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व्यक्तित्व परिचय :- श्रीमती जया शर्मा “प्रियंवदा”

व्यक्तित्व परिचय :- श्रीमती जया शर्मा “प्रियंवदा” 

 

✍🏻 *मेरा परिचय* 

 

नाम :- जया शर्मा प्रियंवदा

माता/पिता का नाम :-

डॉ नित्यानंद मुद्गल

श्रीमती विजयलक्ष्मी मुद्गल

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि  :-

शाहजहांपुर उ प्र

27 दिसम्बर

 

पति का नाम :-

श्री राजेश कुमार शर्मा

 

बच्चों के नाम :-

पुत्र अर्जुन शर्मा

पुत्री रिद्धि शर्मा

 

शिक्षा :-

एम ए संस्कृत ,बी एड

यूजीसी नैट क्वालीफाय

 

व्यावसाय :-  शिक्षिका

 

वर्तमान निवास :-   फरीदाबाद हरियाणा

 

आपकी कृतियाँ :-

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-

1* मनकही(  स्त्री विमर्श की कहानियाँ ) 

2*  मेरे हिस्से का खुला आसमान  ‌(सामाजिक कहानियाँ

 

पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-  विविध साहित्यिक मंचों की प्रतियोगिताओं में कहानी और कविताएँ प्रथम और द्वितीय स्थान पर चयनित होने पर सम्मानित और कल्पकथा के द्वारा  “कल्प कलम श्री” सम्मान से अलंकृत किया गया। 

✍🏻  *मेरी पसंद*

 

भोजन :-  राजस्थानी भोजन

 

रंग :-  चटकीले रंग, राजस्थानी रंग कम्वीनेशन

 

परिधान :-  भारतीय परिधान, साड़ी और पंजाबी सूट के साथ खुला दुपट्टा। 

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :-  बनारस, जयपुर सालासर, बंगलोर, नैमिषारण्य, पूर्णागिरी और नई दिल्ली🎉🎉

 

लेखक/लेखिका :-  कालिदास, वाण, भवभूति

मैक्सिम गोर्की,, ओ हेनरी, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, रामचंद्र शुक्ल, गुलाब राय, भीष्म साहनी, 

 

कवि/कवयित्री :-  हरिवंशराय बच्चन, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, नागार्जुन । 

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :-

कालिदास का  अभिज्ञान शाकुंतलम्, बाण की कादंबरी

 देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति और भूतनाथ। 

गोर्की का उपन्यास (माँ) 

लिओ टॉलस्टॉय का अन्ना कारेनिना  

कविता/गीत/काव्य खंड :-

 

खेल :-  शतरंज और बैडमिंटन

 

मूवीज/धारावाहिक (यदि देखती हैं तो) :-

 पुरानी फिल्म दोस्ती और महल, वक्त, लवस्टोरी 42,संगम, कमल हासन की हिन्दुस्तानी, 

अच्छी फिल्मों को बार बार देखना मेरा शौक है। 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-

मां का बैंक बैलेंस और, तजुर्बे में निखर उठी निर्मला दोनों ही कहानियाँ अच्छी लगती हैं

✍🏻  *मेरे प्रश्न*

 

प्रश्न 1. आपकी साहित्य के प्रति रुचि कब और कैसे हुई? 

उत्तर ***हमारे पिताजी ने हिंदी साहित्य के प्रोफेसर होने के साथ-साथ  अपनी  कविताओं के द्वारा   अपने आसपास साहित्य के लोगों के मध्य अपनी पहचान स्थापित की ।घर में साहित्यिक परिवेश होने के कारण हमारा बचपन  भी साहित्यिक अभिरुचि वाला बन गया,घर में आने वाले पिताजी के मित्र साहित्यिक विचारधारा वाले ही होते । बचपन में पिताजी शहर में कोई भी साहित्यिक कार्यक्रम होता ,तो वहां पर हमको अवश्य ले जाते,कार्यक्रम के आयोजन से प्रभावित होकर हम वहाँ की रचनाओं को सुनकर घर में आकर थोड़ा-थोड़ा आपस में एक दूसरे को सुनाया करते । 

बचपन से ही पिताजी हमको श्रेष्ठ लेखकों की किताबें पढ़ने को दिया करते ,स्कूल में होने वाली सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं में , प्रतिभागिता करते हुए जब कभी अपना नाम प्रथम और द्वितीय स्थान पर देखती तब बहुत प्रसन्नता होती।

