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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती शोभा शर्मा जी” !!

🧑‍✈️ !! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती शोभा शर्मा जी” !!  🧑‍✈️

!! “मेरा परिचय” !!

नाम :- श्रीमती शोभा शर्मा 

माता/पिता का नाम :- स्मृतिशेष श्री जमुना प्रसाद व्यास / स्मृतिशेष श्रीमती रामरती व्यास/ अभिभाविका श्रीमती केशर देवी शर्मा 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि  :-टीकमगढ़ / 09/03/1960

जीवनसाथी का नाम :- श्री मान मधुसूदन गोस्वामी 

बच्चों के नाम :- डॉ. मयंक गोस्वामी 

                        शशांक गोस्वामी 

                        प्रियंका गोस्वामी 

शिक्षा :- एम.एस.सी.(प्राणी शास्त्र) बी.एड.

व्यवसाय :-वर्तमान में स्वतंत्र लेखन,आकाशवाणी छतरपुर में अस्थाई बुंदेली उद्घोषिका, आकाशवाणी कलाकार, वार्ताकार, कथाकार, कवियत्री एवं गृहिणी, पूर्व में शिक्षिका।

वर्तमान निवास :- छतरपुर 

आपकी मेल आई डी :- 1960.shobha@gmail.com 

आपकी कृतियाँ :- 

उपन्यास-एक थी मल्लिका

कहानी संग्रह – रुह के साए

कहानी संग्रह – अधूरे ख्वाबों के कैनवस 

पांच ई बुक्स- अमेजन किंडल पर,

1- तेरे मेरे दरमियाँ- रिश्तों की कहानी 

2- Into Darkness- अंधेरे में जागती अतृप्त रूहें 

3-देशज प्रेत कहानियाँ – भाग -1

4- देशज प्रेत कहानियाँ -भाग -2

5- देशज प्रेत कहानियाँ -भाग -3 

किताबें संपादक के तौर पर – 

1- बुंदेलखंड के रचनाकार

2- होरी रे बरजोरी रे

3- भाव पंखुड़ियां- साझा काव्य संकलन

प्रकाशनाधीन – एक उपन्यास (मृत्युंजय घटवार) एक कहानी संग्रह (रोमांस पर) 

निरंतर लेखन, राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लेखन, आकाशवाणी से कहानियों का प्रसारण, 

ऑन लाईन / आफ लाईन कवितायें एवं काव्य गोष्ठी

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- उपन्यास – एक थी मल्लिका 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- 

साझा संकलन- (7), 

कहानी लेखन एप पर – लगभग बीस धारावाहिक, तीन सौ कहानियां/ बीस लघुकथाएं/ तीन सौ से अधिक कविताएं /डायरियां /मातृभारती.कॉम / कहानियां.काम /शापीजन.काम इत्यादि आन लाईन प्लेटफार्म पर, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में ऑफ लाइन () निरंतर प्रकाशित कहानियाँ , लेख, भेंटवार्ता, कवितायें। 

दिल्ली प्रेस की सभी पत्रिकाएँ, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, वनिता में कहानियाँ, इस्पात भाषा भारती, इला भारती, बाल भारती।  

पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-

150 से अधिक पुरस्कार के साथ,

प्रतिलिपि फ़ेलोशिप – 2021 & कलमकार सम्मान (2022)

गीता श्री साहित्य सम्मान – (2023)

कादम्बरी संस्था से डा. रमानाथ स्मृति पुरस्कार (2023)

वैश्विक साहित्य सम्मान – निर्दलीय पत्र प्रकाशन (2024)

मध्य प्रदेश तुलसी साहित्य अकादमी सम्मान- (2024) 

मधुकर राष्ट्रोत्कर्ष समिति साहित्य सम्मान – 2024

साथ ही आकाशवाणी से कहानियों का स्वयं की आवाज में निरंतर प्रसारण।

!! “मेरी पसंद” !! 

