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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमान राजीव रावत” !!

!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमान राजीव रावत” !! 

 

 

!! “मेरा परिचय” !! 

 

नाम :- राजीव रावत 

 

माता/पिता का नाम :-डाॅ0नवल किशोर रावत/स्वर्गीय श्रीमति माया रावत

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि  :-छतरपुर, 03.12.1956

 

पत्नी का नाम :-उर्मिला रावत

 

बच्चों के नाम :- दो बेटियां – (1) स्वाति – डेंटिस्ट – गुड़गांव 

                        //////.      (2) श्वेता इंजीनियर-बोस्टन 

 

शिक्षा :- बी एस सी (एजी) 

 

व्यावसाय : सेवानिवृत्त बैंक प्रबन्धक 

 

वर्तमान निवास :- भोपाल

 

मेल आईडी :- rajeev.rawat03@gmail.com 

 

आपकी कृतियाँ :-  सांझा संग्रह (7)

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- लगभग 200 से अधिक कहानियाँ, 2600 से अधिक कविताएं, कई नाटकलेख एवं व्यंग *कहानी – दादी की माला-*-20000 से अधिक बार पढ़ी गयी

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- स्वयं की कोई कृति प्रकाशित नहीं करवाई

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान- विभिन्न मंचो से कई बार सम्मानित किया गया, आकाशवाणी छतरपुर से भी कहानियां प्रसारित हुईं थीं। 

 

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

 

उत्सव :- होली

 

भोजन :- भारतीय खाना

 

रंग :- नीला

 

परिधान :- पेंट-शर्ट 

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :-हरिद्वार

 

लेखक/लेखिका :-मुंशी प्रेमचंद

 

कवि/कवयित्री :-महादेवी वर्मा 

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :-शतरंज के खिलाड़ी

 

कविता/गीत/काव्य खंड :-साकेत

 

खेल :-टेबिल टेनिस, क्रिकेट 

 

मूवीज/धारावाहिक (यदि देखती हैं तो) :- परणिती (सुलेखा सीकरी) 

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-मे री कहानी-

*दादी की माला*

 

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

 

प्रश्न 1. रावत सर, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये। 

 

रावत जी :-  मेरे पिता जी हाईसेकंडरी स्कूल में प्रिंसपल थे और उन्होंने इलाहाबाद से हिन्दी में एम किया था तथा कविताएं लिखते थे–धीरे धीरे वही गुण मुझमें आ गये और बचपन से ही कुछ शब्दों को पकड़ने की कोशिश करता था–लेकिन असफल ही रहा लेकिन कहते हैं कि करत करत अभ्यास के – – 

 

 

 

 

प्रश्न 2. रावत सर, आप कल्पकथा के साथ इस भेंटवार्ता कार्यक्रम में हम हिन्दी साहित्य के साहित्यकार की रुचि अभिरुचि को वार्ता के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं,आप इस कार्यक्रम को कैसे देखते हैं? क्या आप उत्साहित हैं? 

 

रावत जी :-  किसी साहित्यकार की साहित्य यात्रा के बारे में जानने की एक अजीब सी उत्कंठा रहती है, कैसे वह अपनी भावनाओं को कागज पर कविता या कहानी , लेख और नाटक का आदि का रूप रख कर उतारता है जैसे गुलेरी जी अपनी उपन्यास जंगलो में जाकर लिखते थे लेकिन जब वही साहित्यकार का किरदार निभाते हुए स्वयं मंच पर होते हैं और अपने कृतियों और पात्रों के वारे में चर्चा करते है तो अनुभूति का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है क्योंकि दूसरे के बारे में जानने कि अभिरुचि रखना और अपने बारे में बताना अलग अलग है, लेकिन एक सुखद अनुभूति भी होती है और उत्साहित होना स्वाभाविक होता है। 

 

 

 

 

प्रश्न 3. रावत सर, आप एतिहासिक और कलात्मक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण भोपाल शहर के रहने वाले हैं।  संस्कृति से समृद्ध इस नगर के बारे में अपने शब्दों में कुछ बताइये। 