सही में लिखना मैंने दसवीं क्लास से शुरू किया,हमारी हिंदी विषय की  शिक्षिका आदरणीया विजयलक्ष्मी गुप्ता हमको और कबीर,सूर,तुलसी के पदों की व्याख्या स्वयं करने को कहती और अपनी व्याख्या को विस्तृत स्वरूप प्रदान करने के लिए हम लोगों को प्रेरित करतीं अपने भाव को विस्तार देना हमने अपनी हिंदी शिक्षिका से ही सीखा।नए-नए विषयों पर निबंध अपने शब्दों में लिखना ,लेखन के प्रारंभ को कहना गलत ना होगा । 

हमारी शिक्षिका का कहना सभी छात्राओं से रहता की छोटे-छोटे लेख विभिन्न समाचार पत्रों में भेज कर अपनी लेखन शैली जाजंते रहना चाहिए,आज भी जब कुछ भी लिखती हूं तो मुझे अपनी शिक्षिकाओं की बहुत याद आती है विजयलक्ष्मी दीदी आज हमारे साथ नहीं हैं पर उनकी सीख सदैव मेरे साथ रहेगी ही । 

 

प्रश्न 2. आधुनिक और प्राचीन काल के किन रचनाकारों की रचनाओं को आप अपनी रचनाओं के अधिक निकट पाती हैं? 

उत्तर*****प्राचीन साहित्य में संस्कृत भाषा में मैंने कालिदास ,बाण और भवभूति को पढ़ा ।

कालिदास और बाण जैसे उत्कृष्ट कवियों की ऊंचाइयों को छूना आसान नहीं है,कालिदास  की कृतियां अभिज्ञान शाकुंतलम,रघुवंश ,मेघदूत ,कुमारसंभव आज भी संस्कृत साहित्य के अनमोल रतन हैं।

  वर्णन शैली मैं वाण की कादंबरी जैसा ग्रंथ अन्यत्र दुर्लभ है ।भवभूति का उत्तर रामचरित अपने आप में विशिष्टकृति है । हिंदी साहित्य में गद्य साहित्य को विस्तार और चमत्कृत करने वाले महावीर प्रसाद द्विवेदी,गुलाब राय,रामचंद्र शुक्ल,,जैसे लेखकों श्रेय जाता है।

लेखकों की श्रृंखला में प्रेमचंद का साहित्य आज भी जन-जन की आवाज को कहता हुआ इतने वर्ष बाद भी सजीव सा लगता है ।आधुनिक हिंदी कहानी और नाटक को जन-जन की आवाज देने वाले प्रेमचंद के साथ प्रसाद ,भीष्म साहनी,विष्णु प्रभाकर,कमलेश्वर आदि महान लेखकों ने अपनी  कहानी और उपन्यास  को जन-जन को पढ़ने के लिए लालयित किया।

देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता,चंद्रकांता संतति और भूतनाथ के विषय में ऐसा कहा जाता है इन उपन्यासों को पढ़ने के लिए लोगों ने हिंदी पढना सीखा।

आधुनिक परिवेश को अपने साहित्य से समृद्ध करने वाले बहुत से लेखक हिंदी साहित्य की सेवा कर रहे हैं । 

सोशल मीडिया के समय में आज बहुत से लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का आसान अवसर प्राप्त हुआ है ,सोशल मीडिया की सक्रियता के सौजन्य से बहुत सी प्रतिभाएं अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी लेखन शैली के द्वारा पाठकों पर अमिट छाप छोड़ रहे हैं। 

 

प्रश्न 3. आप काव्य और गद्य, दोनों विधाओं में लिखती हैं। आपके लिए दोनों विधाओं में से किस विधा में लिखना अधिक सहज है? 

