
!! “व्यक्तित्व परिचय शैलेष सिंह. ‘शैल'” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 18/05/2024
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय :- श्री शैलेष सिंह “शैल” ” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- शैलेश सिंह शैल
माता/पिता का नाम :- श्रीमती सुशीला देवी/ श्री लालजी सिंह
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- गोरखपुर 11 अप्रैल
पत्नी का नाम :- श्रीमती अनु सिंह
बच्चों के नाम :- अथर्वा उर्फ हनु
शिक्षा :- स्नातक, डिप्लोमा इन ऑप्टेमेट्री
व्यावसाय :- चिकित्सा एवं ऑप्टिकल
वर्तमान निवास :- गोरखपुर
आपकी कृतियाँ :- राधा का मोहन, हठी मुहब्बत, मैं तेरी संगिनी, कुंवारी माँ, सिंदूर , मेरे हिस्से की धूप ,दामिनी और भी के दर्जन कृतियां है।
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- राधा का मोहन, हठी मुहब्बत, दामिनी, वनवास, मेनका- a dream girl इत्यादि।
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- भावनाओं के परिंदे, पिटारा और अन्य साझा संकलन।
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- मैं पुरूस्कार पर यकीन नही रखता।
!! “मेरी पसंद” !!
भोजन :- भारतीय व्यंजन, दाल चावल ,रोटी सब्जी इत्यादि।
रंग :- गेरुआ
परिधान :- साधारण पैंट शर्ट,
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- इस पर क्या कहूँ, जहाँ मुझे जाने की लालसा है आजतक गया नहीं। हरिद्वार, वृंदावन। इसके अलावा तमाम राज्यों का भृमण कर चुका हूं।
लेखक/लेखिका :- पूर्व के प्रेमचंद, वेदप्रकाश शर्मा और आज जिस पटल पर लिखता हूँ वहां तो अनेकों है जिन्हें मैं पसन्द करता हूँ।
कवि/कवयित्री :- कुमार विश्वास साहब / पूजा सुगंध जी, व संध्या बक्शी जी।
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- गोदान, गबन, फेरीवाला, जीत आपकी।
कविता/गीत/काव्य खंड :- मेरी खुद की कविताओं के साथ अन्य और भी है।
खेल :- लूडो
मूवीज/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- बहुत सी फिल्में है अभी हाल में देखी थी द रेलवेमैन और पहले की तारे जमीन पर, तारक मेहता का उल्टा चश्मा
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- राधा का मोहन और कुबूल है।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. शैल जी, आप गोरखपुर से हैं, जो दुनियाँभर में गीताप्रेस के लिए प्रसिद्ध है। सबसे पहले आप हमें इसके बारे में बताइये।
शैलेष जी :- गीता प्रेस प्रेस न होकर एक ऐसा अनमोल ग्रन्थालय है जिसने दुनिया भर में पवित्र ग्रंथो का वितरण किया है। करीब सौ वर्ष से ज्यादा का समय हो गया गीता प्रेम को। बचपन से देखता आया उस मंदिर की हमारे वहां पूजा भी की जाती है। कल्याण पत्रिका सबसे ज्यादा छपता है और इससे बड़ा धार्मिक प्रेस दुनिया मे कही नहीं। एक समय ऐसा भी था जब गीता प्रेस बंद हो जाएगा ऐसी बाते सामने आई थी पर 2014 के बाद गीता प्रेस ने बड़ी रफ्तार पकड़ी और जन जन तक श्रीमद्भागवत और रामचरित मानस की प्रतियां पहुँचने लगी।
प्रश्न 2. आप आँखों के डॉ हैं। फिर साहित्य के क्षेत्र इतनी रुचि और ऐसी सुघडता आपको कब, कैसे और कहाँ से प्राप्त हुई?
शैलेष जी :- मैंने अपने जीवन में हर एक कार्य देर से आरम्भ किया। पर लेखन तो युवावस्था जैसे ही शुरू हुई तब से है। ये अलग बात है कि लगातार लिखना 2018 से आरंभ किया। मैं सच कहूं तो साहित्य में रुचि मुझे साहित्यिक किताबो से मिली। मैंने अपने युवावस्था को कहानियों के नाम कर दिया था।
प्रश्न 3. शैल जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का वो किस्सा, जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।
शैलेष जी :- है एक किस्सा जिसे मैंने पटल पर भी उतारा है। मैं मेरे एक ममेरे भाई के साथ नानी के घर पर था आम के बाग में घूमने गया था।हमें वहां एक घायल उल्लू मिला तो हम उसे घर ले आये और उसे ईंट से बनाये गए एक घरौंदे में रखा। उसके लिए खाना रखा, पानी रखा पर वो अगले दिन मर गया। हम दोनों ने छुपकर उसे एक नहर पर लकड़ियों के मदद से जलाया और घर आकर बच्चों में बिस्किट बांटी । ये सोचकर कि उसका अंतिम संस्कार होने के बाद भोज भी हो गया। उसे जब जब सोचता हूँ हंसी भी आती है और गहरी सोच में भी पड़ जाता हूँ।
प्रश्न 4. आधुनिक और प्राचीन काल के किन रचनाकारों की रचनाओं को आप अपनी रचनाओं के अधिक निकट पाते हैं?
