
!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती सुशीला चनानी” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 20/11/2024
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- श्रीमती सुशीला चनानी
माता का नाम-स्वर्गीय गोदावरी देवी कटारूका
पिता का नाम।-स्वर्गीय मदन लाल कटारूका
जन्म स्थान -अलसीसर ,जिला झुंझनूं, राजस्थान
जन्म तिथि -15 मार्च
पति का नाम -श्री यादव कुमार चनानी
बच्चों के नाम –
पुत्र-राहुल चनानी
पुत्री-मनीषा टीबडेवाल
शिक्षा-विज्ञान स्नातक (:लेडी ब्रेबोर्न काॅलेज)
ब्यवसाय -पति प्राइवेट फर्म में कार्यरत थे ।अब रिटायर्ड हैं।
पुत्र -ब्रिक्स(मुम्बई) में कार्यरत है।
वर्तमान निवास -29/1 बांगुड एवेन्यू ,ब्लाक ‘सी’,श्री एपार्टमेन्ट,
कोलकाता 55(पश्चिम बंगाल)
मेल आइ डी- -sushilachanani@gmail.com
आपकी कृतियाँ – छन्द मुक्त, क्षणिकायें, दोहे, हाइकु, गीत
आपकी विशिष्ट कृतियां :-
अपना अपना सूरज
प्रकृति और बाजारवाद
मेरी खुशबू मेरी पहचान
मेरा बसन्त
बची रहूँ शायद
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-
सांझा संकलन
कदम दर कदम (काव्य धारा प्रकाशन)
काव्य माला (मनीषिका)
काव्य माला (2)( मनीषिका )
काव्य लहरी (भारतीय भाषा
परिषद )
सपनों की सेल्फी (हाइकु संग्रह)शारदेय प्रकाशन
सामाजिक चेतना मंजूषा(मनीषिका)
पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-
भारत निर्माण टेलेन्टेड लेडिज पुरस्कार
पश्चिम बंगाल प्रादेशिक सम्मेलन -मारवाडी गौरव पुरस्कार
कुमार सभा पुस्तकालय -कवि कुम्भ सम्मान
तत्कालीन राज्यपाल स्वर्गीय केसरी नाथ त्रिपाठी द्वारा
सिद्धि विनायक भक्त मण्डल –
समाज गौरव सम्मान
जागरण मंच – समाज सेवा सम्मान
पश्चिम बंगाल जेसीज-बेस्ट जेसीरेट सम्मान
भारतीय जेसीज
बेस्ट स्पीकर अवार्ड
पहचान 2015 पुरस्कार
एवं विभिन्न पलों पर प्रदत्त विषयों पर लिखने पर श्रेष्ठ एवं सर्वश्रेष्ठ के अनेक प्रमाणपत्र उपलब्ध
!! “मेरी पसन्द” !!
उत्सव-होली, दुर्गा पूजा,जन्माष्टमी
भोजन -राजस्थानी पंचमेश की सब्जी , मिस्सी रोटी , पंचमेश दाल , रायता
रंग -केसरिया ,गुलाबी
परिधान -साडी ,सलवार कुर्ती
स्थान।-उदयपुर
तीर्थस्थल -वृन्दावन
लेखक-मुंशी प्रेमचंद
लेखिका- अमृता प्रीतम, ममता कालिया ,मृदुला गर्ग
कवि – संत कबीर, कुंवर बैचैन, आत्मप्रकाश शुक्ल, कुमार विश्वास, नीरज
कवयित्री – सुभद्रा कुमारी चौहान, मीरा बाई, माया गोविन्द
उपन्यास /कहानी/पुस्तक :- निर्मला, मानसरोवर की कहानियां,
कविता :- गीत खंड, एक सपने के मरने से जीवन नहीं मरा करता है ,
खेल :- बचपन में स्कीपिंग , सतवींताली , वगैरह खिलते थे। इनडोर गेम में कैरम, लूडो ।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. सुशीला जी, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये।
सुशीला जी :- मेरे पिताजी बेलघरिया में अकाउंट्स विभाग में काम करते थे ।हमारे दो भाई थे ।एक की मृत्यु हो चुकी है ।
पिताजी आंशु कवि थे ।उनके पास पुस्तकों का संग्रह था ।बडे भाई भी काॅलेज पुस्तकालय से पुस्तकें लाते थे ।मै भी अपनी स्कूल के पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढाती थी ।टेकूसमैको का एक क्लब था वहां से भी हम पुस्तकें ला कर पढते थे ।उस समय अवकाश के समय हम पुस्तकें पढ कर बिताते थे ।इसीलिये साहित्य में मेरी रुचि बढी ।
प्रश्न 2. सुशीला जी, कल्पकथा के इस भेंटवार्ता कार्यक्रम में हम हिन्दी साहित्य के साहित्यकार की रुचि अभिरुचि को वार्ता के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं, आप इस कार्यक्रम को कैसे देखती हैं? क्या आप उत्साहित हैं?
