!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री सूर्येन्दु कुमार मिश्र “सूर्य” जी” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 15/12/2024
- लेख
- साक्षात्कार
- 1 Comment
!! “व्यक्तित्व परिचय :सूर्येंदु मिश्र “सूर्य”” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम : सूर्येन्दु कुमार मिश्र
पिता : स्वo भानु प्रकाश मिश्र
माता : स्वo चंद्रप्रभा मिश्रा
जन्म स्थान: ग्राम -बेलौर, जिला – सिवान,बिहार
30 जून 1973
पत्नी: श्रीमती संगीता मिश्रा
संतान : वैभव कुमार मिश्र
शिक्षा : Bsc B ed MA LLB
व्यवसाय : अध्यापन, विद्यालय संचालन
वर्तमान निवास : लार टाऊन, देवरिया, उत्तर प्रदेश
मेल 🆔: suryendu.mishra@gmail.com
कृतियां: कहानी/ धारावाहिक – मोती आ आ, वह रहस्यम ताबीज, तालीम, यूएफओ: एक आखिरी चेतावनी, कविता संग्रह
विशिष्ट कृतियां : अमलतासी, बिखरे अल्फाज
पुरस्कार :
प्रतिलिपि और स्टोरी मिरर द्वारा विशिष्ट लेखक तथा कविता लेखन में पुरस्कार। अमर उजाला व जनसंदेश में अनेक रचनाएं प्रकाशित
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव : दीपावली , श्रीकृष्णजन्माष्टमी
भोजन : राजमा चावल, लिट्टी चोखा, दही चूड़ा ( चूड़ा दही नहीं)
रंग : केसरिया, धानी
परिधान : कुर्ता पायजामा जैकेट
स्थान/ तीर्थ स्थान: वाराणसी, वृंदावन, हरिद्वार
लेखक/ लेखिका : प्रेमचंद्र, धर्मवीर भारती, शिवानी
कवि/ कवयित्री : राष्ट्रकवि दिनकर, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा
उपन्यास/ कहानी/ पुस्तक : गिल्लू, उसने कहा था, गोदान, पूस की रात
कविता/ गीत / खंड काव्य : रश्मिरथी, मैं सुमन हूं, वह तोड़ती पत्थर
खेल : चेस, गिल्ली डंडा, क्रिकेट
मूवीज/ धारावाहिक: दोस्ती, शोले, चाणक्य , नसीब, सी आई डी,
सबसे प्रिय कृति : पूस की एक और रात, तालीम, अमलतासी
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. मिश्र जी, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये।
सूर्येंदु जी :- जी, साहित्य और विशेषकर कविता से मेरा लगाव तो बचपन से ही था। विद्यार्थी जीवन के प्रारंभ में ही कुछ कविताओं से अनुराग तब हो गया था जब हम एक साथ सस्वर पढ़ते थे….
उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूं मुंह धो लो
बीती रात कमल दल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले
या फिर
अम्मा जरा देख तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल
गरज रहे हैं तड़प रहे हैं
दीख रहा है जल ही जल
बचपन में पढ़ी गईं ये कुछ ऐसी कविताएं थी जिन्हें पढ़कर वह दृश्य खुद-ब-खुद पैदा हो जाता था। ऐसा लगता था जैसे वह दृश्य बिल्कुल हमारे सामने आकर खड़ा हो गया हो।
फिर रिमझिम रिमझिम बरसा पानी
दौड़ी तब शीला की नानी ……कविता हमारे अंदर रोमांच और आह्लाद दोनों पैदा कर देती थी।
इन कविताओं का जो शब्द विन्यास और नाद सौंदर्य था वह बरबस ही मुझे आकर्षित कर लेता था हालांकि तब इतना ज्ञान नहीं था की कविताएं कैसे लिखी जाती है।
हमारे पिताजी भी विज्ञान के अध्यापक होने के बावजूद भी साहित्यनुरागी थे तो अक्सर घर पर स्थानीय कवि और लेखकों का जमावड़ा लगा रहता था। तो कुछ नहीं कुछ प्रेरणा पैदा होती थी कि हमें भी कुछ लिखना चाहिए। कुछ प्रारंभिक कविता लेखन मैने करना शुरू कर दिया था। लेकिन जैसा अक्सर ही होता है….पिता जी इस क्षेत्र की दुश्वारियों से परिचित थे तो उन्होंने मेरी इस प्रवृत्ति पर रोक लगा दी। पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत के साथ मैथ्स और विज्ञान की ओर धकेल दिया।
प्रश्न 2. सूर्येंदु जी, कल्पकथा के इस भेंटवार्ता कार्यक्रम में हम हिन्दी साहित्य के साहित्यकार की रुचि अभिरुचि को वार्ता के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं, आप इस कार्यक्रम को कैसे देखते हैं? क्या आप उत्साहित हैं?
