!! “व्यक्तित्व परिचय – श्रीमती संजुला सिंह “संजू” जी” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 2024-09-19
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय – श्रीमती संजुला सिंह “संजू”
जी” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम- श्रीमती संजुला सिंह “संजू”
पिता- स्वर्गीय श्री (डॉ० ) राजेंद्र सिंह । माता -श्रीमती उमा देवी ।
जन्म तिथि- 13 मई 1971
जन्म स्थान – पटना ।
जीवनसाथी -श्री बिमल कुमार सिंह ।
पुत्र – आनंद राज सिंह ।
शिक्षा- परा स्नातक (हिंदी) ।
व्यवसाय-ब्यूरो चीफ, अदब टाइम्स (अयोध्या), गृहिणी ।
स्थायी निवास -मोहन पार्वती पथ. भाटिया बस्ती (कॉलोनी) कदमा, जमशेदपुर( झारखंड )-83 1005 ।
वर्तमान निवास – मध्य प्रदेश सिंगरौली ।
मेल – singhsanjula123@gmail.com
रचनात्मक उपलब्धियां- साहित्य
जगत की लब्धप्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं और समाचार पत्रों यथा पंजाब केसरी, हिंदू ,त्रिगुट, प्रेम साहित्य ,अयोध्या टाइम्स, युग जागरण, पवन भारत टाइम्स,नेशनल एक्स्प्रेस
यू एस ए के “हम हिंदुस्तानी ” आदि में समय-समय पर कविताएं व कहानियां प्रकाशित ।
प्रकाशित पुस्तक-अभिव्यक्ति (काव्य संग्रह )
पुरस्कार /सम्मान- मेगाबाइट सोशल वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 2023 में साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित।
पंजाब केसरी समाचार पत्र द्वारा 2023 मे ” मेरे राम ” प्रतियोगिता में मेरे स्वरचित गीत को पुरस्कार प्राप्त।
07जुलाई2024 को अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल, जबलपुर द्वारा सर्वश्रेष्ठ सृजन सम्मान मिला।
11 जुलाई2024 को अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल, जबलपुर द्वारा काव्य पाठ प्रेरणा रत्न सम्मान मिला।
18 जुलाई2024 को अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल, जबलपुर द्वारा साहित्य गौरव सम्मान मिला।
09अगस्त 2024 को रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच,रायबरेली द्वारा साहित्य गौरव सम्मान मिला।
29अगस्त2024 को अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल, जबलपुर द्वारा साहित्य गौरव रत्न सम्मान मिला।
08 सितंबर2024 को रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच,रायबरेली और सोशल एण्ड मोटिवेशनल ट्रस्ट नोएडा द्वारा वन्देमातरम सम्मान 2024 मिला ।
!!मेरी पसंद!!
उत्सव_दीपावली, होली ।
भोजन-शाकाहारी
रंग-गुलाबी, सफेद, आसमानी नीला।
परिधान-भारतीय वस्त्र।
स्थान एवं तीर्थ स्थल- अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन और नाशिक।
लेखक/लेखिका-महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर
उपन्यास/कहानी/पुस्तक-कहानी और सामयिक पुस्तक।
कविता/गीत/काव्यखंड-कविता और काव्य खंड।
खेल-बैडमिंटन , अंतराक्षरी।
फिल्में/धारावाहिक- वागवान फिल्म
धारावाहिक में रामायण , महाभारत।
प्रिय कृति-अभिव्यक्ति(काव्य सग्रंह)।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. संजुला जी, कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कार्यक्रम की परंपरा के अनुसार आपका पारिवारिक/शैक्षणिक/व्यवसायिक (यदि हो तो) परिचय दर्शकों तक पहुंचाना चाहेंगे?
संजुला जी :- मैं संजुला सिंह “संजू” एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूं । मेरे पिता स्वर्गीय श्री ( डॉ०) राजेन्द्र सिंह आर डी महाविद्यालय में अध्यापक थे । मेरी माता जी श्रीमति उमा देवी एक एक साधारण गृहणी हैं । मेरे पति श्री विमल कुमार सिंह एक एम एन सी कंपनी में एरिया मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं । मेरा बेटा आनंद राज सिंह भी एक एम एन सी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है । मैं कवियित्री , साहित्यकार के साथ – साथ एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में अयोध्या जनपद की ब्यूरो प्रमुख हूं और “उत्तर प्रदेश मीडिया एसोसिएशन ” उत्तर प्रदेश की प्रदेश उपाध्यक्षा भी हूं।
प्रश्न 2. साहित्य जगत से आपका परिचय कब और कैसे हुआ?
