
!! “व्यक्तित्व परिचय : श्री सुधीर शर्मा “अधीर” जी ” !!
- कल्प भेंटवार्ता
- 02/08/2025
- लेख
- साक्षात्कार
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🌺 “कल्प भेंटवार्ता” – श्री सुधीर शर्मा अधीर जी के साथ 🌺
!! “मेरा परिचय” !!
नाम :- श्री सुधीर शर्मा अधीर, माधवनगर, सहारनपुर (उप्र)/दि ग्रीन्स, दुबई (मध्यपूर्व एशिया)
माता/पिता का नाम :-
स्व. रामदुलारी देवी / स्व. रघुनाथ सहाय
जन्म स्थान एवं जन्म तिथि :- काँधला, जिला- मुज़फ्फरनगर
पत्नी का नाम :- संगीता शर्मा
बच्चों के नाम :- राहुल शर्मा
(पुत्र, आई टी कंपनी, ” Dataphi का सह-संस्थापक)
नेहा शर्मा
(पुत्र वधू, “साहित्य अर्पण” नामक अंतर्राष्ट्रीय मंच की संस्थापिका और व्यवस्थापिका)
अपर्णा शर्मा (पौत्री )
शिक्षा :- बी ई (पल्प एंड पेपर), रुड़की विश्वविद्यालय
व्यवसाय :- सेवानिवृत्त अधिकारी, पेपर इंडस्ट्री
वर्तमान निवास :- 6/4081, माधवनगर, सहारनपुर
आपकी मेल आई डी :- sudhirkrsharma1962@gmail.com
आपकी कृतियाँ :-
काव्य संग्रह:
दो बूँद जिंदगी की
मेरे घर आना, जिंदगी
साझा संग्रह:
अर्पण साहित्यांजलि,
समंदर के मोती,
अपना ही अक्स
आपकी प्रकाशित कृतियाँ :- लगभग 250 रचनायें,
मुख्य कविता: दो बूँद जिंदगी की, मेरे घर आना, जिंदगी, ढाई अक्षर प्रेम का, एक मासूम सच की किस्मत, सत्य से शिकायत, सत्य का अज्ञातवास, कुछ अनकहे सत्य, मील का पत्थर, जिंदगी का चेहरा, मैंने जीना सीख लिया, अर्थ खोती जिंदगी, एक दोहरी जिंदगी, एक मुठ्ठी आसमान, लड़की हूँ लड़ सकती हूँ, नारी तू नारायणी, माँ का चेहरा देखा है, मेरे घर में माँ आई है, मेरे बाबूजी…………
लघु कथा:
दोराहे पर खडी़ जिंदगी,
जरा सोचिए, कभी कुछ इस तरह भी
पहला पाठ
मैंने पूछा चाँद से
व्यंग्य: झूठ बोले, कौआ काटे,
सारी बिच नारी है
अतिथि देवो भव
ये छुपे रूस्तम
पुरस्कार एवं विशिष्ट स्थान :-
आकाशवाणी, नजीबाबाद के ” काव्यधारा ” कार्यक्रम में काव्यपाठ
दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन, अखिल भारतीय भाषा संस्थान और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक विमोचन
“मानसी” सांस्कृतिक चेतना मंच द्वारा पुस्तक विमोचन
“मानसी” के वार्षिकोत्सव में काव्यपाठ प्रतियोगिता के निर्णायक के रूप में
” रंग श्री सम्मान “
कोठारी इंटरनेशनल स्कूल के ” हिंदी दिवस समारोह ” में मुख्य अतिथि
लेखक गाँव, उत्तराखंड में भू पू मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मान
प्रतिष्ठित कवियों श्री सोम ठाकुर, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, शंभु शिखर और सुभाष वसिष्ठ जी की गरिमामयी मयी उपस्थिति में काव्य पाठ
!! “मेरी पसंद” !!