 

रावत जी :-  भोपाल, मध्य प्रदेश की राजधानी है। प्राकृतिक सुंदरता, पुराने ऐतिहासिक शहर और आधुनिक शहरी नियोजन का आकर्षक संगम है। यह राजा भोज द्वारा स्थापित 11 वीं शताब्दी का शहर भोजपाल है, लेकिन वर्तमान शहर की स्थापना एक अफगान सैनिक दोस्त मोहम्मद (1707-1740) ने की थी।यह शहर पुरानी और आधुनिक वास्तुकला का मिश्रण है। यह नबाबों की रियासत रही है। 

भोपाल विशेष कर कई पहाड़ों, कई तालाबों से सम्रद्ध है। राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भारत भवन, पुरातत्व संग्रहालय, बड़ा तालाब, छोटा तालाब, शाहपुरा झील, सैर-सपाटा, शहीद स्मारक, बिरला मंदिर, मनुआभान की टेकरी, वन-विहार,ताजुल मसजिद, केरवा डैम इत्यादि लाजवाब स्थल है देखने के लिए। शहर के नज़दीक सांची के बौद्ध स्तूप और भोजपुर का मंदिर है।

 

 

 

प्रश्न 4. रावत सर, आपने बैंक में बहुत ही जिम्मेदारी वाले पद पर रहते हुए साहित्य के प्रति उत्साहित रहते हुए सृजन करते हैं, इस विषय में हम आपके विचार जानना चाहते हैं। 

रावत जी :- कालेज में पढ़ाई करते समय मैंने तीन नाटक लिखे थे और साथ ही साथ तीनों में मुख्य भूमिका निभाई थी, सौभाग्य से तीनों को प्रतिवर्ष प्रथम स्थान मिला,। इस के बाद बैंक में कार्यरत रहते हुए बैंक की पत्रिका यूनियन धारा में भी लिखा। 

लेकिन अधिक कार्य होने के कारण लेखन को विराम देना पड़ा। लेखन का बीज सुसुप्त अवस्था में परिस्थितियों के कारण भले ही चला जाये लेकिन जलवायु अनुकूल होते ही फिर पनप जाता है। 

 

 

 

प्रश्न 5. रावत सर, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानते हैं।

 

रावत जी :- मैं कई मंचो से जुड़ा रहा हूं लेकिन मुझे पहली पहचान एक कहानी लेखन एप के माध्यम से मिली थी, जिसमें मेरे फालोवर बहुत संख्या में थे, वहां बहुत सारी प्रतियोगिताओं को जीता भी लेकिन लेखन की चोरी, निर्णायकों के गलत निर्णय के कारण मंच से हटना पड़ा। 

 

 

 

प्रश्न 6. रावत सर आपने देश विदेश में मंच पर अपनी काव्य प्रस्तुति दी है,अपनी विशिष्ट प्रस्तुति के अनुभव को हमारे साथ साझा करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा। 

 

रावत जी :- मैं सर्वप्रथम कोरोना के समय अमेरिका की   संस्था  *हिन्दी मंच* जिसे भारतीतियों द्वारा चलाया है, के द्वारा आन लाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया था, जिससे मैं जुड़ा था और इस के बाद मैं उन के मंच पर बोस्टन में कवि सम्मेलन में शामिल था, जहाँ मेरी कविता न केवल मंच सुनी गयी, साथ ही साथ वहाँ की मैग्जीन में भी प्रकाशित हुई। अपने देश, अपनी भाषा को विदेशी धरती सुनना और सुनाना दोनों कहीं अंदर तक छू जाता है। 

 

 

 

प्रश्न 7.  सर! कहते हैं बचपन सदैव मनोहारी होता है। हम जानना चाहेंगे आपके बचपन का बाल विनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी मुस्कुराने पर विवश कर देता है। 

 

