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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री चन्द्रप्रकाश गुप्त “चन्द्र” ज़ी” !!

!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री चन्द्रप्रकाश गुप्त “चन्द्र” जी” !! 

 

 

!! “मेरा परिचय” !! 

 

नाम :- चन्द्रप्रकाश गुप्त “चन्द्र”

 

माता/पिता का नाम :- कीर्तिशेष रामवती हूंका एवं केदारनाथ हूंका (गुप्त)

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- देवगाँव, कोंच, जालौन, उत्तर प्रदेश 

02 अक्टूबर 1957

 

पत्नी का नाम :- श्रीमती सुषमा गुप्ता 

 

बच्चों के नाम :- 1- राहुल शिवराज 

                       2- शेषाद्रि रोहित 

 

शिक्षा :- एम. एससी. जूलाजी 

 

व्यावसाय :- मेडीकल 

 

वर्तमान निवास :- अहमदाबाद, गुजरात 

 

आपकी मेल आई डी :- cpgupta.cpg@gmail.com 

 

आपकी कृतियाँ :- युग मंथन, 

कृष्ण कर्ण संवाद, राष्ट्र स्वर, युग स्वर एवं अन्य..

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- युग मंथन 

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- प्रकाशनाधीन 

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- अटल स्मृति पुरस्कार, भारत माता अभिनंदन पुरस्कार एवं अन्य 700 से अधिक सम्मान। 

 

मेरे द्वारा सृजित विश्व गुरु भारत को विश्व के 150 से अधिक देशों में रह रहे भारतीयों के मध्य आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करना।

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

उत्सव :- दीपोत्सव (दीपावली)

 

भोजन :- शुद्ध शाकाहारी 

 

रंग :- भगवा ( केशरिया)

 

परिधान :- कुर्ता – पेंट

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :- कोंच, ग्वालियर, अहमदाबाद 

 

काशी,अयोध्या, मथुरा-वृंदावन, तिरुपति 

 

लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेम चन्द्र, दीनदयाल उपाध्याय, केशव बलीराम हेडगेवार, 

 

कवि/कवयित्री :- रामधारी सिंह दिनकर, श्याम नारायण पांडेय, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त 

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- लाल- रेखा, पन्ना धाय, आखिर जीत हमारी, एकात्म मानववाद 

 

कविता/गीत/काव्य खंड :- ओ बाबर अकबर के बेटो….

मेरे देश की धरती….

 

खेल :- कबड्डी 

 

फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- उपकार, बैजू बावरा 

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-

चीन को चुनौती 

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

प्रश्न 1. चंद्रप्रकाश जी, सबसे पहले हम आपके पारिवारिक एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं।

 

चंद्रप्रकाश जी :- मैं एक साधारण मध्यम कृषक परिवार से हूं माता पिता धर्म-परायण थे। दादाजी ने मुझे शैशव से देशभक्ति से ओतप्रोत कथा कहानी सुनाकर प्रेरित किया। 

 

 

 

प्रश्न 2. साहित्य जगत से आपका परिचय कब और कैसे हुआ?

 

चंद्रप्रकाश जी :- बाल्यकाल से ही कविता, नाटक 

वाद- विवाद प्रतियोगिता में चयनित होता रहा हूं।

 

 

 

प्रश्न 3. चंद्रप्रकाश जी, कल्पकथा के इस भेंटवार्ता कार्यक्रम में हम हिन्दी साहित्य के साहित्यकार की रुचि अभिरुचि को वार्ता के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं, आप इस कार्यक्रम को कैसे देखती हैं? क्या आप उत्साहित हैं? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- जी हाँ उत्साहित हूं

 

 

 

प्रश्न 4. चंद्रप्रकाश जी, आप मूल रूप से गुजरात की राजधानी कही जाने वाली नगरी गांधीनगर से हैं। इस नगर की विशेषता के बारे में आप अपने शब्दों में हमारे दर्शकों और पाठकों को बताइये। 

 

चंद्रप्रकाश जी :- गांधीनगर -अहमदाबाद का पुराना नाम कर्णावती था जिसे अहमद शाह अब्दाली ने अपने शासन काल में अहमदाबाद कर दिया इस सुप्रसिध्द नगर को साबरमती की सहिष्णुता महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल की कर्म भूमि की स्मृति के रूप मेंशाश्वत गौरवान्वित कर रही है अक्षरधाम कांकडिया लेक के साथ बहुत से ऐतिहासिक पर्यटन स्थल इस नगर की अनमोल विरासत हैं। 

 

 

 

प्रश्न 5. चंद्रप्रकाश जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।

 

चंद्रप्रकाश जी :- मेरे द्वारा श्वान शिशुओं के साथ खेलते उनके कान खींचने पर अचानक मेरे पिताजी का आना और मेरे गाल पर उनके जोरदार थप्पड की गूंज सदैव स्मृति चिन्ह के रूप में अंकित है…

 

 

 

प्रश्न 6. चंद्रप्रकाश जी आप व्यावसायिक क्षेत्र के विशिष्ट कार्य के बारे में कुछ बताइये। साथ ही हम आपकी एक कविता भी सुनना चाहेंगे। 

 

चंद्रप्रकाश जी :- मैॅ एक प्रतिष्ठित दवा कंपनी का मेनेजर रहा अभी 13 वर्षों से सेवानिवृत्त हो कर पूर्णत: साहित्यिक सामाजिक कार्य में समर्पित हूं। 

आपको लाईव होने पर कविताएं अवश्य सुनाऊंगा।

 

हिम के उत्तुंग शीर्ष शिखर पर डम- डम डमरू बोल रहा है….

