
“कल्प भेंटवार्ता” – श्री अमित कुमार जी, मैकेनिक्सबर्ग पेंसिल्वेनिया, के साथ
- कल्प भेंटवार्ता
- 26/07/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री अमित कुमार जी, मैकेनिक्सबर्ग पेंसिल्वेनिया, के साथ 🌺
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- श्री अमित कुमार जी, मैकेनिक्सबर्ग पेंसिल्वेनिया, (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका)
माता/पिता का नाम :- श्री नरेश चंद, श्रीमती सुधा शर्मा
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- मेरठ, १५ अगस्त
पति/पत्नी का नाम :- श्रीमती दीपाली शर्मा
बच्चों के नाम :- एकांश शर्मा, विआन शर्मा
शिक्षा :- मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन
व्यावसाय :- आई टी क्षेत्र में प्रोजेक्ट मैनेजर
वर्तमान निवास :- मैकेनिक्सबर्ग पेनसिल्वेनिया
आपकी मेल आई डी :- amit.kumar16@gmail.com
आपकी कृतियाँ :- विभिन्न विषयों पर लगभग १०० के आस पास कविताएं लिखीं।
आपकी विशिष्ट कृतियाँ :- वैसे तो उन्हें अपना कहना अनुचित होगा लेकिन जीवन दर्शन से संबंधित कुछ कविताएं विशिष्ट कही जा सकती हैं ।
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- काव्य संग्रह अभीप्सा
पुरूस्कार एवं विशिष्ट स्थान :- कोई नहीं।
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- नवरात्रि, दीपावली
भोजन :- भारतीय। राजमा हमेशा प्रिय रहा। पुणे जाने के बाद महाराष्ट्रीय नाश्ते बहुत पसंद आए जैसे कि मिसल पाव, पोहा , उपमा, कच्छी दाबेली।
रंग :- नीला
परिधान :- हल्के फुल्के जैसे टी शर्ट
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- हरिद्वार , ऋषिकेश
लेखक/लेखिका :- दीपक चोपड़ा ( आध्यात्मिक किताबों के लेखक)
कवि/कवयित्री :- जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- एक योगी की आत्मकथा, अरबिंदो घोष की पुस्तकें
कविता/गीत/काव्य खंड :- उर्वशी , रामधारी जी द्वारा लिखित, प्रकृति सुधा शर्मा द्वारा, सावित्री अरबिंदो घोष
खेल :- खेलों में ज्यादा रुचि नहीं रही। सचिन तेंदुलकर के समय क्रिकेट थोड़ा देखते थे। टेनिस भी पसंद रहा।
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- खामोशी, आनंद, दृश्यम, । अभी कुछ समय पहले तमिल की हिंदी डब फिल्म ९० बैच देखी उसने दिल को छुआ।
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
☆ प्रश्न 1. साहित्यिक एवं व्यक्तिगत परिचय :
अमित जी, हम और आपसे जुड़े सभी जन आपको अपनी जानकारी के अनुसार जानते – पहचानते हैं, किन्तु कार्यक्रम की शुरुआत में हम आपसे आपका व्यक्तिगत और साहित्यिक परिचय आपके ही शब्दों में जानना चाहेंगे?