उत्सव :- स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंती, हिंदी दिवस, होली, दीपावली आदि
भोजन :- शुद्ध शाकाहारी (स्वादिष्ट)
रंग :- आसमानी
परिधान :- जो भी उपलब्ध हो
स्थान एवं तीर्थ स्थान :- काशी, रामेश्वरम, तिरुपति
लेखक/लेखिका :- मुंशी प्रेम चंद, शिवानी, टैगोर, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
कवि/कवयित्री :- तुलसी दास, कबीर दास,
उपन्यास/कहानी/पुस्तक :- रामचरितमानस, मानसरोवर, गबन, गोदान
खेल :- क्रिकेट ( सिर्फ देखना, भारत की विजय कामना करते हुए)
फिल्में/धारावाहिक (यदि देखते हैं तो) :- तारक मेहता का उल्टा चश्मा
आपकी लिखी हुई आपकी सबसे प्रिय कृति :-
ढाई अक्षर प्रेम का
!! “कल्पकथा के प्रश्न” !!
☆ 1. प्रश्न :- आपका व्यक्तिगत एवं साहित्यिक परिचय प्रदान करें?
★ सुधीर जी :- मैं समझता हूँ, उपरोक्त वर्णित विवरण पर्याप्त है, यदि कुछ और जानकारी चाहिए तो स्वागत है।
☆ 2 प्रश्न :- आप महाभारत कालीन कृष्ण वट वृक्ष, माता शाकुंभरी देवी शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध सहारनपुर नगर से है, हम आपसे आपके नगर को आपके ही शब्दों में सुनना चाहते हैं।
★ सुधीर जी :- काष्ठनगरी सहारनपुर उप्र के बड़े औद्योगिक नगरों में से एक है. पेपर मिल, आई टी सी की सिगरेट फैक्ट्री, शुगर मिल तथा काष्ठ और होजरी वर्क. आई आई टी, रुड़की का कैंपस (जहाँ मैंने तकनीकी शिक्षा प्राप्त की है) यहाँ की, भारत की गंगा जमुनी संस्कृति और सौहार्द का प्रतीक है मेरा सहारनपुर।
☆ 3. प्रश्न :- “नाम सुधीर, लेखनी अधीर” — इस विरोधाभास में आपके साहित्यिक व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष प्रतिबिंबित होता है?
★ सुधीर जी :- “यथा नाम, तथा गुण ” को चरितार्थ करने में असमर्थ, नाम से सुधीर, स्वभाव से अधीर, इस विरोधाभास को पाटने के लिए एक सेतु-निर्माण को ही साहित्य-सृजन का रूप दे रहा हूँ।
स्वयं के भीतर और आसपास के परिवेश में यथार्थ और परमार्थ, दोनों के बीच समन्वय और सामंजस्य का भरसक प्रयास ही मेरे लेखन का आधार है।
☆ 4. प्रश्न :- आदरणीय सुधीर जी, हम आपसे आपके बचपन की नादानी का वह प्रसंग जानना चाहते हैं जो याद करके आप आज भी मुस्कुरा उठते हैं?
★ सुधीर जी :- जब मैं लगभग चार साल का था तब मेरे फुफेरे भाई जो मुझसे आठ साल बडे़ हैं, पधारे थे. उनके लिए मेरी अम्मा ने खीर बनायी. फिर मैं उनके साथ अपनी बुआ के घर चला गया और तीन चार दिन की अधीर प्रतीक्षा के बाद मैं एक अधिकार के रूप में बुआ से खीर की माँग कर बैठा. आज भी वो नादानी मुझे गुदगुदा देती है
☆ 5. प्रश्न :- माँ पर केंद्रित आपकी कविताओं में मातृशक्ति की कौन-सी शाश्वत छवि सबसे अधिक प्रखर होकर उभरती है?
★ सुधीर जी :- त्याग और बलिदान की छवि
“ममता बनकर घर आँगन के
कण कण में बिखरती माँ
बन जसोदा, जीजाबाई,
पन्ना धाय निखरती माँ
कभी झिड़कती, डाँटती
फटकारती माँ
और फिर दुलारती,
पुचकारती माँ
ढालकर संस्कार के साँचे में
हम को यूँ सँवारती माँ
लगती मस्जिद की अजान सी
मन मंदिर की आरती माँ।”
☆ 6. प्रश्न :- “नारी, तू नारायणी”— इस कविता में आप नारी के कौन-कौन से सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप उकेरते हैं?