 

 

 

प्रश्न 7. आप के गृह नगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?

 

चंद्रप्रकाश जी :- अहमदाबाद एक सुन्दर स्वच्छ शांतिपूर्ण विकसित नगर होने के कारण प्रिय है। 

 

 

 

प्रश्न 8. चंद्रप्रकाश जी, यूँ तो एक लेखक और कवि के लिए अपनी सभी रचनाएं बहुत प्रिय होती हैं। फिर भी हम आपकी सबसे प्रिय कविता के बारे में जानना चाहेंगे साथ ही आपसे उसे सुनाने का आग्रह भी रहेगा। 

 

 चंद्रप्रकाश जी :- जी अवश्य, सुनिये… 

शीर्षक – 🌞 भारत की जय जयकार उठे 🌞

 

उठे उठे भारत भू से शक्ति शौर्य का प्रकट आकार उठे…..

जल थल अंबर से भारत की जय जयकार उठे जय जयकार उठे…..

सोया पौरुष जाग उठे , कण-कण माटी का हुंकार उठे

वीर जवानों की ललकार उठे , भारत की जय जयकार उठे

 

पंच तत्व का उठे समुच्चय , प्रकृति सृष्टि का रहस्य उठे

हिम से अनल ज्वाल उठे , उदधि से ज्वार विकराल उठे

रक्तबीजों का रक्त चाटने , लपलपा महाकली की जीभ उठे

शिव का तीसरा नेत्र खुले , तांडव से त्रिभुवन तेज उठे

 

कोटि-कोटि भुजाओं वाली रणचंडी माता का , अद्भुत आकार उठे

विश्व नेत्र विस्फार उठे , दशों दिशाओं में भारत की जयकार उठे

हाहाकार उठे रौद्र रूप से , शत्रु हमारा कांप उठे

जब जब दानवों का अनाचार उठे , भारत भर में लहर अवतार उठे

 

विश्वामित्र का उठे पराक्रम , परशुराम का परशु कुठार उठे

उठे लक्ष्मण का क्रोधानल , श्री राम का धनुष टंकार उठे

योगेश्वर का गीता ज्ञान उठे , धनुर्धर अर्जुन का गांडीव उठे

विक्रमादित्य का उठे बाहुबल , भारत की संस्कृति सनातन का सम्मान उठे

चाणक्य की संकल्पित नीति उठे , चंद्रगुप्त की शौर्य कृपाण उठे

 

महाराणा प्रताप की चमक तलवार उठे , सोयी हल्दीघाटी जाग उठे

शिवा क्षत्रपति की शान उठे , शत्रु व्यूह चीत्कार उठे

उठे ज्ञान गुरु नानक का , बंदा वैरागी , गुरु गोविंद सिंह का बलिदान उठे

रानी झांसी की उठे खड्ग , तात्या, मंगल, आजाद, भगत का अभिममान उठे

 

सावरकर , सुभाष का उद्घोष उठे , रुधिर हमारा खौल उठे

भारत के शहीदों की आत्मा झंकार उठे , माटी के कण-कण से महाकाल का प्राकट्य उठे

फिर चीन पाक की औकात क्या , धूमधाम से अखिल विश्व के अरि अरमानों का धुआं उठे

उठे उठे भारत भू से शक्ति शौर्य का प्रकट आकार उठे ……

जल थल अंबर से भारत की जय जयकार उठे, जय जयकार उठे ……

 

         🇮🇳 जय भारत वन्दे मातरम् 🇮🇳

 

                   

 

 

प्रश्न 9. आप अपने व्यक्तिगत व्यवसाय और लेखन में कैसे सामंज्य बिठाते हैं? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- अब मैं पूर्णत: साहित्यिक सरोकार को समर्पित हूं।

 

 

 

प्रश्न 10. आप की दृष्टि में साहित्य क्या है और ये किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?

