,
जो अनकहा था कभी, आज दिल से जुड़े नए निशाने।
प्रश्न 7. बर्मन जी, कहते हैं बचपन सदैव मनोहारी होता है। हम जानना चाहेंगे आपके बचपन का बाल विनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी मुस्कुराने पर विवश कर देता है।
पंकज जी :- बचपन में एक बार मैंने स्कूल बंक किया और सोचा कि घर पर झूठ बोल दूँगा। लेकिन जिस समय मैंने झूठ कहा, उसी समय **स्कूल के प्रधानाचार्य हमारे घर आ गए**।
यह घटना आज भी याद कर हँसी आती है और इससे मैंने सीखा कि **सच्चाई कभी छिपती नहीं*
प्रश्न 8. पंकज जी, आज भागदौड के समय में लेखकीय यात्रा को कई बिंदुओं पर भागदौड वाला ही बना दिया गया है। साथ ही शीघ्र प्रसिद्धि के लालच देकर अच्छा खासा व्यवसाय चलाया जा रहा है। आप इससे कितना सहमत हैं?
पंकज जी :- आजकल साहित्य में व्यावसायिकता बढ़ गई है। सोशल मीडिया के कारण लोग **जल्दी प्रसिद्ध होने के लिए गुणवत्ता की जगह प्रचार पर ध्यान दे रहे हैं**।
सच्चे साहित्यकार को **प्रसिद्धि से अधिक अपनी रचना की गहराई पर ध्यान देना चाहिए**।
प्रश्न 9. डॉ पंकज जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखते हैं?
पंकज जी :- डिजिटल युग में **लेखन का दायरा बढ़ा है**, लेकिन चुनौती यह है कि **गुणवत्ता बनाए रखना आवश्यक है**।
– आजकल कई लेखक मात्र मनोरंजन के लिए लिख रहे हैं, जबकि **साहित्य का उद्देश्य समाज को दिशा देना होता है**
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प्रश्न 10. डॉ पंकज बर्मन जी, आप अपने समकालीन किस लेखक या कवि में अपनी छाप देखते हैं?
पंकज जी :- कई समकालीन लेखक मुझे प्रेरित करते हैं, लेकिन **मेरी विचारधारा भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के पक्ष में अधिक झुकी हुई है
कई समकालीन लेखक अपने नवीन विचारों और वैश्विक दृष्टिकोण से मुझे प्रेरित करते हैं, परंतु मेरा लेखन और विचारधारा भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रवाद पर अधिक केन्द्रित है। मेरे लिए भारतीय संस्कृति सिर्फ एक धरोहर नहीं, बल्कि नैतिकता, परंपरा, और देशभक्ति का प्रतीक है, जो हमें आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गर्व से भर् देती है।
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प्रश्न 11. डॉ बर्मन जी, कहते हैं कि जीवन सफलता और असफलता के चक्र का नाम है। आप जीवन में इन्हें कैसे देखते हैं?
पंकज जी :- सफलता और असफलता **दोनों ही अनुभव का हिस्सा हैं**। असफलता हमें सिखाती है कि हम कहाँ गलत थे, और सफलता हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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प्रश्न 12. डॉ पंकज जी, आप निस्संदेह एक विशिष्ट श्रेणी के साहित्यकार हैं। क्या आपको किसी और लेखक या कवि ने कभी प्रभावित किया है? कोई ऐसी विशिष्ट रचना जो आपने न लिखी हो, किंतु आपको बहुत प्रिय हो?