★ सुधीर जी :- धन्य है,इस देश की नारी जो करवा चौथ पति के लिए, भैया दूज भाई के लिए, होई अष्टमी पुत्र के लिए करती है और खुद के लिए तो वो दुबारा आटा भी नहीं गूँथ सकती.
एक नया भूगोल और इतिहास रचाती इंदिरा, पति के प्राण लौटाती सावित्री, त्रिमूर्ति को दुग्धपान कराती अनसूया और अंतरिक्ष में भारत की नवगाथा लिखती सुनीता, इन सबको देखकर मुँह से बस यही निकलता है, ” नारी, तू नारायणी “
☆ 7. प्रश्न :- आपके रचनात्मक लेखन में “सत्य” की अवधारणा बारंबार लौटती है— क्या यह आत्मसंघर्ष है या सामाजिक दर्पण?
★ सुधीर जी :- जी, दोनों
यथार्थ और परमार्थ की खाई को दिखाने का दर्पण
और इस दर्पण पर जमी जड़ता की धूल हटाने का संघर्ष.
एक साहित्यकार को व्यवस्था के लिए अगरबत्ती नहीं, मोमबत्ती बनना चाहिए।
☆ 8. प्रश्न :- “अतीत की परछाइयाँ” आज के वर्तमान को कितना आलोकित करती हैं?
★ सुधीर जी :- आज अतीत की परछाई जितनी लंबी है, उतनी शायद कभी नहीं रही. इसने हमारी चेतना, रचनात्मकता और भविष्य के दर्शन को इस प्रकार ग्रस्त कर लिया है कि हम भविष्य के सूर्य की ओर पीठ करके चल रहे हैं और परिणामस्वरूप हमें केवल अपनी परछाई ही दिख रही है.
☆ 9. प्रश्न :- आपकी लेखनी में व्यंग्य एक विशिष्ट रंग भरती है— क्या व्यंग्य आपको सामाजिक विसंगतियों पर हस्ताक्षर करने का सशक्त माध्यम लगता है?
★ सुधीर जी :- जी, हाँ, व्यंग्य लेखनी की एक ऐसी विधा है जो सत्य के धरातल पर चलकर चैतन्य के आकाश को छू लेती है और हमारी अपनी, ” घर-घर की कहानी” बनकर कहीं गहराई में उतरकर अवचेतन में उतर जाती है।
☆ 10. प्रश्न :- “झूठ बोले कौआ काटे” में बालपने की कहावत के माध्यम से आपने आज के सत्य को कैसे व्याख्यायित किया?
★ सुधीर जी :- मैंने एक दिन एक समाचार पढा़,
” न्यायालय परिसर में तीन कौवे मर गये”
मुझे लगा कि पहले झूठ बोलने से कौआ काट लेता था, आजकल बेचारा स्वयं परलोक सिधार जाता है क्योंकि यह आम धारणा है कि सबसे ज्यादा झूठ न्यायालय में ही बोला जाता है और वह भी गीता पर हाथ रखकर. बस इसी उलटबासी ने इस व्यंग्य को जन्म दिया है।
☆ 11. प्रश्न :- शर्मा जी, आपका आध्यात्मिक लेखन “लघु में प्रभु” किस प्रकार आधुनिक भौतिक जीवन में ईश्वरत्व की अनुभूति कराता है?
★ सुधीर जी :- यह भगवान् कृष्ण की बाल्यावस्था की कथा है. लघु रूप में प्रभु का अवतरण ही ” लघु में प्रभु ” का कथानक है. कृष्ण की हर एक लीला एक अद्भुत निहितार्थ लेकर आती है. उदाहरण के लिए. कारागार में प्रभु का प्रकट होने और बाहर गोकुल तक पहुँचने को कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं कि मन एक कारागार है और इसमें जब प्रभु का अवतरण होता है तो मर्यादा के सभी बंधन स्वत:खंड-खंड हो जाते हैं।
☆ 12. प्रश्न :- काव्य संग्रह “मेरे घर आना, जिंदगी”— क्या यह एक आमंत्रण है जीवन को अपनाने का, या कोई आत्मीय पुकार?