शैलेष जी :- एकमात्र नाम अंकित होता है और वो है प्रेमचंद। उनकी लघुकथाओं की बहुत सी बूंदे मेरी लेखनी को प्रभावित की है। मैं स्वतंत्र रूप से सत्य और कल्पना लिखता हूँ। कही से कोई अलग सी प्रेरणा नही मिली।
प्रश्न 5. आप काव्य और गद्य, दोनों विधाओं में लिखते हैं। आपके लिए दोनों विधाओं में से किस विधा में लिखना अधिक सहज है?
शैलेष जी :- गद्य लिखना मुझे आसान लगता है। पर काव्य का कोई अंत नही। काव्य अनंत है, मैं बहुत साधारण कविता करता हूँ, सच कहूं तो मुझे छंद, सवैया, मात्रा, सोरठा इत्यादि का कोई ज्ञान नही। मैं भाव और भावनाओं को लिखता हूँ।
प्रश्न 6. आपकी एक सुप्रसिद्ध रचना है “हठी मोहब्बत”, जिसमें एक साधू और एक साध्वी की कहानी है। इस प्रकार का अनोखा विषय चुनने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली? इसे लिखने के पीछे आपका क्या उद्देश्य था?
शैलेष जी :- हठी मुहब्बत मेरी लंबी तपस्या का फल है। मैंने खुद की लिखी हुई दो छोटी छोटी लघुकथाओं को एक बड़ा सीरीज बना दिया और लिखता गया। इसे लिखते वक्त मैंने अपने दो मित्रों से सुझाव लिया था। एक दिलचस्प बात ये भी है कि इस कहानी के लिए मुझे शुरुआत में सैकड़ो गालियाँ मिली थी पर जब सबने अंत तक पढ़ा तो बहुत वाहवाही मिली। इस कहानी में कुछ सत्य घटना भी है।
प्रश्न 7. शैल जी, आपने कुछ कवि और कवित्रियों को साथ लेकर श्री राम कथा और श्री कृष्ण कथा लिखी है। ये एक लोक कल्याणकारी एवं अत्यंत हितकारी कार्यक्रम रहा आपका। इसके लिए आपने कैसे शुरुआत की? आप को क्यों लगा कि आपको ये इन कथाओं का प्रचार-प्रसार करना चाहिए?
शैलेष जी :- मैं आज भी भीड़ में चलना पसन्द नहीं करता हूँ। जब मैंने महाकाव्य समूह की स्थापना की थी तब भक्ति गीतों को भी लिखा जाता था। एक दिन मैंने सबको प्रभु श्रीराम बिषय दिया। उसके बाद हमने योजना बनाई कि क्यो ना सरल काव्य में श्रीराम कथा ही लिखी जाय। इसमें मैं एक मुखिया जरूर था पर मेहनत सबकी बराबर थी।
प्रश्न 8. आपकी रचना के नायक और खलनायक को यदि आपको उनके विपरीत स्वरुप में प्रदर्शित करना पड़े तो आप कैसे करेंगे?
शैलेष जी :- हा हा हा हा … बहुत आसान है। यदि आप कहो तो मैं अभी के अभी किसी भी नायक नायिका को खलनायक बनाकर दूसरा सीरीज लिख सकता हूँ। कहानियों का जोड़ तोड़ करना मेरे लिए आसान लगता है और वो बिल्कुल नया भी होगा।
प्रश्न 9. अगले पाँच सालों में साहित्यिक क्षेत्र में आप स्वयं को कहाँ देखते हैं?
शैलेष जी :- फिलहाल लेखनी की गाड़ी धीमी है। मुझे कोई जल्दीबाजी नही है । ईश्वर जब जो लिखवाना चाहेंगे मैं वही लिखूंगा। भविष्य का कुछ बता नही सकता । आजकल साहित्य की परिभाषा ही बदल गई है।
प्रश्न 10. लगातार होते परिवर्तनों के बीच में आप साहित्य को भविष्य में किस स्वरूप में उच्चतम स्तर पर देखते हैं?
शैलेष जी :- साहित्य आधुनिकता ने निगल लिया है। मशीनीकरण की वजह से और भागमभाग की दुनिया मे साहित्य पिछड़ता चला जा रहा है। मैं नमन करता हूँ उन लेखकों को जिन्होंने आज भी साहित्य को अपने शौक के तौर पर ही सही जिंदा तो रखा है।
प्रश्न 11. आप साहित्य को और भी अधिक समाज उपयोगी बनाने के लिए किन प्रयासों की अनुशंसा करते हैं?
