Dark

Auto

Light

Dark

Auto

Light

IMG-20240528-WA0017

!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री राज नारायण गुप्त ”कैमी” जी“ !!

!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री राज नारायण गुप्त  “कैमी” जी” !! 

 

 

!! “मेरा परिचय” !!

 

नाम :- राजनारायण गुप्त “कैमी”

 

माता/पिता का नाम :-श्री राधेश्याम गुप्त

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- कैमारसूलपुर, नारायणपुर मीरजापुर उत्तर प्रदेश

 

पत्नी का नाम :- श्रीमती सुनीता गुप्ता 

 

बच्चों के नाम :- श्रद्धा और संस्कृति

 

शिक्षा :- पत्रकारिता एवं मास कम्युनिकेशन स्नातकोत्तर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय वाराणसी

 

व्यावसाय :- निदेशक, ग्रामीण हंडा माइक्रोफाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड, संस्थापक गीताश्री साहित्य भारती परिषद , कैमी गीताश्री फाउंडेशन एवं हरिओम फूड इंडस्टरीज स्वाद किंग 

 

 

वर्तमान निवास :- रामनगर वाराणसी उत्तर प्रदेश

 

आपकी मेल आई डी :- writterkaimi47@gmail.com

 

आपकी कृतियाँ :- तराशा जीवन 

(काव्य संग्रह) 

पाती किसके नाम (काव्य संग्रह) 

हकीकत यही सत्य है ,आजाद भारत के बाद भारत में हुए प्रथम जीप घोटाले से लेकर 2G स्पेक्ट्रम घोटाले तक के हुए भ्रष्टाचार उजागर करने वाली पुस्तक

 

 

संपादित संयुक्त संग्रह:-

 

फकीर तेरे गांव में ,

 

पैगाम ए मोहब्बत

 

सफर जिंदगी का राज

 

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- मां अपने बच्चों को एक समान मानती है इसलिए रचनाकार कि प्रत्येक पुस्तक अथवा रचना प्यारी है हमारी कोई विशिष्ट कृति नहीं है

 

आपकी अप्रकाशित कृतियाँ :- 

 

मुर्दा घाट पर कहानी संग्रह

काला सच 

शब्दों के तीर

कैमीनामा

नारायण नीति

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- सैकड़ो मिला है किंतु गिनती नहीं किया तथापि डॉ आंबेडकर कीर्ति सम्मान, 

 

 

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

भोजन :- चावल दाल रोटी और भिंडी की भुजिया देसी घी तथा सलाद और नाश्ते में भिगोया हुआ चना हरा मूंग धनिया का हरा पत्ता मूली का हरा पत्ता अर्थात शाकाहारी भोजन

 

रंग :- श्वेत

 

परिधान :- कुर्ता पजामा सदरी के साथ चढ़ाया हुआ 

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :- सोनभद्र स्थानीय रूप से पसंद है इसके अतिरिक्त महानगरों में मुंबई ,

प्रत्येक तीर्थ स्थल एवं विशेष रूप से काशी मुझे बहुत प्यार है बचपन से ही हमें घूमने का शौक है

 

लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेमचंद राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त एवं सुमित्रानंदन पंत लेखिका में महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान एवं रामधारी सिंह दिनकर साहब को भी बहुत पसंद करता हूं इसके अतिरिक्त मैं उन सभी मां शारदा के मानस पुत्रों को प्रणाम करते हुए पढ़ता हूं जिन्होंने व्यक्तित्व कुरीतियां को प्रथाओं एवं सामाजिक कुर्तियां को उजागर किया है और सद्भावना और सनातन तथा राष्ट्रीय हितों के प्रति चिंतित लेखकों को बड़े चाव से पढ़ता हूं

 

कवि/कवयित्री :- मैथिलीशरण गुप्त एवं सुभद्रा कुमारी चौहान जयशंकर प्रसाद तथा व्यंग के लिए हरिशंकर परसाई को पढ़ने में आनंद आता है

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- गोदान, मुंशी प्रेमचंद के प्रत्येक कहानी को पढ़ना पसंद करता हूं पुस्तकों में

 