★ सुधीर जी :- ” कौन कहता है कि जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है.
जी नहीं, एक बार तो सिर्फ मौत ही मिलती है.
जिंदगी तो मिलती है,
हर रोज नयी सुबह बनकर
जीने की नयी वजह बनकर
एक खूबसूरत आज का
एक खुशनुमा लमहा बनकर “
बस अपने ही आसपास बिखरे-निखरे से खुशनुमा अहसास को, इधर-उधर छिटकी-ठिठकी सी छोटी-छोटी खुशियों को आत्मसात करते हुए, “प्राप्त को पर्याप्त” समझकर आपा-धापी और स्वयं ही स्वयं को दिये गये तनाव से बाहर निकलकर जीवन को ईश्वर-प्रदत्त उपहार समझकर सच्चे अर्थों में इसको भरपूर जीने की चेष्टा है यह काव्य संग्रह.
जी, हाँ, यह मेरा स्वयं को ही आमंत्रण है, स्वयं के ही जीवन के हर लमहे को बूँद-बूँद कर, घूँट-घूँट भर पीने का और जीने का.
☆ 13. प्रश्न :- आपकी रचनाओं में “मील का पत्थर” जैसी संज्ञाएँ समय और स्मृति की किस परिपक्वता को दर्शाती हैं?
★ सुधीर जी :- ” हैरान हूँ इस चमचमाते कारवाँ को देखकर
ख़्वाब जैसे जगमगाते आसमाँ को देखकर
जो बेखबर उस राह से जिस पर घनघोर अँधेरा है
अनजान है उस रात से जिसका ना कोई सवेरा है
मंजिलों से बेखबर कुछ सुनसान राहों का और सुबह को भूल चुकी सी कुछ रातों की साक्षी बनी है मेरी यह रचना जो स्वाधीनता के साढ़े सात दशकों की इस चमचमाती यात्रा को एक ” मील का पत्थर ” सा मूकदर्शक बनकर देख रहा है.
एक झलक आप भी देखिये,
इस पत्थर पर बैठकर,
” रात और दिन के पंखों पर
उड़ते हुए समय को देखा
जाने क्या-क्या बदला, पर, ना
बदली कुछ हाथों की रेखा
कड़वे सच से आँख मूँदकर
सिर्फ ऊपरी चमक-दमक को
जाने क्यों समझे विकास के
पथ का एक मील का पत्थर
मैं हूँ एक मील का पत्थर
☆ 14. प्रश्न :- कविता, लघुकथा, व्यंग्य और आध्यात्मिक आख्यानों में आपके लेखकीय मन की कौन-सी भूमि सबसे अधिक उर्वर सिद्ध हुई?
★ सुधीर जी :- सत्य को साकार करने वाली अंतर्दृष्टि
☆ 15. प्रश्न :- आपकी दृष्टि में “जीवन की नवपरिभाषा” क्या है, और वह वर्तमान पीढ़ी के लिए कितनी आवश्यक है?
★ सुधीर जी :- ” इतना हँसो कि रोने का वक्त न मिले.”
मगर यह हँसी ऐसी हो जो अंतर्मन से निकले और स्वयं को, बाकी सब को, पूरे परिवेश को सुरभित करती हुई सबके अवचेतन में उतर जाये.
निदा फ़ाजली के शब्दों में,
“घर से मस्जिद दूर हो तो यूँ किया जाये
चलकर किसी बच्चे को हँसाया जाये”
☆ 16. प्रश्न :-“ढाई अक्षर प्रेम का”— इस लघु शीर्षक में प्रेम का कौन-सा रूप सबसे अधिक सत्य, सुंदर और शाश्वत लगता है?
★ सुधीर जी :- रामनरेश त्रिपाठी कहते हैं,
” सच्चा प्रेम वही है जिसकी
तृप्ति आत्मबलि पर हो निर्भर “
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है
करो प्रेम पर प्राण निछावर “
माँ, मीरा और महादेव की तरह
☆ 17. प्रश्न :- तेलुगु, अंग्रेज़ी और हिन्दी— इन भाषाओं में लेखन से आपकी अभिव्यक्ति को कौन-सा सांस्कृतिक विस्तार मिला?
