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“कल्प भेंटवार्ता – डॉ. श्रीमती अंजू सेमवाल जी, उत्तरकाशी उत्तराखंड के साथ”

🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – डॉ. श्रीमती अंजू सेमवाल जी, उत्तरकाशी उत्तराखंड के साथ 🌺

नाम :- डॉ श्रीमती अंजू सेमवाल जी, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड)

माता/पिता का नाम :-
माता- श्रीमती विमला देवी नौटियाल
पिता- श्री राम गोपाल नौटियाल

जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- भेटियारा,1978

पति का नाम :-श्री कैलाश चंद्र सेमवाल

बच्चों के नाम :- श्रुति सेमवाल, प्रीति सेमवाल, अनुष्का सेमवाल, अविनाश सेमवाल,

शिक्षा :- एम० ए० हिन्दी, बी० एड०,योग विज्ञान, पी० एच० डी० (हिन्दी)

व्यवसाय :- गृहणी

वर्तमान निवास :- ग्राम- लदाड़ी, पो० ऑ०- जोशियाड़ा, जिला- उत्तरकाशी, पिन- 249193

आपकी मेल आई डी :- dranjusemwaluki@gmail.com

आपकी कृतियाँ :- महावीर रवाँल्टा के कथा साहित्य का तात्विक विवेचन

आपकी विशिष्ट कृतियाँ :-

आपकी प्रकाशित कृतियाँ :-महावीर रवाँल्टा के कथा साहित्य का तात्विक विवेचन

पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-1- पहली गढ़वाली रामलीला उत्तरकाशी सम्मान- 2021
2- गंगा श्री सम्मान-2023
3- अनघा फाउण्डेशन मंगशीर ब ग्वाल उत्तरकाशी सम्मान- 2023
4- हिंदी श्री सम्मान-2024
5- महादेवी वर्मा रत्न सम्मान-2024

!! “मेरी पसंद” !!

उत्सव :- महाशिवरात्रि व मायके का गुरु चौरंगी नाथ का मेला

भोजन :- सात्विक

रंग :- हरा

परिधान :- साड़ी

स्थान एवं तीर्थ स्थान :- माँ वैष्णो देवी का धाम वा गंगा का किनारा

लेखक/लेखिका :- महावीर रवॉल्टा, महादेवी वर्मा

कवि/कवयित्री :- सुमित्रानंदन पंत , आनंदी नौटियाल

उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- उपन्यास- एक और लड़ाई लड़
पगडड़ियो के सहारे
आप घर या बाप घर
कहानी -गिल्लू
पुस्तक- रामायण

कविता/गीत/काव्य खंड :-
कविता- घर की याद
गीत- सावन आया वादल छाये
काव्य खण्ड-

खेल :- दौड़

फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- फिल्म- हम आपके है कोन
धारावाहिक- ॐ नमः शिवाय

आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :- महावीर रवॉल्टा के कथा साहित्य का तात्विक विवेचन

!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!

1. अंजू जी, हम और आपसे जुड़े सभी जन आपको अपनी जानकारी के अनुसार जानते – पहचानते हैं, किन्तु कार्यक्रम की शुरुआती में हम आपसे आपका व्यक्तिगत और साहित्यिक परिचय आपके ही शब्दों में जानना चाहेंगे?

उत्तर- जी सबसे पहले आप सभी को मेरा प्रणाम ।
मै डॉ० अंजू सेमवाल शिव नगरी उत्तरकाशी उत्तराखंड से ।
मेरी जो शिक्षा है वह मेने एम० ए० से किया है और वि ० एड ०तथा योग विज्ञान भी किया है साथ ही साथ मेने पी० एच० डी० हिन्दी से की है ।
मैंने जो शोध कार्य किया है वह .उत्तराखड के प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवाँल्टा जी पर किया है ।