सूर्येंदु जी :- कल्प कथा द्वारा द्वारा प्रायोजित साहित्यकारों से भेंट वार्ता का यह कार्यक्रम मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। विशेषकर ऐसे साहित्यकारों को आप यहां ढूंढ लाते हैं जिन्हें बहुत ज्यादा लोग नहीं जानते हैं, लेकिन जिनकी साहित्य साधना अपना गुपचुप ढंग से लेकिन अनवरत चलती रही है। नवोदित या फिर भूले बिसरे साहित्यकारों के व्यक्तिगत और सामाजिक परिवेश को जान समझने का अच्छा मौका मिलता है आपके इस कार्यक्रम के माध्यम से।
प्रश्न 3. मिश्र जी, आप एतिहासिक, धार्मिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण नगर देवारण्य (देवरिया) उप्र के रहने वाले हैं। इस नगर के बारे में अपने शब्दों में कुछ बताइये।
सूर्येंदु जी :- उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित देवरिया जिला रामायण काल देवरण्य के नाम से भी जाना जाता था। दरअसल यहां देवालयों की अधिकता थी। सदनीरा राप्ती और गंडक से सिंचित यह भूमि अध्यात्म साहित्य और कृषि तीनों के लिए शुरू से ही उर्वर रही है। पहले यह गुरु गोरखनाथ की पवित्र नगरी वर्तमान गोरखपुर का हिस्सा रहने के बाद कुशीनगर एक स्वतंत्र जिला बन गया। यह जिला भगवान बुद्ध की निर्वाण स्थली होने के कारण विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है। उससे भी पहले रामायण काल में कौशल नरेश भगवान राम के बड़े पुत्र कुछ द्वारा शासित होने के कारण इसे कुशीनारा के नाम से जाना जाता था। बाद में अंग्रेजों के जमाने में यह कुशीनगर के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में भी यह देवराहा बाबा आश्रम दुग्धेश्वर महादेव मंदिर, बाबा हंसनाथ धाम सोहगरा के लिए भी जाना जाता है।
प्रश्न 4. सूर्येंदु जी, आपको लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली और आपने किन परिस्थितियों में लिखना आरम्भ किया?
सूर्येंदु जी :- जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं लेखन की प्रेरणा मुझे अपने पारिवारिक माहौल और पिताजी के साथ उठने बैठने वाले साहित्यकार कवियों और प्रवचन कर्ताओं से मिलती रही। वैसे बीच में साहित्य जगत रिश्ता मेरा कुछ टूट गया था क्योंकि मैं विज्ञान और भौतिक जगत से ज्यादा जुड़ गया था। लेकिन इस भौतिक जगत में मेरे हृदय में उथल पुथल और अशांति के पल ही ज्यादा मिलते थे।
फिर कोरोना काल में हुए लॉकडाउन और एकांतवास में मेरी लेखनी को एक बार फिर से चलने की प्रेरणा दी और कई कविताएं और कहानियां उस समयांतराल लिखी गई।
प्रश्न 5. मिश्र जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानते हैं?
