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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती साधना मिश्रा “लखनवी” !!

!! “व्यक्तित्व परिचय : श्रीमती साधना मिश्रा “लखनवी” !! 

 

 

!! “मेरा परिचय” !! 

 

नाम :- साधना मिश्रा लखनवी

 

पिता का नाम :- स्व. प्रह्लाद नारायण त्रिपाठी

माता का नाम.. स्व श्रीमती सुधा त्रिपाठी

 

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :-

जिला.सीतापुर नैमिषारण्य क्षेत्र में

25 / 09 / 1958

 

पति का नाम :- श्री सुशील कुमार मिश्र

 

बच्चों के नाम :- दो बेटियाँ

नेहा मिश्रा एवं आस्था मिश्रा

 

शिक्षा :- परास्नातक, ( एम. ए. संस्कृत)

 बी एड , ( दोनो ही प्रथम श्रेणी से )

 

व्यवसाय :- 28 वर्ष शैक्षणिक सेवा विभिन्न शहरों में,

अंतिम 15 वर्ष प्रधानाचार्य पद से सेवामुक्त

लखनऊ में

 

वर्तमान निवास :- लखनऊ, उत्तरप्रदेश भारत में स्थायी निवास

 

मेल आईडी :- sadhnamishra1958@gmail.com

 

आपकी कृतियाँ :- 

. 8 अंतरराष्ट्रीय साझा संग्रह..

छन्दावली छंद संग्रह

परमवीर चक्र विजेताओं पर,

भारत-रत्न विजेताओं पर,

अशोक चक्र विजेताओं पर,

जन रामायण, (सहित्योदय से) 

कृष्णायन ( सहित्योदय से)

माँ भारती के लाल (तंजानिया से)

कवियों पर कविता (तंजानिया से )

गीतायन..(प्रतीक्षित -सहित्योदय से )

 

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- 

जो भी कृतियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चयनित हुई है सभी।

 स्वप्न हुए साकार व “मल्हार” छंदों की सुखद बयार

 

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-

उम्मीदों का नया सवेरा प्रथम कहानी संग्रह

काव्य सोपान e book

स्वप्न हुए साकार–एकल काव्य संग्रह

मल्हार- छंदों की सुखद बयार

रिश्ते- कितने दूर-कितने पास

 

पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- 

 मुझे सम्मान बहुत मिले , पुरस्कार नही 

अनेक पटलों पर वैयक्तिक साक्षात्कार हो चुके हैं।

हिंदुस्तान हॉट लाइन.विश्व हिंदी मंच पर एक शानदार इंटरव्यू व साहित्यिक चर्चा *।

 जो कि अब तक सबसे पसंदीदा कार्यक्रम रहा।।

 

 

 

 

!! “मेरी पसंद” !!

 

 

उत्सव :- दीपावली, होली , रक्षाबंधन

 

भोजन :- शुद्ध शाकाहारी

 

रंग :- पीले ,व हरे रंग की पूरी फैमिली

 

परिधान :- साड़ी, व भारतीय परिधान

 

स्थान एवं तीर्थ स्थान :- 

 स्थान– केरल, व कोंकण क्षेत्र ,गोआ

तीर्थस्थान– चारो धाम — 

बद्रीनाथ-केदारनाथ, रामेश्वरम, द्वारिका व जगन्नाथ पुरी, तिरुपति बालाजी

 

लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेमचंद जी

मन्नू भंडारी ,

 

कवि/कवयित्री :- 

हरिवंशराय बच्चन, अशोक चक्रधर, कुमार विश्वास एवं वीर रस का हर कवि

 

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- 

 गबन , निर्मला,

कहानी—दो बैलों की जोड़ी

 

*कविता/गीत/काव्य खंड* :- 

कविता–बच्चन जी की मधुशाला,

खण्ड काव्य–..जय हनुमान

 

खेल :- एथलीट , कबड्डी

 

मूवीज/धारावाहिक (यदि देखती हैं तो) :-

मूवीज़– सत्याधारित ऐतिहासिक, व शुद्ध मनोरंजक फिल्में

 

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- 

एक पैगाम देश के नाम,–देशभक्ति कविता

 रिश्तों की पोटली– सबके अन्तर्मन को जोड़ती हुई कविता,

भोली— कहानी

 

 

 

 

 

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

 

 

 

प्रश्न 1. साधना जी, सबसे पहले आपके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में हमें बताइये। 

 

साधना जी :- व्यक्तिगत परिवेश में मैं बताना चाहूंगी—

 मेरा नाम साधना मिश्रा और उपनाम लखनवी है। मैं बहुमुखी गतिविधियों को पसंद करने वाली हूँ, । संस्कृत से एम ए , बी एड हूँ। मेरा कर्म क्षेत्र 28 वर्षों का अध्यापन कार्य रहा है जिसमे अंत के 15 वर्ष प्रधानाचार्य के पद पर। और अब सेवा निवृत्त। 

