
*!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री बिनोद कुमार पाण्डेय एवं श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय” !!*
- कल्प भेंटवार्ता
- 07/06/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री बिनोद कुमार पाण्डेय एवं श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय” !!
!! “हमारा परिचय” !!
नाम : बिनोद कुमार पाण्डेय
माता/पिता का नाम :- स्व० रामरति देवी/ स्व० इन्द्रासन पाण्डेय
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- ग्राम-रामपुर पाण्डेय टोला,भगवानपुर हाट, जिला- सिवान (बिहार)
जन्मतिथि- 5 अगस्त,1962
बच्चों के नाम :- विपुल विभांशु, निपुण निकुंज।
शिक्षा :- एम० ए०, बी०एड, एलएल बी
व्यावसाय :- शिक्षण (सेवा निवृत)
वर्तमान निवास :- ग्राम- रामपुर पाण्डेय टोला, भगवानपुर हाट, सिवान
मेल आईडी :- pandebinod13@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- जीवन एक सफ़र, कभी न मानो हार
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- उपर्युक्त
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- उपर्युक्त
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- जी
नाम :- पुष्पा कुमारी
माता/पिता का नाम :- स्व० गिरिजा देवी/ श्री श्रीनिवास सिंह
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- कुर्जी, पटना/जन्म तिथि-२१-०८–१९६४
बच्चों के नाम :- विपुल विभांशु, निपुण निकुंज
शिक्षा :- एम० एससी०(भौतिक विज्ञान)
व्यावसाय :- शिक्षण (सेवा निवृत शिक्षिका)
वर्तमान निवास :- रामपुर पाण्डेय टोला,भगवानपुर हाट,सिवान
मेल आईडी :- अनुपलब्ध
आपकी कृतियाँ :- प्रखण्ड संसाधन केन्द्र , भगवानपुर हाट में बी आर पी के दायित्वों का निर्वहन तथा शिक्षण में नवाचार के प्रयोग के साथ शिक्षकों को प्रशिक्षित करना।
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- आदर्श शिक्षिका के रुप में अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करने का प्रयास
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- पति के काव्य संग्रह के प्रकाशण हेतु सहयोग
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- प्रखण्ड स्तर पर श्रेष्ट शिक्षिका का जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सम्मान
!! “हमारी पसंद” !!
उत्सव :- विवाहोत्सव, जन्मोत्सव,राष्ट्रीय व धार्मिक पर्व
भोजन :- भात, दाल, सब्जी
रंग :- हर रंग, श्याम रंग विशेष
परिधान :- फुल पैंट व शर्ट
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- हरिद्वार, द्वारिका
लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेमचंद/महादेवी वर्मा
कवि/कवयित्री :- रामधारी सिंह दिनकर/सरोजनी नायडू
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- गोदान/नमक का दारोगा/रामचरितमानस
कविता/गीत/काव्य खंड :- पुष्प की अभिलाषा/वर दे वीणावादिनि वरदे/यशोधरा
खेल :- फुटबॉल,
मूवीज/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- मदर इंडिया/रामायण
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- मां बताओ कैसा था मेरा बचपन
श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय
उत्सव :- शादी और जन्मोत्सव, सूर्य षष्ठी पूजा
भोजन :- खीर, मालपुआ
रंग :- पीला
परिधान :- साड़ी
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- मेरा अपना गांव/हरिद्वार
लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेमचंद/महादेवी वर्मा
कवि/कवयित्री :- रामधारी सिंह दिनकर/सरोजनी नायडू
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- गोदान/नमक का दारोगा/रामचरितमानस
कविता/गीत/काव्य खंड :- पुष्प की अभिलाषा/वर दे वीणावादिनि वरदे/यशोधरा
खेल :- लूडो
मूवीज/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- मदर इंडिया/रामायण व महाभारत
!! “कल्पकथा के प्रश्न : श्री बिनोद कुमार पाण्डेय” !!
