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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती कंचना मिश्रा” !!

!! “व्यक्तित्व परिचय” !!

 

!! “मेरा परिचय” !!

 

नाम :- कंचना मिश्रा 

 

माता/पिता का नाम :- श्रीमती सरोजिनी त्रिपाठी/ श्री महेश प्रसाद त्रिपाठी 

 

जन्म स्थान :- लखनऊ 

 

एवं जन्म तिथि  :- 13 सितंबर 1959

 

पति का नाम :- श्री राकेश कुमार मिश्रा 

 

बच्चों के नाम :- 

    1- अनुभव मिश्रा 

    2- सौरभ मिश्रा 

 

शिक्षा :- बीए, बीएड 

 

व्यावसाय :- सेवानिवृत्त शिक्षिका 

 

वर्तमान निवास :- 554/172/2 छोटा बरहा आलमबाग लखनऊ 

 

मेल आईडी :- Kanchanamishra82@gmail.com

 

आपकी कृतियाँ :- काव्य, कहानी, संस्मरण, लेख आदि

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- 1- जाॅन मिल्टन की प्रसिद्ध कविता ” ON HIS BLINDNESS” का हिन्दी अनुवाद 

 

2- Shakespeare की MERCY का हिंदी अनुवाद 

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-

1- मां विंध्यवासिनी ट्रस्ट,लोक जागृति कार्यशाला समिति द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित 

2- काव्य कुमुद फाऊंडेशन द्वारा “, काव्य कुमुद काव्य रत्न सम्मान” प्राप्त 

3- कैंसर एड सोसाइटी द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त 

4- प्रगतिशील व्यापार मंडल द्वारा सम्मानित 

5- हिन्दी पत्रकार एसोसिएशन द्वारा अनेक बार सम्मानित 

  ( अन्य अनेक साहित्यिक मंचों द्वारा लेखनी को सम्मानित किया गया)

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

भोजन :- शाकाहारी सात्विक 

 

रंग :- शीर्षक – रंग पसंद है

बन कर लहू जो दौड़ता है शिराओं में,

मुझे जीवन का वह रंग लाल पसंद है।

चांद और सूरज पाते शरण जहां पे,

ऊंचाई पर नीले रंग का विस्तार पसंद है।

धैर्य, क्षमा, ममता जिस आंचल में,

धरती का वह हरित परिधान पसंद है।

हिम श्रंगों के उच्च पटल के रजत कणों पे,

रवि रश्मियों का स्वर्णिम भुजपाश पसंद है।

सतरंगी पुष्पों की बगिया पे इतराती,

तितली के पंखों का बहुरंगी वितान पसंद हैं।

पंछियों की रागिनी के कलरव गान में,

गुनगुन करते भंवरों का रंग श्याम पसंद है।

विचरण करते मृग समूह के बालदल के,

नव किसलय से अधर रक्ताभ पसंद हैं।

साजन के प्रणय निवेदन, मनुहार मे,

सजनी का रक्तिम हार-सिंगार पसंद है।

निर्बाध बहती पतित पावनी जल धारा में ,

श्वेताभ जीवन का रंग उल्लास पसंद है।

सक्षम बने भाव आप तक पहुंचाने मे,

कलम की स्याही, श्वेत पत्रांक पसंद है।

                  कंचना मिश्रा

 

परिधान :- सभी भारतीय परिधान 

 

स्थान – लखनऊ 

एवं तीर्थ स्थान :-  कैंची धाम, ब्रजभूमि, हरिद्वार,अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री , चित्रकूट आदि 

“क्या बताएं तुम्हें हम,कहां जाना चाहेंगे फिर से दोबारा,

अमरनाथ से रामेश्वरम तक है खूबसूरती का नज़ारा।

श्रीनगर की वादियां हों या हो महासागर का किनारा,

जितना घूम लें दिल नही भर ऐसा पावन है भारत हमारा।।”

 

लेखक/लेखिका :- प्रेमचंद, उपेन्द्र नाथ अश्क,श्री लाल शुक्ल जी, गौरा पन्त शिवानी , अमृता प्रीतम 

 

कवि/कवयित्री :- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिली शरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, हरिवंश राय बच्चन, गोपाल दास नीरज, डाक्टर हरिओम पंवार ,  डा० कुमार विश्वास, महादेवी वर्मा,  सुभद्रा कुमारी चौहान 

 

उपन्यास:- कृष्णा कली , गर्म राख, रागदरबारी 

 

/कहानी :- प्रेमचंद रचित सभी कहानियां 

/पुस्तक :- धार्मिक, सामाजिक सभी ” दृष्टांत प्रकाश” 