सूर्येंदु जी :- बचपन से ही मुझे स्कूल की पत्रिकाओं में लेख और कविताएं लिखने का शौक था। विद्यार्थी जीवन में हम लोग नंदन और पराग पढ़ा करते थे लेकिन जब सुमन सौरभ में मेरी एक रचना छपी तो मुझे बहुत ज्यादा खुशी। कालांतर में मैं साइंस का विद्यार्थी बन गया तब तक कविताओं से थोड़ी दूरी जरूर बढ़ गई थी लेकिन पढ़ाई की चीजों को भी कविता में लिखना और याद मुझे बहुत अच्छा लगता था।
प्रश्न 6. आप की कई रचनाओं में आपकी रचना *अमलतासी* इस रचना के माध्यम से आपने क्या कहने का प्रयास किया है? साथ ही हम आपकी कोई एक कविता सुनना चाहेंगे।
सूर्येंदु जी :- विद्यार्थी जीवन में ही मुझे 10-12 साल बाबा विश्वनाथ नगरी की वाराणसी में रहने का सौभाग्य मिला। तब मैं काफी हिंदू विश्वविद्यालय लॉ की पढ़ाई भी कर रहा था फिर बाद में जॉब भी करने लगा था। अमलतासी की कहानी वहीं की पृष्ठभूमि पर आधारित है और कुछ सत्य घटनाओं पर आधारित है। मेरे पड़ोस में ही एक लड़की को पहले बहला फुसलाकर लव जिहाद का शिकार बनाने का प्रयास किया गया। वह फिर वह बड़ी मुश्किल से वापस लौट के आई और उस बच्ची के को कई विषम और अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। कुछ इसी थीम पर आधारित यह कहानी कुछ सस्पेंस के सम्मिश्रण के साथ लिखी गई है। अभी तक हजारों पाठकों ने इसे पढ़ा है। इसमें मेरे कॉलेज लाइफ के कुछ सुनहरे पलों को भी मैने साझा करने की कोशिश की है।
प्रश्न 7. सूर्येंदु जी, कहते हैं बचपन की नादानियां सभी के जीवन में स्मरणीय होती है। हम जानना चाहेंगे आपके बचपन का बाल विनोद भरा वो किस्सा, जो आपके स्मृति कोष में संरक्षित है और आपको आज भी मुस्कुराने पर विवश कर देता है।
सूर्येंदु जी :- जी, बचपन में नादानियां तो होती रहती हैं और हमारा बचपन तो नादानियां से भरा पड़ा था विशेषकर जब हम गांव जाते थे। खूब धमा चौकड़ी होती थी। उसी से संबंधित किस्सा है।
एक बार मैं और मेरा छोटा भाई दोनों अपने दरवाजे पर खेल रहे थे। तभी मेरे पिताजी के सबसे प्रिय मामा जी अचानक मिलने आ पहुंचे। हम लोग वहीं पर खेल रहे थे। हमने उनका अभिवादन किया फिर वहां रखी एक कुर्सी बैठ गए बाहर कोई नहीं था तो उन्होंने पहले हमसे सबका हाल चाल लिया। फिर बात के दौरान पूछ लिया,
“बाबू, मोती जी कहां है ? दिख नहीं रहे ? ”
उनका इतना पूछना था कि मुझे थोड़ी हंसी आ गई। ये बात मेरे भाई ने सुनी थी तो वो भी अपनी हंसी रोक नहीं पा रहा था। वे हमारी ओर देख रहे थे लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि हम हंस क्यों रहे है?
दरअसल मोती हमारे कुत्ते का नाम था और उसके लिए इतना आदर सूचक शब्द किसी ने कभी नहीं कहा था। हम हंसते हुए घर की ओर भागे तो घर से पिताजी को बाहर निकलते देख हम वहीं ठिठक गए। हमारी हंसी अभी भी रुकी नहीं थी उनसे डर गए तब तक मेरे पिताजी घर से बाहर निकाल कर आ गए उन्होंने हमें हंसते देखा तो पूछा की तुम लोग हंस क्यों हो तो मेरे भाई ने मामा जी इशारा करते हुए कहा..मोती जी। फिर उसकी हंसी फूट पड़ी। पिताजी ने मामा जी को देखा तो उन्हें लगा कि उसने मामा जी का अपमान किया होगा। इससे पहले कि वो हमें डांटते उन्होंने पिताजी से कहा,
अरे, बाबू ये लोग हंस इसलिए रहे हैं क्योंकि मैंने कुत्ते मोती जी कह दिया। फिर उन्होंने हमारी ओर मुखातिब होते हुए कहा,
“देखिए बाबू मैने कुत्ते के लिए सम्मान सूचक शब्द इसलिए कहा है कि मेरी जुबान न खराब हो। ये आदत बनी रहेगी तो मैं सभी के साथ ऐसा ही कहूंगा नहीं तो आदत बिगड़ जाने पर आप के लिए भी अच्छे शब्द नहीं निकल पाएंगे। ”
उनकी ये बात उस समय ज्यादा समझ में नहीं आयी और उसके बाद भी हम इस बात की चर्चा कर हंसते रहे। लेकिन जब बड़े हुए तो ये बात बहुत अच्छी तरह समझ में आ गई और आज भी मैं किसी के लिए खराब शब्द इस्तेमाल करने से परहेज करता हूं।
प्रश्न 8. आपकी एक रचना है “यूएफओ”, अपनी इस पुस्तक के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?