सुशीला जी :- कल्प कथा के भेंट वार्ता कार्यक्रम को लेकर मैं उत्साहित हूँ और आपके इस प्रयास के लिये धन्यवाद देती हूँ।
प्रश्न 3. सुशीला जी, आप एतिहासिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण नगर कोलकाता की रहने वाली हैं। इस नगर के बारे में अपने शब्दों में कुछ बताइये।
सुशीला जी :- कोलकाता
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कोलकाता देश की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है।। यहां के धार्मिक स्थल काली मंदिर, दक्षिणेश्वर, बेलूर मठ आदि विश्व प्रसिद्ध है। विक्टोरिया मेमोरियल , बिडला प्लेनेटोरियम, अलीपुर जू , हावडा ब्रिज आदि बहुत प्रसिद्ध है ।
यहाँ के मूल निवासी बंगाली साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, सिनेमा आदि कलाओं में बहुत रुचि रखते हैं ।
यहाँ लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, जगधात्री पूजा बहुत धूमधाम से मनाते हैं ।
कोलकाता में विभिन्न प्रान्तों से आकर लोग बसे हुए हैं। मारवाडी, पंजाबी, बिहारी, गुजराती उडिया सभी अपने पर्वों को धूमधाम से मनाते हैं। बांगला हिन्दी में अनेक साहित्यिक संस्थाएं गोष्ठियों का आयोजन करती हैं। प्रतिवर्ष पुस्तक मेला लगता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम व साहित्यिक गोष्ठियों होती हैं।
कोलकाता कलाकारों का शहर है। यहां के लोगो में कला कूट-कूट कर भरी है।
प्रश्न 4. सुशीला जी, आपकी साहित्यिक यात्रा किन विशेष परिस्थितियों में आरम्भ हुई? और आपकी रचनाओं को उस समय कैसा प्रतिसाद मिला?
सुशीला जी :- मेरी साहित्यिक रूचि…..
साहित्यिक पुस्तकें पढने से मेरी साहित्यिक रूचि तो थी, पर मुझे आगे पढने के लिये विज्ञान दिलाया गया। इसलिये वह रुचि लेखन में प्रस्फुटित विवाह के बाद हुई, जब मेरा परिचय “अर्चना” नामक संस्था के संस्थापक नथमल केडिया जी से हुआ। वे एक मासिक गोष्ठी आयोजित करते थे। उस गोष्ठी से उन्हीं ने मुझे जोडा। वहां जुडकर मैं छन्द मुक्त रचनायें सृजन करने लगी और मेरी रचनाओं को वहां से बहुत प्रोत्साहन मिला।
प्रश्न 5. सुशीला जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानती हैं।
सुशीला जी :- जैसा मैने बताया साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘अर्चना’ को ही अपनी साहित्यिक यात्रा की पहली सीढी मानती हूँ ।
प्रश्न 6. आप काव्य सृजन की बहु विधा कौशल से समृद्ध कवियत्री के रूप में पहचान रखती हैं। आपकी अब तक की साहित्यिक यात्रा कैसी रही? साथ ही हम आपकी कोई एक कविता सुनना चाहेंगे।
सुशीला जी :- मैं पहले छन्द मुक्त और क्षणिकायें लिखती थी। पर बाद में मैंने दोहे, हाइकु,और कुछ छन्द भी सीखे। अपने गृहकार्य से निवृत्त हो कर आजकल मैं विभिन्न पटलों पर आयोजित कवि गोष्ठियों से जुडती हूँ। पहले बहुत से मंचों पर कविता पाठ किया है।
एक पहचान मैने बनाई है जब कि साहित्य मेरा विषय नहीँ। था ।
प्रश्न 7. सुशीला जी, आपने बहुत सी कविताएं लिखी है। हम जानना चाहेंगे आपने कौन कौन सी भाषाओं में काव्य सृजन किया है? साथ ही आपकी सबसे प्रिय कविता भी सुनना चाहेंगे।
सुशीला जी :- मूलतः मैने हिन्दी में ही लिखा है ।पर मैं बांग्ला पढ लेती हूँ इसलिये तस्लीमा नसरीन ,सुनील गांगुली नीरेन्द्रनाथ जी की कुछ कविताओं का बांगला भाषा से हिन्दी में अनुवाद किया था ।और भाषा दिवस पर कविता पाठ करने के लिये कभी कभी हिन्दी कविताओं को राजस्थानी में अनुवाद किया है।
प्रश्न 8. सुशीला जी, यूँ तो हर किसी का उसके अपने क्षेत्र में कोई न कोई प्रेरक होता है। ऐसे में आप आज के समय के किस लेखक या कवि से सबसे अधिक प्रभावित हैं?
