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 “पिता – पुरुषार्थ के पथिक”

प्रथम मनाऊं गणनायक को गुरु चरणन में शीश नवाए।

मात शारदे किरपा करियों देवी देवता लेऊं मनाएं।।

 

गोदी में बैठा जब मैं रोता, बाबा हँस के मन बहलाएं।

कंधे ऊपर बिठा के मुझको, नभ की ऊँचाई दिखलाएं।।

 

चक्का गाड़ी गेंद चकरियां रंग बिरंगे खेल सिखाएं।

गाड़ीं की बारात सजा दें, पाँव पखारै खुद नहलाएं।।

 

नींद नहीं आती जब हमको, थपकी देकर हमें सुलाएं।

पिता हमारे खुद शिव होकर राम कथा के राग सुनाएं।।

 

कोमल सुलभ किशोर कल्पना मन को मिला नया विस्तार।

गलती पर जो मौन रहे न, अनुशासन से दिया सुधार।।

 

बिना कहे जो सीख मिल गई, मन में भीतर बैठी बात।

तेज दृष्टि से जो टकराती, भीतर धुकर पुकर मच जात।।

 

नियमन की डोरी से बाँधो, फिर भी पर न बांधे जाएं।

मर्यादा की थाप मधुर हो, मर्म प्रेम से दओ समझाए।।

 

जगे स्वप्न जो निपट निराले, पथ जो दिशा दिशा की आन।

धर्म-कर्म सब पिता सिखाये, जीवन लक्ष्य की दे पहचान।।

 

कहा सत्य की राह कठिन है, पर जो चलवे वीर कहाए।

संधि कभी अनीति न करना, चाहे रूठ सकल जग जाए।।

 

पुरुषार्थ की पूँजी हो बेटा, तब जीवन दीपक बन पात।

कर्मयोग ही आराधन है, यही मन्त्र सच्चे फल आत।।

 

बड़ा वही जो झुके समय पर, विनय फलेरी वृक्ष की डाल।

बात बने पर बात न बिगड़े, रख्खो स्वर्ण तपे से हाल।।

 

सच्चे पथ पर डटे रहो तुम, चाहे समय परीक्षा लाए।

धन से बढ़कर धर्म बचाना, यही विजय की राह बताय।।

 

श्रद्धा, शील, समर्पण, सेवा – चार दीप जीवन उजियार।

और स्वयं को तभी समझना, जब निज स्वार्थों की हो हार।”

 

🌸 नमन स्वरूप समर्पण पंक्तियाँ 🌸

पिता नहीं केवल संबोधन, वह जीवन की परिभाषा हैं,

हर युग में अमरत्व लिए जो, वह सच्चे धर्म की भाषा हैं।

पिता नहीं केवल नाम भर, वो गाथा पुरुषार्थों की।

शाख नहीं, वह मूल बने, जीवन की हर भारों की।।

पवनेश

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