संजुला जी :- साहित्य जगत से मेरा परिचय स्कूली शिक्षा के समय से ही हो गया था और मैं स्कूल और कॉलेज टाइम में ही कविताएं व डिबेट स्वयं लिखकर प्रतियोगिताओं व समारोहों में भाग लिया करती थी । लेकिन शादी के बाद 30 सालों तक मैं साहित्य से पारिवारिक रूढ़िवादिता व पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण इससे एकदम से दूर हो गई और साहित्य मेरे भीतर कहीं दब सा गया था किंतु , वह पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ था । इसीलिए पुनः 2022 के आसपास मैंने अपने साहित्यिक जीवन की फिर से शुरुआत की और अपनी रचनाओं ,मन की भावनाओं को फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखना शुरू किया।
प्रश्न 3. संजुला जी, आप कल्पकथा के साथ इस भेंटवार्ता को कैसे देखती हैं? क्या आप उत्साहित हैं?
संजुला जी :- मैं बहुत उत्साहित हूं कल्प कथा के इस भेंट वार्ता के साथ । क्योंकि मैं चाहती थी कि मेरी तरह और भी जो लेखक /लेखिका हैं वह कभी भी हार मानकर ना बैठें । वो भी अपने प्रयासों से साहित्य के प्रति अपनी रुचि को समय आने पर पुनः शुरू करें क्योंकि मैं भी 30 सालों तक साहित्य से बिल्कुल ही दूर रही किंतु साहित्य के प्रति मेरी संवेदनाओं और मोह के कारण मैं अपने मनपसंद क्षेत्र साहित्य में आज पुनः आगे बढ़ रही हूं । इस भेंट वार्ता के जरिए मैं सभी को बताना चाहती हूं कि किसी भी कार्य को करने की कोई उम्र नहीं होती है ।आप जब भी अपने आत्म बल को मजबूत कर लें तभी आप इसकी शुरुआत कर सकते हैं।
प्रश्न 4. संजूला जी, आप वर्तमान झारखण्ड की औद्योगिक, एवं लौहनगरी जमशेदपुर से हैं। जमशेदपुर औद्योगिक क्षेत्र होने के साथ ही ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध नगर बताया गया है। आप अपने शब्दों में हमें इस सुन्दर नगर के बारे में बताइये?
संजुला जी :- जमशेदपुर औद्योगिक , ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी होने के साथ-साथ प्राकृतिक छटाओं से भी भरपूर नगरी है। इसे लौह नगरी अथवा इस्पात नगरी भी कहा जाता है। यहां पर रहने वाले व्यक्ति ने यदि इसे आत्मसात कर लिया तो वह शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी फौलाद का हो जाता है जैसे कि “मैं “_____ ।
प्रश्न 5. संजुला जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है?
संजुला जी :- मैं अपने बचपन की एक घटना बताना चाहूंगी जिसे सोचकर मुझे आज भी हंसी आ जाती है। हम सभी भाई बहन आपस में किसी भी बात को लेकर खूब हंसा करते थे । यदि किसी एक को भी हंसी आ गई तो हम सब की हंसी नहीं रुकती थी । घर में पिताजी -माता जी अनुशासन प्रिय थे और बचपन में हमने भी अनुशासित जीवन को जिया है । घर में जब भी कोई अतिथि आते थे तो हम लोगों को यह सख्त हिदायत थी कि जब तक अतिथि घर पर हैं तब तक किसी की भी आवाज ड्राइंग रूम तक नहीं आनी चाहिए। एक दिन पिताजी के सहकर्मी अपने परिवार के साथ हमारे घर आए । हम सभी भाई बहन आपस में बातचीत करके हंस ही रहे थे कि तभी मेरी माता जी ने आकर हम सभी को चेताया कि घर में मेहमान आए हुए हैं अब किसी की भी आवाज बाहर तक नहीं आनी चाहिए इस पर मेरी बड़ी दीदी ने एक्टिंग करते हुए कहा कि घर में मेहमान आए हैं आवाज नहीं ! यह सुनकर और दीदी का चेहरा देखकर हम सभी भाई बहन जोर-जोर से हंसने लगे तभी माताजी ने आकर हम सभी को शांत रहने की पुनः हिदायत दी लेकिन उनके जाने के बाद हम सबको और जोर-जोर से हंसी आने लगी। इसी बीच मेहमान ने हम लोगों से मिलने की इच्छा प्रकट की । हम लोग मेहमान से मिलने के लिए ड्राइंग रूम में गए और मेहमान का पैर छूते ही दीदी की बात याद करके सभी फिर हंसने लगे । मेहमान के जाने के बाद हम सभी भाई – बहनों की माता जी के द्वारा खूब कुटाई हुई , पर मजे की बात तो यह थी कि उस पिटाई में हम लोगों को चोट का एहसास बिल्कुल ही नहीं हो रहा था बल्कि और भी तेज से हंसी आ रही थी और माता जी का पारा उतना ही चढ़ रहा था । इस घटना को आज भी याद कर के मुझे बरबस ही हंसी आ जाती है ।
प्रश्न 6. संजुला जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान अनेक काव्य रचनाओं का सृजन किया है, इस यात्रा के दौरान लिखी गई कोई एक काव्य रचना जो आपकी रुचिकर रचनाओं में सम्मिलित है हमारे दर्शकों को सुनाइए?