मेरे पति आद. श्री सुशील कुमार मिश्रा जी हैं और मेरी दो बेटियां हैं नेहा मिश्रा और ,आस्था मिश्रा । दोनों ही अपने-अपने परिवार में व्यवस्थित हैं ।

 मेरी माँ का नाम स्व. सुधा त्रिपाठी है जो की एक बहुत ही कुशल व सभी कार्यो व्यवस्थित , दक्ष गृहिणी थी। पूरे परिवार को एकता में बांध के रखने वाली महिला रही ।

और मेरे पिता का नाम आदरणीय स्व. प्रहलाद नारायण त्रिपाठी जो की एक बहुत बड़े साहित्यकार थे , वेद पाठ में पारंगत थे । वे गीता मर्मज्ञ थे

*उन्हें गीता के सारे श्लोक अर्थ सहित याद थे ।,पूरे 700 श्लोक*।

और कर्म क्षेत्र के रूप में वे बहुत कुशल विद्वान प्रवक्ता रहे – हिंदी और संस्कृत के।

हम तीन बहने व तीन भाई है मैं सबसे बड़ी हूँ। सभी अच्छे पदों पर कार्यरत हैं ।

*साहित्यिक परिवेश* में—-

बिंदास परिंदा उड़ने वाली ,शब्दों से मैं बातें करती । 

ख्वाबों के में पंख लगा कर, साहित्य जगत में विचारण करती।

 जैसा कि आपको मैं सूचित कर चुकी हूँ कि मेरे पिता एक बहुत बड़े साहित्यकार रहे।। अक्सर बड़े-बड़े वैदिक यज्ञों के आचार्य भी रहे हैं।

आकाशवाणी पर कई सालों तक उनके संस्कृत श्लोकों, व वैदिक मंत्रों का प्रसारण चलता रहा। साथ ही मेरी बुआ जी को राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है योगी जी द्वारा। मेरे मामा-ससुर बहुत ही उच्चस्तरीय लेखक रहे ।

यही साहित्यिक वातावरण बचपन से देखा और अच्छा लगा शायद वही कुछ ईश्वर ने विरासत के रूप में मुझे गुण दिए, जो मै आज कुछ मैं लिख पाने की हिम्मत कर पाती हूँ।

 

 

 

 

प्रश्न 2. साधना जी, आप एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नगर लखनऊ की रहने वाली हैं। इस नगर के बारे में अपने शब्दों में कुछ बताइये। 

 

साधना जी :- सबसे पहले तो लखनऊ वासियो को गर्व है कि हम उत्तरप्रदेश की राजधानी, और नवाबों के , नज़ाक़त व नफासत के शहर में रहते हैं। और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो यहाँ की इमारतें –इमामबाड़ा, रुमी दरवाज़ा, कैसरबाग हेरिटेज ज़ोन, रेज़िडेंसी, दिलकुशा गार्डन , हुसैनाबाद आदि आज भी सबको आकर्षित करते हैं। 

अमजद अली शाह का मक़बरा जाना शहादत अली खान का मकबरा इनके नाम पर तो पुराने लखनऊ में एक बड़ा मोहल्ला है। 

 

धार्मिक/आध्यात्मिक दृष्टिकोण से..

परंपराओं के अनुसार मर्यादा भगवान श्री रामचंद्र के भाई लक्ष्मण जी के नाम पर, गोमती धरा पर बसा हुआ लखनपुर जो कि अब लखनऊ हो गया है हम सब की आन-बान-शान है।

आज भी शहर के उत्तर पश्चिम में स्थित लक्ष्मण टीला की उपस्थिति इस कथा को विश्वसनीयता प्रदान करती है।

लक्ष्मण टीला, शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है।

अभी यहाँ के नव निर्मित में हमुमत धाम सभी का पसंदीदा भक्तमय स्थल हो गया है।,जनेश्वर मिश्र पार्क में तो आप पूरा उत्तरप्रदेश देख सकते हैं।

यहाँ का मेडिकल कॉलेज, लखनऊ चिकन कारीगरी, और टुंडे के कबाब तो विश्व विख्यात हैं।

 

 

 

 

प्रश्न 3. साधना जी, आपको लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली और आपने किन परिस्थितियों में लिखना आरम्भ किया? 