कविता/गीत/काव्य खंड :- मैथिलीशरण गुप्त जी की रचना कक्षा 7 के चौथे पाठ में कुछ काम करो कुछ काम करो जग में रहकर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ कि का अर्थ और समझो जिसमें यह व्यर्थ ना हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को न हो न निराश करो मन को मुझे काफी उद्धारित करती है और कबीर रहीम के निर्गुण भजन एवं दोहा एवं तुलसीदास जी के श्री रामचरितमानस को बचपन से पढ़ते हुए बढ़ा हुआ हूं इन्हें बहुत पसंद करता हूं श्री रामचरितमानस के कारण ही लेखन की ओर उन्मुख हुआ

 

खेल :- हॉकी शतरंज लूडो एवं क्रिकेट

 

मूवीज/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- फिल्में बहुत कम देखता हूं क्योंकि अब फिल्मों को देखने योग्य नहीं समझता हूं वैसे हमें देश भक्ति फिल्में बहुत पसंद है तिरंगा गदर अनोखा बंधन नदिया के पार और पुरानी फिल्मों को देखना पसंद करता हूं

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- वैसे सभी प्रिय हैं किंतु ब्रह्मांड में मां से बड़ा कोई नहीं तथा मृत्यु से बड़ा सत्य कुछ भी नहीं है इसलिए इन दोनों के ऊपर जो रचनाएं लिखी गई हैं वह मुक्तक इस प्रकार हैं

 

पुरी कर लो अगर तेरी मन्नत है

जीवन कमल जैसा ही उन्नत है

चारो धाम घूमकर आओ मगर 

प्यारी माँ के पैरों में ही जन्नत है@ कैमी

 

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

 

प्रश्न 1. गुप्ता जी, सबसे पहले आप हमारे दर्शकों को अपने पारिवारिक और साहित्यिक परिवेश के बारे में बताइये।

गुप्ता जी :-   देखिए मेरे घर में मेरे पिताजी मेरी माता जी मेरी पत्नी दो बच्चों के अतिरिक्त मेरे तीन भाई और दो बहन एक साथ रहते हैं पूरे 14 लोगों का मेरा परिवार है और हम सभी एक साथ ही रहते हैं मेरे परदादा जी चौधरी बेचन साहू 12 गांव के अपने समुदाय के सरपंच थे बाद में मेरे दादाजी चौधरी फकीर साहू सरपंच हुए चौधरी घराना होने की नाते मेरे संस्कार भी वैसे ही हैं जैसे मुझे दादाजी ने दिया था मेरे दादाजी द्वारा बनवाया गया हनुमान जी और श्री राम जानकी मंदिर के साथ तीन कूपों का निर्माण भी मेरे लिए प्रेरणादाई था मेरे दादाजी जब मैं कक्षा चार में पढ़ता था तभी से हमें श्री रामचरितमानस का पाठ करना सिखाए वे सामने बैठ जाते थे और स्वयं 7:00 बजे तक मुझे नित्य पाठ के लिए कहते थे और मैं करता भी था दादाजी के द्वारा श्रीरामचरितमानस के पाठ और दादी गुलजारी देवी रोज हमें अच्छी प्रेरणादायक कहानियां सुनाया करती थी इस प्रवृत्ति के कारण ही साहित्य की ओर उन्मुख हुए यह बातें हुई मेरे बड़े दादाजी की जिन्होंने हमारे पिताजी को उनके बेटे नहीं होने के कारण अपनी वसीयत लिख दी थी और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था अब हम बात करते हैं अपने सगे दादा जी का मेरे सगे दादा जी रामेश्वर साहू 6 फीट से ऊपर के मजबूत प्रवृत्ति वाले इंसान थे मेरे परिवार में मुझे बहुत माना जाता था वैसे मैं सबका दुलारा था क्योंकि मैं सभी की बात मानता था हम अपने सगे दादी को नहीं देखे हैं जब मैं घुटने के बल चल रहा था तभी उनका स्वर्गवास हो गया था। यह रही हमारी परिवार से संबंधित सूचना एक बात बताऊं मुझे संयुक्त परिवार बहुत पसंद है यही हमारी संस्कृति की पहचान है और कोशिश यही है कि जब तक जिंदा रहूं संयुक्त परिवार में ही रहु कहा जाता है की संयुक्त परिवार का महत्व बहुत ही गहरा असर डालने वाला होता है बच्चों को सांस्कृतिक और पारिवारिक सामाजिक दायित्व की परिपक्वता संयुक्त परिवार रूपी पाठशाला से ही प्राप्त होती है शहरीकरण ने संयुक्त परिवार को एकल परिवार में परिवर्तित किया है यह कहीं ना कहीं मजबूरियों के कारण भी हो सकता है जैसे नौकरी व्यावसायिक गतिविधियों के कारण गांव और प्रदेश से बाहर रहते हैं गांव आने के बाद घर के आंगन में किलकारी और चहकते हुए बच्चे आते हैं तुम मन सुकून से भर जाता है और खूब शांति मिलती है जब कहीं भी बाहर से बाहर जाता हूं मेरी छोटी बेटी मेरे गोद में आकर बैठ जाती है यह मुझे बल्कि यह कहिए कि प्रत्येक पिता के लिए सौभाग्य की बात है। यानी उसका परिवार अगर खुश है तो हमें भी खुशी है। वैसे मेरा कोई साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं है किंतु जैसा कि हमने पहले ही बताया दादाजी द्वारा श्री रामचरितमानस की ओर मोड़ना एवं मेरी दादी के कारण कहानियां सुनाया जाना और मुंशी प्रेमचंद तथा मैथिलीशरण गुप्त जी के साथ लेखन की जीवनियों को पढ़ा हमें जब फुर्सत मिलता था खूब पढ़ते थे सामान्य ज्ञान और महापुरुषों की जीवनिया पढ़ना हमें पसंद था यही हमारी साहित्यिक गतिविधियों की ओर मोड़ने के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ। 