संजुला जी :- मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैं जब भी अपनी कोई भी कविता फेसबुक ,व्हाट्सएप या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखती थी तो उसे पढ़ने वाले उसे मेरे जीवन से जोड़कर देखते थे ।जैसे मैंने प्रेम पर कविता लिखी तो लोग पूछते थे आखिर कौन है वह खुशनसीब और जब मैं कभी दुख भरी , गम भरी कविता लिखती थी तो लोग पूछते थे कि आपको क्या कष्ट है आप क्यों दुखी हो ? तो उस समय मुझे उनकी ऐसी बचकानी बातों से बड़ा आश्चर्य होता था , और तब मुझे लगता था कि मैं ही नहीं बल्कि सभी लेखक/ लेखिकाओं को यही कष्ट होता होगा कि कोई भी यह समझने को तैयार नहीं होता था की हमारी कविताएं हमारे आसपास घट रही घटनाओं ,मन को उद्वेलित करने वाले विचारों और मन की कोरी कल्पना मात्र होती है । तब मैंने इसी के ऊपर एक कविता लिखी जो की मेरी रुचिकर कविताओं में से एक है जो मैं आप सभी को सुनाना चाहती हूं । मेरी कविता का शीर्षक है ____
“न हूँ लेखिका मैं
न हूँ मैं कवियित्री”
न हूँ लेखिका मैं
ना हूं मैं कवियित्री
बस हूं भावना को
कागज पे उड़ेलती ।
पर भावों को मेरे
ना कोई समझते
मेरी लेखनी मेरा
जीवन समझते ।
मेरे समझाने पर भी
ना बिल्कुल समझते
अपनी ओछी बुद्धि का
हैं परिचय देते ।
दुख तो बहुत होता है
मुझको फिर भी
लिखूंगी हकीकत चाहे
जो हो कुछ भी ।
क्योंकि , बीड़ा उठाया है
ये मैंने दिल से
सुधरेंगे कुछ तो भी
मेरी कलम से ।
कुछ तो करूंगी मैं
अपनी कलम से
यह चिंतन है मेरा
मेरे अंतर्मन से ।
समय कुछ लगेगा
ये हूं मैं समझती
पर पूरा करूंगी
हूँ संकल्प करती ।
प्रश्न 7. आपके गृहनगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?
संजुला जी :- अपनी मातृभूमि सबको प्रिय होती है , सो मुझे भी है । लेकिन मुझे अयोध्या , मथुरा , वृन्दावन और नासिक बेहद पसंद है । अयोध्या , मथुरा और वृन्दावन में पहुंचकर मैं स्वयं में खो जाती हूं। मुझे वहां पर बहुत ही आत्मिक और मानसिक शांति मिलती है। नासिक की प्राकृतिक छटा मुझे बहुत ही आकर्षित करती है।
प्रश्न 8. संजुला जी, आप लेखन की विभिन्न विधाओं में पारंगत हैं। फिर भी लेखन की किस विधा में लिखना आपको सहज लगता है और क्यों?