 

साधना जी :- जैसा कि आपको मैं सूचित कर चुकी हूँ कि मेरे पिता एक बहुत बड़े साहित्यकार रहे।। 

आकाशवाणी पर कई सालों तक उनके संस्कृत श्लोकों, व वैदिक मंत्रों का प्रसारण चलता रहा। साथ ही मेरी बुआ जी को राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है योगी जी द्वारा। मेरे मामा-ससुर बहुत ही उच्चस्तरीय लेखक रहे ।

यही साहित्यिक वातावरण बचपन से देखा और अच्छा लगा शायद वही कुछ ईश्वर ने विरासत के रूप में मुझे गुण दिए, जो मै आज कुछ मैं लिख पाने की हिम्मत कर पाती हूँ।

इन्ही परिस्थितियों के बीच जब मैं कक्षा 4 में थी मेरी माँ किसी कारणवश 3 माह के लिए गाँव में थी तभी मम्मी की याद में 4, 5 पंक्तियों को लिखकर पापा को दे दिया और फिर अक्सर ही विद्यालय पत्रिका व स्वान्तः सुखाय लिखते रहे, पापा की प्रेरणा हमेशा मिलती रही।

 

 

 

 

प्रश्न 4. साधना जी, यदि आपको कहा जाए कि भारत देश की स्वतंत्रता के पूर्व, स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव, एवं अमृत महोत्सव के पश्चात, में हिन्दी साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन करें तो आप किस समय को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं?

 

साधना जी :- देखिए वैसे तो यह बड़ा संजीदा प्रश्न है, फिर भी उत्तर में मैं स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले का समय अधिक महत्वपूर्ण मानती हूँ।

क्योंकि हमारे बहुत बड़े-बड़े लेखक , कवि ,साहित्यकार , उपन्यासकार ,कहानीकार समय ऐसे हुए हैं जिनके नाम सर्वविदित हैं ।

 क्योकिं उन सभी की प्रेरणा से , उनके लिखे गीतों,कविताओं से देश के लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति की ललक भी जगी और उसका रिजल्ट मिला हमें 1947 में ।

 

 

 

 

प्रश्न 5. साधना जी, आपने अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतर्गत अन्यान्य मंचों से जुड़कर उनको गौरवान्वित किया है। यहां हम उस पहले मंच के बारे में जानना चाहेंगे जिसको आप अपनी साहित्यिक यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानती हैं?

 

 साधना जी :- अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच, वो पहला मंच मिला जिसने अंतराष्ट्रीय पहचान व कीर्ति दिलवाई।

इसके संस्थापक आद. नरेश नाज़ सर हैं जिन्होंने सभी महिलाओं को “मन से मंच” तक पहुँचाया है।

सबसे पहले मैंने आबूधाबी, कनाडा, के मंच से जुड़ी थी। 

वहीं से अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली।

उसके बाद अपने देश के विभिन्न मंचो से जुड़ी और अब तक सिलसिला जारी है।

 

 

 

 

प्रश्न 6. साधना जी, सबसे पहले तो हम आपको नव प्रकाशित पुस्तक *”मल्हार छंदों की सुखद बयार”* की बधाई देते हैं। साथ ही इस पुस्तक के विषय में हम जानना चाहेंगे? यदि आप इसकी कोई एक कविता हमारे दर्शकों एवं पाठकों को सुना सकें तो सोने पे सुहागा हो जायेगा। 

 

साधना जी :- मल्हार पुस्तक की बधाई के लिए आपको बहुत-बहुत आभार ।

खास बात यह है कि जब मैं विभिन्न छंद की साधिका बनकर छंद ज्ञान ले रही थी ,उसी दौरान मेरे प्रथम नाती का जन्म हुआ,और उनके मात पिता ने नाती को “मल्हार” नाम दिया जो कि स्वयं एक राग है सभी छंद भी राग में ही गाये पढ़े जाते हैं। तभी इसकी प्रकाशन प्रक्रिया हुई और इस पुस्तक का नामकरण मल्हार हुआ।

जो कि मेरी एक बहुत प्यारी बहन सम सखी रेनू मिश्रा ने सुझाया और मुझे पसंद आ गया।

मेरी यह पुस्तक विभिन्न प्रकार के छंदों पर आधारित है ।

  जी बिल्कुल, मैं अपने श्रोताओं व सुधी पाठकों को अवश्य इसकी कविता दूंगी ।

यह लावणी छंद पर , उस समय का वर्णन है जब हमने चाँद पर तिरंगा लहराया था।

 

*हमने इतिहास रचाया*…….