रावत जी :- बचपन से पढ़ने में अच्छा था तथा शैतानियों में नंबर बन, एक बार मै अपने गाँव कुलपहाड़ (यूपी) गया था। गर्मियों की छुट्टी में वहां दोपहरी में अपने चचेरे भाईयों के साथ रामलीला खेल रहा था, मैं लक्ष्मण बना था और मेरे चचेरे भाई शूर्पणखा – – मेरे हाथ में चाकू था, भाई राम के आदेशानुसार मुझे शूर्पणखा की नाक काटने की एक्टिंग करनी थी, पांव में लगाने वाला महावर रूई में लिए वह तैयार था, जैसे ही मैंने नाक काटने की कोशिश की, उसै छींक आ गयी और आव देखा ना ताव उसने मुझे गिरा दिया–झगड़ा शुरू हो गया–हुआ यूं कि छींक आने से उसकी नाक सच में कट गयी थी–आज भी हल्का सा निशान उसकी नाक पर है। 

 

 

 

प्रश्न 8.  समय परिवर्तनशील है। स्वाभाविक है कि साहित्य जगत में भी परिवर्तन होते रहते हैं। आप इन परिवर्तनों को किस रूप में देखते हैं? 

 

रावत जी :- परिवर्तन तो समय का नियम ही है। पहले हिन्दी में लिखी जाने वाली रचनाओं में खड़ी हिन्दी का ऐसा प्रयोग होता था कि शब्दों को लिखने और पढ़ कर अर्थ समझने के लिए डिक्शनरी देखनी होती थी–लेकिन धीरे हिन्दी भाषा ने अन्य भाषाओं के शब्दों को भी अपने में समाहित कर लिया और आम भाषा के रूप में आ गयी। परिस्थितियाँ बदली तो सोच बदली–सोच बदली तो लेखन बदला–अब लिखित रचनाओं को पढ़ने वाले कम हो गये–डिजीटल हर चीज हो गयी। 

 

 

 

प्रश्न 9.  आप आज के समय के किस लेखक या कवि से सबसे अधिक प्रभावित हैं? 

 

रावत जी :- कुमार विश्वास से–कविता के शब्द और संतुलित आवाज में वाचन और रामायण प्रस्तुति करण – – लाजवाब है। 

 

 

 

प्रश्न 10. रावत सर, हम आपका वो अनुभव जानना चाहेंगे, जब आपकी कविता को श्रोताओं का भरपूर सम्मान मिला?

 

रावत जी :- पहले पाठक मेरे पिताजी ही थे, जब मेरी कविता को संशोधित कर देते थे, उनकी आंखो से छलकती प्रशंसा ही मेरी प्रथम उपलब्धि थी। 

जब अपनी भावनाओं के शब्दों को कविता के रूप में प्रस्तुत करते हैं और जब  श्रोताओं की ओर से प्यार भरा उत्तर मिलता है तो खुशी मिलना स्वाभाविक है। खासकर जब बोस्टन में हिंदी मंच पर मेरी कविता पर तालियां बजी तो परायों के बीच में अपने पन की अनुभूति हुई। 

 

 

 

प्रश्न 11. आज चारों ओर सोशल मीडिया का प्रभाव आप देखते होंगे, ये साहित्य जगत में सोशल मीडिया का प्रभाव आप किस रुप में देखते हैं?

 

रावत जी :- सोशल मीडिया के प्रभाव को मैं सार्थक रूप से देखता हूं। साहित्य जगत में न जाने कितने हीरे कोयले की तरह पड़े थे और शायद गुमनामी ही उनका भाग्य होता क्योंकि पहले सिर्फ़ समर्थ लेखको को ही जगह और सम्मान मिलता था किंतु सोशल मीडिया से ना जाने कितने की चमक साहित्य जगत को मिली। 

 

 

 

प्रश्न 12. रावत सर,  आजकल रचनाओं में भाषागत सम्मिश्रण बहुत अधिक हो गया है। इस भाषागत मिश्रण को लेकर आपके क्या विचार हैं? साथ ही हम आपकी वो कविता भी सुनना चाहेंगे, जो आपको विशेष प्रिय हो।  

 

रावत जी :- खीर तभी स्वादिष्ठ बनती है, जब उसमें कई तरह के मशाले हों, वरना वह दूध ही रह जाती। ऊर्दू,अंग्रेजी, और अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द अब आपस में इतने मिल जुल गये हैं कि हिन्दी खड़ी भाषा ना होकर एक भारतीय भाषा हो गयी है। 

 

 

 

प्रश्न 13. आप साहित्य के विभिन्न काल में साहित्य के प्रवाह को किस तरह देखते हैं? 