★ अमित जी :- जी, मेरा नाम अमित कुमार, जन्म स्थान मेरठ है।
ग्रेजुएशन तक शिक्षा मेरठ में की फिर मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन , लखनऊ यूनिवर्सिटी से ।
२००४ से भारतीय मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत एवं पूना में निवास।
२०१४ में कंपनी ने काम के सिलसिले में अमेरिका भेजा। तब से संयुक्त राज्य अमेरिका में ७ से अधिक वर्ष बिताए।
२०१४ से २०१७ , २०१९ से २०२२ अमेरिका में प्रवास रहा।
अभी २०२४ से अमेरिका में ही कार्यरत।
इसके अतिरिक्त काम के सिलसिले में ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, मैक्सिको में भी प्रवास किया।
साहित्यिक यात्रा:
१३ वर्ष की आयु से काव्य लेखन आरम्भ किया। अधिकांश रचनाएं ९० के दशक में ही लिखी।
एक काव्य संग्रह “अभीप्सा” नाम से २०२४ में प्रकाशित।कोई और रचना प्रकाशित नहीं।
अभी साहित्य और संवाद पटल पर साप्ताहिक आलेख समीक्षा कार्य से जुड़े हुए।
परिवार में माता पिता , पत्नी, दो बेटे और तीन बहनें हैं।
माता पिता मेरठ में रहते हैं।
दो बहनें नोएडा और एक मुजफ्फरनगर में निवास करती हैं
माता सुधा शर्मा और छोटी बहन स्वाति भी साहित्य से जुड़े हैं।
☆ प्रश्न 2. गृहनगर :
आदरणीय, आप प्रथम भारतीय स्वतंत्रता की प्रारंभ स्थली, नौचंदी का मेला, और खेल के सामान के लिए प्रसिद्ध, मयराष्ट्र, मेरठ, से हैं, हम आपके इस नगर को आपके शब्दों में अनुभव करना चाहते हैं?
★ अमित जी :- मेरठ से मेरा बड़ा ही करीबी नाता रहा है। मेरठ छावनी से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ। बचपन में मैं साइकिल उठाकर छावनी घूमने चला जाता था। काली पल्टन का मंदिर विशेष प्रिय था। छावनी का हरा भरा वातावरण सुखद लगता था। अनेक कविताएं उसी घूमने के दौरान रची गईं।
नौचंदी का मेला तो पूरे साल प्रतीक्षित रहता था।
कॉलेज जाते हुए कभी कभी घंटाघर पर छोले भटूरे, लस्सी और सदर बाजार की टिक्की चाट मनपसंद रहे। मेरठ उम्दा व्यंजनों का शहर भी है।
होली , जन्माष्टमी , कांवड़ यात्रा आदि त्यौहारों में मेरठ की छटा ही निराली होती है।
☆ प्रश्न 3. प्रथम प्रेरणा का स्पर्श :
मान्यवर, तेरह वसंत की कोमल अवस्था में, काव्य-साधना के पथ पर आपके चरण कैसे अग्रसर हुए? उस प्रथम काव्यांकुर की पावन स्मृति हमारे साथ बाँटिएगा।
★ अमित जी :- माताजी हमेशा प्रेरणादायक कहानियां आदि सुनाकर हमारा बौद्धिक, वैचारिक, भावनात्मक विकास करती रहीं। देश और समाज की विडंबनाओं पर उनके विचारों का प्रभाव पड़ा। इसी से पहली कविता जो देश व समाज के प्रति संवेदना से उपजी थी।
☆ प्रश्न 4. नवें दशक की सृष्टि-छाया :
बंधुवर, नब्बे का दशक आपकी रचनात्मकता का स्वर्णिम काल रहा। उस युग की साहित्यिक वायुमंडल और आपके अंतस में उमड़े भाव-सागर का क्या अद्भुत सामंजस्य था?
★ अमित जी :- साहित्यिक वायुमंडल का तो अधिक प्रभाव नहीं पड़ा।
शुरू में कुछ दो चार कवि सम्मेलनों में जाना हुआ तो पाया कि ज्यादातर साहित्य उर्दू प्रधान है। ग़ज़लों का अधिक बोलबाला है। कुछ लोग मुक्तक में अच्छी हिंदी प्रयोग कर रहे थे लेकिन बाकी रचनाएं उर्दू प्रधान थी।
हालांकि उर्दू भी अच्छी लगती थी किंतु मेरा लगाव शुद्ध हिन्दी से अधिक रहा।
इसलिए मैं उन सबसे दूर ही रहा।
मेरठ के वरिष्ठ कवि भूषण जी की कविता “श्वासो की सीमा निश्चित है” को बहुत गुनगुनाया करते थे।
उसी समय मेरे मित्र राजीव से परिचय हुआ। उनकी गहरी सोच से अपनत्व लगा और हम दोनों काफी साहित्यिक चर्चाएं करने लगे।
कुछ रचनाएं मिलकर भी लिखी।
☆ प्रश्न 5. “अभीप्सा” का आविर्भाव :
अमित कुमार जी, वर्षों के संचय के पश्चात, आपकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति “अभीप्सा” के रूप में क्यों और कैसे प्रकट हुई? इस शीर्षक में निहित उस तृष्णा का रहस्य क्या है?