आज चाँद के आँगन जाकर,हमने इतिहास रचाया।

पहला देश बने हम जग में,ध्वज अपना है लहराया।।

यह भारत का विजय दिवस है , सकल गूँजते हैं नारे।

 रोम-रोम पुलकित होता है ,जश्न मनाते हैं सारे ।।

भारत ही तो विश्व गुरु है ,ऋषि-मुनियों ने बतलाया ।

आज चाँद के आँगन जाकर , हमने इतिहास रचाया ।।। १

बड़े दिनों से इंतजार था , आज वही शुभ दिन आया।

विश्व विजेता भारत अपना, दुनिया भर में छाया।।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,अब चंदा पर लहराया ।

आज चाँद के आँगन जाकर , हमने इतिहास रचाया।।। २

चंद्रयान अब दुनिया भर में , भारत का मान बढ़ाएगा ।

प्रज्ञान बहुत ज्ञानी अपना, सबको दिशा दिखाएगा।।

सबसे पहले दक्षिण ध्रुव पर, भारत ने जश्न मनाया।

आज चाँद के आँगन जाकर , हमने इतिहास रचाया*।। ३

आज चाँद के आँगन जाकर,हमने इतिहास रचाया।

पहला देश बने धरती पर , झंडा अपना लहराया।।

    *साधना मिश्रा लखनवी*

************* ******** ********

 

 

 

 

प्रश्न 7. साधना जी, कहते हैं बचपन सदैव मनोहारी होता है। हम जानना चाहेंगे आपके बचपन का बाल विनोद भरा वो किस्सा, जो आपको आज भी मुस्कुराने पर विवश कर देता है।

 

साधना जी :- हाहाहा , सभी बच्चे कुछ न कुछ हरकतें, शैतानियां तो करते ही है तो मैं बाल-सुलभ क्रिया से कैसे वंचित रह जाती। मैं शैतान ,और चंचल भी बहुत थी। किंतु पढ़ने ने टॉप 5 में ही रहे तो कभी कभी कुछ शैतानियां चल जाती थी।

तो अपने कुछ खास शिक्षकों की अक्सर मिमक्री व नकल उतारा करती थी ।

चाल- ढाल , बातें करने की, पढ़ाने स्टाइल आदि।और आज जब भी फ़ोटो काफी देखती हूँ तो उन चेहरों को देखकर निश्चित रूप से हँसी आ ही जाती है।।

और मुझे भाँति भाँति से अप्रैल फूल बनाने में बड़ा मजा आता था। 

 

 

 

 

प्रश्न 8. साधना जी, आज भागदौड के समय में लेखकीय यात्रा को कई बिंदुओं पर भागदौड वाला ही बना दिया गया है। साथ ही शीघ्र प्रसिद्धि के लालच देकर अच्छा खासा व्यवसाय चलाया जा रहा है। आप इससे कितनी सहमत हैं? 

 

साधना जी :- मैं आपकी दोनों ही बातों से सहमत हूँ। भाग दौड़ तो सच में इतनी अधिक हो गई है कि मैं स्वयं उससे परेशान हूं और यदि ना भी चाहे जुड़ना तो लोग बार-बार जोड़ लेते हैं ।

बात आई आपकी शीघ्र प्रसिद्ध के कारण जो व्यवसायीकरण हो रहा है इससे भी मैं आपसे 80% सहमत हूँ, क्योंकि अभी भी कुछ पटल ऐसे जरूर हैं कि जिन पर केवल साहित्य और योग्यता, क्षमता को ही प्राथमिकता दी जाती है ।

हाँ, आज यह भी सच है कि अधिकतर सभी पटलों पर पैसा लिया ही जाता है तो शायद सभी अपना-अपना रोजी-रोटी का सोचते होंगे और स्वयं की प्रसिद्ध भी चाहते होंगे। तो इसीलिए वह कुछ ना कुछ निश्चित राशि रख देते हैं ।

मुझे लगता है कि जहाँ पर बहुत ही बड़े काम के लिए सूक्ष्म धनराशि सहभागिता है वहां पर प्रतिभागिता कर लेने में फिर कोई बुराई भी नही है क्योंकिआज महंगाई के दौर में कोई भी व्यक्ति पूरा अपनी तरफ से खर्च उठा करके आपको पुरस्कार नहीं दे सकता है । जब तक आप सच मे सबकुछ याद करके मंच पर उत्कृष्ट रचनाएं सुनने वाले न हों। आप अनामिका अंबर ,कुमार विश्वास , चिराग जैन , हरिओम पवार जी आदि जैसे लोगों जैसे कभी बन जाए आपसे भी नहीं कोई लेगा।

उल्टे आपको हम सबको पारितोष स्वरूप मिलेगा।

 

 

 

 

 

प्रश्न 9. साधना जी, साहित्यिक परिशिष्ट में आप आज के लेखकों और कवियों का क्या भविष्य देखती हैं?

