
!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री भास्कर सिंह माणिक” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 24/01/2025
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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री भास्कर सिंह माणिक” !!
!! “मेरा परिचय” !!
नाम – भास्कर सिंह माणिक
माता का नाम – श्रीमती मुन्नी देवी
पिता का नाम – कीर्ति शेष रामरूप स्वर्णकार “पंकज”
जन्म स्थान – भगतसिंह नगर कोंच
जन्म तिथि – 15 जुलाई 1969
पत्नी का नाम – श्रीमती रचना स्वर्णकार
बच्चों के नाम – मंजुल मयंक स्वर्णकार ( पुत्र), शिवांगी स्वर्णकार (पुत्री)
शिक्षा – स्नातक
व्यावसाय – दुकानदारी
वर्तमान निवास – मालवीय नगर, कोंच
मेल आईडी – manikji13@gmail.com
कृतियां – दर्पण के टुकड़े
विशिष्ट कृतियां – —
प्रकाशित कृतियां – दर्पण के टुकड़े,
अप्रकाशित कृतियां – मैं छोटा हूं लेकिन (बाल कविता संग्रह), कुछ कहा -अनकहा (कविता संग्रह), माटी की सौगंध (बुंदेली कविता संग्रह),अपईं – अपईं बात (बुंदेली कहानी संग्रह), बुंदेलखंड का शौर्य (बुंदेली नाटक संग्रह)आदि
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान – कविवर मैथिली शरण गुप्त सम्मान 2021, सृजन चेता सम्मान 2022, काव्य गौरव सम्मान 2007, साहित्य सुधाकर सम्मान 2011, काव्य शिरोमणि सम्मान 2012, खुशबू काव्य सम्मान 2012, विवेकानंद स्मृति सम्मान 2013, साहित्य भूषण सम्मान 2016 इसी तरह अनेक सम्मान पत्र,प्रशस्ति पत्र,स्मृति पत्र , प्राप्त हुए
आकाशवाणी छतरपुर से अनेक बार काव्य पाठ प्रसारित। अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में सहभागिता, अनेक सामाजिक सेवाओं में सहभागिता।
राष्ट्र स्वर मंच अहमदाबाद- राष्ट्रीय अध्यक्ष। अनेक साहित्य संस्थाओं के संरक्षक ।
देश की प्रतिष्ठित अनेक पत्र पत्रिकाओं में गीत, गजल, कविता, लघु कथा, कहानी, आलेख ,नाटक, समीक्षा अनुवाद आदि प्रकाशित।
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव – होली, दीवाली, नव संवत्सर आदि
भोजन – शुद्ध शाकाहारी
रंग – सफेद, पिंक गुलाबी
परिधान – सदा परिधान
स्थान एवं तीर्थ – जन्मस्थली, सनातनी समस्त तीर्थ
लेखक/लेखिका – मुंशी प्रेमचंद, मधु काकरिया
कवि/ कवियत्री – सुमित्रानंदन पंत, सुभद्रा कुमारी चौहान
उपन्यास/कहानी / पुस्तक – सेज पर संस्कृति, पूस की रात, रामचरितमानस।
कविता/गीत/काव्य खंड – बुंदेले हर बोल के मुंह हमने सुनी कहानी थी, वंदे मातरम,
खेल – बैडमिंटन
फिल्म/धारावाहिक – हमें जीने दो, रामायण, महाभारत।
सबसे प्रिय कृति – दर्पण के टुकड़े
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
प्रश्न 1. माणिक जी, सबसे पहले हम आपके पारिवारिक एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं?
माणिक जी :- मेरा परिवार धर्मपरायण सात्विक विचारधारा का है। मेरा परिवार साहित्यिक परिवेश से उत्प्रोत है। मेरे पिता देश के नाम की साहित्यकार रहे एवं हमारे चाचा श्रेष्ठ साहित्यकारों में अपना स्थान जीवन पर्यंत बने रहे।
प्रश्न 2. माणिक जी, आप ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नगर कोंच के रहने वाले हैं। इस नगर की विशेषता के बारे में आप अपने शब्दों में हमारे दर्शकों और पाठकों को बताइये?
