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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती ज्योति राघव सिंह” !! 

🌄 !! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती ज्योति राघव सिंह” !! 🌄

 

!! “मेरा परिचय” !! 

 

नाम :- ज्योति राघव सिंह 

 

माता/पिता का नाम :- श्रीमति गीता सिंह/श्री अरविंद सिंह

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- वाराणसी/:- 26/07/1996

 

पति का नाम :- श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह 

 

बच्चों के नाम :- रिद्धिशा/राघवी सिंह 

 

शिक्षा :- बी.एड/बीटीसी/एम.ए

 

व्यावसाय :- गृहणी , कवयित्री, लेखिका, समाज सेविका

 

वर्तमान निवास :-लेह लद्दाख (चोगलमसर)

 

मेल आईडी :- jyoti221101@gmail.com

 

आपकी कृतियाँ :-अपने ही देश में,नई सुबह, गौरवान्वित भारत अन्य रचनाएं ।

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- 

नारी तू अबला नहीं,

मैं हूं भारत की बेटी,

सबसे प्यारी मेरी हिंदी,

मानव अधिकार,

बारहवर्षीं महाकुंभ,

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-

 उत्तुंग,

मानव अधिकार,

अपने बने पराये,

गौरवान्वित भारत,

आजाद भारत।

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-

प्रथम पुरस्कार – २००८ (वाराणसी)

लेखन हेतु 

द्वितीय पुरस्कार – २०१३ भाषण प्रतियोगिता

तृतीय पुरस्कार -२०२५ निबंध लेखन प्रतियोगिता

अन्य पुरस्कार – सम्मान पत्र डिजिटल मीडिया द्वारा 

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

 

उत्सव :- छठ पूजा,रक्षाबंधन दीपावली, दुर्गा पूजा ।

 

भोजन :- बाटी- चोखा, इटली- डोसा मेरे प्रमुख भोजन है। 

 

रंग :- पीला रंग 

 

परिधान :- साड़ी (लहंगा – चुनरी)

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :-  काशी ( बनारस)- आध्यात्मिक मोक्ष प्राप्ति नगर

अयोध्या- श्री राम की जन्मस्थली

राजस्थान- कलयुग के साक्षात देवता बालाजी खाटू श्याम बाबा 

 

लेखक/लेखिका :- रविंद्र नाथ टैगोर भारतेंदु हरिश्चंद्र, सुभद्रा चौहान महादेवी वर्मा राहुल सांकृत्यायन।

 

कवि/कवयित्री :- हरिवंश राय बच्चन ,कबीर दास मीराबाई, कालिदास ,सुभद्रा कुमारी चौहान।

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :-

मुंशी प्रेमचंद , मन्नू भंडारी, वाल्मीकि जी,महावीर प्रसाद द्विवेदी, धर्मवीर भारती।

 

कविता/गीत/काव्य खंड :-रामधारी सिंह दिनकर (महाभारत के कारण पर आधारित महाकाव्य) रश्मिरथी।

 

खेल :- कोई नहीं

 

मूवीज/धारावाहिक (यदि देखती हैं तो) :-

बॉर्डर फिल्म( 1997)

ग़दर (2001)

दृश्यम् ( 2015)

बाहुबली (2015)

धारावाहिक-

दूरदर्शन पर नन्ही सी कली मेरी लाडली ( 2010)

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-

१-महिलाओं के अधिकारों सुरक्षा पर चिंतन हो (लेख)

२-राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार तक का सफर (लेख)

३-लेह लद्दाख: प्राकृतिक सौंदर्य के साथ जन समस्याएं भी(लेख)

४-पश्चिमी सभ्यता का पल्लवन (लेख)

५-कर्तव्य और दायित्व से विमुख होती आवाम (लेख)

काव्य –

१-सबसे प्यारी मेरी हिंदी

२-मानव अधिकार 

३-व्योम 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

 

प्रश्न 1. ज्योति जी, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये। 

 

ज्योति जी :- मेरा नाम ज्योति सिंह है मैं ग्रहणी, लेखिका, कवयित्री, वाचन एवं समाज सेविका के रूप में कार्यरत हूं।