 

साधना जी :- देखिए इसमें भविष्य देखने वाली बात तो निश्चित रूप से नहीं कहीं जा सकती है। कभी-कभी किसी की एक कविता की कोई एक पंक्ति उसको विश्व स्तर तक पहुँचा देती है ।

और कभी-कभी पचासों किताबे लिखकर भी इंसान वही का वही रह जाता है , तो बस जरूरत यही है कि लेखन के प्रति बहुत संजीदा सचेत और ईमानदार रहना चाहिए। लेखनी को असत्य चाटुकारिता से जब तक दूर रखा जाएगा, तब तक अंतर्मन से निकले भाव हर व्यक्ति को आकर्षित करेंगे। 

लेखन हमेशा ही गहराई लिए हुए और बहुत उत्कृष्ट होगा तभी उसको उचित सम्मान मिलेगा।

 

 

 

 

 

प्रश्न 10. साधना जी, आप अपने समकालीन किस लेखक या कवि में अपनी छाप देखती हैं? 

 

साधना जी :- इसका उत्तर मैं नही दे सकती हूँ। 

हाँ मैं कविता तिवारी, अनामिका अम्बर , हरिओम पंवार जी , कुमार विश्वास जी के लेखन को बहुत पसंद करती हूँ। 

 

 

 

 

प्रश्न 11. साधना जी, आपका एक कहानी संग्रह है “उम्मीदों का नया सवेरा” । इस पुस्तक में आपने किस तरह की कहानियाँ लिखी हैं? 

 

साधना जी :- “उम्मीदों का नया सवेरा” की मेरा कहानी संग्रह लगभग इसमें 30 कहानी है जिसमें एक चार करो का धारावाहिक है जो कि किसी सत्य घटना पर आधारित है इसके अलावा मेरी सारी का और यह इस धारावाहिक को लेते हुए मेरी सभी कहानियाँ बालिकाओं , महिलाओं के नारी सशक्तिकरण पर आधारित है और जो भी कहानी मैंने इसमें लिखी है उसमे पहले मैंने समस्या बताई फिर उस पीड़िता की समस्या के निराकरण पर मैंने जोर देख समापन किया है। 

 पाठक बहुत पसंद करते हैं मेरी इस किताब को ।

अमेजॉन पर उपलब्ध भी है *”उम्मीदों का नया सवेरा”* नाम से* उपलब्ध है ₹300/–

 

 

 

 

प्रश्न 12. साधना जी, आप स्वयं में निस्संदेह एक विशिष्ट श्रेणी की लेखिका हैं। क्या आपको किसी और लेखक या कवि ने कभी प्रभावित किया है? कोई ऐसी विशिष्ट रचना जो आपने न लिखी हो, किंतु आपको बहुत प्रिय हो? 

 

 साधना जी :- जी बिल्कुल, मुझे प्रेरित करने वाले कवि कवियत्री में सबसे पहले नाम है– कविता तिवारी जी।

मैंने उनको उसके बचपन से सुना है ,जब वो क्लास 7 सात में थी और(लखनऊ की ही रहने वाली हैं।) लखनऊ महोत्सव सहारा महोत्सव आदि के मंचो पर पद्धति थी।

इसके अलावा अनामिका अम्बर जी कुमार विश्वास जी हरीओम पंवार जी का नाम क्योकि ये वीर रस के है ।

और मैं भी देश, सैनिक और नारी सशक्तिकरण पर ही ज्यादातर लिखती हूँ।

 

 

 

 

प्रश्न 13. साधना जी, यूँ तो अपनी लिखी सभी रचनायें विशेष प्रिय होती हैं। फिर भी हम आपकी स्वरचित एवं विशेष प्रिय कविता सुनना चाहेंगे। 

 

साधना जी :- “ऐसी है भारत की धरती”

सुनाना चाहूंगी

 

 

 

 

प्रश्न 14. साधना जी, आप एक सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अपने उस काम के बारे में हमारे पाठकों एवं दर्शकों को कुछ बताइये? 

 

साधना जी :- मैं अपनी पाठको दर्शकों को बताना चाहूंगी कि मैं प्राइवेट स्कूल ज्ञान सरोवर हाई स्कूल की प्रधानाचार्य रही हूँ ।

     मेरे श्रीमान जी की गवर्नमेंट जॉब थी पूरे भारत में उनकी पोस्टिंग कहीं भी हो सकती थी और हुई भी। तो मेरा सरकारी जॉब करना मतलब अलग-अलग रहना था, इसलिए प्राइवेट को ही प्राथमिकता देना उचित समझा।