2. डॉ अंजू जी, आप गंगोत्री, यमुनोत्री के प्रवेश द्वार, बाबा विश्वनाथ की नगरी उत्तरकाशी से हैं जिसका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में भी प्राप्त होता है हम आपके इस नगर को आपके शब्दों में अनुभव करना चाहते हैं?
उत्तर- उत्तरकाशी की महिमा पुराणों में इस प्रकार बताई गई है-
” इयमुत्तरकाशी हि प्राणिनां मुक्ति दायिनी,
धन्या लोके महाभाग कलै येषमिह स्थितिः”
यह उत्तरकाशी प्राणियों को मुक्ति प्रदान करने वाली परम् पुनीत नगरी है, वे लोग धन्य है जो कलयुग में काशी में निवास करते है ।
यहाँ पर अस्सी और वरुणा इन दोनो पवित्र नदियों के बीच परम पावनी गंगा भागीरथी उत्तर वाहिनी होकर बहती है ।
यहाँ पर श्री काशी विश्वानाथ जी स्वयंमू लिंग रूप मे विराजमान है ।
यहाँ पर श्री काशी विश्वनाथ जी के साथ( 33 करोड़) देवी दे वताओं का निवास भी माना जाता है ।

पुराणों ने में यह भी वर्णन आता है कि भगवान आशुतोष ने उत्तरकाशी को कलयुग की काशी नाम से सम्बोधित किया है।
उत्तरकाशी नगरी ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।

3. हम जानना चाहेंगे आपके जीवन का ऐसा निर्णय जिसका परिणाम आपकी आशा से कहीं अधिक सुखद रहा और आपको अपने उस निर्णय पर गर्व की अनुभूति होती है?

उत्तर- जी मेरे पतिदेव मेरे जीवन साथी, जिनके साथ माता- पिता की आज्ञा से वैवाहिक बंधन में बंधी हूँ मैरे जीवन मै एक ऐसा निर्णय जिसका परिणाम आज आशा से कहीं अधिक सुखद है मेरे लिए । क्योंकि जब विवाह हुआ था तो मात्र एम०ए०पास थी । उसके वाद की सारी शिक्षा पतिदेव के संरक्षण में ही हुई है । इसलिए उस निर्णय पर मुझे आज भी गर्व की अनुभूति होती है ।

4. “भेटियारा की माटी में अंकुरित संवेदना कब बनी साहित्यिक पुष्प? आपकी आरंभिक साहित्यिक प्रेरणाएँ किनसे रहीं?”

उत्तर- हिन्दी विषय पहले से रहा तो विभिन्न साहित्यकारो को पढ़ने का अवसर मिला, जैसे मीरा वाई, महादेवी वर्मा, सूर, तुलसी इनके साहित्य को पढ़कर मन में लेखन के प्रति रुचि जगी ।

5. “हिन्दी और गढ़वाली – इन दोनों भाषाओं में सृजन का गढसौंदर्य आप किस प्रकार अनुभव करती हैं? क्या दोनों में अभिव्यक्ति की भिन्नता है?”

उत्तर- जी हिन्दी भाषा और गढ़वाली बोली में कुछ ज्यादा अन्तर नही है गढ़वाली बोली के शब्द हिंदी भाषा से बहुत कुछ मिलते जुलते है ।
अभिव्यक्ति की भिन्नता है लोकिन थोड़ा बहुत ।

6. “आपके लेखन में उत्तरकाशी की सांस्कृतिक गंध और लोक जीवन की प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, यह प्रवृत्ति स्वाभाविक . रही या उद्देश्यपूर्ण?”

उत्तर- जी कहते हैं कि जैसा खाते है अन्न वैसा होता है मन । ठीक वैसा ही हम जिस जगह पर रहते है उसका हम पर प्रभाव पड़ता है । चाहे वह घर हो या बाहर । भक्ति का बीज मेरे हृदय में मेरी दादी ने बोया क्योंकि पारिवारिक माहोल भक्तिमय था। फिर जब ससुराल आई तो पतिदेव को संगीत में बहुत रुचि है साथ ही पतिदेव सरकारी सेवा के साथ ही साथ जब अबसर मिलता है तो श्री राम का अभिनय भी रामलीला में करते है, जिससे कि घर मैं रामलीला की चौपई ,दोहे का गायन निरंतर होता रहता है । इसलिए यह कोई उद्देश्य पूर्ण नही बल्कि यह स्वाभविक प्रवृति है।

7. “‘महावीर रवाँल्टा जी के कथा-साहित्य का तात्विक विवेचन’ आपके शोध का विषय रहा। इस चयन के पीछे कौन-से साहित्यिक आग्रह सक्रिय रहे?”

