
व्यक्तित्व परिचय आदरणीय रामवृक्ष बहादुरपुरी जी
- कल्प भेंटवार्ता
- 13/06/2024
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री रामबृक्ष बहादुरपुरी जी” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- रामबृक्ष बहादुरपुरी
माता/पिता का नाम :- परमपूज्य पिता श्री पतिराम एवं पूजनीया माता श्रीमती अमृता देवी
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- ग्राम बलुआ बहादुरपुर पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर जनपद-अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश
शिक्षा :- आँग्ल भाषा में स्नातकोत्तर
व्यावसाय :- शिक्षक
वर्तमान निवास :- जिला गोण्डा उत्तर प्रदेश
आपकी मेल आई डी :- krambriksh683@gmail.com
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- सात काव्यसंग्रह पुस्तक,नारी जीवन की चुनौतियां ( काव्य),दोहा संग्रह, कुंडली संग्रह एवं कहानी संग्रह प्रकाशित
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. रामबृक्ष जी, सबसे पहले हम आपके पारिवारिक और साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं।
रामबृक्ष जी :- महोदय, मैं एक साधारण कृषक परिवार से हूॅं। परमपूज्य पिता श्री पतिराम एवं पूजनीया माता श्रीमती अमृता देवी के संस्कार ने मुझे साहित्य की ओर प्रेरित किया। मुझे याद है कि उनकी कहानियां और किस्सों ने मेरे अंदर कवित्व का भाव पैदा किया।
प्रश्न 2. साहित्य जगत से आपका परिचय कब और कैसे हुआ?
रामबृक्ष जी :- – व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है , साहित्य समाज का दर्पण है। सामाजिक प्राणी होने के नाते,हृदय में वेदना, करुणा, दया और धर्म का भाव पैदा होना स्वाभाविक है। कबीरदास जी के दोहों ने मुझे काफी प्रभावित किया जिसे पढ़कर मैं साहित्य को समझ पाया और साहित्य से अपने आप को जोड़ पाया।
प्रश्न 3. रामबृक्ष जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।
रामबृक्ष जी :- – मुझे स्पष्ट रूप से आज भी याद है कि बचपन में स्कूल भेजे जाने पर रूठ कर बैठ जाना और फिर दुकान की खाने वाले सभी प्रकार की मिठाइयों को लेकर बैठ कर खाना और फिर स्कूल के बजाय वापस घर लौट कर आना और खूब मार खाना आज भी नहीं भूलता है।
प्रश्न 4. आप के गृह नगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?
रामबृक्ष जी :- – मैं ग्राम बलुआ बहादुरपुर पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर जनपद-अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश का निवासी हूं। यह मेरा जन्मभूमि है और किसे अपना जन्मभूमि प्यारा नहीं होता? लेकिन जन्मभूमि के अतिरिक्त कर्मभूमि भी उससे कम प्यारा नहीं होता। कर्मभूमि ही सार्थक जीवन जीने का अवसर देता है। पेसे से मैं एक अध्यापक हूं। वर्तमान में मैं जिला गोण्डा उत्तर प्रदेश में कार्यरत हूं। साहित्य के साथ साथ अध्यापन से भी जन और समाज की सेवा करने का मुझे पुनीत अवसर मिलता है। यह कार्य मैं बड़े ही रुचिपूर्वक करता हूं।
प्रश्न 5. रामबृक्ष जी, आपकी लेखन विधा काव्यमय है। काव्य की किस विधा में लिखना आपको सहज लगता है और क्यों?