सूर्येंदु जी :- यूएफओ : एक आखिरी चेतावनी
मेरी यह रचना दरअसल एक साइंस फिक्शन है। यूएफओ का मतलब होता है और अनआईडेंटिफाइड फॉरेन ऑब्जेक्ट जिसे साधारण तौर पर उड़नतश्तरी के नाम से जाना जाता है। उड़नतश्तरीयां हमारे लिए शुरू से ही आश्चर्य का विषय रही है और उनको देखकर मन में हमेशा कौतूहल होता रहा है। तो इसी कौतूहल बारे में मैंने इस साइंस फिक्शन को लिखा है। इस कहानी के माध्यम से दूसरे ग्रह के लोगों का यही संदेश है कि अगर हमने इस ब्रह्मांड के रहस्यों और प्रकृति की व्यवस्था को छिन्न भिन्न का प्रयास किया तो हमें इसका खामियांजा भुगतना पड़ेगा। यह कहानी भविष्य में संभावित कुछ घटनाओं पर लिखी गई है जो आने वाले कुछ दशकों में दुनिया के लिए खतरा बन सकती हैं।
प्रश्न 9. मिश्र जी, यूँ तो हर किसी का उसके अपने क्षेत्र में कोई न कोई प्रेरक होता है। ऐसे में आप आज के समय के किस लेखक या कवि से सबसे अधिक प्रभावित हैं?
सूर्येंदु जी :- मैं पुराने कवियों में मैथिलीशरण शरण गुप्ता, सुमित्रानंदन पंत व दिनकर जी से अधिक प्रभावित रहा। आधुनिक युग में मैं कुंवर बेचैन जी , कुमार विश्वास व भूषण त्यागी को सुनता रहा है।
आधुनिक लेखकों में मैं सतीश सान्याल, पंकज दुबे को पसंद करता हूं।
प्रश्न 10. सूर्येंदु जी, हम आपका वो अनुभव जानना चाहेंगे, जब आपको लेखन क्षेत्र में पहला पुरुस्कार मिला?
सूर्येंदु जी :- जी एक लेखक के लिए हर पाठक या श्रोता महत्वपूर्ण होता है। उन्हीं के माध्यम से यह पता चलता है हमारी रचनाओं की स्वीकार्यता कितनी है। फिर हमे यह फीड बैक भी मिलता है कि हमें अपनी लेखन शैली या भाषा में सुधार की कितनी गुंजाइश है।
बहुत पहले जब मेरी एक रचना एक पत्रिका में छपी थी तो मुझे बहुत खुशी हुई थी और मैने उसे कई मित्रो को दिखाया भी था। आज जब बहुत कुछ लेखन ऑनलाइन हो रहा है तो जब भी कोई पुरस्कार या सम्मान मुझे मिलता है तो खुशी होता है। फिर इन छोटी छोटी खुशियों से आत्मविश्वास बढ़ता है और लेखनी को गति भी मिलती है।
प्रश्न 11. सूर्येंदु जी, आप निस्संदेह एक विशिष्ट श्रेणी के लेखक हैं। आपने कई विषयों पर कहानियाँ लिखी है। जितनी अच्छी पकड आपकी गद्य लेखन पर है उतनी ही उन्नत पकड आपकी पद्य लेखन पर भी है। ऐसे में हम जानना चाहेंगे कि आपको गद्य या पद्य में किस पर लिखना अधिक सहज लगता है? साथ ही हम आपकी कोई एक कविता भी सुनना चाहेंगे।
सूर्येंदु जी :- जी, अगर आप ऐसा मानते हैं तो ये आपका बड़प्पन है। वैसे जहां तक मुझे लगता है कि गद्य और पद्य में एक बारीक अंतर यही है कि जहां गद्य पर्याप्त शब्दों में भावों को सीधे पाठक तक पहुंचा देते हैं। वही जब कम शब्दों में, कुछ सांकेतिक रूप से भावों को प्रेषित करते है तो पद्य रचना हो जाती हैं।
शब्द- सौन्दर्य रस राग के कारण पद्य को सुनने या पढ़ने में आनंद की प्राप्ति ज्यादा होती है। जहां तक मेरे अनुभव है मैं अपने मूड के अनुसार ही कविता या कहानी लिखता आया हूं। अब कविता कब और कैसे बन जाती है ? इसके लिए आपको एक कविता के माध्यम से ही संसुचित करना उचित समझता हूं….