साहित्य के प्रति मेरा लगाव बचपन से था। 2007 से मैं लेखन कार्य में हूं।

लिखना अपने भाव को कागज पर उतारना बहुत ही आत्मिक सुख देता है। लेखकों, कवियों को पढ़ते हुए मैं भी लेखक और कवि बनना चाहती थी क्योंकि उनके जीवन परिचय से मैं बहुत प्रभावित होती थी।

 

 

 

प्रश्न 2. ज्योति जी, आप एतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भगवान विश्वनाथ की नगरी “बनारस” की रहने वाली हैं। इस नगर के बारे में अपने शब्दों में कुछ बताइये। 

 

ज्योति जी :- – वाराणसी भारत के सबसे प्रिय, पवित्र शहरों में से एक माना गया है , 

*इसे ज्ञान की नगरी और पूर्ण- पावन भूमि भी कहा जाता है।

*यहां बाबा विश्वनाथ भोले बाबा के मंदिर के साथ बौद्ध एवं जैन मंदिरों को भी महत्व दिया गया है।

*शाम को गंगा नदी के किनारे होने वाली आरती भव्य गंगा आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है।

 *यह दुनिया का जीवित शहर माना जाता है।

*मलमल व रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी का दांत और शिल्प कला के लिए व्यापारिक एवं औद्योगिक केंद्र भी माना गया है।

*हिंदुओं का मानना है यहां प्राण निकलने से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इसे मोक्ष नगरी भी कहा गया है।

 

 

 

प्रश्न 3. ज्योति जी, आपको लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली और आपने किन परिस्थितियों में लिखना आरम्भ किया? 

ज्योति जी :- – हमें अपने पिताजी के लेखन से प्रेरणा मिली। तेरह वर्ष की उम्र से ही हमने अपने पिताजी को लिखते देखा उनकी कॉपी करने में जुट गई। परंतु जब 2011 में निर्भया कांड हुआ तो मैं अपने कलम को अपनी आवाज बनाने की ठान लिया और वहीं से हर विषय पर लिखना शुरू कर दिया।

साहित्य के प्रथम गुरु मेरे पिताजी आदरणीय श्री अरविंद सिंह जी हैं।

 

 

 

प्रश्न 4. ज्योति जी, यदि आपको कहा जाए कि भारत देश की स्वतंत्रता के पूर्व, स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव, एवं अमृत महोत्सव के पश्चात, में हिन्दी साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन करें तो आप किस समय को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं?

 

ज्योति जी :- -मैं देश की स्वतंत्रता के पूर्व स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अमृत महोत्सव तक तुलनात्मक दृष्टि से देखूं तो सभी में साहित्य अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है परंतु वर्तमान समय में हिंदी साहित्य अपनी मौजूदगी , उपस्थिति कहीं ना कहीं खोता जा रहा है इसका कारण यह है कि हम सभी लेखक, कवि और इसे प्रकाशित करने वाले इसको व्यवसायिक और सराहनी दृष्टि से देखने लगे हैं तो मेरे हिसाब से स्वतंत्रता के पूर्व साहित्य में देशभक्ति सामाजिक उत्थान, निस्वार्थता आदि सम्मिलित थे। इसलिए स्वतंत्रता के पूर्व के साहित्य को अधिक महत्व देना चाहूंगी।

 

 

 

प्रश्न 5. ज्योति जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानती हैं? 

 

ज्योति जी :- – प्रथम सीढ़ी 2011 में वाराणसी के प्रथम प्रकाशन के रूप में उभर कर आया किंतु कक्षा 7 से ही मुझे मेरे अध्यापक डॉक्टर दिनेश चौबे ने मुझे स्कूल का मंच दिया जिससे मैं भाषण प्रतियोगिता, काव्य प्रतियोगिता आदि को करने में सफल होती थी उनके उत्साह वर्धन से मुझे प्रथम मंच का आनंद मिला।

 

 

 

प्रश्न 6. ज्योति जी, आपकी रचना *“नई सुबह”* के द्वारा आप किस प्रकार सवेरा देखना चाहती हैं? 