रामबृक्ष जी :- – साहित्य के हर विधा का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। मुझे सभी प्रकार के विधा अच्छे लगते हैं। काव्य के इन विधाओं में मैंने छंदयुक्त और छंदमुक्त रचनाएं की है। मेरी अब तक सात काव्यसंग्रह पुस्तक,नारी जीवन की चुनौतियां ( काव्य),दोहा संग्रह, कुंडली संग्रह एवं कहानी संग्रह प्रकाशित हैं।
प्रश्न 6. आपकी साहित्यिक यात्रा कहाँ से शुरू हुई और इस यात्रा ने कैसी गति पकड़ी? यात्रा के दौरान लिखी गई कोई एक कविता हमें सुनाईये।
रामबृक्ष जी :- – आज कल, शिक्षा का उद्देश्य आज के लोगों के लिए मात्र नौकरी पाना है, जबकि शिक्षा का उद्देश्य अपने अंदर निहित गुणों को समुचित व्यवहार में लाना और तर्क एवं चिंतन से प्रत्येक सही एवं गलत का पहचान करना है। बहुत सारे ज्ञान अर्जित करने के बाद,नौकरी पा जाने के बाद,उस ज्ञान का क्या होगा जो हमने अब तक अर्जित किया है। यही सोच कर साहित्य के माध्यम से अपने अंदर निहित ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने का निर्णय लिया। जहां तक किसी यात्रा के दौरान कवित्व का जगने की बात है तो मुझे एक घटना जो प्रभावित किया उसे कविता के रूप में प्रस्तुत करता हूं –
कविता – तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर
भूखे पेट की तड़प लिए
तन के प्राण की झड़प लिए
अंतर्मन में गम सहेजे
लिए स्वाभिमान का स्तर,
वह तोड़ती पत्थर।
तन पर लिबास तार तार
चल रही थी लिए भार
कांपते पग थम रहे थे
लिए नि:शब्द मन में प्रश्न उत्तर,
वह तोड़ती पत्थर।
मिट्टियां भर मांग में सिंदूर सा
अपने कर्म -धर्म में लीन होकर
खुद जीने के लिए हो प्रयासरत
हांफते हुए बार बार प्रहार कर,
वह तोड़ती पत्थर।
राह में जाते जो राही
देखता ना कोई उसको, क्यों?
चल रही थी ढेरों लिए
जिम्मेदारियों का प्रस्तर,
वह तोड़ती पत्थर।
थे छातियों में दूध सूखे
देकर वह विश्वास झूठे
कोसती जीवन को अपने
आंसुओं से आंख भरकर,
वह तोड़ती पत्थर।
पत्थर पर बेटी पड़ी थी
रो-रो कर उदास खड़ी थी
फूल की कोमल कली को
देकर आंचल से छांव भर-भर,
वह तोड़ती पत्थर।
एड़ियां यूं थी फटी कि
बेड़ियां मानो पड़ी थी
अभिशापित जीवन को लेकर
विपिन्नता का भाव भर कर
वह तोड़ती पत्थर।
निष्ठुर क्यों इतना बना तू
ना देखता नीचे कभी भू
काटती कैसे अपनी दिन
भूखी प्यासी थक थक कर
वह तोड़ती पत्थर।
✍🏻 रामबृक्ष बहादुरपुरी
प्रश्न 7. आप अपने व्यक्तिगत व्यवसाय और लेखन में कैसे सामंज्य बिठाते हैं?
रामबृक्ष जी :- – जहां चाह वहां राह,
प्रश्न 8. आप की दृष्टि में साहित्य किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?
रामबृक्ष जी :- – यदि आप के इस प्रश्न को सहजता से समझें तो मैं बताना चाहूंगा कि आज विज्ञान का युग है, विज्ञान ने चाकू का अविष्कार कर दिया है जिससे फल,साक सब्जी के साथ साथ किसी का गला भी काटा जा सकता है परन्तु फल साक सब्जी काटना है या गला मानव को साहित्य ही सिखाता है। यूं कहें कि साहित्य ही मानवता और इंसानियत का पाठ पढ़ाता है।
✍🏻 रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
तो आज आप मिले आपके प्रिय कवि और आज के उच्च स्तरीय काव्य गुणों से ओतप्रोत श्री रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी से। इनकी कविताएं जितनी भाव प्रधान होती हैं उतनी ही सौंदर्य सम्पन्न भी होती है। ये काव्य में अलंकरण और व्याकरण का व्यापक उपयोग करते हैं। रामबृक्ष बहादुरपुरी जी के साथ भेंटवार्ता आप हमारे यू ट्यूब चैनल पर देख सकते हैं। उसका लिंक है : 👇
https://www.youtube.com/live/710he-vj4TY?si=kSErIQ9lRrc8g2ds
आशा है कि आप सभी इनसे भेंट करके अति उत्साहित होंगे। तो अपने उत्साहपूर्ण विचार हमें लिख भेजिए। हम आपको आगे भी ऐसे ही जाने माने साहित्य के धनी कवियों, कवयित्रियों, लेखकों एवं लेखिकाओं से मिलवाते रहेंगे।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
कल्पकथा परिवार
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पवनेश
आदरणीय रामवृक्ष बहादुरपुरी जी का साक्षात्कार पढ़ और देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। श्री राधा गोपीनाथ जी महाराज सभी पर कृपा बनाए रखें। 🙏🌹🙏