, उत्तर***** सोशल मीडिया ने आज हमको बहुत से साहित्यिक  मंच प्रदान किए हुए हैं।वहां पर अन्य लेखकों की रचनाओं को पढ़कर,मैं भी कुछ कविता,कहानी और संस्मरण लिखने की कोशिश करने लगी हूं।

मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध होने के कारण,जहां पर आपस में एक दूसरे को समझने के लिए आत्मीयता होती है ,उसी को मैं अपनी रचनाओं की विषय वस्तु बनाती हूं । मुझे संस्मरण लिखना बहुत अच्छा लगता है,  जब मेरे द्वारा लिखे गए संस्मरण को पढ़कर पाठक उसमें अपनी यादें भी ढूंढते हैं ,तो मन को अच्छा लगता है । 

कुछ छोटी-छोटी कहानियां में  भाव पिरोने  की कोशिश करती हूं ,मन के भावों को कभी-कभी कविता में कह  देना अच्छा लगता है और पाठकों की सार्थक समीक्षा और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है। 

 

प्रश्न 4. आपकी रचना के नायक और खलनायक को यदि आपको उनके विपरीत स्वरुप में प्रदर्शित करना पड़े तो आप कैसे करेंगी? 

उत्तर ***मैं स्त्री विषयक विषय वस्तु को अपनी कहानियों  के लिए प्राथमिकता देती हूं,समसामयिक विषयों पर भी कुछ कहानी और लेख लिखे हैं ,जिन पर पाठकों की सार्थक समीक्षाओं ने मुझे उत्साहित किया,मेरी कहानियों के पात्र मध्यम वर्गीय हैं और और सीधे साधे रास्ते पर चलते हुए और चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते हैं । 

मैं अपनी कहानियों में निगेटिव करेक्टर का चयन नहीं करती कहानियों मे पात्र के सामने विपरीत परिस्थिति तो अवश्य आती है परंतु विपरीत पात्र ना के बराबर होते हैं ,अधिकतर  पात्रों के समक्ष चुनौती खड़ी करने वाले एक निश्चित शैली का जीवन शैली का निर्वाह कर रहे होते हैं,जो सामने वाले के लिए सामान्य  नहीं होता। 

 

प्रश्न 5. अगले पाँच सालों में साहित्यिक क्षेत्र में आप स्वयं को कहाँ देखती हैं? 

उत्तर****आधुनिक साहित्य  का सृजन करने में आज विशिष्ट लेखकों की महत्वपूर्ण भूमिका है और वह अपने साहित्य सृजन से लेखकों और पाठकों के मध्य अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं ,मैं भी कुछ संस्मरण,लेख और कविता लिखने की कोशिश करती हूं पर अभी मैं प्रथम चरण पर ही हूं। 

 

प्रश्न 6. लगातार होते परिवर्तनों के बीच में आप साहित्य को भविष्य में किस स्वरूप में उच्चतम स्तर पर देखती हैं? 

उत्तर**** इस विषय में मैं यह कहना चाहती हूं कि आज जब मैं विविध साहित्य मंचों को देखती हूं तो वहां पर हॉरर और आपराधिक  कहानियों को ज्यादा पाठक प्राप्त होते हैं ,पर साथ में यह भी कहना चाहूंगी कि

 आधुनिक साहित्य के पाठकों और लेखकों  का वर्गीकरण हो चुका है ,आधे लोग कुछ लोग पारिवारिक साहित्य को प्राथमिकता देते हैं,वहीं कुछ पाठक आपराधिक और हारर कहानियों में अपनी रुचि दिखाते हैं । 

साहित्य को सकारात्मक स्वरूप प्रदान करने के लिए प्रत्येक साहित्यकार को अपनी कृति  को प्रेरणादायक बनाने की कोशिश करनी चाहिए ,अगर वह आपराधिक कथानक को अपनी कहानी का विषय बनता है तब उसको अपराध के परिणाम को भी अपनी रचना में दिखाना चाहिए,समाज के लिए उपयोगी बनाने के लिए साहित्य सृजन करना चाहिए। 

 

प्रश्न 7. आपकी दृष्टि में एक लेखक के क्या गुण होने चाहिये? 

उत्तर***** प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक की सभ्यता और संस्कृति को जानने के लिए विभिन्न आयामों के साथ तत्कालीन साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।प्राचीन समय में शासक लोग अपने अनुरूप अपने अपने राज्य सभा के लेखकों के द्वारा अपनी प्रशंसा से युक्त साहित्य का सृजन करवाते थे,कई लेखकों का साहित्य अपने शासक की प्रशंसा के साथ तत्कालीन परिस्थितियों ,सामाजिक रहन-सहन ,समाज में स्त्री पुरुष की स्थिति,युद्ध आदि का वर्णन हमें तत्कालीन संस्कृति से परिचित करवाने में सहायक है। 

 

प्रश्न 8. आज चारों ओर सोशल मीडिया का दबदबा आप देखती होंगी? ये किस प्रकार से सहायक सिद्ध हो सकता है? 

