
साक्षात्कार :- श्रीमती अरुणिमा दुबे
- कल्प भेंटवार्ता
- 04/05/2024
- लेख
- साक्षात्कार
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व्यक्तित्व परिचय :- श्रीमती अरुणिमा दुबे
मेरा परिचय
नाम :- अरूणिमा दूबे
पिता का नाम :- डा योगेन्द्र नाथ पांडेय
माता का नाम :- स्व डा श्रीमती मालती पांडेय
जन्मस्थान :- काशी
जन्मतिथि :- 30/12/1974
पति :- श्री देवनारायण दूबे
श्वसुर जी :- स्व पंडित जय नारायण दूबे
सासु मां :- स्व श्रीमती शांति दूबे
बच्ची :- योषिता दूबे
शिक्षा :- एम एस सी प्राणी शास्त्र,बी एड एंडोक्राइनोलोजी विषय में रिसर्च केलिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इंरोल्ड हुई थी।
व्यवसाय… जीवविज्ञान विषय का अध्यापन
वर्तमान निवास :- 31, रविन्द्र पल्ली इंदिरा नगर लखनऊ
मेरी कृतियां
चार पुस्तकें प्रकाशित
ममता ,…कहानी संग्रह
नीलकंठी,… स्त्री विमर्श की कहानियों का संग्रह
रंग बनारसिया …उपन्यास
वो चांद सी लड़की… दीर्घ कथानकों का संग्रह
विभिन्न कहानियां एवं लेख पत्रिकाओं जैसे जागरण सखी ,रुपायन , दैनिक जागरण, इंद्रप्रस्थ भारती में प्रकाशित एवं पुरस्कृत।
प्रथम लेख ..तू फुलवारी है मां.. दैनिक जागरण समाचार पत्र द्वारा प्रथम पुरस्कार हेतु चयनित। प्रतिलिपि आनलाइन लेखन प्लेटफार्म पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में अनेकों रचनाएं विशेष स्थान हेतु चयनित । इसी वर्ष
माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित कहानी सुनाओ प्रतियोगिता में माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा सर्वश्रेष्ठ कहानी हेतु मेडल और सम्मान पत्र प्रदान किया गया
मेरी पसंद
भोजन शाकाहारी सात्विक भोजन वैसे मीठा विशेष प्रिय है।
रंग ..गुलाबी या फिर पीला
परिधान साड़ी
स्थान एवं तीर्थ ..
काशी सर्वदा प्रिय है।
लेखन महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद उनकी सरलता सहजता और तत्कालीन सामाजिक विद्रूपताओं का यथार्थ चित्रण करने के लिए बेहद पसंद है। उनकी रचनाओं की सादगी सदैव पाठक के हृदय तक पहुंचती है। उनकी रचनाओं के पात्रों की दीन-हीन दशा और विवशता सदैव पाठक का हृदय उद्वेलित करती है। चाहे उनकी कालजई कहानी पंच परमेश्वर के पात्र हो और उनके लिखे शब्द सबकुछ आज के समाज मे भी प्रासंगिक हैं जैसे खाला का कथन कि “बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात नहीं कहोगे?” आज भी न्यायाधीश की कुर्सी को चैतन्यता को परिलक्षित करता है। मंत्र कहानी का उद्देश्य एक डाक्टर को उसके पेशे के प्रति कर्तव्योन्मुख करता है। इसी प्रकार उनकी ज्यादातर कहानियां प्रासंगिक है और सामाजिक चेतना जागृत करने में महती भूमिका निभाती है।
कवि या कवयित्री… जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा
जयशंकर प्रसाद की कामायनी अद्भुत सृजन है और अल्पायु में प्रेरणादायक सृजन अद्भुत है
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो।।
इनकी रचनाएं सदैव पाठको को विचारशील कर परिणति को प्राप्त करती जो इनकी खासियत थी।