शिक्षण, साहित्य पढ़ना, बागवानी, सिलाई कढ़ाई, सिंगिंग, गीत सुनना, कुकिंग  

उत्सव :- सभी सामाजिक उत्सव, सनातन एवं देश प्रेम संबन्धित 

भोजन :- देशी बुन्देली व्यंजन, कढ़ी, बरा, महुआ के लटा, मुरका, दक्षिण भारतीय व्यंजन। 

रंग :- ब्राइट रंग, जिनमें जीवन की ऊर्जा समाई होती है। 

परिधान :- सारी, सूट इत्यादि पारंपरिक परिधान। 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :- समुद्र की विशालता प्रभावित करती है। समुद्र के तट, पूरा भारत, दक्षिण एवं उत्तर के सभी तीर्थ स्थल। 

लेखक/लेखिका :- उपन्यास एवं कहानियों के उननेसविन सदी के श्रेष्ठ लेखक, लेखिकाएं एवं समसामयिक वर्तमान के भी। 

कवि/कवयित्री :- तुलसीदास, सूरदास, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, अटल विहारी बाजपेयी, अमृता प्रीतम , कुमार विश्वास, कुंअर नारायण बेचैन इत्यादि अनेक 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक : बंकिम चन्द्र की कपाल कुंडला, वृंदावन लाल वर्मा की मृगनयनी, अमरबेल, प्रेमचन्द्र और चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा था, ये मेरी यू ट्यूब चेनल पर मेरे स्वरों में औडिओबुक में सुनने को मिल जाएंगी। माँ – मैक्सिम गोर्की (विश्व साहित्य) रस्किन बॉन्ड की कहानियाँ, अमृता प्रीतम की पिंजर एवं सभी पुस्तकें , शिवानी गौरा पंत की कहानियां जैसे अनेक पुस्तकें और लेखक। 

कविता/गीत/काव्य खंड :- गीत- राष्ट्रीय गीत,  मेघदूत 

खेल :- इनडोर गेम्स,

फिल्में/धारावाहिक (यदि देखती हैं तो) :- (कभी कभार देखते हैं) साहब बीबी और गुलाम जैसी गंभीर फिल्में, दिल अपना और प्रीत पराई – जैसी रोमांटिक, अंगूर, हलचल, डिस्कवरी चेनल, मिरेकल सरवाईवल इन द अफ्रीकन जंगल विद ब्रोकन लेग जैसी कॉमेडी। 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- एक थी मल्लिका, खेमकुशर, मान है सो जान है, न मानिहे सो जानिहे- (महाराजा छ्त्रसाल के जीवन पर आधारित) 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

प्रश्न 1. शोभा जी, कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कार्यक्रम की परंपरा के अनुसार आपका पारिवारिक/शैक्षणिक/व्यवसायिक (यदि हो तो) परिचय दर्शकों तक पहुंचाना चाहेंगे?

शोभा जी :- अपनी अभिभाविका श्रीमती केशर देवी शर्मा की भांति अध्यापिका बनना चाहती थी इसलिए बी.एड. किया, मगर विवाहोपरांत जिम्मेदारियों की वजह से शिक्षिका की नौकरी कुछ समय करके रिजाइन कर दिया और आकाशवाणी में कंपेयरिंग एवं 1992 से लेखन में ही सक्रिय रही। 

पति अवकाशप्राप्त बैंक मेनेजर एवं तीनों बच्चे भी उच्चशिक्षा के सोपान चढ़े, बड़े बेटे मयंक ने आई.आई.टी. से डॉक्टरेट, पोस्ट डॉक्टरेट, छोटे बेटे शशांक ने सिमबायोसिस से एम.बी.ए., बेटी प्रियंका इंजीनियरिंग करने के बाद बैंक में ऑफिसर बनी। 

प्रश्न 2. साहित्य जगत से आपका परिचय कब और कैसे हुआ?

शोभा जी :-  पढ़ने का शौक तो बचपन से ही रहा। स्कूल लाइब्रेरी से तो साहित्यिक पत्र -पत्रिकाएं पढ़ने के लिए लाती ही थी। कुछ न मिलने पर किसी सामान के साथ लिफाफे आते थे, उन्हें ही खोल कर पढ़ती बैठी रहती थी। 

प्रश्न 3. शोभा जी, आप कल्पकथा के साथ इस भेंटवार्ता को कैसे देखती हैं? क्या आप उत्साहित हैं? 