★ अमित जी :- जॉब में आने के बाद रचनाकार्य लगभग बंद सा हो गया।पुरानी रचनाएं सब मेरठ में ही रखी थी।
माताजी ने समझाया कि यह समाज का है और समाज के पास जाना चाहिए और उन्होंने ही काफी श्रम से मेरी रचनाओं को इकट्ठा किया, पुराने पड़ गए कागजों से कॉपी कर प्रकाशन के लिए दिया।
जीवन की खोज से जुड़ी रचनाएं होने के कारण और उस परम की अभीप्सा ही शीर्षक में परिलक्षित है।
☆ प्रश्न 6. प्रवास की पीड़ा और पहचान :
अमित जी, अमेरिका की धरती पर सात वर्षों से अधिक का प्रवास… क्या यह दूरी भारतीय अंतस से जुड़े रहने में बाधक बनी, अथवा उसे और अधिक गहराई प्रदान की?
★ अमित जी :- जी, प्रवास में भारतीय अंतस से जुड़े रहने की प्यास अधिक प्रबल ही हुई। भारत एक स्थूल देश नहीं है वरन उसकी एक आत्मा है। जो भारत से दूर भी और भारत में महसूस होती है। मैं पुणे, बैंगलोर आदि जगहों पर रहा। सब जगह उसका अनुभव एक ही है।
और यह कोई बाहर रहने वाला महसूस कर सकता है।
☆ प्रश्न 7. वैश्विक परिदृश्य का प्रभाव :
आदरणीय, मैकेनिक्सबर्ग, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, मैक्सिको… इतनी विविध संस्कृतियों के दर्शन ने आपकी साहित्यिक दृष्टि को किस प्रकार आलोकित किया? क्या कोई विशेष प्रसंग मन को छू गया?
★ अमित जी :- अलग-अलग जगहों, संस्कृतियों को जानना बहुत अच्छा रहा। संस्कृति भले ही भिन्न हो लेकिन मानव मन के भाव काम, क्रोध आदि या सकारात्मक भाव सभी में हैं।
नॉर्वे में एक बुजुर्ग थे जो हमारी ही टीम में डेवलपर थे। मेरा बड़ा बेटा नॉर्वे में पैदा हुआ। उन्होंने अपने घर बुलाया और उनकी पत्नी और उन्होंने बेटे को बहुत दुलार दिया । जो बहुत ही हृदय स्पर्शी था।
उनसे काफी समय तक संपर्क में था। अभी कुछ साल से नहीं हूं।
☆ प्रश्न 8. सृजन-साधना का समय :
महोदय, सॉफ्टवेयर के तकनीकी संसार और काव्य के भावुक लोक के बीच आप किस प्रकार सामंजस्य स्थापित करते हैं? कौन-सा समय विशेष रूप से सृजन के लिए समर्पित है?
★ अमित जी :- जी, जॉब में आने के बाद सृजन साधना थम सी गई है।
फिर किसी विशेष समय पर सृजन करना मेरे लिए संभव नहीं। भाव जब आए तब ही हो पाता है।
इसीलिए अब कम ही सृजन होता हैं।
☆ प्रश्न 9. अप्रकाशित रचनाओं का भंडार :
मान्यवर, आपकी अधिकांश रचनाएँ नवें दशक की हैं और “अभीप्सा” के बाहर अप्रकाशित। क्या उन रचनाओं को पुनर्जीवित करने, उन्हें पाठकों तक पहुँचाने की कोई मनोकामना है?