माणिक जी :- हमारा नगर ऐतिहासिक रूप से ही समृद्ध है। यहां चंद्रवरदाई का चंद्र कुआं जहां पर महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित है। 12 खंबे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में नगर पहुंचे में प्रसिद्ध है। यहां प्राचीन महाकाली का मंदिर ,लक्ष्मी नारायण का मंदिर, कलंदर सहाय का स्थान, सिंह वाहिनी मंदिर, गुदरिया वाले हनुमान जी एवं गणेश मंदिर आदि कई स्थान हमारे नगर पहुंचे में प्राचीन धरोहर के रूप में आज भी विद्यमान है।
प्रश्न 3. माणिक जी, साहित्य के प्रति आपका रुझान कैसे हुआ और आपकी प्रथम साहित्यिक रचना कौन सी है?
माणिक जी :- मुझे साहित्य के प्रति अपने पिता एवं चाचा से प्रेरणा प्राप्त हुई। हमारे घर देश के प्रतिष्ठित अनेक श्रेष्ठ रचनाकारों का शुभ आगमन होता रहता था । अतः बचपन से ही साहित्य के प्रति मेरी रुचि बढ़ती गई।
मैंने 1987 में प्रथम रचना लिखने का प्रयास किया।
लगनशील शतपथ अनुगामी
सदा सफल होते हैं।
रहो प्रयासरत दृण निश्चयमय
नहीं विफल होते हैं।
कर्म धर्म से भी बढ़कर है
प्रयत्न प्रथम पूजा है।
सद्भावों से श्रेय कीर्ति यश
सिद्धि सृजन फल होते है।
प्रश्न 4. माणिक जी, आप लंबे समय से व्यवसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं ऐसे में आप साहित्यिक गतिविधियों, सामाजिक जीवन, एवं व्यवसायिक गतिविधियों के मध्य संतुलन कैसे बनाते हैं?
माणिक जी :- मुझे व्यवसाय से जो समय बचता है उस समय को मैं साहित्य को समर्पित करता हूं। कभी-कभी तो यात्रा के दौरान रचनाओं का सृजन हो जाता है और आप साहित्यकारों के काव्य सृजन को पढ़कर सुनकर जो प्रेरणा मिलती है वही हमारे साहित्य के लिए महत्वपूर्ण समय प्रदान कर देती है। सामाजिक जीवन एवं व्यावसायिक गतिविधियों के मध्य संतुलन परमपिता परमात्मा की कृपा से बना रहता है। संघर्षों के बीच साहित्य से जंग ही हमारा जीवन रहा।
प्रश्न 5. भास्कर सिंह जी, हमारे पाठक और श्रोता जानना चाहते हैं आपके बचपन का बालविनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी याद है और जिसके याद आते ही आपकी बरबस हँसी छूट जाती है।
माणिक जी :- किसी का भी बचपन हस विनोद से अछूता नहीं रहता। ऐसे कई मोड़ आते हैं बचपन में जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। हां डर अपने बड़ों का जरूर बना रहता है। कभी मौका लगा तो आपको अपने बचपन की दृष्टांत जरूर सुनाऊंगा।
प्रश्न 6. आप के गृह नगर के अतिरिक्त कौन सा ऐसा स्थान है जो आपको सबसे अधिक रूचिकर लगता है और क्यों?
माणिक जी :- ओरछा का मंदिर बहुत ही रुचिकर लगता है। क्योंकि वहां के इतिहास की स्वर्ण गाथाओं के साथ-साथ वहां के धार्मिक स्थल और बुंदेलखंड की ऐश्वर्या गाथा हमारे हृदय को प्रफुल्लित करती है।
प्रश्न 7. माणिक जी, यूँ तो एक लेखक और कवि के लिए अपनी सभी रचनाएं बहुत प्रिय होती हैं। फिर भी हम आपकी सबसे प्रिय कविता के बारे में जानना चाहेंगे साथ ही आपसे उसे सुनाने का आग्रह भी रहेगा।
माणिक जी :- हाँ, यह सच है। हर कलमकार को अपनी हर रचना प्रिय लगती है। लेकिन आपने पूछा की सबसे प्रिय रचना कौन सी लगती है। यह बता पाना रचनाकार के लिए बड़ा कठिन हो जाता है। फिर भी आपने पूछा तो मैं यही कहना चाहूंगा।
“दूसरा किसको मिला”
यह रचना एकता, अखंडता और आध्यात्मिक को एक साथ अपने अंतः स्थल में समेटे हुए हैं। यही कारण है कि मुझे यह रचना बहुत प्रिय।
!! “दूसरा किसको मिला” !!