☆ प्रश्न 1. सबसे पहले हम आपके पारिवारिक एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं।
बिनोद जी :- पिता- भूतपूर्व सुबेदार (आर्मी)
कृषक परिवार। मुझे और पत्नी को शिक्षा व साहित्य में रुची
☆ प्रश्न 2. आप बिहार के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से उन्नत नगर सीवान के रहने वाले हैं। हमें उस नगर के बारे में अपने शब्दों में बताइए।
बिनोद जी :- भारत के प्रथम राष्ट्रपति-डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की जन्म स्थल-ग्राम -जीरादेई।जालेश्वर धाम-५२ एकड़ में विस्तार।प्रशिद्ध हरिहर नाथ मंदिर,जरती माई मंदीर,भारत के स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानियो की पावन भूमि। सीवान के महाराजगंज के बंगरा गांव के २७ स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजो का मुकाबला किया। शहीद स्तम्भ वहां है।
☆ प्रश्न 3. आपके जीवन के प्रथम शब्दों में कौन-सा भाव अंकुरित हुआ – साहित्य, संगीत या शिक्षा का स्वर? प्रारम्भिक प्रेरणा की वह धुन कैसी थी?
बिनोद जी :- प्रारम्भिक जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण रहा; अत: दर्द भरे गीत दिल को शुकून देते थे। प्रतिकूलता से उबरने के लिए शिक्षा को आवश्यक मान कठिन मिहनत, तब अपनी संवेदनाओं व भावनाओ को व्यक्त करने के लिए साहित्य का आश्रय लिया।
☆ प्रश्न 4. आपकी सृजन-यात्रा का वह प्रथम मोड़ कौन-सा था, जहाँ आत्मा ने कलम थामी अथवा सुर ने स्वर पकड़ा?
बिनोद जी :- छात्र जीवन में हिन्दी के शिक्षक की स्वरचित भोजपूरी व हिन्दी की कविताओं को सुन मुझे भी लिखने की प्रेरणा मिली।
☆ प्रश्न 5. गुरुतत्त्व की छाया में आपकी प्रतिभा ने कैसे पंख फैलाए? किसने आपके भीतर के दीप को प्रज्वलित किया?
बिनोद जी :- गुरुजनों की अहमियत बहुत अधिक समझ कर। पढा़ई पूरी होने के बाद बच्चों को पढ़ाने लगा। मन में शिक्षक बनने की अभिलाषा प्रबल थी।
☆ प्रश्न 6. अपने नगर के अतिरिक्त आपको भारत का और कौन सा नगर सबसे अधिक पसंद है?
बिनोद जी :- हरिद्वार।
☆ प्रश्न 7. आपके लिए ‘रचना’ केवल शब्दों का संयोग है अथवा आत्मा की अनुगूंज? उसकी व्याख्या कैसे करेंगे?
बिनोद जी :- रचनाएं आत्मा की अनुगूंज होती हैं। शुद्द भावनाएं शब्दों के द्वारा स्वत: कविता के रुप में प्रवाहित होने लगती हैं।वह भी जब मां सरस्वती चाहती हैं।
☆ प्रश्न 8. क्या आपको कभी लगा कि आपकी सर्जना समाज का दर्पण मात्र नहीं, उसकी दिशा भी बनती है?
बिनोद जी :- सीवान से हजारों कोस दूर मध्य हिमालय के उत्तरकाशी(उत्तराखण्ड) जनपद के ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में शिक्षण कार्य के बाद सामाजिक परिवेश के सम्बंध में अध्ययन कर भावों को संजोया व व्यक्त कर यह महसूस किया कि मैं अपनी रचनाओं के द्वारा समाज को सकारात्मक कार्यों के लिए प्रेरित कर सकता हूं।
☆ प्रश्न 9. आपके लेखन/संगीत/शिक्षण में ‘रागात्मकता’ और ‘तर्कशीलता’ का क्या संतुलन है?
बिनोद जी :- लेखन, संगीत व शिक्षण तीनों में भावनात्मक संवेदनाओं, तर्कशीलता, विवेक, व कल्याणकारी सोच अत्यंत आवश्यक है। समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करते हुए शिक्षा व संस्कार संवर्धन का कार्य लेखक, संगीतकार व शिक्षक ही बखूबी कर सकता है।
☆ प्रश्न 10. आपकी दृष्टि में साहित्य अथवा संगीत का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व क्या होना चाहिए?