★ अमित जी :- जी, मेरी माताजी का बाकी रचनाओं को भी प्रकाशित करने का विचार है।
☆ प्रश्न 10. साप्ताहिक साहित्यिक संवाद :
बंधुवर, साहित्यिकी पटल पर साप्ताहिक आलेख समीक्षा से आप किस प्रकार जुड़े हैं? यह कार्य आपके लिए एक दायित्व है, साधना है अथवा आनंद का स्रोत?
★ अमित जी :- ९० के ही दशक में आदरणीय अनिल भाई साहब से परिचय हुआ। उनके साथ देश , समाज व अध्यात्म की अनेक चर्चाएं हुई। और बहुत कुछ सीखने को मिला।
साहित्य और संवाद पटल आरम्भ हुआ तो अनिल भाई साहब ने इस योग्य समझा कि समीक्षा कार्य का निर्वाह किया जा सके और इस प्रकार उनके द्वारा ही मुझे जोड़ा गया।
यह कार्य साधना और आनंद दोनो ही है।
आलेखों के माध्यम से सभी रचनाकारों के विचार समझने का अवसर मिलता है।
बाकी मैं पटल पर ज्यादा समय नहीं दे पाता हूँ, जिसका खेद रहता है।
☆ प्रश्न 11. मातृ-साहित्यिक विरासत :
आदरणीय, आपकी माता श्रीमती सुधा शर्मा जी एवं बहन स्वाति जी भी साहित्य से अनुरक्त हैं। क्या यह साहित्यिक वातावरण आपके बालमन पर छाया रहा? उनकी रचनाधर्मिता ने आपको कैसे प्रभावित किया?
★ अमित जी :- माताजी उस समय उपन्यास व कहानियां लिखती थीं जो ज्वलंत समस्याओं पर आधारित होते थे। वो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं।
उनकी ही सोच का कुछ अंश मिल गया होगा जिससे थोड़ा बहुत सृजन बन पड़ा।
छोटी बहन बहुत संवेदनशील है और माताजी की तरह बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। उसके साहित्य में अदृश्य और सूक्ष्म भाव में संसार की झलक होती है, जो अद्भुत है।
☆ प्रश्न 12. परिवार और साहित्य का ताना-बाना :
अमित कुमार जी, पत्नी, पुत्रों और दूर निवास कर रही बहनों के साथ संबंधों का साहित्यिक सृजन पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्या दूरियाँ कविता में निकटता लाती हैं?
★ अमित जी :- कहते हैं दूरियों से प्रेम बढ़ता है। शायद यह सच है। साहित्य में भी अलग ही भाव आते हैं।
☆ प्रश्न 13. डिजिटल युग :
अमित जी, आज के डिजिटल युग में, जहाँ सोशल मीडिया की अल्पाक्षर भाषा और अतिव्यस्त जीवनशैली ने साहित्यिक रुचियों को प्रभावित किया है, वहाँ आपकी दृष्टि में समकालीन हिन्दी कविता के समक्ष सर्वाधिक जटिल चुनौती क्या है?
★ अमित जी :- जी, आज के साहित्य के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भाषा का ज्ञान ही है। ज्यादातर बच्चे काम चलाऊ और आम बोलचाल की हिंदी ही समझते हैं। भावों की विविधता को अभिव्यक्त करने वाले शब्दों का उन्हें ज्ञान ही नहीं।
फिर, अति व्यस्त जीवन शैली और अब तो क्रिकेट भी २० ओवर का हो गया है। यूट्यूब शॉर्ट्स, रिल्स आदि के बाद किसी भी सामग्री को मिलने वाला समय भी घट गया है। लोग १ मिनिट में ही बदलाव चाहते हैं।
किंतु, उत्कृष्ट साहित्य इस तरह के उपभोग केलिए नहीं है।
हां, भाषा की घटती समझ जरूर चिंता का विषय है।
☆ प्रश्न 14. लखनऊ विश्वविद्यालय की छाप :
मान्यवर, एम.सी.ए. की शिक्षा ने तकनीकी ज्ञान दिया, पर क्या लखनऊ की नवाबी संस्कृति और साहित्यिक परंपरा ने भी आपके मन पर छाप छोड़ी?