 

चंद्रप्रकाश जी :- साहित्य समाज का दर्पण है, प्रेरक है।    

एक साहित्यकार अपने सकारात्मक सृजन से समाज को चेतना विवेक और निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर सकता है।

 

 

प्रश्न 11. चंद्रप्रकाश जी, आपने बहुत से ऐतिहासिक चरित्रों पर काव्य का सृजन किया है। उन काव्य रचनाओं का सृजन करते समय आप किन मनोभावों से गुजरते हैं? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- उस कालखंड की मौलिकता और अपने प्रेरक पात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व कृतित्व का मानस पटल पर चित्रण जिसे अपने शब्दों से अलंकृत किया जा सके। 

 

 

प्रश्न 12. चंद्रप्रकाश जी, आपने अब तक के लंबे जीवनकाल में बहुत से पुरुस्कार प्राप्त किये हैं। आप अपनी इन उपलब्धियों को कैसे देखते हैं? क्या आप प्रफुल्लित हैं? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- प्रसन्न हूं प्रफुल्लित नहीं अभी बहुत कार्य करना है सफलता असफलता की कोई आकांक्षा किये बिना सतत जीवन पर्यंत…..

चरैवेति चरैवेति…..

 

 

प्रश्न 13. आपने वीर रस में बहुत ही उत्तम श्रेणी का सृजन किया हैं। उनमें हम आपकी सबसे प्रिय कविता सुनना चाहेंगे। 

 

चंद्रप्रकाश जी :- अवश्य…! मेरी उस कविता की दो पंक्तियाँ यहाँ लिख रहा हूँ… 

वेध रहा है भारत का इतिहास हमारी आँखों में…..

खंडित मंडित भारत का भूगोल हमारी आंहों में….

 

 

 

प्रश्न 14. आप अपने समकालीन लेखकों या कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?

 

चंद्रप्रकाश जी :- मैं अपने समकालीन कवियों में कवि प्रवर डॉक्टर हरिओम पंवार एवं विनीत चौहान जी से बहुत प्रभावित हूँ। विशेष रूप से उनकी ये रचनायें मेरे अन्तस को झकझोर जाती हैं…. 

सत्ता का आकर्षण मेरी भूख नहीं….. डॉ हरिओम पवार 

आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए…. विनीत चौहान 

 

 

 

प्रश्न 15. चंद्रप्रकाश जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखते हैं?

 

 चंद्रप्रकाश जी :- श्रम साहस और विवेक से किये गए कार्य अवश्य सफल होते हैं समय स्वयं सभी का भविष्य निर्धारित कर देता है। 

मनुष्य बली नहिं होत है समय होत बलवान..

बंधा कीट मरकट की नाईं सबै नचावत राम गोसाईं…

 

 

 

 

प्रश्न 16. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- संगीत सुनना मुझे बहुत पसंद है। ऐसा संगीत जो विशेष रूप से मन को शीतलता प्रदान करे। 

 

 

 

प्रश्न 17. चंद्रप्रकाश जी, आपके दृष्टिकोण में क्या कविताओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

 

चंद्रप्रकाश जी :- मेरी राय में भाव पक्ष प्रमुख है लेखन/सृजन जनाभिमुख सकारात्मक होना चाहिए 

 

जो भरा नहीं है भावों से वह सृजन लेखन का कोई महत्व नहीं है मेरे विचार से…

 

 

प्रश्न 18. चंद्रप्रकाश जी, श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार एवं हमारे कल्प प्रमुख के कार्यों को देख ही रहे हैं। क्या आपको लगता है कि ये कार्य समाज और साहित्य के हित में हैं? साथ ही हम जानना चाहेंगे कल्पकथा परिवार के साथ आपके अनुभव कैसे हैं? 

 

चंद्रप्रकाश जी :- कल्पकथा के माध्यम से निरंतर साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय सकारात्मक साधना का पुनीत कार्य किया जा रहा है जो मेरे विचार से समाज और साहित्य के लिए अनुकरणीय है आपकी सतत साधना साहित्य को नव नूतन आयाम प्रदान कर साहित्य को गौरवान्वित कर रही है। 

मेरी अनंत हार्दिक मंगल कामनाएं हैः। 

 

प्रश्न 19. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

चंद्रप्रकाश जी :- सभी साहित्यकारों को सकारात्मक सृजन कर व्यक्ति, समूह , समाज, राष्ट्र, विश्व के कल्याण के प्रति समर्पित होकर कार्य करना ही श्रेयस्कर है। 

 

 

✍🏻 वार्ता : चंद्रप्रकाश गुप्त “चंद्र”

                   अहमदाबाद , गुजरात

 

 

कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज वरिष्ठ साहित्यकार श्री चंद्रप्रकाश गुप्त “चन्द्र” जी से परिचय हुआ। ये अहमदाबाद (गुजरात) से हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन वीर रस से सराबोर है। साथ ही ये इतिहास के जानकार भी हैं। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇

 

https://www.youtube.com/live/nrqh7iC4JLs?si=lkfnU73OnROISnnj

 

इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं। 

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये। 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

 

 

✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟 

 

 

✍🏻 प्रश्नकर्ता ; कल्पकथा प्रबंधन

 

कल्प भेंटवार्ता

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