 

 

प्रश्न 2. गुप्ता जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं कि आपके बचपन का बालविनोद का ऐसा किस्सा जो आपको आज भी याद है, और जिसको याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।

गुप्ता जी :-   देखिए, बचपन में हमारे जीवन में तीन ऐसी यादें आज भी है जिन्हें मैं याद करते ही बरबस हंसी छूट जाती है एक बार हमारे घर के बगल में मेरे रिश्ते के चाचा लगते हैं उनका विवाह हो रहा था जब बारात विदा हो गया तो हम भी अपना विवाह कराने के लिए जिद करने लगे तब अगरबत्ती का खोल यानी कागज वाला कवर हमारे सिर पर लगाकर घर के मुख्य द्वार से बाहर निकाल कर आबादी जिसमें गाय भैंस बांधी जाती है उसे वाले दरवाजे तक हमारी दादी लेकर गई और बोली ले हो गइल तोर वियाह इस वाकई को अपने बचपन के मित्र मंडली में शेखी बघारता था कि मेरी शादी हो गई है अब हम तुमसे बड़े हैं हम पहले खेलेंगे इसे आज भी याद करके लज्जा आती है यानी यह बचपन के ऐसे नटखट पल काफी सुखद होते थे वैसे मैं बहुत जिज्ञासु प्रवृत्ति का व्यक्ति हूं मुझे हर समय कुछ न कुछ सीखने की सदैव ललक रहती है ठीक वैसे ही मुझे हर समय मिठाई खाने की भी ललक रहती थी एक बार मेरे दादी के बड़े भाई साहब जिन्हें हम सभी मुनीब जी के नाम से जानते हैं घर आए वे जब आते थे मेरे लिए कच्ची बर्फी लेकर आते थे दादी ने अपने बड़े भाई साहब की सेवा करने के दौरान अपने महामाता के छुपा कर रखे गए मिठाई का खोज लेता था। और कुछ मिठाई छोड़कर पूरा खाकर मुंह पोछ लेता था। जब मेरी दादी उसे मिठाई को खोजती तो हम उसे हंसते हुए कहते हम ही रख ले ही हम ही रख ले ही ना बताइब। तब दादी कहती थी बचवा बतावा तब मैं बता देता था और उसे मिठाई के डिब्बे में ५या ६ बर्फी मिली थी यानी बचपन में हम खूब मीठा चोरी करते थे और दादी को गुस्सा आता था क्योंकि दादी को घर में सभी को देना होता था। तीसरी बातें मुझे याद है हमारी दादी जब अपने मायके जाती थी मुझे किसी के साइकिल पर बैठा देती थी और बोलती थी ए भैया हमारे बचवा के चंदैट नहर पर छोड़ दिया और चंदाइत पुल पर बैठने को बोलती थी। और स्वयं पैदल चल कर आ जाती थी आश्चर्य की बात यह है कि साइकिल वाला के चल और मेरी दादी के पैदल चाल में कुछ ही मिनट का अंतर रहता था यह बातें मुझे आज ही याद है मैंने अपने दादी से ही सीखा है देसी चीजों का अधिक ध्यान देना जैसे मिट्टी में खेलना साग पत्ता का आहार आध्यात्मिक एवं भारतीय संस्कृति की प्रबल पक्षधर थी मेरी दादी आपको यह भी जानकार आश्चर्य होगा कि मेरी दादी खांसी की दवा केवल उसका अंगूठा था जिसके सहारे उपला का रख मुंह में डालकर घाटी को बैठा देती थी समाज के लिए यह कार्य मेरी दादी माता के द्वारा किया जाता था

