
प्रकाशनार्थ : राष्ट्रीय ध्वज
- G Binani
- 22/07/2025
- लेख
- संवाद पोष्ट
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प्रकाशनार्थ : राष्ट्रीय ध्वज
स्वतन्त्रता दिवस के पहले प्रधानाचार्यजी के निर्देशानुसार कक्षा में मास्टर जी ने स्वतन्त्रता दिवस से सम्बन्धित एक अत्यन्त सरल सवाल पूछा –
‘बच्चों, बताओ तो भारत के राष्ट्रीय ध्वज में कितने रंग हैं ?’
‘तीन ।’ सारे बच्चों के स्वर कक्षा में एक साथ गूँजा। लेकिन होनहार बच्चों में से एक बच्चा अपना हाथ उठाये शान्त बैठा मास्टर जी की ओर देख रहा था।
जब मास्टरजी की नजर उस पर पड़ी तब सभी बच्चों को शान्त होने का कह, उससे पूछा – कुछ कहना चाहते हो ?
शोर थमने के बाद वह बच्चा धीरे-धीरे खड़ा हो विनम्र स्वर में कहा, ‘मास्टर जी, पाँच ।’
सारे बच्चे यह सुन हँसने लगे ।
मास्टर जी अपने गुस्से को दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘चलिये, आप ही सबको बता दीजिये कौन-कौन से पाँच रंग है हमारे तिरंगे में ?’
तिरंगे के नाम सुनने के बाद भी बच्चा धीरे – धीरे बोलने लगा – ‘सबसे ऊपर केसरिया, उसके नीचे सफेद, सबसे नीचे हरा और बीच में एक चक्र जिसका रंग नीला है।’
मास्टर जी अपने हाथ दायें – बायें हिलाते हुए हल्के से ऊँची आवाज में पूछा –
‘फिर भी तो चार ही हुये ना । ये पाँचवा रंग कौन सा है ?’
मासुम बच्चे ने आँख झुकाये सरलता से जबाब दिया –
‘वो है पूरे ध्वज में फैला हुआ लाल – लाल धब्बा ।’
क्या कहा – ठीक से बताओ।
‘मुझे याद है मास्टर जी, जब मैंने पापा को अन्तिम बार घर के आंगन में देखा था। घर के आंगन में एक ताबूत के अन्दर पापा एक वैसे ही ध्वज को ओढ़ कर सोये हुये थे।’
कक्षा का शोर अचानक थम सा गया । मास्टर जी का गुस्सा गायब हो चुका था । गला भी भर आया था। कुछ बोल नहीं पा रहे थे ।सिर्फ हाथ के इशारे से सभीको शान्त बैठने को कहकर सिर झुकाये कक्षा से बाहर निकल आये और भींगी आँखों से आसमान की ओर देखते हुए सोचने लगे – ‘तिरंगे में लगे खून के उन लाल धब्बों को हम कैसे भूल गये ?
कैसे भूल गये कि हमें कितनी मँहगी पड़ रही है ये आतंकवादी घटनायें ? हँसते – हँसते अपने खून से धरती को रंगने वाले , उन वतनपरस्त शहीदों ने तो शांति व सुकून बनाये रखने के लिये अपनी जान की बाजी लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं ।पर हमने उनके मकसद और दिशा से भटक कर किस ओर का रूख अपना लिया।’
क्या आज ये पंक्तियाँ हमारे लिए कोई मायने भी रखती हैं –
एक पुष्प की अभिलाषा –
‘मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने , जिस पथ पर जायें वीर अनेक।’
गोवर्द्धन दास बिन्नानी “राजा बाबू”
जय नारायण व्यास कॉलोनी , बीकानेर
9829129011 / 7976870397
नोट : 1] यदि संभव हो तो निम्न रचना को दो रंगों में या फिर लाल रंग वाला गहरे अक्षरों में प्रकाशित करेंगे तो अच्छा लगेगा।
2] कृपया प्रकाशन पश्चात लिंक या पीडीएफ़ अवश्य भेज दें।
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