संजुला जी :- मुझे सामाजिक विषयों जो कि मेरे अंतर्मन को झकझोरते हैं और भक्ति रस की कविताओं को लिखना अच्छा और सहज लगता है। मैं जब भक्ति रस की कविताओं को लिखती हूँ, तो मैं अपने आप को भूलकर उसी में विलीन हो जाती हूँ। जब सामाजिक मुद्दों पर लिखती हूं तो मेरे मन की व्यथा, अंदर का सारा क्रोध, सारी पीड़ा अपने आप ही कलम में समाहित हो जाती है और मेरी कलम स्वतः ही चलने लगती है।
प्रश्न 9. आप अपने व्यक्तिगत जीवन और साहित्य सृजन में कैसे सामंज्य बिठाती हैं?
संजुला जी :- देखिए यह प्रश्न समयानुकूल है। मैं जानती हूँ कि यदि मैं अपने व्यक्तिगत/सामाजिक या पारिवारिक जीवन में यदि कोई कमी करूंगी, तो उसका सीधा असर मेरे साहित्यिक जीवन पर पड़ेगा। यदि मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां को पूरा करने में कोई कमी करूंगी तो यही मेरे पति, मेरा बेटा, मेरे परिवार के लोग जो आज मेरा सहयोग करते हैं, वही मेरे साहित्यिक सफर में बाधक भी बन जाएंगे। इसलिए मेरा निरंतर प्रयास रहता है कि मैं अपने पारिवारिक/व्यक्तिगत जीवन की जिम्मेदारियों का निर्वहन प्राथमिकता के आधार पर करते हुए अपने बचे हुए समय को साहित्य सृजन में लगाऊं।
प्रश्न 10. आप की दृष्टि में साहित्य क्या है और ये किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?
संजुला जी :- साहित्य को परिभाषित करना सूर्य को दिया दिखाने के समान होगा। मेरी नजर में साहित्य समाज को जागरूक करने, संस्कार युक्त करने, सामाजिक जीवन को एक दिशा देने व आने वाली पीढ़ी को एक संदेश देने का सशक्त माध्यम है। समाज में साहित्यकार अपने लेखन और कविता के माध्यम से समाज में तत्कालीन सामाजिक बुराइयों, सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने, उनका ध्यान आकृष्ट करने और लोगों को उक्त समस्याओं को दूर करने के लिए प्रेरित करता है।
प्रश्न 11. संजुला जी, आज अधिकांश लेखक वर्ग अपनी उपलब्धियों पर प्रफुल्लित है। अपने अनुभव के आधार पर आप अपने लिए उन उपलब्धियों को किस दृष्टिकोण से देखती हैं?
संजुला जी :- एक बात मैं कहना चाहूंगी कि अपनी उपलब्धियों पर खुश होना , प्रफुल्लित होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह तो शुरुआत मात्र है क्योंकि कोई भी व्यक्ति संपूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए हमें हमेशा संपूर्णता की ओर बढ़ते रहने को प्रयासरत रहना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है, मैं अपनी उपलब्धियों और लोगों की प्रशंसा को इस नजरिए से देखती हूँ कि मैं सही दिशा में जा रही हूं। लोग जब अपनी प्रतिक्रियाएं मेरी रचनाओं पर देते हैं और उसमें प्रशंसा का भाव होता है तो मुझे लगता है कि मैं बिल्कुल सही दिशा की ओर बढ़ रही हूँ और जब किसी मंच या संस्था द्वारा मैं सम्मानित होती हूं तो मुझे लगता है मेरी जिम्मेदारियां साहित्य और समाज के प्रति और भी बढ़ गई हैं तथा ये मुझे और भी ज्यादा मेहनत करने को प्रेरित करती है।
प्रश्न 12. संजुला जी, आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विष्लेषण के नाम पर तुलना किया जाना कुछ अधिक ही प्रचलित हो गया है, जिससे तुलना के स्थान पर छद्म आलोचना का माहौल बन जाता है। इस छद्म आलोचना का सामना कैसे किया जाना चाहिए?