शोभा जी :-  जी हाँ, बहुत उत्साहित हूँ। साथ ही बहुत बहुत आभारी भी हूँ कि आपने मुझे अपने मंच पर बुलाया। कल्पकथा परिवार से मैं काफी समय से जुड़ी हुई हूँ और यह मंच अति सम्मानित तथा हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए अप के समक्ष आकार बहुत खुशी है। 

प्रश्न 4. शोभा जी, आप मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड में छतरपुर नगर से हैं। छतरपुर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध नगर बताया गया है। आप अपने शब्दों में हमें इस सुन्दर नगर के बारे में बताइये?

शोभा जी :-  हमारा नगर छतरपुर महाराजा छ्त्रसाल के नाम पर बना। इनकी राजधानी सुंदर धुबेला क्षत्र में राजा का महल और म्यूजियम है जहां आज भी ऐसे आईने हैं जिनमें किसी अप बेहद लंबे और दुबले दिखते हैं तो किसी में मोटे ठिगने भी। एक ऐसा भी था जिसमें आप निर्वस्त्र भी दिखते थे बाद में दर्शक दीर्घा से उसे हटा दिया गया। यहाँ उन्होने सात तलाब और सुंदर महल, मंदिर बनवाए, जिनमें अनेक श्री बजरंगबली जी के हैं। पासही बागेश्वर धाम भी है जहां वाला महाराज स्थापित हैं। हनुमान टौरिया, अनगढ़ की टौरिया, सुप्रसिद्ध हमा की देवी, पीतांबरा पीठ, मोटे के महावीर, बेर के हनुमान जी जैसे अनेक स्थल है और जटाशंकर , भीम कुंड, खजुराहो, चह्न्पादुका जैसे विश्व प्रसिद्ध स्थल भी छतरपुर के आसपास ही हैं।  तालाबों की सुंदरता देखते बनती है और टौरियों पर चढ़कर जाने से सुंदर दर्शन एवं नगर की अनूठी छटा दिखती है। तथा शिक्षा का गढ़ भी छत्रसाल की नगरी है। 

प्रश्न 5. शोभा जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं, आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है?

शोभा जी  :-  हुआ यूं कि बचपन में हम बलदेवगढ़ जिला टीकमगढ़, में जहां रहते थे वहाँ प्रकृति के सभी जीव जानवर पशु पक्षी हमारे पर्यावरण में साथ साथ ही निवास करते थे। वहाँ बंदर भी हुआ करते थे। तो पहले एस्बस्टस की शीटें बरामदों में छत के लिए रखीं जातीं थी हमारे यहाँ भी थीं। 

एक दिन मेरी बुआ जी ने मुझे अपने कंधों पर चढ़ा कर बरामदे की छत के ऊपर छाई लौकी और तोरई की बेल से लौकियाँ तोरई तोड़ने के लिए ऊपर चढ़ा दिया। तभी एक बंदर कमरे के दरवाजे खुले पाकर भीतर से गुझियों का डिब्बा उठा कर मेरे बगल में आ बैठा और डिब्बा खोल कर उन्हें खाने और बिखरने लगा। वे गुझियाँ उसी दिन सुबह बनाई गईं थीं। छत ढालू होने के कारण मैं कांप रही थी कि अब लुढ़की, तब लुढकी। वह मेरे डरने पर और अधिक खौंकिया कर मुझे डराने लगा। न मैं वहाँ बैठ सकती थी, न हिल सकती थी। 

वह रोमांच और भय मुझे भुलाए नहीं भूलता और हंसी भी बहुत आती है कि एक बड़ी सी लौकी जो मेरे हाथ में थी और लाठी भी थी, पर मैं कुछ भी न कर सकी सिवा कांपने के। ये सब बातें तो बाद में बुआजी ने सुझाईं।   

प्रश्न 6. शोभा जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान अनेक काव्य रचनाओं का सृजन किया है, इस यात्रा के दौरान लिखी गई कोई एक काव्य रचना जो आपकी रुचिकर रचनाओं में सम्मिलित है हमारे दर्शकों को सुनाइए?

शोभा जी :-

बुंदेली कविता

**********

थोरी सी जा ज़िंदगानी,

मोरी बहना, 

उसई नई बहानी।  

एक दिना कढ़ गओ बचपन में,

दूजो कढ़ो जवानी में,

मोरी बहना।

थोरी सी जा ज़िंदगानी।.