 

ज्योति जी :- – मैं “नई सुबह” रचना के द्वारा स्वयं में बदलाव एवं अपने संकल्प को पूरा कर सामाजिकता एवं साहित्य क्षेत्र को विस्तृत करने का सवेरा चाहती हूं।

 

 

 

प्रश्न 7. ज्योति जी, कहते हैं बचपन सदैव मनोहारी होता है। हम जानना चाहेंगे आपके बचपन का बाल विनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी मुस्कुराने पर विवश कर देता है। 

 

ज्योति जी :- – जी बचपन सदैव मनोहरी होता है। मेरा भी बचपन कुछ ऐसा ही था। एक बार मैं आम के बगीचे में अपने भाइयों के साथ गई मेरे दो भाई हैं जिनमें मैं सबसे छोटी हूं बड़े भैया स्वभाव से गंभीर किंतु मेरे छोटे भैया स्वभाव से उतने ही नटखट और शरारती थे ।

वह दूसरों के पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ने में जो मजा और आनंद लेते थे उन्हें वह आनंद अपने पेड़ पर नहीं आता था। ऐसे में जिसका पेड़ था, उन्होंने आकर घर पर शिकायत कर दी। जिससे भैया को बहुत मार पडी और हम लोगों ने भी भैया का साथ नहीं दिया। साथ में उनका मजाक भी उड़ाये। फिर क्या भैया भी हम लोगों पर नजरें गड़ाए बैठे थे कि कब अकेले पाये और हम लोगों को दो-चार झापड़ रख दे। जब भैया पिताजी और बाबा से मार खा गए उसके बाद शाम को हमारी बारी आई अकेले पाकर भैया हम लोगों का भी जम के कुटाई कर दिये और हमारी शिकायत पर मां ने रात में उनको फिर से पिटा यह किस्सा जब भी हम याद करते हैं तो खुद की हंसी रोक नहीं पाते।

 

 

 

प्रश्न 8. ज्योति जी, आज भागदौड के समय में लेखकीय यात्रा को कई बिंदुओं पर भागदौड वाला ही बना दिया गया है। साथ ही शीघ्र प्रसिद्धि के लालच देकर अच्छा खासा व्यवसाय चलाया जा रहा है। आप इससे कितनी सहमत हैं? 

 

ज्योति जी :- – मैंने कहा है कि आज वर्तमान के लेखक , कवि साहित्य जगत को मानने वाले लोग साहित्य को व्यवसाय और सराहनी दृष्टि से देखकर इसका अपमान करते हैं यह कटु सत्य परंतु साहित्य को व्यवसाय बनाना आसान नहीं मां शारदे की कृपा से जहां व्यवसाय एवं लालच को स्थान दिया जाता है वही से कवि, कवित्रियों , लेखकों का पतन निश्चित है।

 

 

 

प्रश्न 9. ज्योति जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखती हैं?

 

ज्योति जी :- – आज के लेखकों और कवियों का मैं सार्थक भविष्य देखती हूं क्योंकि डिजिटल दुनिया में घर बैठे हमारे लेखन को देश-विदेश तक प्रसारित किया जा रहा है जिससे समय भी बच रहा है और हम अपने साहित्य का विस्तार करने में भी सफल हो रहे हैं।

 

 

 

प्रश्न 10. ज्योति जी, आप अपने समकालीन किस लेखक या कवि में अपनी छाप देखती हैं? 

 

ज्योति जी :- -सुभद्रा कुमारी चौहान इनमें मैं खुद की छाप देतखती हूं क्योंकि इन्होंने भी बचपन से लिखना शुरू किया था और मैं भी बचपन से लिखना शुरू की थी उनकी रचना में राष्ट्रीय आंदोलन ,स्त्रियों का सम्मान हक एवं सामाजिक बदलाव देखने को मिलता है ऐसी कुछ-कुछ चीज मेरे लेखनी में भी देखने को मिलता है।

 

 

 

प्रश्न 11. ज्योति जी, आपने सन निन्यानवे की भारत पाक विभीषिका पर *“कारगिल ”* काव्य रचना लिखी है। आपने इसे किन परिस्थितियों में लिखा? साथ ही हम ये कविता सुनना चाहेंगे। 

 

ज्योति जी :- – “नर से नारीत्व कम नहीं”