संजुला जी :- मैं आपकी बात से सहमत हूं आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विश्लेषण के नाम पर तुलना की जाने लगी है। लेकिन मेरा मानना है तुलना जब छद्म आलोचना के रूप में सामने आती है, तो हमें इससे विचलित नहीं होना चाहिए। इस आधुनिक युग में यह सत्य है कि आलोचना उसी की होती है, जो वाकई में कुछ करता है। अथवा जिसके अंदर कुछ करने का दम होता है जैसे कभी भी कोई एक भिखारी की तुलना अंबानी से नहीं करता है। यदि अंबानी की तुलना की भी जाती है तो उसके आसपास के स्तर के व्यक्तियों के साथ ही की जाती है जैसे कि रतन टाटा, अदानी आदि की तुलना अंबानी के साथ की जाती है, क्योंकि यह लोग उनके आसपास के स्तर के लोग हैं। इसीलिए जब छद्म आलोचना किसी बड़े लेखक के साथ तुलना करके की जाती है तो हमें सोचना चाहिए कि हम भी कहीं ना कहीं उस बड़े लेखक के आसपास पहुंच चुके हैं। इसलिए कभी भी इससे हमें इरिटेट नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 13. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करती हैं?
संजुला जी :- मैं आपसे यह पूछना चाहूंगी कि देश हित से आपका तात्पर्य क्या है? क्या बंदूक लेकर सीमा पर जाकर लड़ना ही देशहित है? अथवा आई ए एस बनकर प्रशासन करना देशहित है? अथवा विधायक , सांसद और मंत्री बनकर कार्यपालिका को चलाना ही देशहित है ? नहीं ! मैं मानती हूं कि देश की सुरक्षा, देश का विकास, देश की समृद्धि, देश की शांति आदि को बढ़ाने में अपना योगदान देना ही देशहित होता है और मेरे लेखन में चाहे वह सामाजिक मुद्दों, चाहे वह धार्मिक मुद्दों ,चाहे वह सांस्कृतिक विरासत, चाहे समसामयिक मुद्दों पर लोगों को जागृत करने का संदेश देना समाहित होता है। इसलिए मैं अपने लेखन को देश हित की श्रेणी में मानती हूं , क्योंकि जब मेरा देश सांस्कृतिक , आपसी सद्भाव, धार्मिक, परस्पर सहयोग आदि विभिन्न सामाजिक सरोकरों से समृद्ध होगा तो देश भी समृद्धि की ओर अग्रसर होगा।
प्रश्न 14. आप अपने समकालीन लेखकों एवं कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?
संजुला जी :- अमृता प्रीतम। क्योंकि उनकी लेखनी में मुझे सत्यता और निर्भीकता दिखती है।
प्रश्न 15. संजुला जी, वर्तमान युग सोशल मीडिया का युग है जिसने जीवन को लगभग हर स्तर पर स्पर्श किया है, प्रश्न यह है कि आप साहित्य में सोशल मीडिया के प्रभाव को किस रूप में देखती हैं?
संजुला जी :- यह सही है सोशल मीडिया ने जिस प्रकार हमारे जीवन और इसके हर पहलुओं को स्पर्श किया है उससे हमारे जीवन का कोई भी पहलू अछूता नहीं रह गया है । जहां एक ओर सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू हैं वहीं दूसरी तरफ इसके दुष्प्रभावों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन ,वर्तमान में साहित्य के क्षेत्र में सोशल मीडिया एक अग्रदूत के रूप में भी कार्य कर रहा है जैसे कि हम आप अभी सोशल मीडिया पर ही बैठे हैं और अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं । मेरा मानना है कि सोशल मीडिया ने साहित्य के क्षेत्र को वृहद और सुगम बना दिया है। इसके जरिए लेखक अपनी रचनाओं/विचारों आदि को आम जनमानस तक आसानी से पहुंच पा रहा है।
प्रश्न 16. संजुला जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखती हैं?
संजुला जी :- एक बात मैं खुले रूप से कहना चाहूंगी कि अच्छा लेखन हमेशा लोगों को प्रेरित करता है, उनके अंतर्मन को छूता है। जो भी लेखक/कवि अपनी रचनाओं, अपने विचारों को सरल रूप से आम लोगों तक पहुंचाएगा और उनके अंतर्मन को झकझोरने की ताकत रखेगा तो निश्चित ही उसका अपना एक अलग स्थान होगा और उसका भविष्य उज्जवल ही होगा। लेकिन प्रायः ऐसा देखने को मिलता है कि लेखक/ कवि अपने स्वतंत्र भावों व विचारों को ना अपनाकर किसी बड़े कवि या लेखक की नकल करने का प्रयास करता है तो उसके लिए ऐसा करना घातक ही सिद्ध होगा , क्योंकि जब हम अपने मूल प्रवृत्ति को छोड़कर दो नावों की सवारी करने का प्रयास करेंगे तो हमारा डूबना निश्चित है।
प्रश्न 17. संजुला जी, आप अपने साहित्यिक जीवन के किसी एक ऐसे अनुभव को दर्शकों से साझा करना चाहेंगे जिसमें आपके प्रयासों की सफलता के साथ मानसिक संतुष्टि सम्मिलित हो?