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चांद सूरज आसमाॅऺ
धरती सभी बस एक हैं
दो कहीं देखे नहीं
फिर दूसरा किसको मिला।
संत सूफी पादरी
पैगंबरों की बात में
आत्मा परमात्मा में
फिर कहां अंतर मिला।
दो जहां देख नहीं
मालिक भी दो देख नहीं
फिर भी दोनों धर्म का
काफिला चलता रहा
वह ही हर दिल में
सभी के साथ में हरदम मिला
जर्रे जर्रे में उसी का
जज भाई जलवा मिला।
जानकर यह बात भी
परमात्मा बस एक है
फिर भी खूनी जंग का
सिलसिला चलता रहा
वो अनेक रूप में
हर धर्म में सबका रहा
खुदा हम कहते रह
और राम वह कहता रहा
सत्य माणिक सामने है
दूसरा ना मिल सका
सिर्फ भ्रम में भूलकर
मैं उम्र भर भटक रहा
दो कहीं देखे नहीं
फिर दूसरा किसको मिला।
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मैं घोषणा करता हूं कि उपर्युक्त रचना मौलिक रचना है। मेरी कृति दर्पण के टुकड़े में प्रकाशित रचना स्वरचित रचना है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
प्रश्न 8. आप अपने लेखन के लिए प्रेरणा कहां से प्राप्त करते हैं?
माणिक जी :- लेखन के लिए प्रेरणा प्रकृति, राजनीति, सामाजिक सरोकार, आदि सभी अपने आप में प्रेरणा स्रोत होते हैं। किसे कौन कब अपने हृदय में बसा ले और गद्य या पद्य रचना में समाहित हो जाए यह लेखक स्पष्ट नहीं कह सकता।
प्रश्न 9. आप की दृष्टि में साहित्य क्या है और ये किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी हो सकता है?
माणिक जी :- हमारी दृष्टि में साहित्य समाज का आईना है। क्योंकि आप वेद, पुराण, उपनिषद आदि कोई भी ग्रंथ उठा कर देख ले, वह समाज को हमेशा जीवन जीने की कला सिखाता है। उदाहरण के लिए – रामचरितमानस ही एक ऐसा ग्रंथ है, जिसकी प्रत्येक चौपाई मानव के जीवन को उत्तम बना दे। महाभारत विसंगतियों निस्वार्थ की भावनाओं के बीच धर्म की स्थापना का प्रतीक है। समाज सुधारक कोई भी रचना व्यर्थ नहीं जाती वह हमेशा समाज को प्रेरणा देने का कार्य करती है।
प्रश्न 10. माणिक जी, आपने विविध पत्र पत्रिकाओं के लिए सृजन किया है। हमारा प्रश्न यह है कि जब आपकी पहली रचना प्रकाशित हुई तब आपको कैसी अनुभूति हुई?
माणिक जी :- यह तो स्वाभाविक है कि जब किसी कलमकार की पहली रचना प्रकाशित होती है उसका आत्मविश्वास प्रगाढ़ हो जाता है और नई रचनाओं के सृजन के लिए अग्रसर होता है।
प्रश्न 11. भास्कर सिंह जी, आपने अब तक के लंबे सामाजिक जीवनकाल में बहुत से पुरुस्कार प्राप्त किये हैं। आप अपनी इन उपलब्धियों को कैसे देखते हैं? क्या आप प्रफुल्लित हैं?
माणिक जी :- पुरस्कार या सम्मान पाना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है लेखन से समाज में परिवर्तन आए। उपलब्धि यह लेखक का हौसला बढ़ाती है और उसे निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर करती है।
प्रश्न 12. आपको सृजन के लिए सबसे सहज और उपयोगी विधा कौन सी लगती है और क्यों?
माणिक जी :- मुझे सृजन के लिए नई विधा सहज लगती है क्योंकि जिस बात को छंद में नहीं कह सकते, उसे बात को सहज नई कविता के रूप में या यूं कहें निस्छंद कविता के रूप में लेखक का सकता है।
प्रश्न 13. आपका सबसे प्रिय काव्य सृजन कौन सा है? हम आपकी वही रचना सुनना चाहेंगे?