बिनोद जी :- साहित्य समाज का दर्पण है। एक साहित्यकार का उद्देश्य अपनी रचनाओं के द्वारा समाज का नैतिक, बौधिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक विकास होना चाहिए। संगीत का उद्देश्य मानव के मन में सकारात्मक सोच, प्रफुल्लता व संवेदनशीलता को जागृत करने का होना चाहिए।
☆ प्रश्न 11. क्या किसी एक रचना/राग/शिक्षण क्षण ने आपको स्वयं को नए रूप में देखने को विवश किया?
बिनोद जी : – मेरी एक रचना -ं मां बताओ कैसा था मेरा बचपन”
गीत- कोई नहीं है मेरा
शिक्षण- खेल खेल में सीखाने की सूझ
मुझे स्वयं को नए रुप में देखने को विवश किया।
☆ प्रश्न 12. आपके विचार में वर्तमान पीढ़ी को साहित्य, संगीत या शिक्षा के प्रति कैसे जागरूक किया जाए?
बिनोद जी :- वर्तमान पीढ़ी को साहित्य,संगीत व शिक्षा के प्रति जागरुक करने के लिए हमें स्वयं मन,वचन व कर्म से जागरुक रहते हुए उनके सर्वांगीण विकास के लिए कटिबद्द होना पड़ेगा। नई पीढ़ी हमारे पदचिन्हों का अनुसरण करेगी।
☆ प्रश्न 13. लेखन प्रक्रिया के दौरान आपको किस प्रकार की अनुभूति होती है – यह एक सहज बहाव है, अथवा गहन मंथन के पश्चात प्रस्फुटित होने वाला नवनीत?
बिनोद जी :- मां सरस्वती की जब कृपा होती है तभी एकाएक किसी विषय पर भावनाएं शब्दों के सहारे रचना के रुप में आती हैं। मुझे तो ऐसा ही लगता है। गहन मंथन से मैंने कभी कोई कविता नहीं लिखी।
☆ प्रश्न 14. आपके अनुसार ‘कल्याणकारी संवाद’ किन गुणों से सुशोभित होता है? क्या आज के समय में वह दुर्लभ होता जा रहा है?
बिनोद जी :- सात्विक भाव, सबमें ईश्वर का है अंश, जीवन का लक्ष्य ईश्वर ने मानव के लिए क्या निर्धारित किया है?
☆ प्रश्न 15. आपके लेखन/संगीत में राष्ट्र, संस्कृति एवं परंपरा का क्या स्थान है? क्या वह आदर्शों का युग-सेतु है?
बिनोद जी :- यह ज्ञात हो जाने पर “कल्याणकारी संवाद” सुशोभित होता है।
☆ प्रश्न 16. परिवार, समाज और सृजनात्मकता में सामंजस्य स्थापित करने है की आपकी शैली क्या रही है?
बिनोद जी :- परिवार, समाज और सृजनात्मकता में सांमजस्य के लिए जरुरी है कि हम अपनी कथनी व करनी में सामंजस्य स्थापित करें। मैंने तो इसी सामंजस्य को स्थापित करते हुए लेखनी से लघु कहानियां व कविताएं लिखी है।
☆ प्रश्न 17. आपको किन साहित्यिक, सांगीतिक अथवा शैक्षिक व्यक्तित्वों से विशेष प्रेरणा मिली है और क्यों?
बिनोद जी :- सभी साहित्यकारों, संगीतज्ञों व शिक्षकों व पर्यावरण के जैव व अजैव पदार्थों से मुझे प्रेरणा मिली है। सब प्रेरक हैं।
☆ प्रश्न 18. आपके जीवन में किस क्षण ने आपको भीतर से झकझोर दिया, और उसने आपके रचनात्मक पक्ष को कैसे प्रभावित किया?
बिनोद जी :- जीवन के किस क्षण को मैं याद करु? हर क्षण महत्वपूर्ण है। प्रकृति की लीला अपरम्पार है। कई क्षण आए जिसमें मुझे स्वयं को संयमित व संतुलित रखने के लिए लेखनी उठानी पड़ी।
☆ प्रश्न 19. आपकी दृष्टि में पुरस्कार और मान्यता की क्या भूमिका होती है – यह प्रेरणा है या केवल प्रतिष्ठा का प्रतीक?