शीर्षक है….कविता एक बन जाती है
जब कवि देखता है गुलाब।
पी लेता है उसका शबाब
तब उसकी मादक सुंदरता
एक कविता बन जाती है
जब प्रियतमा करती है इंतजार
दिल रोता उसका बार बार
फिर उसकी बिरहाकुलता
एक कविता बन जाती है
जब कोई देखे दुखियारी मां
सीने से चिपकाए अपना लाल
उसके हृदय की सुन धड़कन
एक कविता बन जाती है
जब देख लाचार भिखारी को करता है कोई अन्न दान तो उसे उसकी निर्धनता लाचारी एक कविता बन जाती है………
प्रश्न 12. मिश्र जी, आपने एक रोचक कविता लिखी है “आखिरी मुलाकात कोरोना से”। इसे लिखने के भाव आपके मन में कैसे जागृत हुए? यदि आप ये कविता यहां सुनाएंगे, तो हमारे दर्शक भी अभिभूत होंगे।
सूर्येंदु जी :- देखिए प्रियंवदा जी, कोरोना कल हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ी त्रासदी थी। कितने लोगों ने अपने सगे संबंधियों को खो दिया। कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितने घर बर्बाद हो गए।
पहली लहर तो हमने झेल लिया पर दूसरी लहर तो कुछ ज्यादा ही भयानक थी। कोई परिवार ऐसा नहीं होगा जिसके सगे संबंधियों में कोई कल कवलित नहीं हुआ हो। मेरा परिवार खुद ही कोरोना की चपेट में था मेरी माता जी अपने गांव में भागवत कथा सुन रही थी और फिर वहीं से वो मुख्य व्यास जी से कोरोना की चपेट में आ गई। दोनों लोग कुछ दिनों के अंतर पर ही स्वर्गवासी हो गए। फिर मैं जिंदगी और मौत से जूझते अपने छोटे भाई को लेकर हफ्तों तक अस्पताल में रहा। हॉस्पिटल की चारों सीढ़ियों से उतरती लाशों की लाइन खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। मेरे भाई को छोड़कर पूरे वार्ड से कोई घर वापस नहीं गया।
उस समय बहुत नकारात्मकता चरम सीमा पर थी और लगता था कि कोरोना जाएगा ही नहीं। उस समय सकारात्मक विचारों की जरूरत कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी। फिर तीसरी लहर की आशंका से रूह में कंपन शुरू हो गया था कि अब किसकी बारी है? लेकिन अब हमने करोना खाना और पचाना शुरू कर दिया था।
इन्हीं भावो को लेकर मैं एक कविता लिखी थी आखिरी मुलाकात कोरोना से… कुछ पंक्तियां आपको सुनाता हूं
भाई कोरोना जी क्या हुआ ?
सुना है तुम जा रहे हो?
बताओ तो आखिर बात क्या है?
क्या यह तेरी आखिरी मुलाकात है?
तुमने भी वही गलती की
जो मानव ने किया था
तेरी तरह ही आकार लिया था
लालच में आ गया था वह
विस्तार तेजी से लिया था
इतिहास गवाह है
अक्सर ऐसा ही होता है
जो बहुत तेज चलता है
प्रश्न 13. सूर्येंदु जी, आप सार्वजनिक जीवन की जिम्मेदारियों को सम्हालते हुए लेखन कार्य को कैसे समय देते हैं?
सूर्येंदु जी :- जी मैं पेशे से एक ईमानदार अध्यापक हूं और वरीय होने के कारण हर कार्य में मेरा वरण पहले ही कर लिया जाता है। साथ ही कुछ और भी सामाजिक ऐसे आवरण हैं जिन्हें ओढ़कर चलना पड़ता है। माता-पिता का साया अब रहा नहीं। हमारे एक भोजपुरी कवि मित्र हैं जो अक्सर मिलते हैं तो कहते हैं।
“मिसिर जी हमनी के त भुजवो खाए के बा और फड़वो टोये के बा।”
मतलब, जिम्मेदारियां भी निभानी है और साहित्य की भी सेवा करनी है। सब उसी में मिलाकर चलना पड़ता है। पर मैं अपना समय कैसे निकलता हूं?