 

 

प्रश्न 3. आप लंबे समय से लेखन कर रहे हैं। हमारे सुधि दर्शक जानना चाहते हैं कि आपने लेखन किन परिस्थितियों में आरम्भ किया?

गुप्ता जी :- वैसे मैं कह दिया है की श्री रामचरितमानस और दादी माता के कहानियों को सुनकर साहित्य की ओर उन्मुख हुआ लेकिन इसमें मुझे अंतर मन से उद्वेलित राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी की रचना “कुछ काम करो कुछ काम करो जग में रहकर के कुछ नाम करो यह जन्म हुआ कि अर्थ और समझो जिसमें यह व्यर्थ ना हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को निराश करो मन को “इस रचना ने मुझे जीवन में लेखन की ओर आने के लिए प्रेरित किया एक बातें और कहना चाहूंगा रात को लगभग 1:30 बजे हमने एक सपना देखा था जीवन में यह सपना आज ही याद है मैंने यह देखा की एक बालक जो भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप जैसे है ऐसे सुंदर बालक को अपने गांव के किनारे बगीचे में बांसुरी बजाते हुए हंसते मुस्कुराते मेरी ओर आते हुए आज तक इस संसार में जहां तक घुमा हूं वैसा बालक आज तक नहीं देखा कुछ पल के बाद जिस कमरे में मैं अकेले सोया था मुझे अचानक प्रकाश उत्पन्न हुआ महसूस हुआ और वानर जैसी आकृति देखकर हम डर गए थे। उसी दिन हमने यह अपने जीवन की प्रथम बाल कविता लिखा था शायद 1993 या 94 की बात है

 

रात को मैंने देखा सपना

 आई एक सोने की चिड़िया

 

मुझे बोली नन्हे पास आओ 

हमने बोला नहीं मैं ,

आऊं तेरे पास में

मुझे है तुमसे डर लगता 

 

उस वक्त मैं सपना देखा 

छिपकर वह कहीं चली गई

मैंने देखा कहां गई वह 

यही कही थी ढूंढने पर 

कर रही थी घोर प्रपंच 

डरकर करने लगा मैं थरथर,

दिव्य माया से 

स्वयं को छुपा रखी थी 

 

प्रकट होकर वह बोली –

मैं देवों के द्वारा भेजी गई चिड़ियां मिलने आई हूं ऐसे लोगों से 

जो सबसे है करते प्यार

 भूले -भटके को मार्ग दिखाकर

 सन्मार्ग पर ले जाते हैं 

सत्य बोलने वालों की 

देवों ने किया है सत्कार 

तुम भी सत्य बोलकर 

जग का सूरज बन जाओगे 

परमात्मा के पन्ने में 

नाम अमर कर जाओगे

 

 

 

 

प्रश्न 4. आपकी सबसे विशिष्ट कृति, जिसे आप स्वय के दृष्टिकोण से विशिष्ट मानते हैं, सुनाईये? साथ ही ये भी बताइये कि आप इसे विशिष्ट क्यों मानते हैं?

गुप्ता जी :- देखिए, जिस प्रकार मां के लिए उनकी नजरों में सारे बच्चे एक समान होते हैं, वैसे ही किसी भी रचनाकार के लिए उसकी प्रत्येक रचनाएं महत्वपूर्ण और एक समान होती हैं। 

सामाजिक चिंतन एवं राष्ट्रीय चिंतन एवं एकता और अखंडता से जुड़े हुए रचनाओं को हम महत्वपूर्ण मानते हैं और वही मुझे बहुत प्रिय है

 

 माटी के बने हुए यह ढेले

 कब गल जाएंगे 

क्या पता क्या ठिकाना 

बने जब बारिश का निशाना

 उन हवाओं में उन घटाओं में

 ढलती उम्र में काल के बाहों में 

कगारे का वृक्ष कब गिर जाए 

क्या पता क्या ठिकाना 

माया का बना यह ताना बाना 

सत्कर्म करते जाओ 

बस यही तराशा जीवन है @ कैमी

 