आधुनिक मीरा या पीड़ा की कवियत्री महादेवी वर्मा का सृजन भी अद्भुत था
बचपन में लिखी गई उनकी कविता
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चंदन इन्हें लगाती
इनका भोग हमें दे जाती
फिर भी कभी नही बोले है
मां के ठाकुर जी भोले हैं।
कितनी सरलता और बाल हृदय की सहजता का बोध कराती पंक्तियां हैं।
शिवानी जी की रचनाएं भी अतिप्रिय है। सुंदर शब्द विन्यास और सहजता एवं सरलता लिए धाराप्रवाह लेखनी जो पाठकों को बांध लेती है। इनकी रचनाओं को पढ़ते-पढ़ते हृदय बहुधा अल्मोड़ा की पहाड़ियों में विचरण करता है
कृष्ण कली, करिए छिमा, अपराजिता, चौदह फेरे अप्रतिम कृतियां हैं।
पसंदीदा उपन्यास :- निर्मला, गोदान
कहानी… काबुलीवाला, ईदगाह,
कविता मेघ आए सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
झांसी की रानी, वीरों का कैसा हो बसंत सुभद्रा कुमारी चौहान
खेल क्रिकेट
मूवीज ओल्ड हिंदी क्लासिक मूवीज।
मेरी सभी कृति मुझे अतिप्रिय है लेकिन स्वप्न शेष ,रंग बनारसिया हृदय के निकट है।
मेरे प्रश्न
प्रश्न 1. साहित्य के प्रति रुचि कब और कैसे हुई?
अरुणिमा जी :- साहित्य के प्रति रूचि बचपन से ही पारिवारिक माहौल कुछ ऐसा था कि रूचि उत्पन्न हुई। बचपन की स्मृतियों में जो पात्र हृदय में बसे वो थे चाचा चौधरी और साबू चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता था और साबू ज्यूपिटर ग्रह का वासी था यह एक कारण बालमन पर आधिपत्य जमाने को पर्याप्त था। फिर बिल्लू पिंकी की चपलता भी पसंद आयी।नंदन चंपक सुमन सौरभ आदि पत्रिकाएं नियमित रूप से ली जाती। फिर बाबा जी गीता प्रेस की पुस्तकें ले आते और हमें पढ़ने को कहते वीर बालक वीर बालिकाएं इत्यादि।घर में साहित्यिक पत्रिकाएं आती क्योंकि पिताजी पढ़ते शिवानी और कमलेश्वर के बहुत बड़े प्रशंसक थे। जयशंकर प्रसाद के भी फैन थे और उन्होंने अपने छात्र जीवन में काशी स्थित उनके घर तक उनके विषय में जानने के लिए भ्रमण किया था। अखंड ज्योति में छपी प्रेरणादाई और नैतिकता का पाठ पढ़ाती कहानियां पढ़ी जाती।
प्रश्न 2. आधुनिक और प्राचीन काल के किन रचनाकारों की रचनाओं को आप अपनी रचनाओं के अधिक निकट पाती हैं?
अरुणिमा जी :- मैं स्वयं को बस एक साहित्यिक सरिता के विशद संसार से या फिर यूं कहूं कि साहित्य के अमृत कलश से एक एक एक बूंद ग्रहण करने का सीखने का प्रयास करती छात्रा ही समझतीं हूं।अभी तो बस साहित्य के क्षेत्र में ककहरा सीखने का प्रयास है। लेखनी के माध्यम से बस कुछ हृदय उद्गार कलमबद्ध कर कागज पर उकेरने का सीधा टेढ़ा प्रयास करती हूं और आप जैसे सुधिजनो की सहारना सदैव ऊर्जित करती है।
प्रश्न 3. आप काव्य और गद्य, दोनों विधाओं में लिखती हैं। आपके लिए दोनों विधाओं में से किस विधा में लिखना अधिक सहज है?
अरुणिमा जी :- मेरे लिए गद्य लिखना सदैव सरल है और आत्म परिचयात्मक श्रेणी में मैं स्वयं को या किसी भी विषय पर ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त कर सकती हूं।
प्रश्न 4. आपकी रचना के नायक और खलनायक को यदि आपको उनके विपरीत स्वरुप में प्रदर्शित करना पड़े तो आप कैसे करेंगी?