एक प्रधानाचार्य की नौकरी बहुत ही दायित्यों से भरी चुनौती पूर्ण होती है।

खासतौर पर जब को-एजुकेशन हो ।

लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ते हो और आजकल के बच्चे क्लास पाँच के बाद में ही बहुत मैच्योर हो जाते हैं उनको सही रास्ते पर ले जाना ,उनकी ही रूचियों को समझकर उसी दिशा मर प्रोत्साहित करना, उनके चरित्र की रक्षा करना उनको उचित दिशा सुझाव देकर उनकी मनचाही मंजिल तक पंहुचाने में भरसक प्रयास करना किसी भी शिक्षक व प्रिंसिपल की बहुत बड़ी जिम्मेदारी व नैतिक कर्तव्य होता है।

मैं भाग्यशाली हूँ कि मैंने इस जिम्मेदारी का बड़ी कर्तव्यनिष्ठा से निर्वहन किया है।

 

 

 

प्रश्न 15. साधना जी, आप गद्य और पद्य दोनों विधाओ में लिखती हैं। आपको लेखन के लिए दोनों में से कौन सी विधा अधिक सहज लगती है?

 

साधना जी :- जब दोनों में ही लिखते हैं तो स्वाभाविक है कि पसंद भी दोनो ही होंगी।

यह समय,घटना ,विषय विशेष पर ही आधारित हो पाता है।

जब किसी भी घटना पर कोई भाव जिस लय पर उमड़ पड़ते हैं उसी में लिख जाता है। जब भाव एकदम से आते हैं तो रचना लिखना बिल्कुल हलवा बन जाती है।

 

 

 

 

प्रश्न 16. साधना जी, आपके दृष्टिकोण में क्या रचनाओं में भावपक्ष एवं कलापक्ष का संतुलन होना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों? अथवा प्रवाह के साथ रचना सृजन में इस संतुलन को पीछे छोड़ा जा सकता है, यदि हां तो क्यों?

 

साधना जी :- देखिए लेखन में कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों ही बहुत मजबूती से अपना स्थान रखते हैं यह बात आज से नहीं आदिकाल से चलती चली आ रही है और वही हम लोगों सभी लोगों ने पढ़ा और लिखा भी है क्योंकि जब तक मन में भाव नहीं पूछेंगे तब तक लेखन शक्ति कैसे बढ़ेगी और जब लेखन शक्ति बढ़ती है तो यदि कला पक्ष का ध्यान रखा जाएगा उसमें हम पद्य लिख रहे हैं तो उसमें रस छंद अलंकार आदि आएंगे तो वह रचना हृदय तक पहुंचती है अन्तःकरण तक पहुंच कर मस्तिष्क पर अपना स्थान बनाती है जाती है इसलिए उन दोनों का होना अत्यावश्यक है । ऐसा मेरा विचार है।

      हाँ कभी-कभी परवाह के साथ में भाव पक्ष कला पक्ष दोनों का ही अभाव दिख जाता है या उनमें से कोई एक का अभाव दिख जाता है तो उस स्थिति में रचना उतनी ताकतवर प्रभावी नहीं बन पाती है । ऐसी स्थिति में वह एक बार आंखों के सामने निकल जाती है तो जरूरी नहीं कि उसे हम बार-बार याद करें बार-बार उसको सुनने या पढ़ने का प्रयास करें जिसमें दोनों ही पक्ष मजबूत होते हैं उसे उसे रचना को आज भी लोग चाहे कितनी ही पुरानी हो लोग पढ़ना और सुनना चाहते हैं।

जहां तक मैं समझ सकती हूं जैसे यह हाईकू, पिरामिड चम्पू आदि ऐसी अनेक विधायें चल पड़ी हैं, वे मन मष्तिष्क में स्थान नही बना पा रही हैं,यह मेरा व्यक्तिगत विचार है सबकी पसंद अलग अलग होती है किसी पर कोई दबाव नही डाला जा सकता।

 क्योंकि मेरी उसमें रुचि नहीं है तो मैं उनको ना तो पढ़ती हूं ना ही लिखती हूं करण वही कि उसमें मुझे कोई भाव या कला पक्ष और आत्मीयता नहीं दिखता है।

 

 

 

 

प्रश्न 17. साधना जी, हर गुणी लेखक/कवि की लालसा होती है कि उसे अपनी रचना पर विशेष टिप्पणियां मिले, जो सकारात्मक के साथ-साथ निष्पक्ष भी हों। आप इस संदर्भ में क्या राय रखती हैं? 