         “नर से नारीत्व कम नहीं,

        जो हार माने वो नारी हम नहीं,

सदा विजय का पताका फहराते हैं,

अपने जीत का उत्सव हम मानते हैं,

गृह कार्य से दफ्तर का बोझ हम संभालते हैं,

बच्चों का लालन-पालन कर फर्ज निभाते हैं,

संसार के हर नियमों को हम अपनाते हैं,

कहीं पूछे तो कहीं मार दिये जाते हैं,

चलाकर सहस्त्र शब्दों का हम वेदना उभारते हैं,

अपनों से किए गए छल का निर्णय सदा सुनाते हैं,

छल – प्रपंच भरी दुनिया का हर रस्म निभाते हैं,

कभी लक्ष्मी तो कभी वीणा बन ज्ञान बरसाते हैं,

अपनों के बीच फिर भी अकेले पाये जाते हैं,

दो – दो फूलों के रक्षक कहलाए जाते हैं,

बहु – बेटी बन आंगन की शोभा बढ़ाते हैं,

मां – बहन बन हर फर्ज निभाना जाते हैं,

महिला दिवस पर विशेष सम्मान दिये जाते हैं,

पुरुषों के आगे सदा हम दबाये जाते हैं,

सतयुग, त्रेता, द्वापर ,कलयुग में वही हमारा हाल है,

अपनों के द्वारा बिछाया सदा रूढ़ियों का जाल है।

        

       

 

प्रश्न 12. ज्योति जी, आप स्वयं में निस्संदेह एक विशिष्ट श्रेणी की लेखिका हैं। क्या आपको किसी और लेखक या कवि ने कभी प्रभावित किया है? कोई ऐसी विशिष्ट रचना जो आपने न लिखी हो, किंतु आपको बहुत प्रिय हो? 

 

ज्योति जी :- -जी, रामधारी सिंह दिनकर जी की विशिष्ट रचना जो मुझे बहुत ही प्रभावित किया है और वह मुझे अत्यधिक प्रिय है इसका शीर्षक है -(कलम आज उनकी जय बोल)

चिटकाई जिन चिंगारी,

जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर,

लिए बिना गर्दन का मोल,

कलम आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे,

तूफानों में एक किनारे,

जल -जलकर बूझ गए किसी दिन,

मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल,

कलम आज उनकी जय बोल।।

 

 

 

प्रश्न 13. ज्योति जी, यूँ तो आपकी लिखी सभी रचनायें विशेष प्रिय होती हैं। फिर भी हम आपकी स्वरचित एवं विशेष प्रिय कविता सुनना चाहेंगे। साथ ही जानना चाहेंगे कि वो आपको इतनी प्रिय क्यों है? 

 

ज्योति जी :–( अपने ही देश में)

      “अपने ही देश में” यह कविता मुझे इसलिए अत्यधिक प्रिय है क्योंकि वाराणसी से प्रकाशित होने वाला है यह प्रथम रचना है जो मैंने 2011 में निर्भया कांड पर लिखा था उसमें मैं प्रशासन को दोष न देकर स्वयं को दोष दिया है मैं यह कविता आप लोग को सुनना भी चाहूंगी।

क्या करें, कैसे चले जीवन के इस रेस में,

जहां भी देखो वहीं प्रशासन अनेक बहरूपियों के वेश में,

फस गया अपना देश भ्रष्ट नेताओं के वेश में,

बह गए हमारे सभ्यता का करेंसीयो के लहर से,

भेच देंगे अपनी मजहब को अलगाववादियों के वेश में,

थम गयी हमारे सांस बेईमानों के कहर से,

रुक जाता है कदम नेक रास्तों पर चलने से,

बैठे भी तो कैसे बैठे चुभता है कांटा बुराइयों के देश में,

दिल्ली में हुआ कांड तो मचा हाहाकार देश में,

कस्बों में हुआ तो दबा बालू के रेत में,

करना प्रशासन को नहीं आज के युवाओं को है,

क्योंकि हम मारे जा रहे हैं अपने ही देश में।

 

 

 

प्रश्न 14. ज्योति जी, आप एक गृहणी, कवयित्री, लेखिका एवं समाज सेविका हैं। आप इतने सारे कार्यों को कैसे व्यवस्थित करती हैं? 

 

ज्योति जी :- – कहा गया है -“जहां चाह है वहीं राह है‌।”

इसलिए स्वयं को मैं विपरीत परिस्थितियों में भी ढालने की कोशिश करती हूं और मां दुर्गा का स्मरण कर मां दुर्गा से यही कहते हुए की हे मां दुर्गे मैं तेरा आवाहन करती हूं जैसे तू अष्ट भुजाओं से सुशोभित है वैसे मुझे ज्यादा नहीं दो दिया है उसको चार कर दे।

जिससे मैं जिम्मेदारियां के साथ समाज के उत्थान के लिए कुछ कर सकूं।

 

 

 

प्रश्न 15. ज्योति जी, आप गद्य और पद्य दोनों विधाओ में लिखती हैं। आपको लेखन के लिए दोनों में से कौन सी विधा अधिक सहज लगती है? 