उत्तर- बहुत ही सुंदर प्रश्न है यह ।
कथाकार महावीर रवॉल्टा जी के कथा साहित्य को शोध का विषय बनाना यह मेरे परम पूज्य प्रातः स्मरणीय गुरु जी डॉ0 सुवाष चंद्र सिंह कुशवाह जी द्वारा सुझाया गया । वही मेरे शोध निर्देशक रहे और उन्होंने ही मुझे उनकी प्रथम पुस्तक उपलब्ध कराई ।

8. “कृपया बताइए कि आपके शोध अनुभव ने आपकी रचनात्मक दृष्टि को कैसे समृद्ध किया?”

उत्तर- शोध कार्य करने से मेरे लेखन को बहुत बल मिला । आ ज मै किसी भी विषय पर (गद्य) पर बहुत कुछ लिख सकती हूं।

9. “गढ़वाली रामलीला के मंच से सम्मान प्राप्त करना केवल गौरव नहीं, लोकसंस्कृति से आत्मिक जुड़ाव भी है। इस अनुभव को शब्दों में कैसे बाँधेंगी?”

उत्तर- रामलीला मंच पर सम्मान मिलना यह समिति का निर्णय था । मेरे लिए तो प्रभु राम से जुड़ना और रामलीला से कुछ सीखकर जीवन में ढालना ये बड़ी बात है।

10. “आपका साहित्यिक संसार ‘धाद’, ‘हिम सुमन’ और ‘गढ़-रैवार’ जैसी पत्रिकाओं में पसरा हुआ है। क्या वास्तव में पत्र-पत्रिकाएँ आज भी साहित्य के बीज बोने में सक्षम हैं?”

उत्तर- जी बिल्कुल सभी पत्रिकाए आज भी निर्वाध रूप से प्रकाशित हो रही हैं।

11. “आपके लेखों में स्त्री-स्वर कितना मुखर है? क्या नारी जीवन के अंतर्द्वंद्वों को आपने विशेष दृष्टि से देखा है?
उत्तर- नारी प्रत्येक परिवार की री ड़ की हडडी है, लेकिन फिर भी उसे अंतर्दृद्धों से होकर गुजरना पड़ता है ।

12. “संगीत आपकी रुचियों में सम्मिलित है। क्या कभी संगीत और कविता ने एक-दूसरे से संवाद किया है?”
उत्तर- संगीत और कविता दिखने में अलग लग सकते है मगर हम कविता को गुनगुना सकते है ।
मै अपनी कविताओं को गायन में ढाल लेती हूँ, इसलिए सम्वाद का मतलब ही नही बनता ।

13. “राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ की अनुभूतियाँ कैसी रहीं? क्या वहाँ भाषाई विविधता ने आपके भीतर कोई नवीन दृष्टिकोण विकसित किया?”

उत्तर- जी विल्कुल नही, हिन्दुस्तान मे हिंदी ही अधिक बोली जाती है, तो भाषाई विविधता का तो कोई मतलब ही नही खपता

14. “दूरदर्शन देहरादून पर काव्य पाठ का अवसर आपके साहित्यिक जीवन की कौन-सी स्मृति बन गया?”
उत्तर- अद्भुत क्षण था वह जब देहरादून दूरदर्शन पर काव्य पाठ किया था । अपनी गढ़वाली बोली के साथ पारम्परिक परिधान पहनकर प्रस्तुति दी ।

15. “आपके अनुसार साहित्यकार की सामाजिक भूमिका क्या होनी चाहिए, विशेषतः उस परिवेश में जहाँ भाषाई उपेक्षा बढ़ रही हो?”