उपर्युक्त रचना जब हम अपने दादी के गांव जा रहे थे तो रास्ते में अचानक बारिश की बूंदे गिरने लगी साइकिल से चलते हुए हमने यह देखा कि जब बारिश की बूंद एक मिट्टी के ठेले पर गिरी तब मिट्टी का कुछ कान वहां से हटके गाल गया इस घटना को हमने मनुष्य के जीवन से जोड़ दिया आज यह रचना लोगों को बहुत पसंद है

 

प्रश्न 5. आपने विभिन्न मंचों पर अपनी रचनाओं से दर्शकों और श्रोताओं को अभिभूत किया है। उनमें से कोई एक ऐसा अनुभव जो आप हमारे साथ साँझा करना चाहें?

गुप्ता जी :- जी हां ऐसा कई बार हुआ है। मंच के माध्यम से एक ही रचनाओं को बार-बार नहीं सुना सकते। मुक्तक या ग़ज़ल हर समय अलग-अलग और बदलते रहना चाहिए। इससे इससे नवीनता की प्राप्ति होती है और आत्म संतुष्टि तथा नवीन अनुभूति की प्राप्ति होती है। 

 

 

प्रश्न 6. आप विशाल मंच गीताश्री के संस्थापक हैं। संस्था के रुप में आपकी इस यात्रा को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं, और यदि आप अपनी संस्थागत यात्रा का कोई एक सकारात्मक प्रसंग जो आप साझा करना चाहें? 

गुप्ता जी :– हम बचपन से ही आध्यात्मिक सामाजिक साहित्यिक और पुस्तकों तथा रोजाना अखबारों को पढ़ने का शौकीन रहा हूं महान लेखकों को पढ़कर यह महसूस हुआ कि हर लेखक ने किसी ने किसी पत्रिका को अवश्य संपादित किया है या किसी संस्था के संस्थापक रहे हैं साहित्यिक ग को पढ़कर मुझे भी लगा कि मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए क्योंकि मुझे श्रीमद् भागवत गीताश्री रामचरितमानस तथा धार्मिक ग्रंथो के प्रति बहुत श्रद्धा है गांव में मुझे महसूस हुआ की गांव के लोग आध्यात्मिक रूप से परिपक्व होते हैं किंतु साहित्यिक गतिविधियों से अनजान होते हैं और सृष्टि के नस-नस में साहित्य है अगर हम कोई शब्द बोल रहे हैं तो यही ब्रह्म है मुझे श्रीमद्भागवत गीता गंगा गायत्री मत्रों का रहस्य एवं गांव का भोलापन तथा यहां की सभ्यता संस्कृति संस्कार और हरा-भरा पेड़ तालाब गोधूलि आंगन में खेलते हुए गाय के बछड़े आनंद देने वाले हैं हरा भरा पेड़ शुद्ध वातावरण खेतों से लाई गई ताजी सब्जियां और बरसात के दिनों में घर के मुंडेर पर चढ़ी हुई सब्जियों की लता को देखना अच्छा लगता है जब से होश संभाला हूं हम गांव में कई बीघा अचल संपत्ति बेचकर शहरों में बस जाना यह सब मुझे देखकर बहुत कष्ट होता था इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ध्यान में रखते हुए गीताश्री की स्थापना किया हूं वैसे फाउंडेशन के रूप में अब जाकर पंजीकृत कराया हूं किंतु कार्य 21 जुलाई 2007 से ही कर रहा हूं इस सफरनामी का रोमांचक पहलू यह है कि जब हम गीताश्री को साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए विद्यालय सड़क ढाबे कचहरी के बाहर दुकानों पर दीवारों पर पंपलेट चिपकाना लोगों को बताना की गीता श्री भी एक संस्था है जो साहित्य और पर्यावरण समेत अनेक क्षेत्रों में कार्य करना चाहती है जब हम यह लोगों से कहते थे तो लोग शायद हमारी उम्र देखकर मजाक उड़ाते थे आज गीता श्री ने एक महत्वपूर्ण पडा़व हासिल किया है । गीताश्री ने देश भर के साहित्यकारों को एक सूत्र में पिरोया है । जिन्हें अवसर प्राप्त नहीं होता था उन्हें हम खोज कर गीता श्री 10 न्यूज़ पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम आओ चले गांव की ओर अभियान मैं शामिल किया है यह साहित्यिक करवा प्रत्येक शनिवार स्वयं 7:00 से उपर्युक्त युटुब चैनल पर कवि सम्मेलन अथवा अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए पिछले 4 साल से निशुल्क चला रखा है इस कार्यक्रम में अब तक लगभग 1300 रचनाकारों ने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग किया है। आज गीताश्री देशभर में एक जाना पहचाना साहित्यिक संस्था है। 