बिनोद जी :- पुरस्कार एक प्रेरक उद्दीपण है। पुरस्कार हमें प्रोत्साहित करता है आगे और बेहतर करने के लिए।
☆ प्रश्न 20. आपका ‘मनपसंद साहित्यकार/गायक/शिक्षाविद्’ कौन है और उनसे आपने क्या आत्मसात किया?
बिनोद जी :- साहित्यकार- मुंशी प्रेमचंद,
गायक -लतामंगेश्कर,
शिक्षाविद- भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति-डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम
☆ प्रश्न 21. यदि जीवन एक काव्य होता, तो उसका शीर्षक क्या होता और उसकी प्रथम चार पंक्तियाँ कैसी होतीं?
बिनोद जी :- यदि जीवन एक काव्य होता तो उसका शीर्षक होता,”जीवन एक अधूरी कविता”
जीवन है एक अधूरी कविता,
कोई पढ़े कोरान या कोई पढ़े गीता,
यदि राधा श्री शर्मा की तरह
“सर्वे भवन्तु सुखिन: का
संकल्प नहीं लिया तो
समझो अपना जीवन व्यर्थ बीता।
जीवन एक अधूरी कविता।
☆ प्रश्न 22. यदि आप अपने जीवन के कार्यों को किसी एक राग, छंद या विचारधारा में बांधें, तो वह क्या होगी?
बिनोद जी :- सार्थक व उपयोगी।
☆ प्रश्न 23. दंपति रूप में यदि आप मंच पर साथ प्रस्तुत होते हैं (कला, साहित्य या शिक्षा), तो वह अनुभव कैसा रहता है?
बिनोद जी :- दंपति रुप में आप दोनों की कृपा से यह पहला अवसर है। वरना तो मैं बाजार भी जाता हूं तो ये पीछे छूट जाती हैं।
☆ प्रश्न 24. ‘कल्प भेंटवार्ता’ के इस स्नेहमयी साक्षात्कार में शामिल होकर आपको क्या अनुभव हुआ? कोई भाव विशेष जिसे शब्द देना चाहेंगे?
बिनोद जी :- कुछ दिनों से हो रहा था
आप दोनों से मन ही मन संवाद,
गोपी बाबा ने आपको हमदोनों को मंच पर लाने के लिए प्रेरित किया,
शायद तभी आई आपको हमारी याद।
कल्पकथा मंच को नमन करते हुए आपसबों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
!! “कल्पकथा के प्रश्न : श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय” !!
☆ प्रश्न 1. सबसे पहले हम आपके पारिवारिक एवं साहित्यिक परिवेश के बारे में जानना चाहते हैं।
पुष्पा जी :- मेरे पिताजी वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर थे। राजेन्द्र महाविद्यालय, छपरा से प्राचार्य के पद से सेवा निवृत हैं। मां दुर्गा के उपासक, सतसंग का नियमित अपने घर पर आयोजन। शिक्षकों व विद्वानों का निरंतर मेरे मैके में आना जाना।
☆ प्रश्न 2. आप बिहार के ऐतिहासिक दृष्टिकोण से उन्नत नगर सीवान के रहने वाले हैं। हमें उस नगर के बारे में अपने शब्दों में बताइए।
पुष्पा जी :- सिवान दाहा नदी के तट पर स्थित है।यहां महेन्द्रानाथ का मंदिर है जिसे नेपाल के राजा ने बनवाया। ऐसी कहानी है कि राजा को स्वप्न में शंकर भगवान बोले कि इस मंदिर के तालाब में वे स्नान कर लेंगे तो उनका चर्मरोग समाप्त हो जाएगा। उन्होंने उसमें स्नान किया और उनका रोग समाप्त हो गया। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म सिवान के जीरादेई ग्राम में हुआ था।सिवान जनपद के बखरी गांव में आनंदबाग मठ है।
☆ प्रश्न 3. आपके जीवन के प्रथम शब्दों में कौन-सा भाव अंकुरित हुआ – साहित्य, संगीत या शिक्षा का स्वर? प्रारम्भिक प्रेरणा की वह धुन कैसी थी?