अरुणिमा जी :- प्रेमचंद जी की कहानी नशा में कुछ ऐसा ही है कि पात्रों का मौलिक स्वरूप बदल गया है पराजित विजेता कहानी में भी मैंने पात्रों का चरित्र परिवर्तन किया है।कुछ ऐसा ही चित्रित किया है।
प्रश्न 5. अगले पाँच सालों में साहित्यिक क्षेत्र में आप स्वयं को कहाँ देखती हैं?
अरुणिमा जी :- सफर कोई भी हो चलते रहने का ही आनंद है ।मैं वर्तमान में जीने की वकालत करती हूं क्योंकि जो भी है बस यही एक पल है। मैंने यह भी नहीं सोचा था कि आप जैसे सुधीजनो के बीच और कल्पकथा साहित्यिक संस्था द्वारा मुझे इस प्रकार साक्षात्कार के लिए आमंत्रण मिलेगा।बस छोटे-छोटे कदमो से शनैं शनै एक एक पग आगे बढ़ रही हूं चल रहीं हूं बहुत बार यह सफर मध्यम गति से चलता है कभी कभी लेखन की रफ्तार धीमी भी पड़ती है फिर अंतस से कलम के प्रति एक जिम्मेदारी का भाव आता है लेखनी चल पड़ती है।पांच सालों में शायद कुछ अधूरी कृतियां पूर्ण कर सकूं जो प्रकाशित भी हो सकें। तकनीकी रूप से लेखन और सहज और समृद्ध हो सके । विचार विनिमय और भी आसान हो जाए और बहुत कुछ जो महत्वपूर्ण है और पढना बाकी है उनको शनैं शनै पढ़नेकी प्रक्रिया भी पूरी हो सके।
प्रश्न 6. लगातार होते परिवर्तनों के बीच में आप साहित्य को भविष्य में किस स्वरूप में उच्चतम स्तर पर देखती हैं?
अरुणिमा जी :- देखिए मेरा मानना है कि मनुष्य एक परिवर्तन शील प्राणी है और परिवर्तन ही एकमात्र शास्वत सत्य है। जैसे कल था वैसा आज नहीं है और जैसा आज है वैसा कल नहीं होगा। साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत परिवर्तन आया है जैसा मैं महसूस कर पा रहीं हूं क्योंकि समाज भी एक बहुत बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है जिसमें कुछ परिवर्तन सकारात्मक है और कुछ नकारात्मक भी। साहित्य समाज का ही दर्पण होता है जो साहित्य भी सभी प्रकार का रचित हो रहा है। भविष्य निसंदेह उज्जवल है जिस प्रकार युवा पीढ़ी या यूं कहूं कि पढ़ने वाले युवाओं के एक बड़े वर्ग का रूझान साहित्य की तरफ दिखता है और यह परिवर्तन सुखकारी है। आजकल युवाओं का सफल होना भी नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है जैसे एक उदाहरण दूं कि डार्क हार्स के लिए युवा साहित्यकार का पुरस्कार पाने वाले नीलोत्पल मृणाल ,अमिषा आदि अनेकों ऐसे युवा साहित्यकार हैं जो अपनी लेखनी से समाज मे उन्नयन लाने के लिए चेष्टारत है।मेरे घर मे भी एक छोटी सी बालिका हैअनिका जिसके हाथो में गुड़िया खेलने वाली नन्ही सी उम्र मे मैंने लेखनी देखी हैऔर उसने अल्पायु में चीकू मीकू के एडवेंचर्स नामक पुस्तक लिखी जिसकेलिए उसका नाम यंगेस्ट आथर के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। बच्चो और युवाओं में साहित्य के प्रति रूचि निसंदेह उत्साहित करती है।
प्रश्न 7. आप साहित्य को और भी अधिक समाज उपयोगी बनाने के लिए किन प्रयासों की अनुशंसा करती हैं?