उत्तर******साहित्य अभिरुचि वालों के लिए सोशल मीडिया एक सुखद अनुभव वाला है ऐसा मुझे लगता है , मेरा सोचना है कि जहां हम पहले अपनी रचनाओं को पूर्ण आशा के साथ प्रकाशित होने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में भेजते थे और उनके प्रकाशित होने की प्रतीक्षा करते थे और अधिकतर प्रतिक्षा  प्रतीक्षा बनकर ही रह जाती थी संभवत मेरी रचनाएं प्रकाशन योग्य न रहती हो ,पर आज सोशल मीडिया के युग में विभिन्न साहित्यिक मंचों पर अपनी रचनाएं स्वयं प्रकाशित करना मेरे लिए कम आश्चर्यजनक बात नहीं है । 

आज पाठकों के द्वारा अपनी रचनाओं पर समीक्षाओं को पाकर और अच्छा लिखने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है,आज सोशल मीडिया सभी पाठकों और लेखकों को विभिन्न साहित्यिक मंचों पर पढ़ने के लिए विशाल साहित्य उपलब्ध करा रही है । 

आज गूगल पर सर्च करके हम प्राचीन से लेकर आधुनिक वर्तमान साहित्यकारों की रचनाओं को भी सहजता से पढ़ लेते हैं  आज के युग में प्राचीन साहित्य विविध अनुवादों के साथ सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। 

 

प्रश्न 9. आप विषयानुगत लेखन के विषय में क्या सोचती हैं? 

उत्तर****मेरे विचार से लेखन स्वान्तासुखाय हो तो अधिक श्रेयस्कर होता है ।लेखक भी पाठक की तरह सामाजिकता से परिपूर्ण है, समसामयिक विषयों पर लिखने के लिए समाज में उतरना पड़ता है ,समाज की घटनाओं को अपने भीतर आभासित करना होता है ,तभी हम  समसामयिक विषयों पर  लेखन कर सकते हैं ,समाज के भाव आत्मसात कर भावों को शब्दों में पिरोना होता है ,लेखन को हम एक निश्चित काम की तरह नहीं ले सकते ,अच्छे  लेखन के लिए लेखक का मूड सकारात्मक होना अत्यंत आवश्यक है ।साहित्य सृजन लेखक के लिए भी आनंद की अनुभूति वाला होना चाहिए

 

प्रश्न 10. स्वतंत्रता के विषय में आपके क्या विचार हैं? 

उत्तर आज के आधुनिक परिवेश में ,प्रत्येक क्षेत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अपनी परंपराओं और रुढियों की सीमाओं को तोड़ना उच्च स्तरीय बात कहलाने लगी है । स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कह देना,अभिव्यक्त करना एक सीमा तक ही ठीक लगता है ,नहीं तो वह मर्यादा का उल्लंघन होता है मान लिया जाए तो गलत ना होगा लेखक को भी अपनी रचनाओं में पात्रों को और विषय वस्तु को आवश्यकता से अधिक  उन्मुक्तता नहीं प्रदान करनी चाहिए। 

 

प्रश्न 11. कहते हैं लेखन तभी सार्थक होता है, जब वो देशहित में कार्य करे। आप अपने लेखन को इस तर्क पर कैसे सिद्ध करती हैं? 

उत्तर**** हमारे शास्त्रों में कहा गया है की साहित्य समाज का दर्पण होता है साहित्य के द्वारा ही हम तत्कालीन समाज की स्थिति और परिस्थिति का अवलोकन कर पाते हैं। 

 साहित्य को सुदृढ़ बनाने के लिए लेखक को समसामयिक विषय वस्तु बनाते हुए,संदेश  पूर्ण सृजन करना चाहिए । 

मेरी अधिकतर कहानी मध्यवर्गीय पात्रों को लेकर लिखी गई है।मैंने अपने आसपास के लोगों के भीतर की कहानी को विषय बनाया है ,मेरी कहानी अगर पाठक को अपने आसपास की कहानी महसूस होती है और वह कहानी में अपनी उपस्थिति महसूस कर समीक्षा करते हैं,तो बहुत अच्छा लगता है। कहानी की पाठक के द्वारा की गई समीक्षा कहानी का मूल्यांकन होती है। 

 

प्रश्न 12. कल्पकथा से जुड़े हुए आपको काफी समय हो गया है। कल्पकथा के साथ जुड़कर आपका अनुभव कैसा रहा? 