 

प्रश्न 7. आप अपनी कोई लघुकथा या कहानी हमारे साथ साँझा करना चाहेंगे?

 गुप्ता जी :- जी अवश्य यह बात 2012 की है एक बार हमारे मन में आया कि आखिर इस सांसारिक जीवन में कौन सुखी है इसका पता करने के लिए हमने 27 प्रकार के व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों के विचार जाने उनमें से दो-तीन लोगों की बात बताता हूं एक साहू जी थे, जिसको किराना दुकान से हम लोग अपना गृहस्थी का सामान लाते थे। 19 से जाने की आखिर गुप्ता जी आपका व्यवसाय बहुत बढ़िया चल रहा है। आखिर अपने जीवन से खुश हैं। उनका जो कहना था हम आश्चर्य रह गए उन्होंने कहा कि हमारा दुकान भी अच्छा चल रहा है हमारी पत्नी भी अच्छी है मकान पक्का है सड़क पर अपनी जमीन भी है हमारे बच्चे अपने-अपने व्यवसाय में लगे हुए हैं किंतु हमें चैन नहीं है मन में संतुष्टि नहीं है क्योंकि मेरे बाद आखिर इस धंधे को संभालेगा कौन उनकी यही चिंता थी और उनके पुत्र अधिक लाड प्यार के कारण बिगड़ गए थे , इसके बाद दूसरी कहानी है कि एक मेजर साहब जिन्होंने सेवा की नौकरी सेवानिवृत्ति के पहले ही छोड़ दी थी उनका पेट्रोल पंप था वह इस बात से दुखी थे कि पेट्रोल पंप की कमाई ₹1 प्रति किलो लीटर पर ही है इससे बढ़िया मेजर की नौकरी थी जबकि यह सोचकर सॉन्ग घर आया था कि अपने घर परिवार में रहेंगे अच्छे से कार्य करेंगे 24 कामगारों को रख लिया जाएगा और हमारा काम चलता रहेगा वह इसलिए दुखी थे तीसरा पहलू यह है की एक मास्टर साहब थे सरकारी नौकरी थी पर वे केवल प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक बनकर रह नहीं रहना चाहते थे उन्होंने कहा कि मास्टरी करने से मेरे जीवन में तरक्की नहीं होगी इसलिए वह आईपीएस की तैयारी कर रहे थे और वे एसडीएम बनना चाहते थे इस प्रकार हमने 27 जगह पर सर्वे किया था और अंत में हमने भगवान बुद्ध के दिए गए दुख दुख के कारण दुख का नाश और दुख नाश का मार्ग बचपन में जीव विज्ञान में अधिक रुचि थी इसलिए जीव वैज्ञानिक बनना चाहते थे इसके बाद जब तीसरी चौथी में गए तो श्री रामचरितमानस के अध्ययन के कारण और हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को भी पढ़ने के कारण पत्रकार और रचनाकार बनाने की सोचने लगे इस प्रकार हमारे आजीविका के क्षेत्र का उद्देश्य बदलते रहा और अध्यात्म तथा महापुरुषों की जीवनी के पढ़ने के कारण एकाग्रचित होकर कवि और लेखक बनने का निश्चय किया जो आज तक अनवरत जारी है अभी भी मैं सीख रहा हूं और साहित्य का विद्यार्थी हूं। 

 

 

प्रश्न 8. आप साहित्य को और भी अधिक समाज उपयोगी बनाने के लिए किन प्रयासों की अनुशंसा करते हैं?