★ अमित जी :- लखनऊ बहुत प्यारा शहर है। सामान्य लोगों में ऐसा कुछ नवाबी संस्कृति जैसा महसूस नहीं हुआ। वहां ज्यादा साहित्यिक संपर्क नहीं हुए। पढ़ाई की व्यस्तता काफी थी।
हां, लखनऊ की खास यादगार है कि नीरज जी को एक सम्मेलन में साक्षात् सुनने का अवसर मिला।
☆ प्रश्न 15. पुणे से पेंसिल्वेनिया तक का सफर :
महोदय, पुणे में निवास से अमेरिका प्रवास तक का सफर… क्या यह भौगोलिक परिवर्तन आपकी रचनात्मक अभिव्यक्ति की भाषा या विषयवस्तु में भी परिवर्तन लाया?
★ अमित जी :- जी कुछ खास नहीं। दिन रात अंग्रेजी के प्रयोग से थोड़ा असर पड़ा है कि कभी कभी हिंदी के कुछ खास शब्द जुबान पर नहीं आते और प्रवाह में अंग्रेजी के शब्द जल्दी जुबान पर आते हैं।
☆ प्रश्न 16. समकालीन साहित्यिक परिदृश्य :
आदरणीय, वर्तमान हिंदी साहित्यिक परिवेश, विशेषकर काव्य जगत, को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं? क्या कोई नया प्रवाह आपको विशेष रूप से प्रभावित करता है?
★ अमित जी :- नए प्रयोग जैसे हाइकु आदि सराहनीय हैं।
किंतु अभी अभिव्यक्ति के माध्यम अधिक और सरलता से उपलब्ध हो गए हैं और सभी कुछ भी प्रयोग करने की मनःस्थिति में आ गए हैं।
शुद्धता पर ध्यान कम हुआ है।
☆ प्रश्न 17. सामाजिक सरोकार और कवि का दायित्व :
अमित कुमार जी, आज के जटिल सामाजिक, राजनीतिक परिवेश में, एक रचनाकार के कंधों पर क्या दायित्व आन पड़ता है? क्या कविता परिवर्तन का साधन बन सकती है?
★ अमित जी :- कविता हमेशा से प्रेरणा और परिवर्तन का साधन रही है। उसका अपना महत्व है। हृदय वही हैं।बस कोई छू ले तो उसकी ताल पर धड़कने लगेंगे।
आज के जटिल परिवेश में रचनाकारों का दायित्व बढ़ जाता है।
☆ प्रश्न 18. प्रकाशन का अभाव :
अमित जी, एक संग्रह के अतिरिक्त अन्य रचनाएँ प्रकाशित न कराने का निर्णय किन विचारों के तहत लिया? क्या यह एक सचेतन निर्णय था?
★ अमित जी :- जी कभी अंतः प्रेरणा नहीं हुई। समझिए कि ईश्वर की आज्ञा नहीं हुई।
☆ प्रश्न 19. भाषा की सजीवता :
बंधुवर, आपकी काव्य-भाषा में एक सहज प्रवाह और अलंकृत प्रयोग दिखाई देता है। भाषा के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है? क्या यह स्वतः स्फूर्त है अथवा परिश्रम से तराशी गई?
★ अमित जी :- जी स्वतः स्फूर्त है। जो थोड़ा बहुत साहित्य पढ़ा उससे ही जितना परिष्कार हुआ वही हुआ। अन्यथा कोई अलग प्रयास नहीं किया।
☆ प्रश्न 20. भविष्य की योजनाएँ :
महोदय, “अभीप्सा” के पश्चात, क्या कोई नया काव्य संग्रह, गद्य रचना अथवा कोई अन्य साहित्यिक प्रकल्प आपके मन में विद्यमान है?