इस पर भी मैने एक कविता लिखी है आपकी अनुमति हो तो मैं सुना दूं।
मैं जब भी लिखते जाता हूं…….
प्रश्न 14. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस विचार के अनुसार कितना सफल मानते हैं?
सूर्येंदु जी :- जी जी मैं बिल्कुल आपकी इस बात से सहमत हूं लेखन अगर देश के हित में ना हो तो उसे अच्छा कैसे माना जा सकता है लेकिन अब हम यहां समझना पड़ेगा कि आखिर देशभक्ति है क्या देशभक्ति केवल वही नहीं है कि हम सीमा पर जाकर दुश्मन से लड़ाई करें देशभक्ति वह भी है जो हम अपने कार्य में ईमानदारी करते हैं देश के नागरिकों और उसकी संस्थाओं के बारे में अच्छा सोचें देश विरोधी ताकतों का विरोध करें अगर आपकी कविता आपकी रचनाएं अगर ऐसा करती हैं तो आप बिल्कुल देशभक्त हैं
प्रश्न 15. मिश्र जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?
सूर्येंदु जी :- जी मैं इस मामले में मध्यमार्गी हूं। मुझे लगता है कि भाव पक्ष के साथ कला पक्ष का संतुलन भी जरूरी है तभी कविता में आनंद आता है। फिर भी भाव पक्ष ज्यादा महत्वपूर्ण है, अगर भावनाएं पैदा और प्रेषित नहीं होगी तो कविता ही बिखर जाएगी। मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं।
पहले के जो हमारे साहित्यकार थे उनकी रचनाएं कालजई क्यों बन पाईं ? शायद समझ में आएगा बहुत समय पहले जब दिनकर जी उर्वशी काव्य लिख रहे थे तो लिखने के बाद उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त जी को एक पत्र लिखा था वह पत्र बहुत सार्वजनिक नहीं हुआ लेकिन संजोग से मुझे पिताजी की डायरी से वह पत्र मिल गया। मैं चाहता हूं कि आप लोग रुचि पूर्वक उसे पत्र की भाषा को सुने जो सिर्फ और सिर्फ कविता में लिखी गई है लेकिन कोई बात छूट नहीं नहीं है
हो गया पूर्ण उर्वशी काव्य …
प्रश्न 16. सूर्येंदु जी, हर गुणी लेखक/कवि की लालसा होती है कि उसे अपनी रचना पर विशेष टिप्पणियां मिले, जो सकारात्मक के साथ-साथ निष्पक्ष भी हों। आप इस संदर्भ में क्या राय रखते हैं?
सूर्येंदु जी :- जी बिल्कुल, एक साहित्यकार एक रचनाकार अपनी रचना करते समय अपनी जी जान लगा देता है और अगर उसे पाठकों का प्रोत्साहन न मिले तो उसे लगता है कि उसकी रचनाओं में कुछ खामी रह गई है तो प्रोत्साहन प्रशंसा के दो शब्द कुछ विशिष्ट उद्बोधन हमेशा एक साहित्यकार को आगे लिखने को प्रेरित करते हैं वैसे पुरस्कार तो हर क्षेत्र में चलता है तो हर एक कवि या साहित्यकार को यह लालसा तो रहती है।
प्रश्न 17. हमने आपकी एक कहानी पढी है “सौतेली माँ का प्यार”। ये लिखने के लिए आपके मन में विचार कहाँ से आये?
सूर्येंदु जी :- देखिए, अक्सर हमारे पुरानी कहानियों में और यहां तक की समझ में भी सौतेली माता को हमेशा थे विलन के रूप में देखा जाता रहा है इस कारण कुछ अच्छी माता के त्याग को भी भुला दिया जाता है मैं खुद देखा है कि ऐसी बहुत ही सौतेली माताएं हुई है जिन्होंने अपने बच्चों से ज्यादा प्यार दूसरे बच्चे पर बरसाया लेकिन समाज के लोगों ने हमेशा उसे तरक्षी नजरों से ही देखा है। कहीं ना कहीं हम उसकी भावनाओं को समझने में नाकामयाब होते रहे हैं। आप मेरी इस रचना को पढ़ेंगे तो आपको समझ में आएगा की सौतेली मां का भी उतना ही प्यारी हो सकती जितनी अपनी मां।
प्रश्न 18. क्या आप किसी एक ऐसे एतिहासिक पात्र को अपने दृष्टिकोण से उकेरने का प्रयास करेंगे, जिसको आपके दृष्टिकोण से इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिला है अथवा एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है, यदि हां तो वह कौन हैं और आपको क्यों लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है?