पंकज जी :- मुझे रामधारी सिंह दिनकर की “रश्मिरथी” बहुत प्रिय है, क्योंकि यह वीरता और संघर्ष का प्रतीक है।
“रश्मिरथी” से एक प्रसिद्ध अंश प्रस्तुत है:
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”
जिनके खड्ग की धार अजेय,
जिनके शौर्य का नाश नहीं,
वे आए थे, पर लौट गए,
थी प्रजा विकल, पर त्राण नहीं।
यह कविता महाभारत के महान योद्धा कर्ण के संघर्ष, वीरता और आत्मसम्मान को दर्शाती है। इसमें समाज की सच्चाई और संघर्ष का अद्भुत चित्रण किया गया है।
प्रश्न 13. डॉ पंकज बर्मन जी, यूँ तो अपनी लिखी सभी रचनायें विशेष प्रिय होती हैं। फिर भी हम आपकी स्वरचित एवं विशेष प्रिय एक कविता सुनना चाहेंगे।
पंकज जी :-
**”उम्मीद का दीप”**
जब हर ओर अंधेरा छा जाए,
तब उम्मीद का दीप जलाए।
संकट की घड़ियों में न घबराए,
हौसलों की लौ को और बढ़ाए।
राहें कठिन हों, चाहे तुफ़ान आए,
विश्वास की डोर थामे, आगे बढ़ जाए।
टूटते सपनों को फिर से सजाए,
मंजिल की ओर हर कदम बढ़ाए।
दुखों की रात भले ही लंबी हो,
सवेरा पास है, ये बात दोहराए।
अंधेरों से लड़कर, रोशनी को पाए,
खुद के भीतर का दीप जलाए।
इति श्री
प्रश्न 14. डॉ बर्मन जी, आपने अर्थशास्त्र, एवं कम्प्यूटर साइंस विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा अर्जित की है? आंग्ल भाषा में विद्या वाचस्पति की उपाधि प्राप्त हैं, यह तीनों ही क्षेत्र एक दूसरे से विपरीत ध्रुव है, आपने अध्ययन के दृष्टिकोण से इनको किस प्राथमिकता के आधार पर चयनित किया एवं कैसे इनमें सामंजस्य स्थापित किया?
पंकज जी :- मेरा झुकाव **तकनीक और साहित्य दोनों की ओर था**। अर्थशास्त्र से मैंने **समाज की आर्थिक दशा समझी**, कंप्यूटर साइंस से **आधुनिक तकनीक**, और अंग्रेज़ी से **वैश्विक साहित्य का ज्ञान** प्राप्त किया।
प्रश्न 15. पंकज जी, आपको गद्य और पद्य लेखन के लिए दोनों में से कौन सी विधा अधिक सहज लगती है और क्यों?
पंकज जी :- मुझे **पद्य लेखन (कविता, ग़ज़ल) अधिक सहज लगता है**, क्योंकि यह भावनाओं को संक्षेप में व्यक्त करने की कला है।
प्रश्न 16. डॉ बर्मन जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?
पंकज जी :- रचनाओं में भाव और कला का संतुलन आवश्यक है, क्योंकि इससे पाठक को गहराई, अर्थ और सौंदर्य का समन्वय मिलता है। केवल भाव या केवल कलात्मकता से लेखन अधूरा हो जाता है, और प्रवाह के साथ संतुलन खोने पर रचना का प्रभाव कम हो सकता है।
प्रश्न 17. बर्मन जी, कहते पुष्प प्राप्त करने के लिए कांटों से भी जूझना होता है, एक साहित्यकार के रूप पुष्प अर्थात सकारात्मक, सम्मानजनक, समीक्षा प्राप्त होती है साथ ही कांटे यानि आलोचना भी मिलती है, आपकी व्यक्तिगत रूप से इस संदर्भ में क्या राय हैं?
पंकज जी :- साहित्यकार के रूप में सकारात्मक समीक्षा और आलोचना, दोनों ही रचना यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। **समीक्षा** प्रोत्साहन देती है, जबकि **आलोचना** सुधार का अवसर। मैं आलोचना को सकारात्मक दृष्टिकोण से लेता हूँ, क्योंकि यह मुझे अपनी लेखनी में और निखार लाने में मदद करती है। साहित्यकार को चाहिए कि वह प्रशंसा में विनम्र रहे और आलोचना से सीखते हुए निरंतर आगे बढ़े।
प्रश्न 18. डॉ पंकज जी, हमारी टीम ने हमें बताया है कि आप साहित्य सृजन के साथ-साथ समाजसेवा में भी सक्रिय हैं, हम आपके जीवन के किसी ऐसे अनुभव के बारे में जानना चाहते हैं जिसमें आपका अनुभव आश्चर्यजनक हो?