 

 साधना जी :- हाँ जी ,बिल्कुल सच है। कहीं ना कहीं कुछ भी अच्छा कार्य करने के पश्चात यह मानवीय प्रवृत्ति है कि समीक्षा की लालसा होती है उसमें किसी को केवल तारीफ सुनने की होती है और किसी को दोनो भाव जानने की। क्योंकि सकारात्मक और निष्पक्ष टिप्पणी हर किसी को श्रेष्ठता से श्रेष्ठतम की ओर ले जाती है। इसलिये बहुत आवश्यक है 

 लेकिन उचित यह है और जरूरी भी यही है कि समालोचना की जाए समालोचना मतलब उसकी जो तारीफ भी बताई जाए कही कुछ अखर रहा है तो सुझाव देना भी जरूरी होता है। क्योंकि कोई भी पूर्णतः परिपक्व और सर्वगुण संपन्न नहीं होता है इसलिए जो भी कुछ कमियां रह जाती हैं उनको भी जरूर जरूर बताया जाए।।

“निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय”

“बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय :

कबीरदास जी की उक्ति इसके लिए सम्पूर्ण है।

 

 

 

प्रश्न 18. साधना जी, आपकी एकल काव्य पुस्तक “स्वप्न हुए साकार” के बारे में कुछ बताइये। किस तरह की कविताएं इसमें आपने लिखी हैं? इसे लिखते समय आपके क्या भाव रहे होंगे? 

 

साधना जी :- “स्वप्न हुए साकार” सबसे पहले मैं इसका नामकरण ही बताना चाहूंगी क्योंकि हर नामकरण के पीछे कुछ उद्देश्य होता है तो

जब मेरे पास काफी कविताओं -रचनाओं का भरपूर संकलन हो गया , तभी मैंने इसके प्रकाशन का सोचा और यह नाम इसलिए दिया , कि मैं पापा की रचनाएं पढ़ती थी तो मैं अपने पापा से कहा करती थी कि पापा तुम किताब छपवा लो, लेकिन उस दौर में बहुत महंगा पड़ता था तो कार्य नहीं हो पाया लेकिन मेरी रचनाओं को देखकर मेरे पापा मेरे लिए सपना देखते थे कि तुम एक दिन जरूर बहुत अच्छा करोगी और तुम्हारी किताब जरूर आएगी । हम जहां भी होंगे बहुत खुश होंगे।

 तो बस जब यह किताब प्रकाशन प्रक्रिया में गयी तो पापा के सपने को साकार होते हए देखकर ही इस पुस्तक में मेरी सभी रचनाएं छंद मुक्त रचनाएं हैं क्योंकि छंद मुक्त रचनाओं में जो भी भाव आते थे वह लिखते चले जाते थे तो अच्छा सा संकलन तैयार हो गया , तो लगा पन्नों में तो यह कहीं ना कहीं बिखर जाएंगे खो जाएंगे इसलिए किताब की छपास लग गयी। कुछ खास लोगों को और अपने भाई बहनों के पास को देकर उसे एक दो पीढ़ियों तक संग्रहित कर दिया है ।

डायरी तो कोई संभलता नहीं

 इस पुस्तक में मेरी रचनाओं के साथ-साथ जो मुझे पापा की कुछ रचनाएं मिल पाई,

  वे भी इसमें मैंने उन्हें श्रद्धांजलि स्वरुप संग्रहित की है।।

मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे पापा जहाँ भी जिस रूप में होंगे निश्चित तौर पर खुश होते होंगे,और मुझे उनका आशीर्वाद मिलता है यह मेरा पक्का विश्वास है।।

 

 

 

 

 

 

प्रश्न 19. लेखन के अतिरिक्त ऐसा कौन सा कार्य है, जो आप को विशेष प्रिय है? 

 

साधना जी :- 1.. देश – विदेश भ्रमण करना 

2.. मैं और मेरे पति निर्बल आयवर्ग वाले बच्चों को जरूरत पड़ने पर निःशुल्क कोचिंग करते हैं ।।

सिलाई,और कढ़ाई जो कि अब आँखों के कारण नही कर पाते।

किंतु मैंने 1992 से 95 तक 3, साल बुटीक चलाया है और स्वयं ही सिलती थी।

 

 

 

 

प्रश्न 20. साधना जी, आपने अपनी ई-पुस्तक “काव्य सोपान” के बारे में बताया। इसे तैयार करने के लिए आपने क्या तैयारियाँ की? एवं इसमें किस प्रकार की रचनाओं का समावेश आपने किया है? 