उसई नई बितानी।

ज्वानी कढ़ी, आओ बुढापो,

भक्ति में इखां बितानी।

मोरी बहना,

थोरी सी जा ज़िंदगानी।

उसई नई बितानी। 

सदकर्मन कौ लेखो जोखौ,

संगै है ऊपर जानी,

हो मोरे भैया,

थोरी सी जा ज़िंदगानी।

ऊसई नई बितानी।

खाली हाथ आए ते भैया,

का लै कें संग जानी।

मोरे भैया,

थोरी सी जा ज़िंदगानी।

ऊसई नईं बितानी।

मोरे भैया,

थोरी सी जा जिंदगानी। 

कछु कर लो नौनों सो,

संगै के लाने ,

दो गज कपड़ा,

बांस की टटिया, 

वा भी न संगै जानी।

मोरे भैया।

थोरी सी जा ज़िंदगानी।

ऊसई नईं बितानी,

मोरी बहना। 

*********

शोभा शर्मा 

प्रश्न 7. आपके गृहनगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?

शोभा जी :-  मेरा गृहनगर और जन्म स्थान तो टीकमगढ़ मध्यप्रदेश है। इसी की पृथ भूमि और ऐतिहासिक कथानक लेकर मैंने अपना पहला उपन्यास – एक थी मल्लिका लिखा। और जब मैं छतरपुर बी.एड. करने आई तो यहां इतना अच्छा लगा कि विवाह उपरांत यहीं बस गई। 

प्रश्न 8.  शोभा जी, आप लेखन की विभिन्न विधाओं में पारंगत हैं। फिर भी लेखन की किस विधा में लिखना आपको सहज लगता है और क्यों?

शोभा जी  :-   मुझे सभी विधाओं में लिखना अच्छा लगता है। जब जैसा मूड होता है, वैसा लिखा जाता है। दरअसल एक लेखक सदैव स्वांतःसुखाय या परमार्थ के लिए लिखता है या फिर जब उसे कोई संदेश समाज को देना होता है, तब भी वह लिखता है। वह किसी भी विधा में हो सकता है। 

प्रश्न 9. आप अपने व्यक्तिगत जीवन और साहित्य सृजन में कैसे सामंजस्य बिठाती हैं? 

शोभा जी :-  व्यक्तिगत जीवन एक समय के पश्चात साहित्य के लिए समर्पित हो जाता है। व्यक्तिगत जीवन रूटीन लाइफ और साहित्य साधना समर्पण बन जाता है। 

प्रश्न 10. आप की दृष्टि में साहित्य क्या है और ये किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?

शोभा जी :-  साहित्य मेरी दृष्टि में समाज का दर्पण है। जो समाज में हम घटता हुआ देखते हैं, वही तो लिखते हैं, पर उसमें भी हमें एक सार्थक संदेश देना जरूरी है, जिससे समाज को दिशा दिखाने वाला प्रेरक संदेश जो साहित्य दे सके, वही साहित्य उपयोगी माना जाएगा। 

प्रश्न 11. शोभा जी, आज अधिकांश लेखक वर्ग अपनी उपलब्धियों पर प्रफुल्लित है। अपने अनुभव के आधार पर आप अपने लिए उन उपलब्धियों को किस दृष्टिकोण से देखती हैं?

शोभा जी :-  उपलब्धि पाने को कभी कभी एक कदम मंजिल की ओर अग्रसर होना पाती हूँ वरना सृजन निरंतर चलता रहता है। हम आजीवन विद्यार्थी ही रहते हैं और एक के बाद दूसरा सृजन व सीखना चलता रहता है। जब भी पाठकों की सुंदर, मनोबल बढ़ाने वाली प्रतिक्रियाएं मिलतीं हैं तो प्रफुल्लित होकर दुगुनी गति से लेखन चलने लगता है। प्रेरणा और हौसला अफजाई तो हमें भी चाहिए, जो पाठकों द्वारा, उपलब्धियों द्वारा, पुरस्कार द्वारा भी मिलती है। 

प्रश्न 12. शोभा जी, आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विश्लेषण के नाम पर तुलना किया जाना कुछ अधिक ही प्रचलित हो गया है, जिससे तुलना के स्थान पर छद्म आलोचना का माहौल बन जाता है। इस छद्म आलोचना का सामना कैसे किया जाना चाहिए?