शैलेष जी :- एक कुशल स्वस्थ समाज के निर्माण में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मैं देख रहा हूँ आधुनिक साहित्यकार अलग अलग विधाओं में अपनी लेखनी से लोगो तक पहुँच रहे है। शिक्षा विभाग को भी इसमें अधिकार रुचि लेनी चाहिए।
प्रश्न 12. आपकी दृष्टि में एक लेखक और एक पाठक के क्या गुण होने चाहिये?
शैलेष जी :- इसमें कोई एक उत्तर देकर समझा नही जा सकता। मैं थोड़ा विस्तार करता हुँ। लेखक का धर्म है उसका दायित्व है कि वो जो लिख रहा है वो कुछ ऐसा नही है जिससे कि पाठक अपने पथ से भटके, पाठक उस कहानी में इतना घुस जाय कि उसे वहां से मोती ही मिले, वो कुछ सीखे और बहकने की बजाय समझदार बने। पाठकों का अपना ही एक विचार होता है, जरूरी नही आप सभी को संतुष्ट कर पाओ।
प्रश्न 13. शैल जी, हमने देखा है आपकी रचनाओं में अधिकांशतः समसामयिकता दिखती है। आपकी कहानियों में जटिल और दर्दनाक विषयों पर हम ने न्यायोचित कलम चलती देखी। आप इन विषयों का चुनाव कैसे करते हैं?
शैलेष जी :- मैं जो भी कहानी लिखता हूँ उसे खुद महसूस करता हूँ। आप यदि अच्छा महसूस करेंगे तो अच्छा लिखेंगे। आप यदि किसी का दर्द महसूस करेंगे तो आप वही लिखोगे। वही यदि आपके मन मे बुरे विचार, अनैतिक विचार आएंगे तो आप वही लिखोगे। मैं बिषय नहीं चुनता। मैं कहानी को पहले जीता हुँ फिर जब उसे धरातल पर उतारता हुँ तो विषय सामने दिखते हैं।
प्रश्न 14. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करते हैं?
शैलेष जी :- मेरे द्वारा लिखी गई एक भी रचना अनैतिक नही। बहुत ही साफ सुथरी और कुछ न कुछ संदेश देती हुई है। आपकी लेखनी से यदि एक दो इंसान भी अच्छे मार्ग पर चल दिये तो समझिए आपने कुछ अच्छा किया है।
प्रश्न 15. आप अपने समकालीन लेखकों में किन से अधिक प्रभावित हैं?
शैलेष जी :- मेरी एक कमजोरी है और वो ये है कि मैं पढ़ता नहीं हूं। अतः किसी का नाम लेना उचित नही समझता।
प्रश्न 16. आप अभी कल्पकथा से जुड़ें हैं। आपको कैसा लगा कल्प प्रमुख जी से जुड कर?
शैलेष जी :- कल्प प्रमुख के दोनों स्तम्भों से मैं पूर्व परिचित हुँ, जिस हौसले के साथ जो नींव रखी गई है उससे यही लगता है कि बागडोर सही हाथों में है। मुझे अति प्रसन्नता हुई जुड़कर।
प्रश्न 17. आप कल्पकथा की प्रगति और उन्नति के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?
शैलेष जी :- अब तक कल्पकथा जिस गति और शक्ति के साथ बढ़ रहा है वो अपने आप में काबिलेतारीफ है। कल्पकथा सबके साथ समन्वय बनाते हुए उन्नति मार्ग पर चले ऐसी प्रार्थना करता हूँ। जहाँ तक बात है सुझाव की तो वो जब जरूरी लगेगा तो मैं जरूर दूँगा।
प्रश्न 18. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
शैलेष जी :- ये अच्छा पूछ लिया आपने… मेरे पाठक, दर्शक और समाज को मैं सिर्फ सामाजिक संदेश दे सकता हूँ। क्षणिक मात्र मनोरंजन हेतु कुछ ऐसा न पढ़ें जो आपके व समाज के हित मे नही है। वो पढ़ें जिसे आप गर्व से सबके सामने पढ़ सकते हैं।
तो साथियो, ये हैं हमारे समाज के एक अति विशिष्ट साहित्यकार, जिनकी कई कालजयी कहानियां और उपन्यास आप सबके लिए उपलब्ध हैं। इन्होंने कई कवियों एवं कवयित्रियों के साथ मिलकर रामकथा एवं कृष्णकथा जैसे महाकाव्यों को सहज रूप से उतारा है। जो सदैव ही समाज उद्धारक होते हैं। ये न केवल एक अच्छे साहित्यकार हैं, ये प्रकृति प्रेमी भी हैं। ये न केवल पेड पौधों से पशु पक्षियों से भी बहुत प्रेम करते हैं। पक्षियों के दया भाव इनका सहज ही देखने को मिल जाता है।
आपके सुझाव और विचारों को जानने के लिए हम सब उत्सुक हैं। मिलते हैं एक और रचनाकार से अपने अगले साक्षात्कार में। तब तक आप कमेन्ट बॉक्स में अपने विचार और सुझाव लिखना न भूलें।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
प्रश्न कर्ता :- कल्पकथा परिवार
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