सूर्येंदु जी :- जी, दुर्गा भाभी जो स्वातंत्र्य वीर भगवती चरण बोहरा की पत्नी थी और जिन्होंने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों को भेष बदलकर कोलकाता जाने में मदद की थी। जो क्रांतिकारियों का प्रेरणा स्रोत थी। ऐसी वीरांगना महीना के बारे में जितना लिखा जाना चाहिए था उतना नहीं लिखा गया, विशेष कर काव्य रूप में उनके बारे में बहुत कम सामग्री मिलती है। तो मेरी इच्छा है कि मैं कालांतर में उनके ऊपर एक अच्छी काव्य रचना लिख सकूं यही मेरी उसे वीरांगना के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी
प्रश्न 19. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है?
सूर्येंदु जी :- लेखन के अतिरिक्त मुझे संगीत सुनना काफी पसंद है मैं नन्हे मुन्ने बच्चों से बात करना बहुत पसंद करता हूं उनकी तोतली बोली में मुझे बहुत मजा आता है इसके अलावा मुझे पेड़ पौधों से ज्यादा लगाव है मैं बागवानी के लिए भी कुछ समय निकाल लेता हूं।
प्रश्न 20. मिश्र जी, आपने एक कहानी लिखी है – “तालीम”। ये कहानी किस अभिप्राय से लिखी गई है?
सूर्येंदु जी :- तालीम से मेरा अभिप्राय शिक्षा और हुनर प्राप्त करने से यह कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखी गई दो सहेलियों की कहानी है जो एक दूसरे के विपरीत धर्म से होते हुए भी अंत तक एक दूसरे को काफी सहायता करती है। गांव से शहर तक की यात्रा में मित्रता की ये कहानी अभी भी सच होती दिख जाएगी। यह उनका भावनात्मक लगाव ही है जो उन्हें हर मोड़ पर एक साथ जोड़े रहता है। इस कहानी में एक सहेली काफी पढ़ी-लिखी और हुनर मंद है, जबकि दूसरी परिस्थितियों के कारण शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाई है। फिर जीवन संघर्ष में उसे दुबारा शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है तो उसकी जिंदगी भी सार्थक बन जाती है।
प्रश्न 21. सूर्येंदु जी, आधुनिक युग में जीवन में ग़लाकाट प्रतियोगिता बहुत अधिक बढ़ गई है, आप साहित्य के क्षेत्र में इस बिंदु से कितना सहमत हैं और क्यों?
सूर्येंदु जी :- भई, मेरे लिए तो साहित्य एक आनंद का अनुभव करने वाली वस्तु है। हां यह जरूर प्रयास रहता है की कुछ उत्कृष्ट लिखा जाए, कुछ ऐसा लिखा जाए जिसे पाठक पसंद करें। लेकिन उल्टे सीधे तरीकों से और जो आपने कहा कहा कि गला काट प्रतियोगिता है। उससे मुझे नफरत है मैं इस तरह की गला काट प्रतियोगिता में किसी का गला काट कर आगे बढ़ना बिल्कुल ना पसंद करूंगा। मेरा साहित्य लेखन अपने और दूसरों को सुख और आनंद देने के लिए है ना कि किसी को कष्ट देने के लिए।
भेंटवार्ता : ✍🏻 सूर्येंदु मिश्र “सूर्य”
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज वरिष्ठ लेखक श्री सूर्येंदु मिश्र “सूर्य” जी से परिचय हुआ। ये गाजियाबाद (उप्र) की हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन अपने आसपास के परिदृश्यों को संकलित किये हुए है। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/jh4HBcZIryg?si=Mz9UY8vjBHKCqTsx
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा प्रबंधन
One Reply to “!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री सूर्येन्दु कुमार मिश्र “सूर्य” जी” !!”
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पवनेश
राधे राधे, आदरणीय सूर्येंदु मिश्र जी के साथ भेंटवार्ता कार्यक्रम में बहुत आनंद आया। 🙏🌹🙏