शोभा जी :-  यदि तुलना किया जाना आवश्यक है तो अवश्य तुलना भी हो और सुधार भी किया जाना चाहिए। क्योंकि कहा गया है कि निंदक नियरे राखिए। एक सच्चा आलोचक आपकी प्रतिभा को निखारता है। पर यदि वह किसी गलत नीयत से की जा रही है तो ध्यान न दीजिये। आप अपने रास्ते चलिये। जरूरी नहीं कि आप सबकी रुचियों पर खरे उतरें। 

प्रश्न 13. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करती हैं?

शोभा जी :-  जी बिलकुल सही कहा गया है। देशहित सर्वोपरि। एक लेखक अपनी कलम से उतनी ही सजगता और प्रतिबद्धता से लड़ाई लड़ सकता है और जनता में प्रेरणा और देशहित में जागरूकता जगा सकता है, जितनी एक योद्धा सीमा से तलवार से लड़कर। 

प्रश्न 14. आप अपने समकालीन लेखकों एवं कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?

शोभा जी  :-    सबकी अपनी अपनी शैली, विधा और लेखन की ताकत है और पसंद भी अपनी अपनी होती है इसलिए जो किसी एक को पसंद आता है, वह दूसरे की रुचियों में फिट नहीं बैठता, पर होता तो वह भी सार्थक ही है इसलिए किसी विशेष का नाम लेना नहीं चाहिए। 

प्रश्न 15. शोभा जी, वर्तमान युग सोशल मीडिया का युग है जिसने जीवन को लगभग हर स्तर पर स्पर्श किया है, प्रश्न यह है कि आप साहित्य में सोशल मीडिया के प्रभाव को किस रूप में देखती हैं?

शोभा जी :-  सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम है अपनी बात और विचारों को पेश करने का, एक सार्थक संदेश देने का ताकतवर प्लेटफार्म है। यह भी सत्य है कि सोशल मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है लेखन या किसी भी अन्य प्रचार के लिए इसलिए अधिकांशतः इस पर जो चीजें देखने पढ़ने या सुनने को मिलती हैं, बढ़ा चढ़ा कर होतीं हैं या भ्रामक भी हो सकतीं हैं। वैसे इसमें ही सत्य और सार्थक बातें भी मिलतीं हैं तो युवा पीढ़ी को यह चयन करना आवश्यक है कि वे तथ्यों को जाने समझें और अंतर करना भी पहचानें।

प्रश्न 16. शोभा जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखती हैं?

शोभा जी  :-  आज भी लेखकों और कवियों का वही महत्व है जो पहले था। बल्कि पहले से अधिक दायित्व भी बढ़ गए हैं कि सत्य को पाठकों से रूबरू करवाते हुए दिशा दिखाएँ।   

प्रश्न 17. शोभा जी, आप अपने साहित्यिक जीवन के किसी एक ऐसे अनुभव को दर्शकों से साझा करना चाहेंगे, जिसमें आपके प्रयासों की सफलता के साथ मानसिक संतुष्टि सम्मिलित हो?

शोभा जी  :-   ऐसे अनुभव मुझे अक्सर सफर करते हुए मिलते हैं। मुझे अक्सर सफर करना पड़ता है जो मुझे पसंद भी है। सफर में ही मुझे अनेक लोगों से बातचीत करने का अवसर मिलता है। इन अनुभवों को मैंने इन्हें कलमबंद भी किया है। जब सहयात्रियों से बातचीत के दौरान उन्हें मेरे लेखिका होने की बात की बात पता चलती है तो वे अपनी ऐसी ऐसी समस्याओं, अवसादों, डिप्रेशंस को साझा करते हैं जो वे शायद घरवालों से भी नहीं कर पाते होंगे। 

यह हम लेखकों की खूबी भी होती है कि हम जल्द ही सभी से घुलमिल जाते हैं। फिर अनेक बार उन्हें एड्वाइज़ भी देती हूँ बताती हूँ कि कहाँ सुधार होना जरूरी है। या क्या गड़बड़ है। दरअसल हमारी सामने वाले के मन को पढ़ लेने की इंट्यूशन, सामान्य लोगों से जरा ज्यादा ही तगड़ी होती है। बस वही काम आती है। जब वे फोन द्वारा समस्या सुलझ गई बताते हैं तो बड़ा ही सुकून मिलता है। ऐसा किसी कहानी से किसी को दिशा मिलती है तो लोग बताते हैं।  

 

प्रश्न 18. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष रूप से प्रिय है? 