पुष्पा जी :- परिवार में पिता की प्रेरणा से छात्र जीवन से रामचरितमानस को पढ़ने से
साहित्य, संगीत और शिक्षा, तीनों को व्यक्त करने का मौका मिला।
☆ प्रश्न 4. आपकी सृजन-यात्रा का वह प्रथम मोड़ कौन-सा था, जहाँ आत्मा ने कलम थामी अथवा सुर ने स्वर पकड़ा?
पुष्पा जी :- जब मै कक्षा आठ में पढ़ रही थी; मेरे पड़ोस में एक लड़की का विवाह हुआ है और विवाह के लगभग एक सप्ताह बाद उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।मेरी एक सहपाठनी ने बताया कि दहेज में पैसे कम देने के कारण उसे प्रताड़ित किया गया । अत: वह आत्महत्या कर ली।इस बात ने मेरे मन को झकझोड़ दिया और और मैने दहेज प्रथा पर एक कविता लिखी।
☆ प्रश्न 5. गुरुतत्त्व की छाया में आपकी प्रतिभा ने कैसे पंख फैलाए? किसने आपके भीतर के दीप को प्रज्वलित किया?
पुष्पा जी :- मेरे प्रथम गुरु मेरे माता-पिता ही हैं।
मेरी मां ने संस्कार की शिक्षा दी और पिता ने आगे बढ़ने के लिए विज्ञान की शिक्षा से
मुझे आगे बढ़ाया।
☆ प्रश्न 6. अपने नगर के अतिरिक्त आपको भारत का और कौन सा नगर सबसे अधिक पसंद है?
पुष्पा जी :- हरिद्वार
☆ प्रश्न 7. आपके लिए ‘रचना’ केवल शब्दों का संयोग है अथवा आत्मा की अनुगूंज? उसकी व्याख्या कैसे करेंगे?
पुष्पा जी :- रचना आत्मा की भावाभिव्यक्ति है।
अन्तर्मन में उठते उद्गार आत्मा की आवाज होती है। वह सत्य, शिव व सुंदर होती है क्योंकि आत्मापरमात्मा का अंश है।
☆ प्रश्न 8. क्या आपको कभी लगा कि आपकी सर्जना समाज का दर्पण मात्र नहीं, उसकी दिशा भी बनती है?
पुष्पा जी :- रचनाएं समाज की दशा व दिशा को चित्रित करती हैं।
☆ प्रश्न 9. आपके लेखन/संगीत/शिक्षण में ‘रागात्मकता’ और ‘तर्कशीलता’ का क्या संतुलन है?
पुष्पा जी :- शिक्षण में तर्क नहीं तो शिक्षण बेकार है। तर्क गाड़ी में ब्रेक के समान है। तर्क ही शिक्षण को व्यवहारिक बनाता है।
रागात्मकता से शिक्षक व विद्यार्थियों के बीच आत्मीयता व प्रेरणा का संचार होता है।इससे शिक्षण प्रभावी,समावेशी व प्रेरक बनती है।
☆ प्रश्न 10. आपकी दृष्टि में साहित्य अथवा संगीत का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व क्या होना चाहिए?
पुष्पा जी :- साहित्य और संगीत
ये हैं मानव के मीत,
साहित्यकारो व संगीतकारों का
उद्देश्य होता है
मानव समाज का करना हित।
☆ प्रश्न 11. क्या किसी एक रचना/राग/शिक्षण क्षण ने आपको स्वयं को नए रूप में देखने को विवश किया?
पुष्पा जी :- जब मुझे प्रखण्ड संसाधन सेवी का कार्य दिया गया तो शिक्षकों को मैं हमेशा कहती रही की कक्षा में जिस विषय को वे पढ़ाने जा रहे हैं उसकी तैयारी पहले कर लें । सम्बंधित प्रकरण से संम्भावित प्रश्नों , तर्क आदि के लिए पहले से तैयार हो लें।
☆ प्रश्न 12. आपके विचार में वर्तमान पीढ़ी को साहित्य, संगीत या शिक्षा के प्रति कैसे जागरूक किया जाए?