सुशीला जी :- क्षणिका की प्रेरणा मुझे स्वनामधन्य राजस्थानी व हिन्दी कवि कन्हैया लाल जी सेठिया से मिली ।
प्रश्न 9. सुशीला जी, हम आपका वो अनुभव जानना चाहेंगे, जब आपको लेखन क्षेत्र में पहला पुरुस्कार मिला?
सुशीला जी :- सार्वजनिक रूप से मुझे पहला पुरस्कार ‘भारत निर्माण’ संस्था से मिला ।वे प्रतिवर्ष टेलेन्टेड लेडिज पुरस्कार कार्यक्रम आयोजित करते थे उसमे संगीत, नृत्य, लेखन, अभिनय, वाणिज्य, पत्रकारिता आदि से जुडी महिलाओं को सम्मानित किया जाता था।
इतने कलाकारों के बीच खुद को पाकर प्रसन्नता भी हुई और लिखने का प्रोत्साहन भी मिला।
प्रश्न 10. आज चारों ओर सोशल मीडिया का प्रभाव आप देखती होंगी। साहित्य जगत में सोशल मीडिया का प्रभाव आप किस रुप में देखती हैं?
सुशीला जी :- सोशल मीडिया के कारण ही आप मेरा साक्षात्कार ले पा रहे हैं दूर से। सोशल मीडिया के कारण हम घर बैठे कवि गोष्ठियों आयोजित कर लेते हैं।
पर एक नकारात्मक प्रभाव भी है। हम लोग अब पुस्तकालयों से पुस्तक ला कर नहीं पढते। जमीनी गोष्ठियों में सम्मिलित होना मुश्किल लगता है।
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प्रश्न 11. सुशीला जी, आजकल रचनाओं में भाषागत सम्मिश्रण बहुत अधिक हो गया है। इस भाषागत मिश्रण को लेकर आपके क्या विचार हैं? साथ ही हम आपकी वो कविता भी सुनना चाहेंगे, जो आपको विशेष प्रिय हो।
सुशीला जी :- हमारा देश बहुभाषी है। हर प्रान्त की भिन्न भाषा है। इसलिये आंचलिक शब्दों का कभी-कभी प्रवाह में आना स्वाभाविक है ।
अंग्रेजी तो हमारी भाषा पर हावी ही है। बोलचाल में हम अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। बहुत से शब्दों को हमने हिन्दी में अपना लिया है। इसलिये आधुनिक छन्दमुक्त कविता में उन शब्दों का अनायास ही प्रयोग हो जाता है।
पर हिन्दी एक समृद्ध भाषा है, उसमें बहुत अधिक दूसरी भाषा के शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिये।
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प्रश्न 12. काव्य विधा का आठ रसों में सृजन होता है। आप काव्य के कौन से रस में लिखना अधिक पसंद करती हैं?
सुशीला जी :- प्रारम्भ मेरा हास्य ब्यंग की क्षणिकाएं से हुआ। पर अब मैं श्रृंगार व भावपूर्ण अभिव्यक्ति शान्त रस में भी लिखती हूँ।
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प्रश्न 13. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस विचार के अनुसार कितना सफल मानती हैं?
सुशीला जी :- हर नागरिक को अपने देश से प्यार होता है मुझे भी है पर मै वीर रस की कवियत्री नहीँ हूँ ।
मैने भी हिन्दी दिवस पर हिन्दी अपनाने की बात लिखी है ।हमारी न्याय ब्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर लिखी है ।राजनीति में जो बेमेल गठबंधन होते हैं उस पर भी छोटी कविता लिखी है ।पर मैं मानती हूँ कि राष्ट्रीय पर्वों पर हमे ऐसे गीत रचने चाहिये ताकि नयी पीढी को आजादी का मोल समझ में आये ।
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प्रश्न 14. सुशीला जी, आप रचनाएँ किसी माँग (विषय/परिस्थिति) पर सृजित करना पसंद करती हैं या फिर स्वत: स्फूर्त सृजन को प्राथमिकता देती हैं?
सुशीला जी :- कौन सी कविता महत्वपूर्ण है दिये गये विषय पर या स्वतः स्फूर्त।
आजकल सोशल मीडिया के विभिन्न पलों पर कोई चित्र या पंक्ति देकर सृजन करवाया जाता है। निश्चित रूप से उसमें विविधता होती है। पर दिये गये विषय के समय हम अपने विचार लिखते हैं।
स्वतः स्फूर्त कविता का भाव हमारे अपने हृदय पर उगता है, जिसे हम महसूस करते हैं।
स्वतः स्फूर्त कवितायें मेरे दिल के अधिक करीब हैं।
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प्रश्न 15. सुशीला जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?