 

ज्योति जी :- – मुझे गद्य में लिखना पसंद है क्योंकि इसमें मैं अपने विचारों को विस्तृत रूप से लिख पाती हूं और काव्य में शब्दों का बंधन होता है। जिससे हम अपने विचारों को व्यक्त करने में सक्षम नहीं होते हैं।

 

 

 

प्रश्न 16. ज्योति जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

 

ज्योति जी :- – भाव पक्ष ,कला पक्ष से ही काव्य की शोभा बढ़ती है अगर यह दोनों ना हो तो काव्य में रसहीनता आएगी और जहां भाव है वहां कलात्मकता जुड़ ही जाता है।

 

 

 

प्रश्न 17. ज्योति जी, हर गुणी लेखक/कवि की लालसा होती है कि उसे अपनी रचना पर विशेष टिप्पणियां मिले, जो सकारात्मक के साथ-साथ निष्पक्ष भी हों। आप इस संदर्भ में क्या राय रखती हैं? 

 

ज्योति जी :- – जी यह सत्य है परंतु हमें अपनी सराहना और गुणी लेखक होने से बचना चाहिए क्योंकि जहां हमने खुद को बहुत बड़ा लेखक या कभी मान लिया वहीं से हमारे पतन का दिन शुरू ।

क्योंकि हमेशा सराहना सुनना चाहिए किंतु उस सराहना से हमें आत्मविश्वास, उत्साह वर्धन तक ही सीमित रहना चाहिए ना कि खुद को बड़ा कवि कालिदास, विदुषी मान लेना चाहिए।

 

 

 

प्रश्न 18. ज्योति जी, आपकी काव्य रचना *“गौरवांवित भारत”* के बारे में कुछ बताइये। इसे लिखते समय आपके क्या भाव रहे होंगे? साथ ही हम आपकी ये कविता सुनना चाहेंगे। 

 

ज्योति जी :– गौरवान्वित भारत लिखने का मेरा सिर्फ एक उपदेश है “अपने देश को सर्वोपरि देखना “अर्थात इसे लिखते समय मेरे मन में यही विचार आया कि अपने देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था और आज हमारे सोने की चिड़िया ना जाने कहां विलुप्त होती जा रही है कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश में सभी सुविधाएं रहते हुए कुछ राजनीतिक कारण से हमारा देश बहुत ज्यादा पिछड़ता जा रहा है।

गौरवान्वित भारत का इतिहास लिखो,

 सर्वसम्मानित भारत की बात लिखो,

 

शहीद बलिदानियों की राख से,

दुश्मनों का विनाश लिखो,

 

छल कपट से रहित अपने नये

भारत का इतिहास लिखो,

गुलामी के जंजीर को तोड़,

वीरता का पहचान लिखो,

रण में बैठी उन विरांगनाओं का 

त्याग लिखों,

देश की आन के खातिर जान देने वालों का बारंबार इतिहास लिखो,

तिरंगे में लिपटने वाले वीरों का पहचान लिखो,

भारत मां के वीर सपूतों का जन्म- मरण का सार लिखो,

गौरवान्वित भारत की गाथा बारंबार लिखो।

 

 

 

प्रश्न 19. क्या आप किसी एक ऐसे ऐतिहासिक पात्र को अपने दृष्टिकोण से उकेरने का प्रयास करेंगी, जिसको आपके दृष्टिकोण से इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिला है अथवा एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है, यदि हां तो वह कौन हैं और आपको क्यों लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है?