उत्तर- प्रत्येक साहित्यकार को समाज का यर्थात चित्रिण अपने लेखन के माध्यम से करना चाहिए । क्योंकि यर्थात चित्रण जब होता है तो भाषाई उपेक्षा बोनी पड़ जाती है।

16. “उत्तरकाशी की वह कौन-सी परंपरा है जिसे आप आज के साहित्य में पुनः जीवित देखना चाहती हैं?”
उत्तर- यहाँ की कला और सस्कृति ।

17. “आपने शिक्षा और योग जैसे विविध विषयों में अध्ययन किया है, क्या इसका प्रभाव आपकी लेखन-शैली पर पड़ा?”

उत्तर- जी विल्कुल मेरी शिक्षा ही मुझे योग की तरफ ले गई। क्यों कि योग से हम शरीर को रोगो से मुक्त रख सकते है । और मैं तो ये मानती हूँ कि प्रत्येक व्यकि को योग नियमित रूप से करना चाहिए ।

18. “‘महादेवी वर्मा रत्न सम्मान’ जैसी उपलब्धियाँ किस प्रकार आपकी सृजन चेतना को दिशा देती हैं?”

उत्तर- कोई भी सम्मान लेखक की लेखन कला को ओर निखारता है ।

19. “भविष्य में आप किन विषयों पर सृजन करना चाहती हैं – क्या कोई अव्यक्त स्वप्न अब भी आकार ले रहा है?”

उत्तर- जी में जिन विषयो पर लिख रही हूँ उन्ही पर लिखना चाहती हूँ मेरी जो विशेष रुचि है वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी पर लिखना जादा अच्छा लगता है ‘

20. “गढ़वाली भाषा में नवलेखन की दिशा में युवा पीढ़ी से आप क्या अपेक्षा रखती हैं?”
उत्तर- जी यही अपेक्षा है कि आप अपनी संस्कृति को न भूले, अपनी बोली भाषा को न भूलें ।

21. “एक ग्रामीण स्त्री होने के नाते आपने साहित्य की यात्रा को कैसे संतुलित किया – संघर्ष और संकल्प के कौन-से पल आज भी स्मरण में हैं?”

उत्तर- जी मै यह मानती हूँ कि यदि जीवन में संघर्ष नही तो कुछ भी नही ।
आपने पूछा .संघर्ष और संकल्प के वो पल, तो जब में शोध कार्य कर रही थी तब यहां पर सम्पूर्ण साहित्यिक सामग्री उपलब्ध नही थी क्योंकि यह पहाड़ी इलाका है तब बहुत भटकना पड़ा ।

22. “आपके लेखन की अंतर्धारा यदि एक वाक्य में बाँधनी हो, तो वह क्या होगी?”
उत्तर- जी लेखक बनकर नही बल्कि एक साधक बनकर लिखो, आपकी रचना पाठक के हृदय पर घर कर जायेगी

23. “कल्पकथा परिवार के मंच से जुड़ते हुए आपके अंतर्मन में क्या भाव गूंजते हैं? क्या यह मंच आपकी अभिव्यक्ति का सहचर बन सकता है?”

उत्तर- जी कल्प कथा परिवार से जुड़ना मेरे लिए गौरव की बात है। और इसमे कोई सक नहीं कि यह मंचों मेरी अभिव्यक्ति का सहचर बना । आदरणीय पवनेश सर आदरणीया राधा श्री मैम आप सभी का उत्साह वर्धन करते है।

24. डॉ सेमवाल जी, आप अपने दर्शको, श्रोताओं, पाठको को क्या संदेश देना चाहेगी?

उत्तर- जब कोई भी दर्शक, पाठक या श्रोता किसी भी लेखक की रचना की सराहना करता है तो लेखक की कलम को बल मिलता हैऔर वह एक लेख तो क्या वह एक ग्रन्थ भी लिख सकता है।

कार्यक्रम को देखने के लिए लिंक पर जाएँ

https://www.youtube.com/live/lir8WauaTYg?si=Uqsj5CUdk5HwHls9

“कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”

कल्प भेंटवार्ता

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