गुप्ता जी :-   समाज के लिए साहित्य की नितांत आवश्यकता है इसके बगैर कोई भी व्यक्ति का व्यक्तित्व कृतित्व नहीं कोविद कल के बाद साहित्य की स्थिति अब मजबूत हुई है नवाचार करने वाले भी आपस के झुंड में एक दूसरे की रचनाओं से परिचित हो रहे हैं लिख रहे हैं और सीख रहे हैं तो साहित्य की स्थिति पहले से और अच्छी हुई है कमजोर नहीं हुई है हां यह बात अलग है कि साहित्य की स्थिति घर के दुल्हन जैसी हो गई है जिस प्रकार से घर में दुल्हन उपेक्षा का शिकार रहती है इस प्रकार से साहित्य में कविता उपेक्षा की शिकार है सोशल मीडिया के जमाने में मंचों की चुहलबाजी और चुटकुले बाजी चरम पर है । आम श्रोता उन्हें ही वास्तविक साहित्यकार मान लिया है जबकि वास्तविक साहित्य बनावटी साहित्य के भीड़ में खो चुकी है। यही कारण है कि हम लोग आओ चले गांव की ओर के जरिए एक बार फिर से साहित्य की जन-जन तक पहुंच को स्थापित करने में लगे हुए हैं। 

 

 

प्रश्न 9. आपकी दृष्टि में एक लेखक और एक पाठक के क्या गुण होने चाहिये? 

गुप्ता जी :-  देखिए लेखक को गंभीर होना चाहिए आज भी कवि या लेखक का नाम आने के बाद लोग उन्हें देखना चाहते हैं। उनके साथ बैठना चाहते हैं। कुछ ना कुछ सीखना चाहते हैं और बल्कि अगर खुलकर बोले तो आज भी आम जनमानस कवि या साहित्यकार को संत के रूप में देखा है, जो समाज या देश की दशा और दिशा निर्धारित करने वाला होता है। आज भी आम जनमानस को लेखकों से यही उम्मीद है। 

 

प्रश्न 10. आप विषयानुगत लेखन या विषय आधारित लेखन के बारे में क्या सोचते हैं? 

गुप्ता जी :- आखिर कहीं जाने के लिए रास्ता तय करना पड़ेगा इस प्रकार से जब हम लिखते बैठते हैं तो विषय निर्धारित करना ही पड़ता है जब तक आप विषय निर्धारण नहीं करेंगे तो आखिर लिखेंगे कैसे विषय तो निश्चित करना पड़ेगा तभी हम कुछ लिख पाएंगे मुक्तक को अधिक पसंद करता हूं सबका एक कालखंड होता है गजल और मुक्तक मुझे अधिक पसंद है जिम ओज और उपदेशात्मक शैली मैं समाज संस्कृति एवं देशभक्ति के विषय पर लिखना पसंद करता हूं। 

 

 

प्रश्न 11. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन प्रयासों को इस दृष्टिकोण पर कितना सफल मानते हैं?

गुप्ता जी :- हमने पहले ही कहा है की साहित्य देश और समाज के लिए होना चाहिए स्वयं के स्वार्थ के लिए नहीं। साहित्यकार समाज और देश की दशा एवं दिशा निर्धारित करने वाला प्रथम श्रेणी का नाविक होता है। जब लेखक ही देश हित में कार्य नहीं करेंगे तो किसी ने कहा है –

 कलम के सिपाही गर कलम छोड़ देंगे 

 तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे

 

प्रश्न 12. आप अपने समकालीन लेखकों एवं कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?

गुप्ता जी :-  उन प्रत्येक रचनाकारों को सम्मान देना चाहता हूं जिन्होंने देश और समाज के लिए कार्य किया है और कर रहे हैं। मंचों के माध्यम से फुहड़ता परोसने वालों को मैं अलग नजरिए से देखता हूं। 

 

प्रश्न 13. गुप्ता जी, आप स्वयं इतने वरिष्ट साहित्यकार हैं। आप के साहित्य से जुडे ढेरों अनुभव होंगे। उनमें से कोई ऐसी घटना जो आपके लिए स्मरणीय है, और आप उस अनुभव का आनंद आप हमारे दर्शकों और अपने पाठकों के साथ साँझा करना चाहते हों? 