पुष्पा जी :- अच्छे साहित्य को बच्चों के बीच बैठ कर पढ़े, संगीत में परिवार के सदस्यों की रुची होने से बच्चे देख कर ,सुन कर सीखेंगे।
☆ प्रश्न 13. लेखन प्रक्रिया के दौरान आपको किस प्रकार की अनुभूति होती है – यह एक सहज बहाव है, अथवा गहन मंथन के पश्चात प्रस्फुटित होने वाला नवनीत?
पुष्पा जी :- साहित्य का सृजन सहज होता है। आवश्यकता इस बात की होती है कि आपके भाव का उद्देश्य व्यापक हो।
☆ प्रश्न 14. आपके अनुसार ‘कल्याणकारी संवाद’ किन गुणों से सुशोभित होता है? क्या आज के समय में वह दुर्लभ होता जा रहा है?
पुष्पा जी :- शुद्ध मन, प्रसन्न चित्त,
मनसा हो सबका करना हित,
रहे हमें अपने पूर्वजों की याद,
तभी संभव है कल्याणकारी संवाद।
☆ प्रश्न 15. आपके लेखन/संगीत में राष्ट्र, संस्कृति एवं परंपरा का क्या स्थान है? क्या वह आदर्शों का युग-सेतु है?
पुष्पा जी :- लेखक, कवि व संगीतकार,
करते रहे है अपने राष्ट्र, संस्कृति
और परम्परा से प्यार,
उनकी लेखनी चलती है इसी हेतु;
ये हैं आदर्शों के युग सेतु।
☆ प्रश्न 16. परिवार, समाज और सृजनात्मकता में सामंजस्य स्थापित करने की आपकी शैली क्या रही है?
पुष्पा जी :- परिवार और समाज के हित में
सृजन आवश्यक है।आज संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार और उससे अनेक परेशानिया उत्पन्न हो रही हैं।
सामाजिक व्यवस्था में भी परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा और संस्कार का सामंजस्य
परिवार और समाज के हित में है।
☆ प्रश्न 17. आपकी दृष्टि में पुरस्कार और मान्यता की क्या भूमिका होती है – यह प्रेरणा है या केवल प्रतिष्ठा का प्रतीक?
पुष्पा जी :- प्रेरणा और प्रतिष्ठा दोनो का प्रतीक
☆ प्रश्न 18. दंपति रूप में यदि आप मंच पर साथ प्रस्तुत होते हैं (कला, साहित्य या शिक्षा), तो वह अनुभव कैसा रहता है?
पुष्पा जी :- यह प्रथम अवसर है
☆ प्रश्न 19. ‘कल्प भेंटवार्ता’ के इस स्नेहमयी साक्षात्कार में शामिल होकर आपको क्या अनुभव हुआ? कोई भाव विशेष जिसे शब्द देना चाहेंगे?
पुष्पा जी :- आपको और आदरणीया राधा दीदी को तहे दिल से आभार। आपके समक्ष उपस्थित होकर हमें बहुत अच्छा लग रहा है। अपने विचारो को प्रकट करने का आपने अवसर दिया।बहुत बहुत धन्यवाद।
✍🏻 भेंटवार्ता : श्री बिनोद कुमार पाण्डेय एवं श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय
कल्प व्यक्तित्व परिचय में आज ग्राम-रामपुर पाण्डेय टोला,भगवानपुर हाट, जिला- सिवान (बिहार) के विशिष्ट एवं वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षाविद दंपत्ति श्री बिनोद कुमार पाण्डेय एवं श्रीमती पुष्पा कुमारी पाण्डेय जी से परिचय हुआ। ये देश की धरोहर शिक्षाविद हैं, जिनके सुन्दर व्यक्तित्व से हम सब प्रेरित होते हैं। इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/ePCtJo95L34?si=oX4klD-LtqQpb26q
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन
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पवनेश
राधे राधे 🙏🌹🙏
आदरणीय पाण्डेय दम्पत्ति के साथ भेंटवार्ता कार्यक्रम अत्यंत आनंददायक रहा।
🙏🌹🙏