अरुणिमा जी :- साहित्य को समय के अनुरूप बनाने के लिए तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। जैसे स्कूलों कालेजों में कहानी सुनाओ प्रतियोगिता का आयोजन ,
पुस्तक मेलों का आयोजन।
कवि सम्मेलन या संवाद जैसे आयोजन
जैसे अभी मतदान की जागरूकता हेतु तरह तरह के कार्यक्रम कविता और कहानियों के माध्यम से हो रहे हैं
सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक करके मानवाधिकार पर जातिवाद जैसे मुद्दों पर लेखन करके। सामाजिक समरसता और सौहार्द पर लिखा जा सकता है
प्रश्न 8. आपकी दृष्टि में एक लेखक के क्या गुण होने चाहिये?
अरुणिमा जी :- लेखक के गुण
अच्छा पाठक
संवेदनशीलता
ईमानदरी
रचनात्मकता
कम शब्दों में अधिक बात कहने की कला
पाठकों को अपनी लेखनी से सहमत कर लेना।
कहानी या लेख से पढने वाला तारतम्य बिठा कर स्वयं को लेख में महसूस कर सके।
प्रश्न 9. आज चारों ओर सोशल मीडिया का दबदबा आप देखती होंगी? ये किस प्रकार से सहायक सिद्ध हों सकता है?
अरुणिमा जी :- बहुत सहायक है। आज लिखने पढ़ने के लिए अनेकों प्लेटफार्म है। तकनीकी रूप से भी लेखकों के लिए व्यापक सुविधा उपलब्ध हैं। किसी भी कहानी या लेख को पढ़ने की सुविधा तुरंत उपलब्ध है। विचारों को शब्दो में बांधकर बयां करना भी आसान हो गया है। आनलाइन लेखक की खासियत यह है कि आपकी रचना को पाठकों की प्रतिक्रिया भी तुरंत उपलब्ध हो जाती है।
प्रश्न 10. आप विषयानुगत लेखन के विषय में क्या सोचती हैं?
अरुणिमा जी :- किसी भी विषय पर लिखना लेखक की और पाठक की रूचि पर निर्भर करता है। जैसे राजनीतिक चर्चा परिचर्चा में दिलचस्पी रखने वाला लेखक राजनीतिक विश्लेषण और वैचारिक लेखों को प्रमुखता से लिखेगा और उसे इस रूचि के पाठक भी मिलेंगे इसी प्रकार खेल या सिनेमा या फिर स्त्री विमर्श के मुद्दों पर लिखने वाले लेखक को उसी रूचि के अनुसार पाठक मिल जाएंगे।
प्रश्न 11. स्वतंत्रता के विषय में आपके क्या विचार हैं?
अरुणिमा जी :- स्वतंत्रता लेखक की स्वतंत्रता किसी भी व्यक्ति के विचारों को अभिव्यक्त करने का उन्मुक्त भाव देती है जब भी कोई रचनाकार बिना किसी बाध्यता या बंदिश के सृजन करता है तो वह अपने भावों को शब्दों का बेहतरीन आवरण पहना कर प्रस्तुत करता है लेकिन लेखन भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी युक्त कार्य है। कुछ भी लिखने के पूर्व एक लेखक को समाज देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी और प्रतिबद्धता का ख्याल रखना चाहिए। उसके लेखन से किसी की भी भावनाएं आहत न हो ऐसा प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 12. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करती हैं?
अरुणिमा जी :- मेरे विचार से लेखक भी कलम के सिपाही हैंऔर लेखनी की धार तलवार की धार से ज्यादा तीक्ष्ण होती है।जो सामाजिक परिवर्तन करती है और लोगों का आत्मनिर्भरता और सुधार की दिशा में प्रेरित करती है
लेखकों का योगदान देशहित में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उनके लेख और विचार लोगों को जागरूक करते हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होते हैं। वे समस्याओं पर जोर देने और समाधानों की संभावनाओं पर विचार अभिव्यक्त करते हैं।
प्रश्न,13. कल्पकथा से जुड़े हुए आपको काफी समय हो गया है। कल्पकथा के साथ जुड़कर आपका अनुभव कैसा रहा?