संजुला जी :- एक घटना मैं आप सबसे साझा करना चाहती हूं जब मैंने अपना साहित्यिक जीवन 30 वर्षों बाद शुरू किया तो मेरे अंतर्मन में आए विचारों ,आसपास के घटनाओं को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर लिखना शुरू किया । उसी समय मेरे एक मित्र ने मुझे अपनी रचनाओं को समाचार पत्रों में प्रकाशित कराने का सुझाव दिया जो मुझे भी सही लगा । आज मेरी १५० से अधिक रचनाएं लगभग ५० से ज्यादा प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं । मेरी रचनाएं सिर्फ हमारे देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रकाशित हो रही हैं । यू एस ए के सबसे बड़े हिंदी समाचार पत्र “हम हिंदुस्तानी ” में मेरी कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं । इसी बीच मेरे मित्र ने मुझे बताया कि पंजाब केसरी समाचार पत्र द्वारा एक प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है जिसमें श्री राम जी के ऊपर स्वरचित कविता का पाठ करना है जिसमें जीतने वाले को अयोध्या में श्री राम के नवनिर्मित मंदिर के दर्शन हेतु आने-जाने का किराया पुरस्कार के रूप में दिया जाएगा। उनकी बात सुनकर मेरे मन में घबराहट और असमंजस दोनों ही था कि क्या मैं 30 साल बाद ऐसी प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर पुरस्कार प्राप्त कर पाऊंगी ?लेकिन अपनी पूरी लगन से मैंने मेरे राम पर एक कविता लिखी और उसको स्वयं पढ़कर प्रतियोगिता में भाग लिया , और जब प्रतियोगिता का परिणाम घोषित हुआ और मैं ” मेरे राम “कॉन्टेस्ट में अयोध्या जाने का पुरस्कार जीत गई। यह मेरे प्रयासों की सफलता के साथ-साथ मुझे मानसिक संतुष्टि और प्रेरणा देने का क्षण था।
प्रश्न 18. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष रूप से प्रिय है?
संजुला जी :- लेखन के अतिरिक्त मुझे पत्रकारिता, खाना बनाना और खिलाना, संगीत सुनना और खुद भी गुनगुनाना, घूमना विशेष रूप से प्रिय है।
प्रश्न 19. संजुला जी, काव्य विधा का आठ रसों में सृजन होता है। आप काव्य के कौन से रस में लिखना अधिक पसंद करती हैं?
संजुला जी :- रस युक्त वाक्य ही काव्य होता है। हम कवि लोग श्रव्य काव्य के अंतर्गत ही आते हैं श्रव्य काव्य जिसमें मुझे मुक्तक काव्य के हास्य रस,करूण रस, अद्भुत रस और भक्ति रस में काव्य लिखना बेहद पसंद है।
प्रश्न 20. संजुला जी, आप रचनाएँ किसी माँग (विषय/परिस्थिति) पर सृजित करना पसंद करते हैं या फिर स्वत: स्फूर्त सृजन को प्राथमिकता देती हैं?
संजुला जी :- मैं स्वतः स्फूर्त सृजन को ही प्राथमिकता देती हूं, क्योंकि किसी मांँग, विषय या परिस्थिति पर सृजन करने में हमारे विचार बंध जाते हैं जबकि स्वतः स्फूर्त सृजन में हमारे विचार अंदर से उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 21 संजुला जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?
संजुला जी :- मेरे दृष्टिकोण में रचनाओं में भाव पक्ष व कला पक्ष का संतुलन होना अनिवार्य है, क्योंकि यदि हमारी रचनाओं में भाव पक्ष और कला पक्ष में संतुलन नहीं होगा तो हमारी रचना लोगों के अंतर्मन को छू नहीं पाएगी। जिस प्रकार बिना भाव के ईश्वर की प्राप्ति असंभव है, ठीक उसी प्रकार बिना भाव पक्ष और कला पक्ष के संयोजन के रचनाओं में जीवंतता लाना असंभव है।
प्रश्न 22. जीवन में कभी सफलता तो कभी असफलता भी आती रहती है। आप इन सफलताओं और असफलताओं को कैसे देखती हैं?