सुशीला जी :- अपने भावों को कलात्मक ढंग से परोसने ही तो साहित्य है। हम अपने भावों का शब्दों से श्रृंगार करते हैं ।
मेरी एक कविता है “मेरे अल्फाज़ मेरी ताकत” उसमें मैं कहती हूँ
अल्फाज़ होते हैं रसोई घर के मसालों की तरह
संतुलित प्रयोग से बढता है भोजन का स्वाद
पर शब्दों का वजन या मिजाज न जानने पर, सृजन हो जाता है बरबाद!
पर कई बार गीत लिखते समय प्रवाह में विधान का उल्लंघन हो जाता है।
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प्रश्न 16. सुशीला जी, आधुनिक युग में काव्य रचनाओं के विष्लेषण के नाम पर तुलना किया जाना कुछ अधिक ही प्रचलित हो गया है, जिससे तुलना के स्थान पर छद्म आलोचना का माहौल बन जाता है। इस छद्म आलोचना का सामना कैसे किया जाना चाहिए?
सुशीला जी :- मेरा ऐसी स्थिति से सामना तो नहीं हुआ। पर एक दो बार ऐसे कार्यक्रमों में जाने का अवसर मिला है, जहां कविताओं का पोस्टमार्टम आलोचक करते हैं और एक युद्ध की सी स्थिति बन जाती है।
जो मुझे बहुत सुरुचिपूर्ण नहीं लगती।
प्रश्न 17. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है?
सुशीला जी :- लेखन के अतिरिक्त जो दो कार्य मुझे बहुत पसन्द थे वे मेरे जीवन से फिसलने जा रहे हैं इसका मुझे अफसोस है ।।
पहला मनपसन्द कार्य कलात्मक फिल्में देखना दूसरा संगीत का अभ्यास करना ।
मै बहुत पैरेलल व कलात्मक बांग्ला व हिन्दी फिल्में देखती थी पर अब वो सिलसिला समय और उर्जा के अभाव में समाप्त प्रायः है।
यही बात संगीत अभ्यास पर भी लागू होती है।
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प्रश्न 18. सुशीला जी, आप विशिष्ट कौशल सम्पन्न हैं। क्या आपको लगता है कि आपके इस कौशल को अन्य लोगों तक विस्तारित करना चाहिए?
सुशीला जी :- मै नहीं समझती ऐसा कोई विशेष कौशल मुझमें है जिसे मै लोगों तक पहुँचाना चाहती हूँ। फिर भी इतना कहुँगी कि संक्षिप्त और धारदार रचनायें लोग सुनते भी हैं और पढते भी हैं।
प्रश्न 19. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
सुशीला जी :- मै समझती हूँ यह कार्यक्रम का अंतिम पड़ाव है ।संदेश के रूप में मै अपना एक गीत पढना चाहती हूँ ।
जिन्दगी है जिन्दगी से प्यार कीजिये
अपनी ख़्वाहिशों का इजहार कीजिये ।
घुट घुट के जीने से भला फायदा है क्या ,
जिन्दगी को यूँ न बेकार कीजिये !
चुनौतियां आयें गी इस राह में हरदम ,
जख्मी करें गे शूल सदा आपके कदम ,
आगे बढ चुनौतियां स्वीकार कीजिये !
कंटकों को राह से बुहार दीजिये ।
मिला जो जिन्दगी से उपकार मानिये,
नेमतों को प्रभु का उपहार मानिये ,
हुनर जो भी आपमें विस्तार कीजिये !
भूल जो करें उसे सुधार लीजिये !
बढते जाये आगे सदा आपके कदम,
साथ में न हो कोई भी चाहे कोई हमदम,
अपने बूते जिन्दगी संवार लीजिये !
कीर्तिमान को सदा अगार कीजिये ।
भेंटवार्ता : ✍🏻 श्रीमती सुशीला चनानी
आज आप मिले कोलकाता पश्चिम बंगाल से हमारे साथ जुड़ी वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सुशीला चनानी जी से। आपको इनके विचार पढकर कैसा लगा, हमें अवश्य अवगत करायें।
आप इन्हें सुनने के लिए हमारे यू ट्यूब चैनल को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करना न भूलें।
📹 *”!! दर्शकों दीर्घा हेतु वीडियो लिंक !!”* 📹
https://www.youtube.com/live/jLtGCz9XpZw?si=sOlibJCDWaJMUyT8
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और साहित्यकार के साथ। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये….
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶 बढते रहिये 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा
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