 

कविता:- वर दे वीणा वादीनि , 

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,

जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है

/गीत:- बीती विभावरी जाग री

/काव्य खंड :- सुदामा चरित, पंचवटी 

 

खेल :- खो-खो, कबड्डी, ऊंची कूद, भाला फेंक आदि। दर्शक के रूप में “क्रिकेट”

 

मूवीज:- (यदि देखती हैं तो) :- बैजूबावरा, सरस्वती चंद्र, पुरानी ” हकीकत, शहीद, उपकार, बार्डर,

धारावाहिक:- कलर्स और सोनी पर प्रसारित 

मैन वर्सेज वाइल्ड, कुकिंग, आदि 

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-

  🙏🙏🙏🙏

      जयति, जयति, जयति जय जवान 

        सरहद ने फिर हमे पुकारा है, 

दोस्त बन कर दुश्मन ने फिर ललकारा है। 

      देश की माटी हो बिछौना अपना , 

वक्त आ गया कि पूरा हो ये सुन्दर सपना।

कंटक राह नही, जानिबे मंजिल है बढ़ना, 

हर रोज नही बस इक बार हो यह घटना।

बर्फ या रेत नही, ये तो मां का आंचल है, 

विजयी होंगे और लिपट कर सो जाएंगे।

 फूल बन कर उगेंगे और मुस्कुरायेंगे, 

खिलखिला के  मां का आंचल सजायेंगे।

     कुछ ऐसा हो कि पूरी हो ये तमन्ना , 

इस जग में बस भारत ही भारत हो अपना।

जय जवान के नारों से , हिंद महान के बोलों से, 

धरा गगन झूम उठे, अमर जवान के घोषों से।

       “जय सपूर्व सेवा “

    “गरुड़ का हूं बोल प्यारे”

      ” सर्वदा शक्तिशाली “

  “महाकाली आये  गोरखाली”

“जो बोले सो निहाल ,सत श्री अकाल”

     “बोलो रामचंद्र की जय”

“जयति जयति जयति जय जवान “

       स्वरचित – कंचना मिश्रा

             

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

प्रश्न 1. कंचना जी, सबसे पहले आपके पारिवारिक परिवेश के बारे में हमें बताइये। 

 

कंचना जी :– परोपकारी धार्मिक,शाकाहारी और शिक्षित परिवार में जन्म।पिता- विधि स्नातक, कस्टम एन्ड सेंट्रल एक्साइज इंस्पेक्टर।

मां अपने समय की विद्या विनोदिनी व एक कुशल गृहिणी।

चार बहनें तीन भाइयों में सबसे बड़ी हूं। एक बहन सीमा त्रिपाठी भी साहित्य को समर्पित है।

सुशिक्षित ससुराल – श्वसुर जी   गोल्ड मैडेलिस्ट ए क्लास आफिसर, सुलझा हुआ व्यक्तित्व।

 

 

प्रश्न 2. आप इतने सारे सामाजिक कार्यक्रमों से जुडी हुई हैं। फिर साहित्य के प्रति रुचि कब और कैसे हुई? 

 

कंचना जी :– साहित्य से लगाव तो बचपन से रहा। पारिवारिक कार्यक्रम हों तो कवित्त होना अनिवार्य था।

मां-पापा भी छिटपुट लिखा करते थे।

हमारे ननिहाल ददिहाल में प्रायः साहित्य पर चर्चा होती थी।

 

 

प्रश्न 3. कंचना जी, लखनऊ ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी समृद्ध नगर रहा है। दूसरे ये साहित्यकारों से भी भरा पूरा नगर है। आप अपने शब्दों में हमें अपने नगर की विशेषता बताइये।  

 

कंचना जी :–  

ये बागों का शहर प्यारा लखनऊ,

कुदरत का हसीं नजारा लखनऊ।

 रेलों का है रेला जहां, 

लोगों का है मेला जहां,

सारा भारत हो जाए एक जहां,

वो है चारबाग प्यारा लखनऊ 

कुदरत का हसीं ….

विकास की हो राहें जहां,

तरक्की हो फैलाए बांहें जहां,

वो शहर-ए-दिल है लालबाग प्यारा लखनऊ 

कुदरत का हसीं…….

अमन की है चाहत जहां,

कलियों की नजाकत जहां,

केसर की बंसी खुश्बू,वो है कैसरबाग प्यारा लखनऊ 

कुदरत का हसीं नजारा….

हर शाम हो रंगीन जहां,

ज़िन्दगी हो दिलकश हसीन जहां,

वो है गोमती का किनारा प्यारा लखनऊ 

कुदरत का हसीं नजारा….