माणिक जी :- रचनाकार का प्रत्येक काव्य सृजन प्रिय होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता
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नक्शा देश का कुछ और होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
निर्धन असहाय का ध्यान रखता।
किसान मजदूर का मान रखता।
महंगाई पर कशता लगाम।
बंधु समानता का भान रखता।
मंदिर मस्जिद नहीं प्रेम होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
घुसपैठिए को मौत ही देता।
आतंक मिटाने का हक देता।
वतन में एक ही भाषा रखता।
सबको समान अधिकार देता।
पाकिस्तान बांग्ला ना होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
भूल कर बंटवारा ना करता।
ताशकंद समझौता ना करता।
ना छोड़ता विवाद को कश्मीर।
कोई इंसान व्यर्थ ना मरता।
जाति धर्म का झगड़ा न होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
मैं अंगरक्षक लेकर न चलता।
सबसे समान व्यवहार रखता।
करता व्यक्ति से सीधा संवाद।
अविश्वास का बीज ना उगता।
कहीं डर का भाव नहीं होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
कोई भी भीख नहीं मांगता।
रोटी को ना कोई ताकता।
अपराध का जन्म नहीं होता।
माणिक सबका सम्मान राखता।
हर कानून का पालन होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
प्रीत के फूल से महकता वतन।
मोहब्बत के गीत गाता चमन।
हिंदू मुस्लिम सिख पारसी नहीं।
जर्रे – जर्रे में होता अमन।
केवल इंसानियत धर्म होता।
काश मैं प्रधानमंत्री होता।।
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच
प्रश्न 14. क्या आप किसी एक ऐसे एतिहासिक पात्र को अपने दृष्टिकोण से उकेरने का प्रयास करेंगी, जिसको आपके दृष्टिकोण से इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिला है अथवा एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है, यदि हां तो वह कौन हैं और आपको क्यों लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है?
माणिक जी :- हाँ, एकलव्य एक ऐसा ऐतिहासिक पात्र है, जिसके साथ न्याय नहीं हुआ। जिस गुरु ने अपना शिष्य बनाने के लिए मना कर दिया हो, उसी गुरु की प्रतिमा से अपने निज अभ्यास द्वारा संसार को चकित कर देने वाला धनुर्धर एकलव्य से अंगूठा मांग लेना क्या न्याय प्रिय है। बल्कि द्रोणाचार्य को गौरवान्वित होना चाहिए था। मेरी प्रतिमा को ही साकार गुरु मानकर जिसने अपने परिश्रम अभ्यास दृढ विश्वास से अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान अर्जित किया हो, वह मेरी दृष्टि में सबसे महान है। अपने वरदान को साकार करने के लिए एकलव्य के विश्वास को तोड़ दिया। अतः मेरी दृष्टि से एकलव्य के साथ न्याय नहीं हुआ।
प्रश्न 15. आप अपने समकालीन लेखकों या कवियों में किन से अधिक प्रभावित हैं?
माणिक जी :- कवियों में हरिओम पवार, लेखकों में , रमणिका गुप्ता मुझे प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 16. माणिक जी, आप आशु कवि के रूप में विख्यात हैं, आपसे अनुरोध है कि आप हमें बताएं आशु कवि के रूप में सृजन करने की प्रेरणा आपको किस रचनाकार से मिली?
माणिक जी :- यह मुझे ही सही याद नहीं है कि मैं कब, क्यों, कहाँ तत्कालीन पंक्तियां लिखने में समर्थ हो जाता हूँ। जहां तक प्रेरणा की बात है तो आत्मा राम शुक्ल जी जो हमारे पिता श्री राम रूप स्वर्णकार पंकज जी के मित्र थे, वह किसी की भी रचना सुनकर तत्काल पूरी कविता को चार पंक्तियों में नए कलेवर के साथ प्रस्तुत करने में समर्थ थे। जब मैं उन्हें मंचों पर देखा तो मुझे भी लगा यदि मैं प्रयास करूं तो कभी ना कभी कुछ ना कुछ कह सकता हूँ।
प्रश्न 17. माणिक जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखते हैं?