★ अमित जी :- जी, अन्य अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करना बाकी है।
☆ प्रश्न 21. व्यक्तिगत पहचान और साहित्यिक अस्तित्व :
मान्यवर अमित कुमार जी, आप सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं और साहित्यकार भी। ये दोनों पहचानें आपके भीतर कैसे सहअस्तित्व रखती हैं? क्या एक दूसरे को पोषित करती हैं?
★ अमित जी :- सॉफ्टवेयर की अपनी रचनाधर्मिता है। कॉरपोरेट जगत में आकर देखा कि अलग-अलग स्तरों पर लोग रचनात्मक तरीके अपनाते हैं।
फिर चाहे वो ट्रेनिंग देने के तरीके में, मोटिवेशन देने में, लोगों से कुछ करवा लेने के लिए, किसी संदेश को प्रसारित करने में… आदि।
हम टी वी आदि में रचनात्मक विज्ञापन देखते ही हैं।
लेकिन मेरे लिए साहित्य भावों को समझना और हृदय की आवाज रूप में ही रहा।
☆ प्रश्न 22. हिन्दी का वैश्विक गांव :
आदरणीय, “हिंदी साहित्य के ‘वैश्विक गाँव’ में विस्तार के इस दौर में, जहाँ प्रवासी भारतीय लेखकों की भूमिका सर्वविदित है, आपकी मान्यता के अनुसार ‘विश्व-हिंदी’ की अवधारणा को साहित्यिक गरिमा प्रदान करने हेतु कौन-से तीन मौलिक सिद्धांत अनिवार्य हैं?
★ अमित जी :- विश्व हिंदी को साहित्यिक गरिमा प्रदान करने हेतु यदि मौलिक सिद्धांतों की बात की जाए तो ,
१. साहित्य विभाजन न करता हो। देश, धर्म, जाति या और भी कोई प्रकार का विभाजन , उससे ऊपर होकर लिखा जाए।
२. नए विश्व में नई समस्याएं हैं जिसमें रिश्तों की समीकरण बदली है, मनोवैज्ञानिक रूप से अलग तरह की उलझने बढ़ी है जो सब देशों, समुदायों में समान है।
इस सबके बीच मनुष्य को मूल प्रेरणा देने वाला साहित्य हमेशा जरूरी रहेगा।
३. साहित्य में विविधता हो, जो देश काल का ध्यान रखते हुए रखी जाए।
☆ प्रश्न 23. कल्पकथा परिवार :
अमित जी, “कल्पकथा परिवार के मंच से जुड़ते हुए आपके अंतर्मन में क्या भाव गूंजते हैं? क्या यह मंच आपकी अभिव्यक्ति का सहचर बन सकता है?”
★ अमित जी :- कल्पकथा परिवार एक सराहनीय कार्य कर रहा है। साहित्य को पुष्पित पल्लवित करने की दिशा में निरंतर लगा है।
कल्प कथा परिवार को विशेष शुभकामनाएं
☆ प्रश्न 24. संदेश:
अमित कुमार जी, आप अपने दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
★ अमित जी :- मनुष्य की जिज्ञासा सत्य की खोज ही है। साहित्य उसी की अभिव्यक्ति का माध्यम है। हम मिलकर अपने प्रति, समाज के प्रति और जीवन के प्रति ईमानदार रहें तो इस खोज को, इस अभिव्यक्ति को अधिक सार्थक कर सकेंगे।
संग मिलकर चले, सम ही बोले।
✍🏻 वार्ता : श्री अमित कुमार शर्मा, मैकेनिक्सबर्ग, पेनसिल्वेनिया (अमेरिका)
कल्प भेंटवार्ता के व्यक्तित्व परिचय में मेरठ (उप्र) के उत्कृष्ट साहित्यकार श्री अमित कुमार शर्मा जी से वार्ता करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ये अर्थोपार्जन हेतु अमेरिका के आर्थिक प्रवास क्षेत्र मैकेनिक्सबर्ग, पेनसिल्वेनिया में निवासरत हैं। यहाँ उसी के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/9TbHBqzdYz4?si=IkyicUFlvuHo-E5c
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : “कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
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