 

साधना जी :- ऐसा कोई विचार या लक्ष्य नहीं रखा था मैंने e-बुक लिखने के लिए लेकिन मेरे पास अचानक एक ऑफर आया था। किसी के माध्यम से 2018 में कि 100 रुपए का रजिस्ट्रेशन करा कर सौ पेज की उसे प्रकाशित कराना था। और उसके लिए यह भी था कि उस पुस्तक को आप सबके पढ़ने के लिए मैं शुल्क भी निर्धारित कर सकती थी और उसे फ्री में भी कर सकती थी तो मुझे आइडिया अच्छा लगा और मैंने अपनी उसे समय जो अतुकांत रचनाएं लिखी थी और डायरी में बहुत पुरानी छोटी-छोटी पड़ी हुई थी उन रचनाओं को दिया था।

 मैंने किताब का संकलन किया है और आज भी गूगल ऐप पर मेरी पुस्तक मेरी पुस्तक का जो नाम है इसके नाम से पढ़ सकते हैं आप लोग।

मैंने यह पुस्तक निशुल्क ही रखी है।

 

 

 

 

प्रश्न 21. श्री राधा गोपीनाथ बाबा की प्रमुखता में चल रहे कल्पकथा से काफी समय से जुडी हुई हैं। आप इस के साथ जुडे अपने अनुभव बताइये। साथ ही हम जानना चाहेंगे आप इससे कितनी प्रभावित हैं? 

 

साधना जी :- सबसे पहले तो कल्पकथा संस्था को , श्री राधा गोपीनाथ जी को बहुत ही हार्दिक-हार्दिक आभार मुझे इस पटल पर व्यक्तिगत भेंटवार्ता के लिए आमंत्रित करने के लिए।

    हां इस संस्था को मैं 10 जनवरी 2022 से जानती हूँ।

जब बड़े ही उत्साह के साथ बड़े सपनों को लेकर ऑनलाइन आगाज़ किया गया था।

श्री राधा जी को तो मैं उससे भी 2 साल पहले से जानती हूँ ।

 जब पटल शुरुआत हुई थी तब से प्रतिदिन इस पर हर दिन का एक विषय होता था , कभी कविताएं कभी कहानी ,कोई संस्मरण, साप्ताहिक गोष्ठी इत्यादि कोई ना कोई क्रिया चलती रहती थी।

    आज वह सार्थक होते-होते 3 साल पूरे कर रही है यह संस्था इन तीन सालों में जो उनकी कई उपलब्धियां हैं जैसे उनकी कई वेबसाइट बन चुकी है यूट्यूब पर लिंकडइन ,फेसबुक पर ,इंस्टा परआदि , तो यह देखकर इसकी प्रगति दिन दूनी रात चौगुनी होते हुए देखकर बहुत ही खुशी होती है और इसके लिए मैं तहे दिल से पूरी संस्था को संस्था की पूरी टीम को और संस्थापिका श्री राधा जी को मैं बहुत-बहुत बधाई देती हूँ। उनके बढ़ोतरी के लिए उन्नति और प्रगति के लिए मैं हृदय से मंगलकारी कामनाएं रखती हूँ।

 

 

 

 

प्रश्न 22. आप अपने पाठकों, हमारे दर्शकों, सभी लेखकों और समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

 

साधना जी :- इसके उत्तर में संदेश नही वरन मेरा आप सभी के साथ में एक विचार सुझाव के रूप में है, कि हम यदि लेखक हैं यदि लेखन कार्य करते हैं तो हम जो भी लिखे वह समाज व देश के हित में लिखे ।

एकाग्रता लक्ष्य और समर्पण की भावना सर्वोपरि हो। और जितना लिखे उससे कही ज्यादा उत्कृष्ट पठन,-पाठन, मनन-चिंतन करें। 

अपने भावों से समाज को ताकत प्रदान करे, नई दिशा दे सके और हम उनके प्रेरक बन सके। अपने ही लिखे को सर्वोच्च कभी ना माने क्योंकि इससे हमारा विकास वहीं पर रुक जाएगा। हर समय एक सीखने की ललक रहेगी तो हम जीवन पर्यंत सीखने रहेंगे।।

 

✍🏻 वार्ता : श्रीमती साधना मिश्रा लखनवी 

 

 

कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज लखनऊ (उप्र) की वरिष्ठ साहित्यकार एवं कल्पकथा परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्रीमती साधना मिश्रा “लखनवी” जी से परिचय हुआ। ये सेवा कार्य से शिक्षिका रहीं हैं और प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हैं एवं सुन्दर व्यक्तित्व की धनी हैं। इनका लेखन विभिन्न रसों से सराबोर है। आप को इनका लेखन, इनसे मिलना कैसा लगा, हमें अवश्य सूचित करें। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇

 

 

https://www.youtube.com/live/4JSOdEBB37c?si=aT8k2x3rNZbH6IC5

 

 

 

इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं। 

मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये। 

राधे राधे 🙏 🌷 🙏 

 

 

✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟 

 

 

✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्पकथा प्रबंधन

 

कल्प भेंटवार्ता

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