 

रावत जी :- कालक्रम के आधार पर उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास को आदिकाल ( संवत् 1050-1375), पूर्व मध्यकाल (संवत् 1375-1700), उत्तर मध्यकाल (संवत् 1700-1900) और आधुनिक काल ( संवत् 1900 से आगे) में बाँटा है और साहित्यिक प्रवृत्तियों की प्रधानता के अनुसार वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और गद्यकाल में।

हर काल खंड का अपना ही असर और महत्व है, समय के साथ साथ सोच भी बदलती रही है।   

 

 

 

प्रश्न 14. काव्य विधा का आठ रसों में सृजन होता है। आप काव्य के कौन से रस में लिखना अधिक पसंद करते हैं? 

 

रावत जी :-  मैं श्रृंगार, वीर, हास्य में ही लिखता हूं। 

 

 

 

प्रश्न 15. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस विचार के अनुसार कितना सफल मानते हैं? 

 

रावत जी :- लेखन का उद्देश्य मात्र श्रोताओं का मनोरंजन करना नहीँ होता बल्कि उनमें जागरूकता, देशप्रेम की भावना भरना भी होता है। क्योंकि लेखक का हथियार होता है उसकी कलम और उसके शब्द, उसकी भावना होती है  गोलियां जो शरीर पर नहीं दिल पर मार करती हैं। इसलिये मैं सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका का प्यार और विछोह नहीं बल्कि कुरीतियों पर भी वार करता हूं। 

 

 

 

प्रश्न 16. रावत सर, आपकी कहानियों में मध्यमवर्गीय परिवार के संस्कारों की मिठास होती है, इस विषय में हम आपके विचार जानना चाहते हैं। 

 

रावत जी :-  मेरी कहानियां एक सामाजिक दर्पण की तरह होती हैं, जिसमें व्यक्ति को स्वयं और परिस्थितियों के समन्वय का प्रारूप दिखाई देता है, जिनमें भावनात्मक लगाव भी, अनकहे शब्द भी हैं और अप्रकट मानसिक वेदनायें भी हैं। मध्यवर्गीय ही वह प्राणी होते हैं जो अपने ऊपर वालों और नीचे वालों देखते हैं लेकिन अपने दायरे में सिमटे घुटते रहते हैं। 

 

 

 

प्रश्न 17.  रावत सर, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

 

रावत जी :-  मेरी दृष्टि से लेखन लेखक के द्वारा जनित वह शिशु होता है जो कि उसकी स्वयं की पैदाइश होता है, मैं न कविता और ना ही कहानियों मे किसी बंधन में अपने को फंसाता हूं बल्कि वह दर्द जो अंदर है लिखता जाता हूं – – यदि भाव और कला के बीच में फंसा तो धोबी के कुत्ते की तरह ना चर कि ना घाट का। इसलिये मेरे विचार से प्रवाह के साथ हर तटबंध को तोड़ देना चाहिए 

 

 

 

प्रश्न 18. रावत सर, आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विष्लेषण के नाम पर तुलना किया जाना कुछ अधिक ही प्रचलित हो गया है, जिससे तुलना के स्थान पर छद्म आलोचना का माहौल बन जाता है। इस छद्म आलोचना का सामना कैसे किया जाना चाहिए?