 

ज्योति जी :- – तिलका मांझी जी, जो स्वतंत्रता दिलाने वाले प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे परंतु इतिहास के पन्नों में उनका कहीं नाम देखने को नहीं मिलता यहां तक कि मैं और न जाने मेरे जैसे कितने लोग तिलका मांझी का नाम तक भी नहीं जानते हैं। “कल्पकथा” के वजह से हम लोग तिलका मांझी जैसे-” वीर स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानने का अधिकार प्राप्त किया।

 

 

 

प्रश्न 20. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है

 

ज्योति जी :- – लेखन के अतिरिक्त मुझे सामाजिक, राजनैतिक कार्य बहुत पसंद है।

सामाजिक कार्य इसलिए क्योंकि साहित्य से जुड़ना हमें समाज के हर पहलू को ज्ञात करने में मदद करता है और सामाजिक परिवर्तन पर ध्यान आकर्षित करता है।

वही राजनीति इसलिए पसंद है क्योंकि वर्तमान समाज राजनीतिक गिरोह से घिरा है। जिसकी “सत्ता उसकी चाल”। उससे हम सब और साहित्य क्षेत्र भी अछूता नहीं है। इसलिए मैं चाहती हूं कि कभी मौका मिलेगा तो मैं राजनीतिक क्षेत्र में आकर इन पहलुओं पर बाकी साथियों का ध्यान आकर्षित करूंगी क्योंकि साहित्य हमारे देश के विकास और चेतना का स्तंभ है।

 

 

 

प्रश्न 21. ज्योति जी, आपने अपनी काव्य रचना *“सबसे प्यारी मेरी हिन्दी”* के बारे में बताया। हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के सतत प्रयासों से क्या आप संतुष्ट हैं? यदि नहीं, तो आपके विचार में और ऐसे क्या प्रयास किये जाने चाहिये, जिससे हिन्दी राष्ट्र भाषा बन सके?

 

ज्योति जी :- – जी मैं संतुष्ट नहीं हूं क्योंकि मैं आज भी देखती हूं कि हिंदी भाषा को सौतेलापन मिल रहा है।

 अपने ही देश के लोग इसे हीन दृष्टि से देखते हैं परंतु हम साहित्यकार अपने कलम से ,अपने भाव से हिंदी को ही अपनाना चाहते हैं। हिंदी भाषा कोई आम भाषा नहीं है। भले ही हमारे देश में प्राथमिकता अंग्रेजी भाषा को दिया जा रहा है। अंग्रेज मैकाले की शिक्षा नीति से आज भी हमारा देश घिरा है। किंतु मैं जल्द ही चाहती हूं कि मैकाले की शिक्षा नीति को हटाकर अपने देश की शिक्षा नीति को लागू किया जाये और हिंदी भाषा को अपनापन मिल जाए।

 

 

 

प्रश्न 22. श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा के कार्यों को तो आप देख ही रहीं हैं। क्या आपको लगता है कि ये कार्य समाज और साहित्य के हित में हैं? साथ ही हम जानना चाहेंगे आप इससे कितनी प्रभावित हैं? 

 

ज्योति जी :- – श्री राधा गोपीनाथ बाबा के प्रमुखता से मैं और कल्पकथा के सभी सदस्य स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं क्योंकि यह इकलौता मंच से जहां देशभक्ति, ईश्वर भक्ति सनातन धर्म के प्रति साहित्य को जोड़कर यह मंच खुद की प्रतिष्ठा को कायम रख रहा है। और मैं इससे प्रभावित ही नहीं सन्तुष्ट भी हूं।

 

 

 

प्रश्न 23. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

 

ज्योति जी :- – मैं अपने पाठकों , दर्शकों लेखकों एवं समाज के सभी वर्ग से यही कहना चाहूंगी कि अपने देश में हो रहे कुरीतियों पर आवाज़ उठाएं और अपनी भाषा को प्रमुखता दे साथ ही आप एक लेखक हो या ना हो समाज की किसी भी पद पर हो या ना हो लेकिन एक देशवासी होने के नाते अपने संस्कृति अपनी भाषा की संरक्षक बनों अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपने संस्कृति से जोड़कर रखो।

 

✍🏻 वार्ता : श्रीमती ज्योति राघव सिंह 

 

 

कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज वाराणसी (उप्र) की विशिष्ट साहित्यकार श्रीमती ज्योति राघव सिंह जी से परिचय हुआ। ये गृहणी होते हुए भी समाज सेवा करती हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर है। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇

 

 

https://www.youtube.com/live/6MMmiBlj89c?si=7RfQN4YAgswZtbRK

 

 

इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं। 

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये। 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

 

 

✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟 

✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा प्रबंधन

कल्प भेंटवार्ता

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