अरुणिमा जी :- कल्पकथा एक अत्यंत प्रगतिवादी मंच है जिससे जुड़कर बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मुझे याद है इस मंच पर दोहा छंद हाइकु इत्यादि विधाओं में लिखने के लिए व्यापक कक्षाएं भी संचालित की गई थी जिससे बहुत से लोगों ने लेखन की सटीकता और वैज्ञानिकता का अनुभव किया और बहुत कुछ सीखा। विषयानुसार लेखन के लिए यह मंच माध्यम बनता है समय समय पर होने वाली काव्य गोष्ठी और परिचर्चा और साहित्य को और समृद्ध करने का प्रयास अत्यंत सराहनीय है।जब। कभी लेखनी की रफ्तार धीमी पड़ने लगती है इस मंच से लेखकों को ऊर्जित करने का अत्यंत पुनीत कार्य किया जाता है। सबसे अच्छी बात यह है कि बच्चों की सहभागिता भी इस मंच पर बनी रहती है भले ही वो चित्रकारी के माध्यम से हो या बाल साहित्य के द्वारा जिससे हमारे नौनिहालों में भी अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न हो।इस मंच से जुड़ें हुए बड़े बड़े साहित्य साधक नव लेखकों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत का कार्य करते हैं।
प्रश्न 14. आप कल्पकथा की प्रगति और उन्नति के लिए क्या सुझाव देंगी?
अरुणिमा जी :- आप स्वयं ही नित नए प्रयोगों और क्रियाविधियों से समाजिक सांस्कृतिक प्रगति में अमूल्य योगदान दे रहे हैं आपके मंच से प्रकाशित पत्रिका का में हिंदी से संबंद्ध लेख कथा कहानियों का संग्रह अप्रतिम रहता है।मेरी शुभकामनाएं आप यूं ही इस नेक कार्य में आगे बढ़ते रहे देश और समाज के परिमार्जन में योगदान देते रहें।
प्रश्न 15. आप समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
अरुणिमा जी :- समाज को संदेश
सकारात्मक सोच रखें दूसरों से बहुत ज्यादा अपेक्षा रखने से इतर स्वयं से ज्यादा अपेक्षा रखें
देश हमें देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखें
सूरज हमें रौशनी देता,हवा नया जीवन देती है
भूख मिटाने को हम सबकी धरती पर होती खेती है
औरोंं का भी हित हो जिसमें हम ऐसा कुछ करना सीखें
देश हमें देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखें
समाज को साझेदारी समझदारी और समरसता का संदेश देना चाहती हूं जिसके माध्यम से एक सुखद समृद्ध और उन्नतशील समाज की नींव रखी जा सकती है।
………. तो ये थे हमारे प्रश्न और अरुणिमा जी के उत्तर, जो कि इन्होंने बहुत ही सहजता से दिए। इनकी लेखनी में परिपक्वता साफ झलकती है। इनका लेखन भावना प्रधान है अतः इन्हें भावनाओ के समंदर से मोती चुनने वाली लेखिका कहा जाता है।
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🌺 *”!! एक संध्या साहित्यकार के नाम में मिलिए वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अरुणिमा दुबे लखनऊ उत्तर प्रदेश से। !!”* 🌺
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आशा है आपको इनका साक्षात्कार पसंद आया होगा। अपनी प्रिय लेखिका से मिलकर आपको कैसा लगा, हमें जरूर बताइयेगा।
मिलते हैं अगले सप्ताह साहित्य जगत के एक और चमकते सितारे के साथ। तब तक के…
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 राधा श्री शर्मा, अरुणिमा जी के साथ
One Reply to “साक्षात्कार :- श्रीमती अरुणिमा दुबे”
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पवनेश
श्रीमती अरुणिमा दुबे लखनऊ उत्तर प्रदेश जी का साक्षात्कार पढ़कर आनंद आ गया। उनके साहित्य सुधि और आनंदमय जीवन हेतू कोटिश: मंगलकामनाएं। राधे राधे 🙏🌹🙏