जाति भेद का नही झगड़ा जहां,

भाषा भूषा का नही लफड़ा जहां,

सुख-दुख के हैं सब साथी जहां,

अमन और मोहब्बत का है आलम जहां,

वो है आलमबाग प्यारा लखनऊ 

कुदरत का हसीं नजारा……

 

 

 

प्रश्न 4. कंचना जी, आपने एक लंबे समय तक अध्यापन कार्य किया है। उसमें आपको बहुत से अनुभव मिले होंगे। हम वो किस्सा जानना चाहेंगे, जो आज भी आपको खिलखिला दे। 

 

कंचना जी :–  जब अपने बड़े बेटे के विवाह के लिए हम लड़की व उसके घर वालों से मिलने मन्दिर पंहुचे तो लड़की मुझे देख कर बहुत खुश हुई और खिलखिला कर हंसने लगी। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ और अजीब भी लगा। फिर उसकी मां ने बताया कि कक्षा -4 में मैं उसकी कक्षा अध्यापिका थी और सभी विषय पढ़ाती थी। और आज मेरी छात्रा मेरी बड़ी बहू है।

    अब हम दोनो ही मिल कर हंसते हैं।

 

 

प्रश्न 5. आपकी अब तक की साहित्यिक यात्रा कैसी रही? साथ ही हम आपकी कोई एक कविता सुनना चाहेंगे।

 

कंचना जी :–  बहुत ही सुन्दर यात्रा रही है। लेखन मेरे लिए आत्मसंतुष्टि का मार्ग है। 

 

 

प्रश्न 6. कंचना जी, आपने कैंसर के क्षेत्र में बहुत काम किया है। आप अपने इस अनुभव के बारे में हमें बताइये। 

 

कंचना जी :–  हाँ, इसमें लोगों को जागरूक करना बड़ी बात है। पर हमने काम किया लोगों का पूरा सहयोग मिला। कैंसर के साथ-साथ थैलीसीमिया के लिए भी काम किया। रक्तदान के लिए प्रेरित किया। अपने विद्यालय के छात्र अभिभावकों व सामान्य जन द्वारा कुछ फंड भी सोसायटी के पक्ष में एकत्र किया। 

  हाँ, कुछ लोग पूछते थे कि इसमें मुझे क्या फायदा है।

 

 

 

प्रश्न 7.  समय परिवर्तनशील है। स्वाभाविक है कि साहित्य जगत में भी परिवर्तन होते रहते हैं। आप इन परिवर्तनों को किस रूप में देखती हैं? 

 

कंचना जी :–  परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। देश-काल, परिस्थितियों के अनुसार हमें ना केवल इन्हें स्वीकार करना है। अपितु आवश्यकता अनुसार शोधन व संशोधन भी करना चाहिए।

 

 

 

प्रश्न 8. आप के सम्पर्क में बहुत से लेखक और कवि हैं। आप आज के समय के किस लेखक या कवि से सबसे अधिक प्रभावित हैं?

 

 कंचना जी :–  सम्पत सरल जी, शैलैश लोढ़ा जी, डा० हरी ओम पंवार जी ।

 जहां तक हम जिन मंचों से जुड़े हैं लगभग सभी बहुत अच्छा लिखते हैं। और लेखन के क्षेत्र में मैं अभी स्वयं छात्रा हूं। आप सभी से कुछ ना कुछ सीख रही हूं।

 हां “कलम की खनक” मंच की संचालिका आदरणीया कनक लता जैन जी को साधुवाद देना चाहूंगी कि उनके मंच पर अनेक विधाओं को सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।

 

 

प्रश्न 9. आपने बताया कि आप बीस वर्षों तक अवैतनिक सेक्टर वार्डन रह चुकी हैं। ये सेक्टर वार्डेन क्या होता है और इसके अंतर्गत क्या काम आते हैं? 