★ सुधीर जी :- जी, क्षमा करें, अँग्रेजी और तेलुगु भाषा का मुझे ज्ञान अवश्य है मगर लेखन का कोई अनुभव नहीं. हाँ, चालीस वर्ष के दक्षिण भारत प्रवास से, वहाँ के परिवेश में ढलकर मुझे अपने विचारों को एक संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकालकर एक उदार, व्यापक और विराट बनाने में सहायता अवश्य मिली है. किसी भेदभाव से ऊपर उठकर प्राणिमात्र में परमात्मा के दर्शन का प्रयास और “मानव में माधव” की अनुभूति और मानवता ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, ऐसा अटल विश्वास विकसित हुआ है।
☆ 18. प्रश्न :- “वाह-वाह” कार्यक्रम में अशोक चक्रधर जी की उपस्थिति में मिली प्रेरणा ने आपके साहित्यिक जीवन में कैसी क्रांति लाई?
★ सुधीर जी :- जी, एक बार उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति में एक कवि छिपा होता है”, बस यही अद्भुत बात अवचेतन को छूकर मेरे स्वयं में भी एक कवि ढूँढने लगी. आगे उन्होंने एक पंक्ति उछाल दी,
“हर चेहरा दागदार है, किस किस को धोइये”
स्टूडियो में बैठे लोगों को इसे पूरा करना था
और मैने बस अपने टी वी के सामने ही इसे पूरा किया,
” अंधों के आगे रोकर क्यों अपने नैन खोइये “
यह था मेरा पहला कदम मेरी इस यात्रा का
☆ 19. प्रश्न :-“एक मुठ्ठी आसमान”— इस कविता में क्या यह आकांक्षा है, विद्रोह है, अथवा आत्मविकास की पुकार?
★ सुधीर जी :- सच पूछो तो तीनों अभिव्यक्तियाँ इसमें ” एक मुठ्ठी आसमान ” ढूँढने निकली हैं. यह मूल रूप से आकांक्षा और आत्मविकास की पुकार ही है मगर यह विद्रोह बन जाता है जब कोई बड़ा आसमान किसी छोटे आसमान को निगलने लगता है, जब बड़ी मछली छोटी मछली को खाने लगती है, गली-मोहल्ले की दुकान किसी बडे़ शापिंग माल के चलते बंद होने लगती हैं जब “लाभ, लाभ और बस लाभ” की हबस में काम के घंटे परिवार के घंटे निगलने लगते हैं. यह केवल व्यवस्था को दर्पण दिखाने का प्रयास भर है, किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पणी नहीं क्योंकि हमाम में तो सभी नंगे हैं।
☆ 20. प्रश्न :- आपके विचार में आज की कविता में अनुभूति प्रबल है या भाषा का चमत्कार?
★ सुधीर जी :- अनुभूति।
मैं ठहरा विज्ञान का विद्यार्थी. आपके जैसी भाषा कहाँ से लाऊँगा?
☆ 21. प्रश्न :- “कटी पतंगों पर लिखे मजमून”— यह शीर्षक वर्तमान की किस बेमेल उड़ान का रूपक है?
★ सुधीर जी :- बस वही मजमून है जो “मील के पत्थर” पर लिखा है और जो सबके लिए ” एक मुठ्ठी आसमान” ढूँढ रहा है.
“आँखें तो हैं आसमान में
पाँव जमीं पर नहीं टिके
इन आँधियों ने कटी पतंगों
पर अपने मजमून लिखे”
आँकड़ों के मकड़जाल में उलझी अर्थव्यवस्था की तस्वीर दिखाने की कोशिश है जो शायद कभी नहीं बदलती क्योंकि बदलते तो सिर्फ मुखौटे ही हैं, चाल, चरित्र और चेहरा तो जस का तस बना रहता है.
“ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया”
कबीर के शब्दों को एक नया अर्थ दिया जाता है लगभग सभी सरकारों द्वारा. चढा़वा देखते ही देखते अदृश्य हो जाता है और बस चादर रह जाती है. चलो चादर ही सही. अगर वह भी उठा ली जाये तब भी क्या कर सकते हैं
☆ 22. प्रश्न :- “सत्य से शिकायत”— यह वाक्य स्वयं में विरोधाभासी है; इसे आपने कैसे रचनात्मक संतुलन में बांधा?
★ सुधीर जी :- “सत्य जब तक घर से बाहर निकलता है, झूठ उससे पहले ही सारी दुनिया घूम लेता है. सत्य जब तक अश्वारूढ़ होता है, असत्य उससे पहले ही अश्वमेध कर लेता है. “
बस सत्य की इस धीमी चाल-ढाल से शिकायत है,
” हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी “
☆ 23. प्रश्न :- आपके अनुभव में प्रवासी साहित्यिक मंचों का योगदान भारत की साहित्यिक संस्कृति को कितना समृद्ध कर रहा है?
★ सुधीर जी :- ” दक्षिण हिंदी प्रचार सभा ” हिंदी के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान दे रही है. उदाहरण के लिए, मेरे एक सहपाठी राघवन के पिता श्री एन वी राजगोपालन, ” केंद्रीय हिंदी संस्थान ” के निदेशक रहे हैं. उन्होंने कंबन रामायण का तमिल से हिंदी में अनुवाद किया है. भगवती चरण वर्मा जी के ” भूले बिसरे चित्र ” का तमिल भाषा में अनुवाद किया है. ऐसे असंख्य उदाहरण हैं.
☆ 24. प्रश्न :- कल्पकथा साहित्य संस्था जैसे मंचों की भूमिका के संदर्भ में— क्या आप मानते हैं कि साहित्य की चेतना अब पुनः जाग रही है?
★ सुधीर जी :- जी, आप सही कह रहे हैं।
रामसेतु निर्माण में जहाँ वानर सेना भारी भरकम शिलाओं को लेकर आ रही थी, एक छोटी सी गिलहरी भी अपने शरीर को पानी में भिगोकर, रेत लपेटकर बार-बार सेतु पर झाड़ रही थी. आप मुझे भी इसी श्रेणी में ले लीजिए। प्रयास ही मुख्य है। कोशिश ही कामयाब होती है और कोशिश हो रही है। यह मत देखो कि बर्तन कितना खाली है, यह देखो, बर्तन कितना भर चुका है और कितने जोड़ी हाथ इसमें लगे हैं।
☆ 25. प्रश्न :- आप अपने समकालीन लेखकों, दर्शकों, श्रोताओं, पाठकों, को क्या संदेश देना चाहेंगे?
★ सुधीर जी :- साहित्यकार को समाज का आँख, नाक और कान ही नहीं, चेतना भी बनना चाहिए. साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, उस पर जमी जड़ता की धूल को साफ करने का भी एक साधन है.
✍🏻 वार्ता : श्री सुधीर शर्मा “अधीर”
कल्प भेंटवार्ता के व्यक्तित्व परिचय में सहारनपुर (उप्र) के उत्कृष्ट साहित्यकार श्री सुधीर शर्मा “अधीर” जी से वार्ता करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यहाँ उसी के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
इनके साथ हुई भेंटवार्ता को आप नीचे दिये कल्पकथा के यू ट्यूब चैनल लिंक के माध्यम से देख सुन सकते हैं। 👇
https://www.youtube.com/live/f0-DsuQY57E?si=mTZKwRBt2P6bUr8C
इनसे मिलना और इन्हें पढना आपको कैसा लगा? हमें कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट लिख कर अवश्य बताएं। हम आपके मनोभावों को जानने के लिए व्यग्रता से उत्सुक हैं।
मिलते हैं अगले सप्ताह एक और विशिष्ट साहित्यकार से। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिये।
राधे राधे 🙏 🌷 🙏
✍🏻 लिखते रहिये, 📖 पढते रहिये और 🚶बढते रहिये। 🌟
✍🏻 प्रश्नकर्ता : “कल्प भेंटवार्ता प्रबंधन”
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