शोभा जी  :-  बागवानी, संगीत या घुमक्कड़ी, जिसके दौरान नए नए विचार आते हैं। 

प्रश्न 19. शोभा जी, काव्य विधा का आठ रसों में सृजन होता है। आप काव्य के कौन से रस में लिखना अधिक पसंद करती हैं? 

शोभा जी  :-   करुण रस, श्रंगार रस, वीर रस कभी कभी। गद्य में भय कथाएँ। मूल भाव है आनंद आना चाहिए, फिर उसमें पाठक जो भी रस मानें। 

प्रश्न 20. शोभा जी, आप रचनाएँ किसी माँग (विषय/परिस्थिति) पर सृजित करना पसंद करते हैं या फिर स्वत: स्फूर्त सृजन को प्राथमिकता देती हैं?

शोभा जी  :-   दोनों ही। 

प्रश्न 21 शोभा जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

शोभा जी  :–   यदि भाव पक्ष प्रबल है तो जरूरी नहीं है कि कला पक्ष को बैलेन्स किया जाए। एक पक्ष सदैव प्रबल रहता है क्योंकि कविता हृदय में भाव उमड़ने पर लिखी जाती है। अब कलापक्ष भी उसमें भलीभाँति निरूपित हुआ है तो सोने पर सुहागा है। 

प्रश्न 22. जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता भी आती रहती है। आप इन सफलताओं और असफलताओं को कैसे देखती हैं?

शोभा जी :-   दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं सफलता और असफलत विधि के हाथ हैं और लेखन में हमारे सुधि पाठकों के ऊपर निर्भर करता है। इसलिए अपना कर्म करते रहना चाहिए। अनेक लोगों को उनके इस संसार से जाने के बाद सफल होने की उपाधि मिली। 

प्रश्न 23. शोभा जी, श्री राधा गोपीनाथ जी महाराज की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार एवं हमारे कल्प प्रमुख के कार्यों से परिचित हैं। इन कार्य प्रयासों को आप कैसे देखती हैं? 

शोभा जी  :-  जी हाँ, परिचित हूँ। श्री राधा गोपीनाथ जी महाराज की कृपा हम सभी कल्पकथा परिवार पर बनी रहे और आपके एवं आपकी टीम के प्रयास उनकी सार्थकता बनाए रखें। पाठकों का भला हो, उन्हें दिशा मिले। आपके सद्प्रयास और भी उत्तरोत्तर अग्रसर हों। 

प्रश्न 24. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

शोभा जी  :-  संदेश यही है कि पठन पाठन से सदैव दिमाग की बंद खिड़कियाँ खुलतीं हैं। जीवन की जटिलताएँ सुलझतीं हैं, रास्ते मिलते हैं और मन के अवसाद कम होते हैं। इसलिए परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अच्छे साहित्य को पढ़ें, गुनें। उससे शिक्षा लें। आपको हार्दिक धन्यवाद देते हुए एक बार पुनः आभार व्यक्त करती हूँ जो आपने मुझे अपनी बात कहने का अवसर दिया। 

नमस्कार 

✍🏻 भेंटवार्ता  : –  श्रीमती शोभा शर्मा  

             तो ये थीं श्रीमती शोभा शर्मा जी छतरपुर, मध्यप्रदेश से। इनकी कलम की धार आपने पढ़ी। आशा है कि आपको इनका लेखन पसंद आयेगा। इनकी कृतियाँ आपको ऊपर दिये गए मंचों से प्राप्त हो जायेंगी। इस भेंटवार्ता को देखने के लिए लिंक पर जाएं : 👇 

https://www.youtube.com/live/24XYD1xVxtk?si=HIZQzYJfXWMatMTM

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और साहित्यकार के साथ। तब तक आप स्वस्थ रहिये और प्रसन्न रहिये।

✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶 बढते रहिये 🌟

 

राधे राधे 

✍🏻  भेंटवार्ता कर्ता :  कल्पकथा परिवार

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती शोभा शर्मा जी” !!”

  • पवनेश

    शोभा जी के साथ वार्तालाप अत्यंत आनंददायक रहा, सादर 🙏🌹🙏

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