गुप्ता जी :-   यह बात 2013 की है गीताश्री मौखिक रूप से क्षेत्र में थी छत्तीसगढ़ में 70 लोगों की भीड़ ने करीब 3 घंटे इंतजार किया था । यह लोग हमारे पहुंचने पर बड़े आदमी ढंग से मिले और भव्य स्वागत किए थे। मुझे छत्तीसगढ़ की ईमानदारी और वहां के लोग बहुत पसंद हैं वहां का लोक कला करमा नृत्य देखने लायक है प्रकृति का सम्मान कैसे करना है हम उनसे सीख सकते हैं मेरा देश कितना प्यारा है जहां पर ठंड गर्मी और बरसात तीनों ऋतुऐं है अनेक संस्कृतियों एवं भाषाओं की संवाहक है । पूरे विश्व में एक मेरा ही देश जिसे हम मां कहते हैं ।जहां तक मंचों की बात है एक बार की बात है दर्शन लेखन से बात करना चाहते हैं वह आपको जी भर के निहारना चाहते हैं आपको छूना चाहते हैं और आपके साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं यह उनके जीवन का एक खुशनुमा पल होता है जिसे जीवन भर सजो के रखना चाहते हैं। 

 

 

प्रश्न 14. कल्पकथा के लिए आपके कोई सुझाव जिसके माध्यम से आप कल्पकथा परिवार का मार्गदर्शन करना चाहते हैं? 

गुप्ता जी :-  कोई भी साहित्यिक संस्था एकाग्रचित होकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जब किसी छोटे-छोटे लक्ष्य को लेकर चलती है और उसी क्रम में आगे बढ़ती है तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करना संभव हो जाता है कलपकथा जहां तक हम देख पा रहे हैं साहित्य से जुड़े हुए नवाचार करने वाले यह स्थापित रचनाकारों के लिए एक प्लेटफार्म के रूप में उभर रहा है इसे जारी रखना चाहिए हां एक बात और है संगठन की मजबूती के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। लोग कहते हैं ना एक और एक जोड़ी तो दो होता है, लेकिन एक और एक साथ रख दी जाए तो 11 होता है। यानी एकता में ही शक्ति है। संघे शक्ति कलयुगे से प्रेरणा लेकर माध्यम से असंभव को भी संभव कर दिखाने की क्षमता है। 

 

प्रश्न 15. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

गुप्ता जी :-  लेखक को पाठकों से आशीर्वाद चाहिए और आशीर्वाद उनकी पुस्तकों को पढ़ा जाए और लेखक के नाम से चिट्ठी लिखे यह लेखक के लिए ऊर्जा दी होता है आज छापने के लिए पुस्तक खूब छप रही है प्रकाशित हो रही है लेकिन पाठक गायब हैं तो इसके लिए स्वयं जिम्मेदार लेखक हैं क्योंकि कुछ स्वयंभू लेखकों के कारण दर्शकों और पाठकों की स्थिति नगण्य हो चुकी है। मातृभाषा हिंदी पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर रखने की ताकत है हम लोगों ने आओ करें हिंदी में हस्ताक्षर, युवा मित्रों आओ !साहित्य की ओर लौटो | और पर्यावरण शुद्धि के लिए आओ चले तरुवर की छांव कुल मिलाकर आओ चले गांव की ओर इस अभियान के साथ हम लोग क्षेत्र में हैं और और यह कार्यक्रम निरंतर जारी है इसी में सभ्यता संस्कृति संस्कार की बसावट है शोरूम में कांच से पादुका और फुटपाथ से पुस्तक को हटाने के लिए हम लोग निरंतर प्रयास कर रहे हैं और जब तक सांस है तब तक आप है कि हट जाएगा प्रयुक्त कार्यक्रम में आम जनमानस से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में जन भागीदारी हो और तभी प्रयास फलीभूत होंगे। 

धन्यवाद

 

          तो ये हैं हमारे साथ जुडे इस बार के विशेष व्यक्तित्व गीताश्री भारती साहित्य संस्था के संस्थापक श्री राज नारायण गुप्त “कैमी” जी। जिनकी उपस्थिति हमारे एक विशेष प्रेरणादायी रही। आशा है कि आप सब को भी इनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा होगा। कमेन्ट में आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी। 

 

“कैमी” जी के साक्षात्कार को देखने का लिंक : 

https://www.youtube.com/live/_RFWDxqDJIY?si=UVHVSX0Ylmcj92hf

 

✍🏻 -: कल्पकथा परिवार :-

 

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री राज नारायण गुप्त ”कैमी” जी“ !!”

  • पवनेश

    बेहद सकारात्मक और सराहनीय वार्तालाप,
    आदरणीय राजनारायण गुप्त कैमी जी को पढ़ – सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई।
    राधे राधे 🙏🌹🙏

Leave A Comment