संजुला जी :- आपका यह प्रश्न वर्तमान समय में प्रासंगिक है। मेरा मानना है कि सफलता हमें एहसास दिलाती है कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं। जबकि असफलता हमें प्रेरित करती है कि हमें अभी और भी मेहनत करने की आवश्यकता है। असफलता ही हमें हमारे लक्ष्य के मार्ग से भटकने नहीं देती है।
प्रश्न 23. संजुला जी, श्री राधा गोपीनाथ जी की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार एवं हमारे कल्प प्रमुख के कार्यों से परिचित हैं। इन कार्य प्रयासों को आप कैसे देखती हैं?
संजुला जी :- मैं कल्प कथा परिवार एवं श्री राधा गोपी नाथ जी महाराज के द्वारा साहित्य के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों को प्रणाम, नमन, वंदन एवं अभिनंदन करती हूँ। आपके कल्पकथा परिवार द्वारा साहित्य के क्षेत्र में कवियों और नवोदित कवियों को एक ऐसा साझा मंच प्रदान किया जा रहा है जिससे कि नवोदित कवियों को बहुत कुछ सीखने का अवसर मिल रहा है। वहीं दूसरी ओर कवियों को अपने विचारों और रचनाओं को लोगों तक पहुँचाने का भी एक सशक्त माध्यम मिल रहा है । कल्पकथा परिवार द्वारा साहित्यिक विकास के लिए किये जा रहे कार्य और सार्थक प्रयास साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगें । मैं श्री राधागोपीनाथ जी महाराज और कल्पकथा परिवार का आभार व्यक्त करती हूं कि आप के द्वारा साहित्यिक क्षेत्र के विद्वान साहित्यकारों एवं नवोदित साहित्यिक कलमकारों के विकास व संवर्धन के लिए किया जा रहे प्रयास अतुल्यनीय है। आज कल्पकथा परिवार की ही देन है कि मेरे जैसे नवोदित साहित्यकार लोगों के बीच में अपने विचारों को व्यक्त कर पा रहे हैं।
प्रश्न 24. आप अपने पाठकों, दर्शकों, और समाज, को क्या संदेश देना चाहते हैं?
संजुला जी :- मैं अपने पाठकों , दर्शको और समाज को केवल इतना ही कहना चाँहूगी कि यदि मनुष्य ठान ले तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता है जरूरत होती है तो बस उस कार्य को निष्ठा , ईमानदारी और लगन से करने की । सफलता और असफलता से विचलित न होकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की , क्योंकि प्रकृति का नियम है जो हम देते हैं वही हमें वापस मिलता है । हमें प्रयास करना चाहिए कि हम अपने परिवार के साथ-साथ समाज और देश के लिए भी अच्छा करें और हमेशा अच्छा करने की ही सोचे । हम तभी समृद्ध होंगे जब हमारा समाज और देश समृद्ध होगा ।
जय हिंद जय भारत _____
एक बार मैं पुनः कल्प कथा परिवार का आभार प्रकट करती हूँ कि उन्होंने मुझे यह अवसर प्रदान किया। धन्यवाद ।
✍🏻 भेंटवार्ता : श्रीमती संजुला सिंह “संजू”
कल्प भेंटवार्ता में आप की भेंट हुई जमशेदपुर, झारखण्ड की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती संजुला सिंह “संजू” जी से। कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल पर देखिये भेंटवार्ता गुरुग्राम, हरियाणा की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती संजुला सिंह “संजू” को। साथ ही जानिये उनके जीवन के कुछ अनछुए पल, संजुला सिंह “संजू” जी के शब्दों में।
देखने के लिए लिंक को छुएं, साथ ही चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें : 👇
https://www.youtube.com/live/GVrMAJXkhoo?si=rjtCQ4btQY3nMfZ6
अगले सप्ताह हम आपकी भेंट एक और विशिष्ट साहित्यकार से करायेंगे। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा परिवार
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पवनेश
राधे राधे, संजुला के साथ भेंटवार्ता कार्यक्रम में जुडकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। सादर 🙏🌹🙏