पंकज जी :- एक बार, मैं एक दूरदराज के गाँव में गया, जहाँ के बच्चों ने सीमित संसाधनों के बावजूद शिक्षा के प्रति अपार उत्साह और जिज्ञासा दिखाई। उनके संघर्ष और लगन ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि कठिनाइयों के बावजूद, यदि मन में सीखने की चाह हो, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है। यह अनुभव न केवल मेरे समाजसेवा के प्रयासों को प्रेरित करता है, बल्कि साहित्य में भी प्रेरणा का स्रोत बना है।
प्रश्न 19. क्या आप किसी एक ऐसे एतिहासिक पात्र को अपने दृष्टिकोण से उकेरने का प्रयास करेंगे, जिसको आपके दृष्टिकोण से इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिला है अथवा एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है, यदि हां तो वह कौन हैं और आपको क्यों लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है?
पंकज जी :- मेरे दृष्टिकोण से **स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर** एक ऐसे ऐतिहासिक पात्र हैं, जिनके साथ इतिहास में न्याय नहीं हुआ। सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उन्हें वह सम्मान और स्थान नहीं मिला जिसके वे पात्र थे। उनकी क्रांतिकारी विचारधारा, हिन्दुत्व का दर्शन और कालापानी की कठोर सजा सहने के बावजूद उनका योगदान इतिहास में अक्सर अनदेखा किया गया। उनकी देशभक्ति, संघर्ष और बलिदान को सही प्रकार से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा ले सकें।
प्रश्न 20. बर्मन जी, कहा जाता है साहित्य और समाज के मध्य दर्पण और प्रतिबिंब का रिश्ता होता है, आपके दृष्टिकोण से यह कथन कितना सही है और क्यों?
पंकज जी :- साहित्य समाज का दर्पण है क्योंकि यह उसकी वास्तविकताओं, विचारधाराओं, संघर्षों और संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है। समाज में जो घटित होता है, साहित्य उसे शब्दों में ढालकर प्रस्तुत करता है, जिससे हमें अपनी संस्कृति, परंपराएँ और समस्याएँ समझने का अवसर मिलता है। साथ ही, साहित्य समाज को नई दिशा देने और जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 21. पंकज जी, हिन्दी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को जोड़कर जिस मिश्रित भाषा को दैनिक जीवन में उपयोग किया जा रहा है अब वही साहित्य में प्रतिध्वनित होता दिखाई दे रहा है, आपके दृष्टिकोण में यह प्रभाव कितना सकारात्मक है और क्यों?
पंकज जी :- हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो इसे अधिक समृद्ध और व्यापक बनाता है। यह प्रवृत्ति साहित्य को आधुनिक और प्रासंगिक बनाती है, जिससे नई पीढ़ी आसानी से जुड़ पाती है। हालांकि, मूल भाषा की शुद्धता बनाए रखना भी आवश्यक है ताकि हिन्दी की विशिष्टता और सांस्कृतिक पहचान बनी रहे। संतुलित प्रयोग ही इसे सकारात्मक दिशा में ले जा सकता है।
प्रश्न 22. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
पंकज जी :- मैं सभी पाठकों, दर्शकों, लेखकों और समाज से आग्रह करता हूँ कि वे साहित्य और ज्ञान को अपने जीवन में स्थान दें। साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक भी है। सत्य, नैतिकता और संस्कृति की रक्षा करें, सकारात्मक विचारों को फैलाएँ और अपने कर्मों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाएँ।
✍🏻 वार्ता : डॉ पंकज कुमार बर्मन
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज देश के प्रसिद्ध एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं कल्पकथा परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्री भास्कर सिंह माणिक जी से परिचय हुआ। ये कोंच, जालौन (उप्र) से हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर है। साथ ही ये इतिहास के जानकार भी हैं। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/AOPXucpLEz4?si=e_sUN0owyYaX-zMf
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा प्रबंधन
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