 

कंचना जी :– सेक्टर वार्डन – नागरिक सुरक्षा संगठन से सम्बन्धित एक अवैतनिक पद है। 

इसके अंतर्गत एक या दो मुहल्ले सेक्टर में विभाजित कर दिए जाते हैं। एक सेक्टर पर एक वार्डन नियुक्त किया जाता है। वार्डन पूरे मुहल्ले का रजिस्टर बनाता है। जिसमें प्रत्येक परिवार के सदस्य, गाड़ी, अस्त्र-शस्त्र, पालतू पशुओं आदि का पूरा ब्योरा दर्ज किया जाता है। ताकि किसी भी आपदा के समय जान-माल की सुरक्षा में चूक ना हो। वार्डन क्रमवार लोगों से मिल कर उनकी कुशल-क्षेम की जानकारी रखते हैं। तथा शासन के द्वारा आदेशित योजनाओं से लोगों को अवगत कराया जाता है।

 वार्डन को समय-समय पर प्राथमिक चिकित्सा,व आपदा  बचाव व प्रबन्धन का प्रशिक्षण दिया जाता है।

 

 

प्रश्न 10. आज चारों ओर सोशल मीडिया का दबदबा आप देखती होंगी? ये साहित्य जगत के लिए किस प्रकार  सहायक सिद्ध हों सकता है? 

 

कंचना जी :– सोशल मीडिया साहित्य जगत के लिए सच में सहायक है। इसके द्वारा अन्य साहित्यकारों से परिचय, संपर्क का मार्ग प्रशस्त होता है। अपनी बात रखने का सरल सुलभ माध्यम सोशल मीडिया है।

 

 

 

प्रश्न 11. आप विषयानुगत लेखन के विषय में क्या सोचती हैं?

 

कंचना जी :– गहन अध्ययन और पूर्ण समय के साथ एकाग्रता पूर्वक ध्यान केंद्रित कर के ही विषयानुगत लेखन संभव है।

 

 

प्रश्न 12. कंचना जी, आपने बताया कि आपने मंचों पर अभिनय किया है और1979 में आपकी पहली कविता पत्रिका में छपी। आप अपने उस अनुभव के बारे में बताइये। साथ ही हम आपकी वो कविता भी सुनना चाहेंगे। 

 

कंचना जी :–  हां तब मैं छात्रा थी। हमारे विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर नाटक का मंचन होता था। “सत्यमेव जयते” नाटक में हमे भी अभिनय काअवसर मिला

    मेरी पहली कविता सन 1979 में हजरतगंज हलवासिया स्थित प्रकाशन द्वारा छपने वाली पाक्षिक पत्रिका *अमिता* में छपी थी ।

“” चेतन की तलाश में अवचेतन भटकता है,

कल्पनाएं मुखरित हो जाती है,

स्वप्न सागर पर लहराती मनोभावनाएं वर्णों पर टिक जाती हैं,

व्यथित हृदय की पीड़ाओं के चाहे रचना कोई बन जाती है।।”

 

 

 

प्रश्न 13. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करती हैं? 

 

कंचना जी :– मैं अधिकांश देश समाज व कुरीतियों के संबंध में लिखती हूं।

 

 

 

प्रश्न 14. श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा से आप बहुत समय से जुडी हुई हैं। आप अपने अनुभवों के बारे में हमें बताइये। साथ ही हम जानना चाहेंगे आप इससे कितनी प्रभावित हैं? 

 

कंचना जी :– कल्पकथा साहित्यिक मंच अपने-आप एक समृद्ध मंच है।यह मंच नव साहित्यकारों को अवसर प्रदान कर के उनका उत्साहवर्धन करता है।यहां पर स्तरीय साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से  स्वयं को सिद्ध करने में आनंद का अनुभव प्राप्त करते हैं।

 

 

 

प्रश्न 15. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

 

कंचना जी :– अपनी मनोभावनाओं कों छिपाएं नहीं। उन्हें शब्दों में पिरो कर अभिव्यक्त करें।

हो सकता है आप साहित्यकार ना हों, तथापि आप अपनी बात रखने का प्रयास अवश्य करें 🙏 

 

✍🏻 श्रीमती कंचना मिश्रा 

 

 

     ये थी एक समाज सेविका, शिक्षिका एवं कवयित्री श्रीमती कंचना मिश्रा जी लखनऊ उत्तरप्रदेश से। आपको इनके बारे में जान कर, पढ कर कैसा लगा, आप हमें कमेन्ट बॉक्स में अवगत कराएं ।

इनसे भेंटवार्ता सुनने और देखने के लिए हमारे यू ट्यूब चैनल पर जाएं ।लिंक नीचे है : 👇 

https://www.youtube.com/live/dczurbEq8Mk?si=AO-q9eS_r5UKl_Ne

 

 

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और साहित्यकार के साथ ।तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये। अपनी अभिरुचि बताना न भूलें। 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा परिवार

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती कंचना मिश्रा” !!”

  • पवनेश

    राधे राधे, आदरणीया श्रीमती कंचना मिश्रा जी का जीवन वृत्त एवं साहित्यिक यात्रा के संदर्भ में जानकर प्रसन्नता हुई। 🙏🌹🙏

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