उत्तर** यह मेरा सौभाग्य है कि मैं कल्पकथा  के प्रारंभिक चरणों की सहचर रही हूं ।कल्पकथा  पर विशिष्ट लेखकों की उपस्थिति मुझे अच्छे साहित्य को  पढ़ने का सुखद अनुभव प्राप्त करती है अच्छे लेखकों की रचनाएं पढ़ कर स्वयं भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है।पटल पर आयोजित विभिन्न समसामयिक विषयों पर आधारित प्रतियोगिताएं हमको मानसिक रूप से भी सजग करती हैं । 

कल्पकथा  पटल के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों की खुशबू वहां के साहित्यकारों की रचनाओं में महकती है। 

 

प्रश्न 13. आप कल्पकथा की प्रगति और उन्नति के लिए क्या सुझाव देंगी? 

उत्तर **भारत देश के विभिन्न प्रांतो से जुड़े हुए साहित्यकार कल्प कथा पटल की शोभा बढ़ाते हैं । मेरा सभी साहित्यकारों से विनम्र आग्रह है ,कि वह सब अपनी रचनाओं के द्वारा पटल को समृद्ध बनाएं ,अगर किसी कारणवश वह अपनी रचनाएं नहीं प्रेषित करते हैं तब वह पटल पर प्रकाशित अन्य लेखकों की रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर पटल को सुदृढ़ बनाएं।

कल्पकथा पटल विश्व बंधुत्व की भावना को मूल में लेकर आगे बढ़ रहा है ,इसलिए हम सभी साहित्यकारों का कर्तव्य है कि हम सब इसमें समग्र रूप से भाग लें और  सभी एक दूसरे को को प्रोत्साहित करें। 

प्रश्न 14. आप समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

उत्तर***अपनी कहानियों के माध्यम से यह कहना चाहूंगी कि समाज में स्थिति परिस्थिति परिवर्तन शील है,

और इसका प्रभाव साहित्य पर भी पड़ता है, इसलिए हमें सकारात्मक साहित्य को स्वीकार करें।  प्रत्येक युग और काल  का प्रतिबिंब हमें तत्कालीन साहित्य के माध्यम से ही प्राप्त होता है, हमारा साहित्य ही हमारे युग का प्रतिबिंब आने वाली पीढियां के सामने प्रदर्शित करेगा।

अतः प्रत्येक साहित्यकार का कर्तव्य होना चाहिए कि  अपने साहित्य के द्वारा अपने काल की सुदृढ़ और मनभावन छवि आने वाले युग के सामने रख सकें।हमें अपने लेखन में सकारात्मक कथावस्तु को   आधार बनाते हुए अपनी रचनाएं सार्थक और प्रेरणादायक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए ।

हमारा साहित्य ,हमारे युग को सुंदर छवि के रूप में सबके मन मस्तिष्क में व्याप्त करे इस भावना के साथ हमें साहित्य सृजन करना चाहिए। 

जय श्री राम

         तो ये थीं हमारी साहित्यकार श्रीमती जया शर्मा “प्रियंवदा” जी, फरीदाबाद (हरियाणा) से। आपको इनके विचार और सुझाव अच्छे लगे होंगे। अपने विचारों से हमें कमेन्ट बॉक्स में अवगत कराएं। आपके सभी विचारों का स्वागत रहेगा। 

 

साक्षात्कारकर्ता :- राधा श्री शर्मा 

कल्प भेंटवार्ता

One Reply to “व्यक्तित्व परिचय :- श्रीमती जया शर्मा “प्रियंवदा””

  • पवनेश

    श्रीमती जया शर्मा जी का साक्षात्कार पढ़कर उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हूं। उनके साहित्य सुधि और आनंदमय जीवन हेतू कोटिश: मंगलकामनाएं। राधे राधे 🙏🌹🙏

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