 

रावत जी :-  जैसा मैंने कहा कि रचना किसी रचनाकार की स्वयं की भावनाओं की तश्वीर होती है, उस तश्वीर को जिस दृष्टि /सोच से वह देखता है कोई दूसरा नहीं देख सकता। आधुनिकता आर्ट के नाम से जो आड़ी – तिरछी लाइनें रहती हैं, हर देखने वाला उनमें कोई अलग ही बात देखता है–लाइनें वही रहतीं है लेकिन अर्थ बदल जाते हैं। इसी प्रकार आजकल विष्लेषण के नाम पर आलोचना ही ज्यादा होती है – – सार्थकता कम। 

 

 

 

प्रश्न 19. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है? 

 

रावत जी :- बागवानी, घूमना और खेलना। 

 

 

 

प्रश्न 20. रावत सर, आप विशिष्ट कौशल सम्पन्न हैं। क्या आपको लगता है कि आपके इस कौशल को अन्य लोगों तक विस्तारित करना चाहिए?

 

रावत जी :- नहीं, ना तो मुझमें कोई कौशल है और ना ही मेरी रचनाओं में। बल्कि बहुत सीधी साधी भावनाओं को पाठक अपने कौशल से श्रेष्ठ बना देते हैं तो इसमे श्रेय उनका है। कहते जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन वैसी–हां यदि मेरी रचनाओं में मेरे पाठको को कुछ विशेष लगता है तो अवश्य ही विस्तारित होना चाहिये। 

 

 

 

प्रश्न 21. श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा  विविध साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, आप कल्पकथा के लिए क्या संदेश देना चाहेंगें।

 

रावत जी :- किसी मंच की सार्थकता तभी है, जब वह अपने सिद्धांतों के साथ समझौता न कर के एक प्रेरणा बन कर समाज और देश और व्यक्ति के बीच एक कड़ी बन कर रहे और कल्पकथा से यही आशा है कि  विभिन्न आयोजनों द्वारा  नये नये लेखकों को उनके विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता दे और प्रोत्साहन दे। आप के कार्यक्रमों की सराहना भी करता हूं। 

 

 

 

प्रश्न 22. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

 

रावत जी :-  मैं अपने पाठको और सभी लेखकों से यही कहना चाहता हूं कि लेखन को विशेष विज्ञान नहीं हैं। इसलिये अपनी भावनाओं को अपने तक सीमित न रखें बल्कि अपने लिए, अपने समाज-देश के लिए उन्हें शब्दों की वाणी दें। और लिखते समय कठिन शब्दों को नहीं आम शब्दों का प्रयोग करें और साथ ही साथ दूसरे के लेखन को सराहें, उसकी कमियों को सार्थक रूप से मार्गदर्शन दें क्योंकि कोई भी संपूर्ण नहीं होता। 

 

✍🏻 भेंटवार्ता : श्रीमान राजीव रावत जी 

 

 

 

       तो ये सम्वाद रहा हमारे साथ भेंटवार्ता के दौरान जुड़ीं श्रीमान राजीव रावत जी से हुए प्रश्नोत्तर में। इनके राष्ट्रहित में विचार जानकर हम सब अभिभूत हैं। कमेन्ट बॉक्स में आप के विचारों का स्वागत रहेगा। 

         

 राजीव रावत जी का साक्षात्कार देखने के लिए लिंक पर जाएं : 

https://www.youtube.com/live/FNID9VyY3hc?si=ySuMvZGOWab-qpNu

 

     अगली भेंटवार्ता में आप सभी को मिलवाते हैं एक और साहित्यकार से। साथ ही आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी साहित्यकार का साक्षात्कार विशेष रूप देखना और पढना चाहते हैं तो अपने सुझाव हमें कमेन्ट बॉक्स में लिखकर दें। 

 

✍🏻 निवेदक संचालक एवं प्रश्नकर्ता : 

कल्पकथा परिवार

 

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमान राजीव रावत” !!”

  • पवनेश

    कल्प भेंटवार्ता में श्री राजीव रावत जी के साथ संवाद रुचिकर रहा।
    राधे राधे 🙏🌹🙏

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