माणिक जी :- साहित्यिक परिशिष्ट में आज के लेखक और कवि वही सफल है, जिन लेखकों या कवियों के पास जमीन जायदाद या नौकरी है। वही स्थापित होते हैं। कुछ लेखक कवि इतने भी बात लिखते हैं कि मां सरस्वती की कृपा से वह है समाज को नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। भविष्य की बात है, कब किस साहित्य से उपलब्धियां हासिल हो और बड़े-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित होकर नया आयाम स्थापित कर सके।
प्रश्न 18. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है?
माणिक जी :- लेखन के अतिरिक्त समाज सेवा अति प्रिय है।
प्रश्न 19 माणिक जी, आपके दृष्टिकोण में क्या कविताओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?
माणिक जी :- मेरे दृष्टिकोण में रचना में भाव पक्ष कला पक्ष का संतुलन होना आवश्यक है, क्योंकि भाव पक्ष और कला पक्ष से रचना कालजयी रूप धारण कर लेती है। उदाहरण के लिए केशव, तुलसी, मीरा, रहीम, रविदास आदि अनेक कवियों की रचनाओं में भाव पक्ष कला पक्ष और प्रवाह का समावेश स्पष्ट झलकता है। जबकि आज नई कविता ने सबको पीछे छोड़ दिया है। जबकि देखा जाए तो नई रचनाओं में भी प्रवाह होता है, कला पक्ष होता है और भाव पक्ष भी समाहित होता है। तभी रचना मानस पटल पर अपनी अनूठी छाप छोड़ती है।
प्रश्न 20. माणिक जी, काव्य लेखन की एक विधा है मुक्तक, आप काव्य लेखन की विविध विधाओं के ज्ञाता हैं। आप हमें मुक्तक विधा के संदर्भ में ज्ञानवर्धन कीजिए?
माणिक जी :- मुक्तक वह विद्या है जिसके माध्यम से चार पंक्तियों में संपूर्ण बात कह दी जाए। एक मुक्तक की जब कोई व्याख्या करें तो उसे लगे की मुक्तक एक है लेकिन व्याख्या अनेक, मैं इतना ही कह सकता हूं कि मुक्तक अपने आप में एक स्वयं खंडकाव्य का रुप है।
प्रश्न 21. माणिक जी, वर्तमान समय को सोशल मीडिया का समय कहा जाता है ऐसे में आप साहित्य के क्षेत्र में सोशल मीडिया की भूमिका देखते हैं?
माणिक जी :- प्रिंट मीडिया से चार कदम आगे आज सोशल मीडिया हर क्षेत्र में अपने पैर जमा चुकी है। इससे साहित्य का क्षेत्र भी अधूरा नहीं है। सोशल मीडिया के बिना प्रचार प्रसार अधूरा सा लगता है। निसंदेह में यह कह सकता हूं साहित्य को बढ़ाने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है।
प्रश्न 22. माणिक जी, श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा परिवार तीन वर्ष पूरे करते हुए अपना स्थापना मास मना रहा है। आप इस परिवार के वरिष्ठ सदस्य हैं। आपके कल्पकथा परिवार के साथ अनुभव क्या और कैसे हैं?
माणिक जी :- कल्पकथा परिवार ने कम समय में बहुत लंबी यात्रा की है। कल्पकथा परिवार ने कलमकारों को जोड़ने का जो संकल्प उठाया था उसे साकार करते हुए तीन वर्ष पूर्ण किए हैं और आगे भी करेगा। मुझे अनवरत कल्प कथा परिवार ने अपना प्यार, स्नेह और सान्निध्य दिया है और आगे भी देता रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
प्रश्न 23. आप अपने पाठकों, दर्शकों और समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
माणिक जी :- मैं समाज और पाठकों से आकांक्षा रखता हूं द्वेष भाव से दूर रहकर समाज को सत्कर्मों से सुशोभित करते रहे। प्रेम की गंगा से समाज को स्वयं को परिवार को निर्मल बनाए रखें।
✍🏻 वार्ता : श्री भास्कर सिंह माणिक, कोंच
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज देश के प्रसिद्ध एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं कल्पकथा परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्री भास्कर सिंह माणिक जी से परिचय हुआ। ये कोंच, जालौन (उप्र) से हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर है। साथ ही ये इतिहास के जानकार भी हैं। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/ahFvCWwYsrs?si=frMcPUO64uz8tuxZ
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता ; कल्पकथा प्रबंधन
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